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विरोध प्रदर्शन खत्म, अब अग्निपथ को देंगे एक मौका, बिहार में थके-हारे युवा अपने गांवों की तरफ लौटे

‘बिहार की आर्मी बेल्ट’ में अग्निपथ के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले तमाम युवा अब अपने गांव लौट चुके हैं, और आवेदन करने का मौका गवां देने के डर से आंदोलन में अपनी भूमिका से इनकार कर रहे हैं.

अभ्यास के दौरान पियानिया गांव के लड़के | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/ दिप्रिंट

आरा (भोजपुर): बिहार में युवाओं का हिंसक प्रदर्शन भड़कने और फिर राजनीतिक दलों की तरफ भारत बंद और मार्च का आह्वान किए जाने के बाद अब अग्निपथ नौकरियों को ही मौजूदा हकीकत के तौर पर स्वीकार चुके भावी सैन्य उम्मीदवार अपने गांव लौटने लगे हैं. उनका कहना है कि हताशा ने उस आक्रोश का रूप ले लिया जो पिछले हफ्ते नरेंद्र मोदी सरकार की नई नीति के खिलाफ बसें-ट्रेनें रोकने और उन्हें फूंकने के रूप में प्रकट हुआ.

बिहार में पटना से करीब 50 किलोमीटर दूर भोजपुर के जिला मुख्यालय आरा के रहने वाले 17 वर्षीय किशोर श्याम तिवारी (बदला हुआ नाम) का कहना है, ‘हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है, अब हम असहाय हैं.’ भारत के नक्शे और वायु सेना के लोगों वाली डार्क ग्रे कलर की टी-शर्ट पहने और तेल लगे बालों के साथ अभ्यास कर रहे श्याम का कहना है कि वह जल्द ही सेना की विवादास्पद अग्निवीर नौकरियों के योग्य हो जाएगा.

अनौपचारिक तौर पर ‘बिहार की सेना बेल्ट’ कहे जाने वाले आरा (भोजपुर) जिले में कई लोगों ने पिछले दिनों विरोध-प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था. लेकिन, अब जबकि वे अपने गांवों में लौट आए हैं, तो आवेदन का अवसर गवां देने के डर से आंदोलन में अपनी भूमिका से इनकार कर रहे हैं. रक्षा मंत्रालय ने रविवार को स्पष्ट तौर पर कहा था कि सभी अग्निवीर आवेदकों को यह प्रमाणित करना होगा कि वे किसी विरोध प्रदर्शन का हिस्सा नहीं थे.

पटना स्थित कई रक्षा कोचिंग संस्थान भी हिंसक विरोध भड़काने के आरोपों के बाद कक्षाएं बंद कर चुके हैं.

हालांकि, गांव लौटने पर उनका तमाम जमीनी हकीकतों से वास्ता पड़ रहा है. ग्रामीण बिहार में बेरोजगारी और गरीबी का युवाओं से गहरा नाता है. अभ्यास के मैदानों से लेकर, चौपाल और चाय की गुमटियों तक पर अग्निवीर पर ही चर्चा हो रही है.

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उन्होंने सेना की अपनी बहुआकांक्षी नौकरी पाने की कोशिश में फिर से शारीरिक प्रशिक्षण शुरू कर दिया है—वे जूते के फीते बांधते हैं और अभ्यास के लिए मैदान में उतर पड़ते हैं.

श्याम तिवारी आरा जिले के पियानिया मैदान में पुल-अप करते हुए | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/ दिप्रिंट

अगले साल सैन्य सेवा परीक्षा की उम्र पार कर जाने वाले 23 वर्षीय रितेश कुमार ने टिप्पणी की, ‘बेरोजगार रहने की तुलना में चार साल के लिए नौकरी मिलना भी बेहतर है.’ वह पूर्व में तीन भर्ती रैलियों में अपनी किस्मत आजमा चुका है और अब आवेदन करने के लिए उसके पास बस एक आखिरी मौका ही है.

फिर गांवों लौट आए

श्याम तिवारी भी उन हजारों लोगों में शामिल है जो विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेने के बाद अभी-अभी अपने गांव लौटे हैं. अभी बहुत समय नहीं बीता जब उसने सैन्य सेवा प्रवेश परीक्षा के साथ-साथ, कर्मचारी चयन आयोग, रेलवे, दरोगा (बिहार पुलिस एसआई), यूपीएससी आदि में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया.

