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‘भावनात्मक थकाऊ’ काम, पटियाला में अधिकारी ने बताया -कभी इतने सारे डेथ सर्टिफिकेट पर नहीं किया साइन

पंजाब के पटियाला में, मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने वाले अधिकारी का कहना है, कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था, कि उनकी मेज़ पर हर रोज़, मरने वालों के कागज़ात का ढेर लगा होगा.

पटियाला के राजिंद्रा हॉस्पिटल में मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने वाले विभाग में मृतकों के परिवार के सदस्य । अनन्या भारद्वाज । दिप्रिंट

पटियाला: शाम के 4 बज रहे हैं और राजविंदर सिंह ने अभी लंच नहीं किया है. पिछले दो महीने से, पंजाब में पटियाला ज़िले के राजिंद्रा मेडिकल कॉलेज में, सब-रजिस्ट्रार और स्टैटिस्टीशियन सिंह, वीकएंड्स पर भी काम कर रहे हैं. कभी कभी तो वो सुबह 3 बजे तक, मृतकों के निजी विवरण का अस्पतालों के रिकॉर्ड्स से मिलान करते हैं, और मृत्यु प्रमाण पत्रों पर साइन करते हैं.

देश भर में कोविड की दूसरी लहर में, जब मौतों की संख्या में उछाल आया, तो सिंह जैसे लोगों पर – जिनका काम मौतों को प्रमाणित करना है, काम का बोझ अचानक बहुत बढ़ गया.

सिंह के लिए, जो पिछले 20 वर्षों से पूरे पंजाब के मेडिकल कॉलेजों में ये काम करते आ रहे हैं, पिछले दो महीने दो दशकों में, सबसे व्यस्त रहे हैं. ये समय भावनात्मक रूप से भी थका देने वाला रहा है.

सिंह ने कहा, ‘मैंने अपने पूरे करियर में, कभी इतने अधिक मृत्यु प्रमाण पत्र साइन नहीं किए. मैंने कभी बुरे से बुरे सपने में भी नहीं सोचा था, कि इस ऑफिस के बाहर भीड़ जमा होगी, और मेरी मेज पर हर रोज़, मरने वालों के कागज़ात का ढेर लगा होगा’.

उन्होंने आगे कहा, ‘हम एक दिन में 40-50 से अधिक मृत्यु प्रमाणपत्र जारी कर रहे हैं, जिसके लिए सभी औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं, और ज़रूरी विवरण टाइप किया जाता है-जिस प्रक्रिया में तक़रीबन तीन हफ्ते लगते हैं’.

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1जनवरी से 21 मई तक पटियाला में 1,019 मौतें दर्ज की गईं, जो दूसरी लहर के दौरान पंजाब में हुईं कुल मौतों की 11 प्रतिशत थीं, और सूबे में सबसे अधिक थीं. ज़ाहिर है कि मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने वाले दफ्तर, काम के सैलाब में डूबे हुए थे.

राजिंद्रा मेडिकल कॉलेज के साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में 8,963 कोविड मौतें दर्ज हुई हैं (1 जनवरी से 21 मई के बीच) और उसकी केस मृत्यु दर (सीएफआर) 2.6 प्रतिशत रही है, जबकि सीएफआर की राष्ट्रीय दर 1.3 प्रतिशत थी. 8 जून तक भी, पटियाला में रोज़ाना औसतन 10 मौतें दर्ज हो रहीं थीं.

पटियाला नगर निगम के सूत्रों ने बताया, कि मार्च और मई के बीच, निगम द्वारा जारी किए जा रहे मृत्यु प्रमाण पत्रों की संख्या में भी, पिछले वर्ष की अपेक्षा लगभग 35 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है.

नगर निगम से हासिल किए गए डेटा के अनुसार, इस साल मार्च में 279 से अधिक मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किए गए, जबकि पिछले मार्च में 181 प्रमाण पत्र जारी किए गए थे. इस अप्रैल में 309 से अधिक सर्टिफिकेट्स जारी हुए, जबकि अप्रैल 2020 में इनकी संख्या 147 थी, और मई में ये संख्या 274 थी, जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान, 397 प्रमाण पत्र जारी किए गए थे. लेकिन, इस साल की संख्या में, अन्य एजेंसियों द्वारा जारी प्रमाण पत्र शामिल नहीं हैं.

नगर निगम ज़िले में मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने वाली, दो में से एक संस्था है- दूसरी राजिंद्रा मेडिकल कॉलेज है, जिसे अस्पताल में हुई मौतों के लिए, प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार है. ये अस्पताल हालांकि पंजाब सरकार के, चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग निदेशालय के अंतर्गत काम करता है, लेकिन पटियाला नगर निगम आयुक्त पूनम दैप कौर कहा कि निगम ने अस्पताल में, मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने के लिए, एक ‘सब-रजिस्ट्रार और अन्य स्टाफ की नियुक्ति कर दी है’. उन्होंने आगे कहा, ‘अस्पताल हमें अपडेट भेजता है, कि उन्होंने एक साल में कितने मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किए हैं’.

यही कारण है, कि पिछले साल जारी हुए प्रमाणपत्रों के डेटा में, राजिंद्रा अस्पताल के जारी किए हुए सर्टिफिकेट्स शामिल हैं, लेकिन इस वर्ष का डेटा अभी मिलाया नहीं गया है.

कौर ने कहा कि अन्य निजी या सरकारी अस्पतालों में हुई मौतों के लिए, अस्पताल अधिकारी मृतकों के आंकड़े जमा करते हैं, और वर्चुअल तरीक़े से उसे नगर निगम को भेज देते हैं, जहां जांच के बाद उसे स्वीकृत किया जाता है. निगम फिर मृत्यु प्रमाण पत्रों को अस्पताल भिजवा देता है, जहां से मृतकों के परिवार उन्हें ले लेते हैं.

