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मोदी के IAS मैन परमेश्वरन अय्यर ने बताया, स्वच्छ भारत के मिशन को पूरा करने के लिए क्या क्या किया

परमेश्वरन ने किताब में स्वच्छता मंत्रालय में काम करते हुए अपने चार साल के अनुभव को साझा करते हुए बताया कि उनकी प्रधानमंत्री मोदी से सीधी बात होती था और उन्होंने कैसे ‘सरकारी’ खांचे को तोड़ा.

फाइल फोटो: परमेश्वरन अय्यर/ Photo: @MIB_India | Twitter

नई दिल्ली: ‘आप वही हैं ना जो आईएएस छोड़ के भाग गए थे?

परमेश्वरन अय्यर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी पहली बातचीत को कुछ इसी तरह से याद करते हैं. स्वच्छ भारत का वादे पर अमल की जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा चुने गए अय्यर उस परियोजना का पर्याय बन चुके हैं, जिसने भारत को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) बना दिया.

यह बातचीत तो स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) के लिए चार साल काम करने के दौरान के उनके अनुभवों की एक बानगी भर है, जिसे अय्यर ने अपनी नई पुस्तक ‘मेथड इन द मैडनेस—इनसाइट्स फ्रॉम माई कैरियर इनसाइडर-आउटसाइडर-इनसाइडर’ में लिखा है.

यद्यपि उन्होंने चार मंत्रियों के साथ काम किया, लेकिन वह हमेशा ‘बिग बॉस’ के प्रति जवाबदेह होते थे; उन्हें ‘विलेज एल्डर्स’ (सरकार में शीर्ष अधिकारियों) को हमेशा लूप में रखना पड़ता था; कामकाज के पुराने सरकारी तरीके को बदलने के उपाय करने थे–यह सब और ऐसी ही तमाम बातें पूर्व सरकारी अधिकारी की किताब का हिस्सा हैं.

अय्यर ने 17 साल की सेवा के बाद 2009 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद 2016 में ही पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय (एमडीडब्ल्यूएस) के सचिव के रूप में वापस लौटे. उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने देश को पांच साल में खुले में शौच से मुक्त घोषित करना का वादा किया था.

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अय्यर के ही शब्दों में, ‘किसी भी पिछली सरकार ने लैटरल इंट्री के तौर पर भारत सरकार के सचिव स्तर पर एक पूर्व-सिविल सेवक की भर्ती नहीं की थी. उस समय विश्व बैंक के लिए काम कर रहे अय्यर ने यह मौका हाथ से जाने नहीं दिया. चार वर्ष में अपना काम पूरा होने के बाद 2020 में उन्होंने फिर सरकार को छोड़कर विश्व बैंक में लौटने का फैसला किया.

अय्यर याद करते हैं कि कैसे उनका स्टाफ उनकी ‘गैर-सरकारी’ कार्यशैली से परेशान रहता था; वह रोज सुबह 8.30 बजे दफ्तर पहुंच जाते थे. कामकाज संभालने के पहले दिन ही उन्होंने अपने प्रमुख निजी सचिव से दफ्तर के बाहर लगे बोर्ड से आईएएस शब्द को हटाने को कहा.

उन्होंने अपने सचिव को बताया, ‘मैं (एक आईएएस अधिकारी) हुआ करता था, लेकिन अब मैं नहीं हूं. मानो या न मानो, लेकिन मैं भारत सरकार का एक गैर-आईएएस सचिव हूं.’


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जब लैटरल एंट्री वाले का ‘सरकारी’ सिस्टम से सामना

आगे आने वाले दिनों में अय्यर ने मंत्रालय में अपनी टीम तैयार की, और अगले तीन सालों में ग्रामीण भारत में 56 फीसदी सैनिटेशन कवरेज का असंभव लगने वाला लक्ष्य हासिल करने के लिए अपने ‘विश्वस्तों की टीम’ को चुना. उस समय तक देश में 40,000 गांवों को ओडीएफ घोषित किया जा चुका था, और अय्यर का लक्ष्य था छह लाख.

उन्हें उसी समय सरकार के अंदर ही उठने वाले संशयों का सामना करना पड़ा. उन्होंने अपनी किताब में लिखा है, ‘एक या दो बेहद उत्साही युवा अधिकारियों को छोड़कर ज्यादातर का यही कहना था कि भारतीय संविधान के मुताबिक, स्वच्छता संघीय नहीं बल्कि राज्य का विषय है, और इस पर अमल करना राज्यों की जिम्मेदारी है.’

यहां तक कि उनके सबसे वरिष्ठ अधिकारी ने भी उन्हें सलाह दी कि केंद्र को ‘दूर से ही इस पर नजर रखनी’ चाहिए. अय्यर ने तब महसूस किया कि उन्हें ‘मंत्रालय में यथास्थितिवादी माहौल को बदलने की जरूरत है और इसके लिए युवाओं की जरूरत थी.’

खुद एक विशिष्ट लैटरल एंट्री होने के नाते सरकार में लैटरल एंट्री के तौर पर शामिल किए जाने को एक आदर्श बनाने के बड़े समर्थक हैं. वह लिखते हैं, ‘जहां तक ‘परमानेंट’ इनसाइडर का सवाल है, मेरा मानना है कि आज के समय में और जब विशेष कौशल और अपने क्षेत्र के बारे में गहन जानकारी की जरूरत होती है, आईएएस के लिए जरूरी है कि खुद को रि-इंजीनियर करें और 15 साल से अधिक फील्ड एक्सपीरियंस के बाद अधिकारियों को कुछ व्यापक क्षेत्रों में ‘विशेषज्ञता’ हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए….भारत सरकार में उच्चतम स्तरों पर अधिकारियों के लिए चयन प्रक्रिया को भी अधिक लक्षित बनाया जाना चाहिए, और मेरा मानना है कि आवेदन आमंत्रित करने और नौकरी के लिए इंटरव्यू आयोजित करने की प्रक्रिया में यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसे चुना जाए जो उस काम के लिए सबसे उपयुक्त हो.’