कोविड के दौरान सेना के लिए प्रयास का अवसर गवां चुके बरोखापुर के अमित कुमार सिंह ने कहा, ‘बिहार सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की भूमि है. मैट्रिक स्नातकों के लिए सेना पहला लक्ष्य है. इसके लिए पहले तो मेडिकल परीक्षा पास करने की जरूरत होती है, लिखित परीक्षा तो बाद में आती है. ग्रामीण युवा फिजिकल टेस्ट में खरे उतरते हैं.’

आरा में सेना की नौकरी सबसे ज्यादा पसंदीदा है, सैनिकों के लिए शादी के प्रस्तावों की भरमार होती है, और पेंशन के साथ आसान सेवानिवृत्त जीवन और शहरी बस्तियों में घर बना लेना आम बात है. एक सैनिक होने पर सुरक्षा तो मिलती ही है, इसे बेहद सम्मान की नजर से भी देखा जाता है.

सैन्य सेवा के आकांक्षी एक अन्य 21 वर्षीय युवक विक्रमादित्य सिंह ने सेना में भर्ती के फायदे गिनाते हुए कहा, ‘सैनिकों को दूसरों की तुलना में अधिक सम्मान दिया जाता है. रक्षा सेवा में होने वाले किसी भी व्यक्ति के प्रस्ताव को कोई अस्वीकार नहीं करता. विक्रमादित्य ने तो कोविड से पहले तीन बार कोशिश की थी, लेकिन चयन नहीं हो पाया. कुछ लोग तो सेना में भर्ती के लिए फर्जी जन्म प्रमाणपत्र इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकते हैं.

इन युवा उम्मीदवारों का मानना है कि चार साल की सेवा योजना ने यहां के गांवों में हमेशा से व्याप्त रही पूरी ग्रामीण सैन्य संस्कृति को खत्म ही कर दिया है.

श्याम तिवारी के मुताबिक, ‘अग्निपथ योजना मुझमें देशभक्ति की भावना नहीं जगाती है.’ गांव में एक फौजी के रुतबे के बारे में बताते हुए उसने कहा, ‘जब सेना या वायु सेना के जवान हमारे गांवों लौटते हैं, तो स्थानीय लोग बहुत गर्व महसूस करते हैं. यह हमें सैन्य सेवाओं के लिए प्रेरित करता है—हम उन्हीं की तरह बनना चाहते हैं.’

श्याम के पिता ने एक माह पहले ही उसे सेना/वायु सेना की लिखित परीक्षा की तैयारी के लिए पटना स्थित करतार कोचिंग सेंटर भेजा था. उसे रक्षा सेवा का हिस्सा बनने के लिए अपनी भर्ती के लिए दौड़ना बाकी है. इसके लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से उसके एक चचेरे भाई, जो रक्षा सेवा में हैं, ने उसे भारतीय वायु सेना की टी-शर्ट भेंट की थी. इसे श्याम पूरे गर्व के साथ पहनता है.


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‘अग्निपथ के लिए दौड़ेंगे’

इस हफ्ते की शुरू में दिप्रिंट ने अग्निपथ की घोषणा के बाद से अपने लॉज और अभ्यास मैदान से गायब पटना के भिखना पहाड़ी क्षेत्र (रक्षा उम्मीदवारों के लिए एक हब) के आकांक्षी युवाओं के समूहों का पता-ठिकाना तलाशने की कोशिश की.

श्याम तिवारी विरोध करने वालों में शामिल था, लेकिन पुलिस कार्रवाई शुरू होने से पहले ही लौट आया. उसने कहा, ‘मैं इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा हूं. आखिर उस नौकरी पर समय बिताने का क्या मतलब है जो हमें चार साल में सेवानिवृत्त कर देगी?’

आरा जिले के पियानिया गांव के निवासी | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/ दिप्रिंट

उनके साथ करीब आधा दर्जन अन्य युवा भी गांव लौटे हैं. इन्हीं में एक है 17 वर्षीय बंटी कुमार, जिसे अपने समूह में सबसे अच्छे धावक के तौर पर जाना जाता है. वह भी अपनी पहली भर्ती रैली का इंतजार कर रहा है. समूह में पियानिया गांव के 50 किशोर हैं, जो अपनी 10वीं कक्षा पूरी करने के बाद 1600 मीटर दौड़ को 5 मिनट 20 सेकंड में पूरा करने के लक्ष्य के साथ दौड़ रहे हैं.
पियानिया की तरह ही बखोरापुर भी बड़ी संख्या में सैनिक देने के लिए जाना जाता है.

