नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने सीएए-एनआरसी को समर्थन करते हुए जिहादी-वामपंथी गठजोड़ पर इसको लेकर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है. पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से इस पर सार्वजनिक तौर पर चर्चा शुरू करने को कहा है.
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आरएसएस ने कहा कि अल्पसंख्यकों को सुरक्षा, पूर्ण सम्मान तथा समान अवसर का आश्वासन दिया गया था. भारत की सरकार एवं समाज दोनों ने अल्पसंख्यकों के हितों की पूर्ण रक्षा की.
भारत से अलग होकर निर्मित हुए देश नेहरू-लियाकत समझौते और समय-समय पर नेताओं के आश्वासनों के बावजूद ऐसा वातावरण नहीं दे सके. इन देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों का पांथिक उत्पीड़न, उनकी संपत्तियों पर बलपूर्वक कब्जा तथा महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं ने उन्हें नए प्रकार की गुलामी की ओर धकेल दिया.
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वहां की सरकारों ने भी अन्यायपूर्ण कानून एवं भेदभावपूर्ण नीतियां बनाकर इन अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को बढ़ावा ही दिया. परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में इन देशों के अल्पसंख्यक भारत में पलायन को बाध्य हुए. इन देशों में विभाजन के बाद अल्पसंख्यकों के जनसंख्या में तीव्र गिरावट उसका प्रमाण है.
एक संयुक्त परिवार की वकालत करते हुए, आरएसएस भारतीयों से एक ‘एक परिवार’ की अवधारणा बनाने और देश में परिवार प्रणाली को मजबूत करने का आग्रह करता है.
आरएसएस का कहना है कि भारतीय समाज को आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण के बीच के अंतर को समझने की जरूरत है. भारतीय मूल्यों को भूलते हुए दिख रहे हैं.
आरएसएस ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अमित शाह से सीएए और एनआरसी पर बातचीत करने को कहा कि मोदी और शाह सार्वजनिक प्लेटफार्म का उपयोग कर इस पर बहस शुरू करने को कहा.
परंतु, जिहादी–वामपंथी गठजोड़, कुछ विदेशी शक्तियों तथा सांप्रदायिक राजनीति करने वाले स्वार्थी राजनैतिक दलों के समर्थन से, समाज के एक वर्ग में काल्पनिक भय एवं भ्रम का वातावरण उत्पन्न करके देश में हिंसा तथा अराजकता फैलाने का कुत्सित प्रयास कर रहा है.
सरकार द्वारा संसद में तथा बाद में यह स्पष्ट किया गया है कि सीएए से भारत का कोई भी नागरिक प्रभावित नहीं होगा. यह संशोधन तीन देशों में पांथिक आधार पर उत्पीड़ित होकर भारत आए दुर्भाग्यपूर्ण लोगों को नागरिकता देने के लिए है तथा किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता वापस लेने के लिए नहीं है.
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नरेदर कुमार के ट्वीट के मुताबिक आरएसएस ने 3 प्रस्ताव पारित कर सरकार के हाल के तीन कदमों का समर्थन किया गया है. पहला भारतीय संविधान को जम्मू कश्मीर राज्य में पूर्ण रूप से लागू करने एवं राज्य के पुनर्गठन का निर्णय–एक स्वागतयोग्य कदम. दूसरा श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर निर्माण–राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक और तीसरा नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019–भारत का नैतिक व संवैधानिक दायित्व.