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एसबीएम के लिए मोदी की राजनीतिक क्षमता का लाभ उठाना

अय्यर ने अपने कार्यकाल के दौरान चार मंत्रियों—चौधरी बीरेंद्र सिंह, नरेंद्र सिंह तोमर, उमा भारती और गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ काम किया, और उन सबके साथ उनके अच्छे संबंध रहे. हालांकि, वह एसबीएम पर प्रगति के लिए ‘खुद बिग बॉस’ यानी प्रधानमंत्री मोदी के प्रति जवाबदेह थे.

अय्यर बताते हैं कि उन्होंने समय के साथ मोदी के साथ एक बेहद शानदार रिश्ते बना लिए थे और एसबीएम को लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए उनकी राजनीतिक क्षमताओं का पूरा लाभ उठाया.

वह बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय में एक शीर्ष अधिकारी ने उनसे कहा था, ‘सरकार के किसी अन्य सचिव ने किसी फ्लैगशिप कार्यक्रम के लिए प्रधानमंत्री की मास अपील का उतना इस्तेमाल नहीं किया, जितना आपने किया है.’

अय्यर लिखते हैं, ‘एसबीएम पर करीब चार वर्षों तक काम करने के दौरान हमने प्रधानमंत्री के साथ रिकॉर्ड 10 बड़े सार्वजनिक कार्यक्रमों का आयोजन किया. कोई भी अन्य राष्ट्रीय फ्लैगशिप कार्यक्रम इतना नहीं कर पाया.’

अय्यर ने यह सुनिश्चित किया कि प्रधानमंत्री के अलावा सरकार में शीर्ष अधिकारी—पीएम के पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा, तत्कालीन अतिरिक्त प्रधान सचिव पीएम पी.के. मिश्रा (अब प्रमुख सचिव) और तत्कालीन कैबिनेट सचिव पी.के. सिन्हा (अब प्रधानमंत्री के प्रधान सलाहकार)—हमेशा लूप में रहें.

इस समूह का जिक्र ‘विलेज एल्डर्स’ के तौर पर करते हुए अय्यर लिखते हैं, ‘उन्हें एसबीएम के प्राथमिक पहलुओं में शामिल और अवगत कराते रहना न केवल यह सुनिश्चित करता था कि वह हर छोटी-मोटी चीजों पर नजर रखने के बजाये मुझे अपनी तरह से काम करने देने पर भरोसा रखें बल्कि यह भी आश्वस्त करता था कि ‘यदि कोई समस्या आई तो हमारी राय एक समान स्तर पर ही होगी.’

‘आधा गिलास खाली वाले गैंग’ से निपटना

अय्यर के अनुसार, चूंकि स्वच्छ भारत मिशन प्रधानमंत्री मोदी की पहचान से एकदम पूरी तरह जुड़ा गया था, इसलिए उनके विरोधियों को ‘राजनीतिक तौर पर आलोचना के लिए यह सबसे आसान मुद्दा नजर आने लगा.’

शुरुआत में उन्होंने और उनकी टीम ने देखा कि ‘बेवजह पूर्वाग्रहों के साथ कुछ समूह, निश्चित तौर पर जिनके निहित स्वार्थ थे, इस कार्यक्रम के खिलाफ हैं. अय्यर के अनुसार, उनका ‘मानक खाका’ क्षेत्र का दौरा करना, सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले गांवों को खोजने, और अपवादों को सामने लाना था.

इस पर अय्यर एक रणनीति के साथ आए—उनकी टीम आलोचना वाली हर बात का उसी दिन बिंदुवार खंडन जारी करेगी, और मीडिया संस्थानों से उसे तुरंत प्रकाशित करने का अनुरोध करेगी. एक तरफ इस रणनीति ने जहां मीडिया में सरकारी पक्ष को जगह दिलाई और दूसरी ओर, ‘इसने संपादकों को और अधिक कड़ाई से फैसले लेने और उथले और बिना शोध पर आधारित लेखों को प्रकाशित न करने के लिए प्रोत्साहित किया.’

मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र के एक वरिष्ठ प्रतिनिधि लियो हेलर के बीच उस समय गहरे मदभेद भी सामने आए थे जब अपनी आधिकारिक यात्रा के दौरान लियो ने ‘एक तीखी टिप्पणी’ करते हुए कहा था कि महात्मा गांधी के चश्मे (जो कि एसबीएम का लोगो है) को मानवाधिकार लेंस के साथ बदलने का समय आ गया है. सरकार ने हेलर की टिप्पणी पर भी बिंदुवार जवाब जारी किया था.

आखिरकार, एसबीएम ने प्रभावशाली व्यक्तियों और पत्रकारों की पहचान कर एक सूची तैयार की जिन्होंने इस तरह के ‘बेतुके लेख’ लिखे जाने से रोकने में सीधे तौर संवाद किया.

अंतत:, अय्यर यह दलील भी देते हैं कि एसबीएम के सफलतापूर्वक पूरे हो जाने के बाद उन्हें ‘एंटी क्लाइमेक्स’ जैसी भावना का अहसास हुआ. हालांकि, उन्होंने इस पर विस्तार से कोई जानकारी दिए बिना कहा कि मोदी द्वारा भारत को ओडीएफ घोषित कर देने के कुछ हफ्तों बाद उन्हें लगा कि अब इसकी कमान किसी और को सौंपने और अमेरिका में रह रहे अपने परिवार पर ध्यान देने का वक्त आ गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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