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कृत्रिम हाथ, जन्म के समय शिशुओं के कम वज़न का पता लगाना- कई सरकारी AI प्रोजेक्ट्स पर चल रहा है काम

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कई एआई प्रोजेक्ट्स गिनाए हैं जिनपर सरकारी सेवाओं में सुधार के लिए आईटी मंत्रालय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग तथा नीति आयोग में काम चल रहा है.

एआई की प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो: पिक्साबे

नई दिल्ली: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), आईटी मंत्रालय और नीति आयोग जांच कर रहे हैं कि किस तरह लोगों को दी जा रही सेवाओं में आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल किया जा सकता है.

सरकार के प्रयासों पर 16 मार्च को राज्य सभा में पूछे गए एक अतारांकित सवाल के जवाब में रोशनी डाली गई जिसे पश्चिम बंगाल से तृणमूल सांसद मानस रंजन भुनिया ने पूछा था.

भुनिया ने पूछा था कि क्या सरकार की ओर से खासकर सरकारी सेवाओं के प्रावधान के संबंध में एआई के क्षेत्र में रिसर्च की जा रही है और यदि हां, तो ऐसे प्रयासों का विवरण दिया जाए.

अपने जवाब में स्वास्थ्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालयों के केंद्रीय मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने सरकार की रिसर्च का विवरण साझा किया.


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डीएसटी

मंत्री ने बताया कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (खड़गपुर) में एआई पर एक टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब स्थापित किया है. इसका उद्देश्य अनुसंधान, अनुवाद तथा तकनीकी विकास पर काम करना है, खासकर कि सरकारी सेवाएं कैसे मुहैया कराई जाएं.

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आईटी मंत्रालय

आईटी मंत्रालय में आठ पहलकदमियां हैं, जिनमें सरकारी सेवाओं में एआई के इस्तेमाल पर शोध चल रहा है.

इनमें अंग्रेज़ी, हिंदी और तमिल में स्वचालित स्पीच रिकग्नीशन शामिल है. भारतीय भाषाओं में बातचीत के लिए टेक्स्ट से स्पीच सिंथेसिस पर भी शोध चल रहा है.

एआई के इस्तेमाल से एक भारतीय भाषा से दूसरी भारतीय भाषा में अनुवाद पर भी काम चल रहा है.

मंत्रालय एक ‘अंग्रेज़ी-मराठी-अंग्रेज़ी मशीन ट्रांसलेशन सिस्टम’ भी विकसित कर रहा है.

इन पहलकदमियों में एक द्विभाषिक ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्नीशन पर भी शोध चल रहा है. कॉलिंस शब्दकोश के अनुसार, ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्नीशन का मतलब है, हाथ से लिखे या छपे हुए लेख की इलेक्ट्रॉनिक स्कैनिंग और पहचान और फिर उसका लिखित में रूपांतरण जिसे कंप्यूटर के ज़रिए संपादित किया जा सकता है.

आईटी मंत्रालय सेंसर-आधारित कृत्रिम हाथों, ड्रोन्स के ज़रिए कीटनाशक और फर्टिलाइज़र छिड़काव प्रणाली और सरकार के ई-मार्केटप्लेस के लिए एक एआई-आधारित सिफारिश इंजन पर भी शोध कर रहा है.

डॉ हर्षवर्धन के जवाब में, ये भी कहा गया है कि आईटी मंत्रालय की विश्वेश्वरैया पीएचडी स्कीम के तहत 80 से अधिक रिसर्च स्कॉलर्स, एआई और उससे जुड़े क्षेत्रों में शोध कार्य कर रहे हैं.


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नीति आयोग

नीति आयोग में तीन पायलट परियोजनाओं पर काम चल रहा है, जो सरकारी सेवाएं मुहैया कराने के लिए एआई का इस्तेमाल करते हैं.

मंत्री के जवाब के अनुसार, इनमें एक ‘बहराइच ज़िले में, एक क्लीनिकल डिसीज़न सपोर्ट सिस्टम प्रोजेक्ट’ भी शामिल है. इस सिस्टम का मकसद है कि फ्रंटलाइन स्वास्थ्यकर्मी, डिजिटल तरीकों से गर्भवती महिलाओं और बच्चों को परामर्श दे सकें और ‘फिज़िकल प्रविष्टियों’ के इस्तेमाल से बच सकें, ‘जिनमें गलतियों की संभावना रहती है और समय भी लगता है’.

एआई-आधारित सिस्टम का ये भी उद्देश्य है कि इन स्वास्थ्यकर्मियों को ‘महज कार्यान्वयन के एजेंट्स से मध्यवर्ती देखभाल करने वालों में तब्दील कर दिया जाए’.

नीति आयोग का एक और पायलट प्रोजेक्ट है, एआई-आधारित डायबेटिक रेटिनोपैथी डिटेक्शन सिस्टम, जिसमें रेटिना का स्कैन किया जाता है. ये पायलट मोगा ज़िले और मोहाली में चलाया जा रहा है. सरकार के जवाब में कहा गया है कि रेटिनोपैथी जांच प्रक्रिया को स्वचालित करने से स्वास्थ्य प्रणालियों और नेत्र विशेषज्ञों का बोझ कम होगा, चूंकि इसका इस्तेमाल कम-सेवित क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग के लिए किया जा सकता है.

रेटिनोपैथी तब होती है जब आंख के रेटिना का हिस्सा खराब हो जाता है.

इसके अलावा, नीति आयोग शिशुओं में जन्म के समय, कम वज़न का पता लगाने के लिए स्मार्टफोन समाधान को भी परख रहा है. ये पायलट प्रोजेक्ट राजस्थान के बारां और उत्तर प्रदेश के बलरामपुर ज़िलों में चलाया जा रहा है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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