कौर ने समझाया कि घर पर हुई मौतों की जानकारी, सेवा केंद्रों पर दी जाती है, जो पूरे ज़िले में स्थापित किए गए हैं, जहां परिवार मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कर सकते हैं.

इस बीच, लगातार ज़िंदों और मुर्दों के बीच रहने से, सिंह मानसिक और भावनात्मक रूप से थक गए हैं. उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई, ‘ये काम भावनात्मक रूप से थका देने वाला है. इतने अधिक लोगों का विवरण देखना जो मर गए हैं, इतने सारे नौजवान जो गुज़र गए, निश्चित रूप से हम पर असर डाल रहा है. सामान्य समय में हम दिन भर में, क़रीब पांच-छह प्रमाण पत्र जारी करते हैं. लेकिन इस लहर ने इतनी अधिक जानें ले लीं, और मई के महीने में हम पर बुरी तरह हमला किया, जब हमारी डेस्क पर कागज़ जमा होने शुरू हो गए’.

काम करने वालों की कमी के चलते, सिंह जैसे लोगों पर काम का बोझ बढ़ गया है, जो बढ़ती हुई मौतों को प्रमाणित करने के लिए, दिन-रात काम कर रहे हैं.


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स्टाफ की कमी

राजिंद्रा मेडिकल कॉलेज में –जो ज़िले की सबसे बड़ी सरकारी सुविधा है- मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने वाला दफ्तर, 40 प्रतिशत क्षमता पर काम कर रहा है. चार लोगों की एक टीम पूरा काम संभाल रही है. एक व्यक्ति मौतों का रिकॉर्ड अपने कंप्यूटर में चढ़ाता है, जबकि दूसरे दो जन्मों के रिकॉर्ड रखते हैं.

राजविंदर सिंह सभी प्रमाण पत्रों को सत्यापित करके, उन पर हस्ताक्षर करते हैं. एक आदमी ये सभी सर्टिफिकेट्स लोगों के हवाले करता है.

दिप्रिंट की टीम ने जब जून के पहले सप्ताह में विभाग का दौरा किया, तो सभी मौतों का डेटा कंप्यूटर में डालने का प्रभारी ऑपरेटर करन कुमार अपने कंप्यूटर पर बैठा की-बोर्ड पर हाथ चलाने में व्यस्त था. उसके आगे लोगों की एक लाइन थी, जो अपनी शिकायतें दर्ज कराने आए थे, जिनमें मृत्यु प्रमाण पत्र मिलने में देरी, डॉक्युमेंट नाम की ग़लतियां, ग़लत पता, या उम्र आदि की ख़ामियां होती हैं. कंप्यूटर में डेटा डालने के अलावा, करन को उनकी बात भी सुननी पड़ती है.

उसका कहना है, ‘मैं देर रात 3 बजे तक काम कर रहा हूं, और अकेले ही मौतों के आंकड़े डाल रहा हूं. कभी कभी ग़लतियां हो जाती हैं. फिर लोग यहां आकर हमसे उन्हें सुधारने के लिए कहते हैं, जो एक अलग लंबी प्रक्रिया है, और यहां से नहीं हो सकती (छप जाने के बाद सर्टिफिकेट में किसी भी बदलाव के लिए, सेवा केंद्र पर आवेदन करना होता है. फिर निगम ताज़ा सर्टिफिकेट जारी करता है)’.

कुमार ने कहा कि देश में दूसरी लहर आने के बाद से, ‘दिन भर में हमारे पास 100 से अधिक मरीज़ों की डिटेल्स आ रही हैं, जो हमारे पिछले काम का चार गुना है. अस्पताल हमें दो-तीन दिन का डेटा इकठ्ठा भेजता है. फिर यहां हम अपना काम शुरू करते हैं’.

मौत के बाद दो दिन के भीतर, डॉक्टर्स उन मरीजों की मौत की तालिका बनाते हैं, जिन्हें वो देख रहे थे, और उसे उस ऑफिस को भेज देते हैं, जहां से मृत्यु प्रमाण पत्र बनाकर जारी किए जाते हैं.

राजिंद्रा मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट एमएस रेखी ने कहा, कि वो मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने वाले ऑफिस में, स्टाफ की कमी से वाक़िफ हैं.

उन्होंने कहा, ‘हम अपनी भरसक कोशिश कर रहे हैं, कि मौतों की सूचना समय रहते जारी कर दें, और मृत्यु प्रमाण पत्र जल्द से जल्द जारी कर दें. लेकिन हमारे ऊपर काम का बहुत बोझ है. ये निश्चित ही भावनात्मक रूप से थकाऊ है’.

उन्होंने कहा कि ग़लतियां कम से कम हों, और उन्हें दुरुस्त करने में भी ज़्यादा समय न लगे, इसके लिए अस्पताल ‘मृतकों के परिजनों से कह रहा है, कि वो आकर मृतकों की डिटेल्स चेक कर लें, ताकि सर्टिफिकेट जारी होने से पहले ही, ज़रूरी बदलाव किए जा सकें’.

ये स्वीकार करते हुए कि विभाग में ज़्यादा स्टाफ की ज़रूरत है, उन्होंने कहा कि हम मसले को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं. स्थिति में सुधार हुआ है (जून की शुरूआत से मौतों में कमी आई है) और हमें उम्मीद है, कि यहां से अब स्थिति बेहतर ही होगी’.


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