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टूटे सपने, कमजोर मनोबल, पारिवारिक दबाव—बिहार में सेना में जाने के इच्छुक तमाम युवा अग्निपथ-विरोधी क्यों हैं?

कुछ लोग जहां ‘सेना में शामिल होने’ को अपनी प्रतिष्ठा और गौरव से जोड़ते हैं, वहीं गरीब परिवारों के तमाम युवाओं के लिए सशस्त्र बलों की नौकरी वित्तीय सुरक्षा का वादा होती है.

पटना राजेंद्र नगर में सेना और पुलिस भर्ती के लिए उम्मीदवार तैयारी करते हुए | सूरज सिंह बिष्ट | दिप्रिंट

पटना: केंद्र सरकार की अग्निपथ भर्ती योजना ने सेना में शामिल होने की उम्मीद के साथ कई सालों से रक्षा एकेडमी में कड़ा अभ्यास करने वाले भावी सैन्य उम्मीदवारों का मनोबल तो तोड़ा ही है, उन पर परिवार की तरफ से घर लौटने का दबाव भी बढ़ा है.

14 जून को इस योजना की घोषणा होने के बाद से देश के कई हिस्सों में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. बिहार खासतौर पर ऐसे विरोध प्रदर्शनों का केंद्र बन गया है, जहां ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों को जमकर निशाना बनाया गया है.

प्रदर्शनकारी इस योजना के तहत केंद्र सरकार की तरफ से सैन्य भर्ती में किए गए तमाम बदलावों का विरोध कर रहे हैं—खासकर सेवाकाल कम होना, पेंशन का अभाव और आयु सीमा साढ़े 17 से 21 साल ही रखना.

दिप्रिंट ने पटना के गांधी मैदान और राजेंद्र नगर स्थित मोइन-उल-हक स्टेडियम का दौरा किया, जहां सेना के उम्मीदवार सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए आवश्यक कठिन शारीरिक प्रशिक्षण की तैयारी करते हैं. यहां बड़ी संख्या में युवा प्रैक्टिस में हिस्सा लेने के बजाए भिखना पहाड़ी क्षेत्र की भीड़भाड़ वाली गलियों में स्थित लॉज में रहने का विकल्प चुनते पाए गए, जिसे पटना में रक्षा एकेडमी का एक हब माना जाता है.

इनमें से अधिकांश ने भर्ती योजना के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के प्रति समर्थन जताया.

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राजेंद्र नगर में तैयारी कर रहे सेना के कई अभ्यर्थियों ने कहा कि वे अग्निपथ योजना के विरोध में हैं | सूरज सिंह बिष्ट | दिप्रिंट

कुछ ने कहा कि उनका ‘सेना का जाने का सपना’ टूट गया है, दूसरों ने कहा कि उनके लिए सैन्य बलों में नौकरी का मतलब स्थिरता है. गरीब परिवारों से ताल्लुक रखने वाले तमाम युवाओं के लिए ऐसी नौकरी आर्थिक सुरक्षा का वादा होती हैं.

कुछ होमगार्ड भर्ती परीक्षा की तैयारी जैसे अन्य विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं.

दोनों प्रैक्टिस ग्राउंड में दिप्रिंट ने दरोगा (सब-इंस्पेक्टर) पदों की भर्ती की तैयारी कर रहे छात्रों से भी मुलाकात की, जिन्होंने अग्निपथ विरोधी प्रदर्शनकारियों के साथ एकजुटता जताई.

दरोगा पोस्ट की तैयारी कर रही कैमूर जिले की मिक्की कुमारी ने इस मामले को एक ‘बड़ा मजाक’ बताया.

उसने दिप्रिंट से बातचीत में सवाल उठाया, ‘ये तो बहुत बड़ा मजाक है. क्या ये बच्चे चार साल बाद फिर कंपटीशन करेंगे?’


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कुछ के लिए ‘प्रतिष्ठा और गौरव’ तो कुछ के लिए अस्तित्व का सवाल

भावी उम्मीदवारों में एक 18 वर्षीय युवक भी है जो सीवान जिले के सैन्य अधिकारियों के परिवार से आता है. उनके कई भाई, चाचा और अन्य रिश्तेदार सेना में सेवाएं दे चुके हैं.

दो महीने पहले ही उसके परिवार ने उसे पटना भेजा था.

मेट्रो निर्माण कार्य की वजह से मोइन-उल-हक स्टेडियम बंद होने के साथ सैकड़ों उम्मीदवारों को दौड़ने और अन्य शारीरिक व्यायाम के अभ्यास के लिए पास के स्कूल मैदानों में भेज दिया गया है.