अभी-अभी तैयारी शुरू करने वाले साढ़े 17 साल के आनंद सूरज के लिए उन्हें सैनिक का बैज दिलाने वाली किसी भी योजना का समर्थन करने की अलग ही वजह है. सूरज ने कहा, ‘सेना अपने आप में एक ब्रांड है; आपने इसे टिकटॉक पर भी देखा होगा. अगर मुझे एक साल के लिए भी सेना की वर्दी पहनने को मिलती है, तो भी मैं इसके लिए तैयार हूं.’

सेना नहीं तो क्या?

भोजपुर के लौहर गांव के रोहित पांडेय ने हाल ही में 21 साल की उम्र पूरी कर ली है. उसने 2021 सेना भर्ती में शारीरिक और मेडिकल टेस्ट पास किया था. रोहित ने बताया, ‘लिखित परीक्षा दो बार रद्द कर दी गई थी.’ उसके साथ मौजूद दो अन्य युवाओं की कहानी भी इसी तरह है. वे तीनों लिखित परीक्षा की प्रतीक्षा कर रहे थे, जब अग्निपथ योजना घोषित कर दी गई.

मैट्रिक पास रोहित पांडेय का कहना है, ‘बिहार में कोई उद्योग नहीं है. और हमारे परिवार हमारी शिक्षा पर भी ज्यादा खर्च नहीं कर सकते. ऐसे में, 10वीं पास करने के बाद सेना भर्ती रैली सबसे अधिक मांग वाला करियर विकल्प है.’ उसे इस बात का अफसोस है कि दो साल बर्बाद कर दिए. रोहित का कहना है, ‘अगर सरकार पहले ही स्पष्ट तौर पर बता देती कि उसने ऐसी योजना बनाई है, तो मैं 12वीं में दाखिला ले लेता और रेलवे या बिहार पुलिस में ग्रुप डी में लाइनमैन की तैयारी शुरू कर देता.’

उसे इस बात की भी चिंता है कि कई लोग उम्र सीमा पार कर चुके हैं और कुछ लोगों के पास बस एक ही मौका बचा है.
अधिक आयु वाले (23 से ऊपर) कई आकांक्षी अब रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में चले गए हैं, कुछ ने सेना भर्ती की उम्मीद खत्म होने पर दुकानें खोल ली हैं या फिर होमगार्ड और लाइनमैन जैसी अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी है.

तिवारी जैसे कई लोगों का कहना है कि युवाओं को शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जताने की अनुमति दी जानी चाहिए. हालांकि, ग्रामीणों को मानना है कि युवाओं के मामले में बहुत सावधानी बरतने की जरूरत होती है. तिवारी के पड़ोसी एक वार्ड सदस्य पप्पू कुमार सिंह की राय थी, ‘ऐसी उम्र में जब युवा अक्सर बुरी संगति में पड़ जाते हैं, सरकार उन्हें नौकरी दे रही है. यह खाली बैठने से तो अच्छा ही है.’

केवल एक चीज को छोड़कर. पेंशन एक पेचीदा मामला है.

योजना का समर्थन करने वाले उसी गांव के एक किसान प्रभु नाथ सिंह ने कहा, ‘मेरा बड़ा बेटा एक सैनिक है. सरकार से मेरा एकमात्र अनुरोध यही है कि पेंशन में कटौती करनी है तो विधायकों-सांसदों की पेंशन में करें. यही एकमात्र ऐसा बिंदु है जहां सेना भर्ती के आकांक्षी युवा और प्रभु नाथ सिंह जैसे लोग एक राय रखते हैं.

संतोष सिंह पूर्व सैनिक आरा जिले के पियानिया गांव में अपनी बेकरी और मिठाई की दुकान के बाहर | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/ दिप्रिंट

पियानिया गांव के बाजार में अपनी मिठाई की दुकान पर बैठे बिहार रेजिमेंट के सिपाही संतोष कुमार सिंह, जो सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन पा रहे हैं, ने बताया कि अग्निपथ से कैसे पहली बार सेना में जाने के इच्छुक लोगों को मौका मिलेगा और अभ्यर्थियों का पूल व्यापक होगा. यह उस कड़ी को तोड़ेगा जहां कोई व्यक्ति 30 साल तक पद पर रहता है और फिर उसके बेटे अगले 30 सालों के लिए सेना में शामिल हो जाते हैं. कई परिवारों को तो मौका भी नहीं मिल पाता. चार साल में रिटायरमेंट का मतलब ज्यादा लड़कों को भर्ती का मौका मिलेगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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