ऐसे ही एक स्कूल मैदान में प्रशिक्षण के लिए आए केवल तीन उम्मीदवारों में से एक यह 18 वर्षीय युवक था.

पहचान जाहिर न करने की शर्त पर उसने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने आज किसी तरह खुद को मैदान में आने के लिए तैयार किया. मेरे लॉज के साथी हतोत्साहित हैं. उन्होंने ठीक से खाना नहीं खाया है. कई दिनों से दही-चूरा खाकर गुजारा कर रहे हैं.’

उसने कहा कि जब अग्निपथ योजना की घोषणा की गई तो उनमें से कई एकदम ‘हैरान’ रह गए. उसने कहा, ‘हम अभी भी यह भरोसा नहीं कर पा रहे हैं कि सेना में शामिल होने का हमारा सपना टूट गया है. बात केवल वेतन की नहीं है. यह मेरे लिए प्रतिष्ठा और गौरव से जुड़ा है.’

गोपालगंज और सुपौल जिले के दो अन्य युवकों के लिए दो साल का कठोर शारीरिक व्यायाम और दौड़ना रोजगार, एक सुरक्षित नौकरी और समाज में अपनी जगह बनाने से अधिक जुड़ा था.

दोनों भिखना पहाड़ी इलाके में अलग-अलग लॉज में रहते हैं.

गोपालगंज का 17 वर्षीय युवक एक अन्य उम्मीदवार के साथ 10×8 फीट का किराये का कमरा साझा करता है. उसकी संपत्ति के नाम पर सिर्फ एक बिना गद्दे की खाट, दीवार पर तीन जोड़ी पैंट-शर्ट, भारत का नक्शा और करंट अफेयर्स पर कुछ पुरानी किताबें ही हैं.

एक उम्मीदवार, भिखाना पहाड़ी इलाके में अपने लॉज में पढ़ाई करते हुए उन्होंने प्रशिक्षण सत्र में जाना बंद कर दिया है | सूरज सिंह बिष्ट | दिप्रिंट

नाम न छापने की शर्त पर उसने बताया, ‘मेरे पिता एक किसान है. वह महीने में केवल 3,500 रुपए कमाते हैं. मैं कमरे के किराए के तौर पर प्रतिमाह 2,000 रुपए का भुगतान करता हूं और प्रतिदिन भोजन पर 50 रुपए खर्च करता हूं. मैं अभी कई दिनों से केवल आराम कर रहा हूं. इस घोषणा के बारे में पता लगने के बाद से ही मेरा परिवार मुझे वापस बुला रहा है. गांवों में जबर्दस्त आक्रोश है.’

वह अब होमगार्ड भर्ती परीक्षाओं में शामिल होने की सोच रहा है क्योंकि उसमें ‘कम से कम वे 25,000 से 30,000 रुपए के बीच वेतन मिलता है और आपको अपने परिवार से दूर भी नहीं रहना पड़ता है.’

सेना में भर्ती के इच्छुक सुपौल निवासी एक युवा—जो कुछ महीने पहले 23 वर्ष का हो गया था—को महामारी के कारण अधिकारी बनने के अपने सपने को छोड़ना पड़ा. गौरतलब है कि महामारी के कारण पिछले दो वर्षों में सेना की तरफ से कोई भर्ती रैली नहीं हुई है.

वह अग्निपथ विरोधी प्रदर्शनों का हिस्सा हैं क्योंकि उसकी तरह ही तमाम अन्य युवाओं को उम्मीद थी कि सरकार उन उम्मीदवारों के लिए कुछ निर्णय लेगी जो कोविड के कारण मौका चूक गए, उन्हें एक और मौका मिलेगा.

उसने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने कटिहार में फिजिकल टेस्ट क्लियर किया था और 2021 में लिखित परीक्षा में बैठा लेकिन फिर नतीजे ही घोषित नहीं हुए और मैं इंतजार करता रह गया.’ साथ ही जोड़ा कि उसके परिवार ने कुछ ही समय बाद उसे ट्रेनिंग के लिए पैसा देना बंद कर दिया, जिसके बाद उनके ट्रेनर सुजीत कुमार कुछ समय उसका साथ दिया.

चाणक्य रक्षा एकेडमी के प्रशिक्षक कुमार ने कहा कि अकादमी पिछले पांच वर्षों से पटना में युवाओं को प्रशिक्षण दे रही है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले हफ्ते सेना के कम से कम 100 उम्मीदवार अभ्यास के लिए आए थे. लेकिन आज सुबह केवल तीन ही आए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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