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ORF स्टडी में खुलासा- मोदी के फॉलोअर्स और ट्वीट्स राहुल से ज़्यादा, लेकिन कम हैं इंगेजमेंट्स

ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउण्डेशन ने 2019 से 2021 के बीच PM और राहुल गांधी के ट्वीट्स का विश्लेषण किया, ताकि ट्विटर के इस्तेमाल और उसके प्रभाव को समझ सकें, और ये भी देख सकें कि सोशल मीडिया दिग्गज लोकतंत्र को कैसे प्रभावित करता है.

चित्रण : प्रज्ञा घोष, मनीषा यादव / दिप्रिंट

नई दिल्ली: भारत में किसी के इतने ट्विटर फॉलोअर्स नहीं हैं जितने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास हैं- 7.78 करोड़, जबकि उनके सबसे प्रमुख विरोधी राहुल गांधी 2.04 करोड़ के साथ उनसे बहुत पीछे हैं. दूसरी ओर, राहुल गांधी का कुल ट्विटर इंगेजमेंट- लाइक्स, रीट्वीट्स और कोट्स- 2019-21 के बीच पीएम से लगभग तीन गुना अधिक था, इसके बावजूद कि मोदी ने अपने फॉलोअर्स की संख्या चार गुना कर ली थी.

ये कुछ निष्कर्ष हैं जो अर्थशास्त्रियों शमिका रवि और मुदित कपूर के एक रिसर्च पेपर में निकाले गए हैं, जिसका शीर्षक है ‘सोशल मीडिया एंड पॉलिटिकल लीडर्स:एन एक्सप्लोरेटरी एनालसिस’ जिसे पिछले सप्ताह दिल्ली-स्थित थिंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) ने प्रकाशित किया.

पेपर में मोदी और राहुल गांधी के ट्विटर इस्तेमाल का विश्लेषण करने की कोशिश की गई और ये भी देखा गया कि उनके दर्शकों की प्रतिक्रियाएं कैसी होती हैं.

जहां गांधी ने इस अवधि में हर दिन औसतन 1.7 ट्वीट्स किए, जिनमें 49 प्रतिशत हिंदी में थे, वहीं मोदी ने रोज़ाना क़रीब आठ ट्वीट्स किए, जिनमें से 72 प्रतिशत अंग्रेज़ी में थे. लेकिन, गांधी ने मोदी से ज़्यादा ‘निगेटिव’ ट्वीट्स भी पोस्ट किए, जिन्होंने रीट्वीट्स हासिल करने में ज़्यादा अनुकूल ढंग से काम किया.

दिप्रिंट से बात करते हुए सह-लेखक मुदित कपूर ने, जो दिल्ली के भारतीय सांख्यिकी संस्थान में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, कहा कि स्टडी का लक्ष्य ये समझना था कि अपनी आउटरीच के लिए दोनों ने ट्वीट्स का किस तरह इस्तेमाल किया और ये देखना भी था कि ‘सोशल मीडिया दिग्गज अपने अल्गोरिदम से लोकतंत्र को किस तरह प्रभावित कर सकते हैं.’

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स्टडी ने क्या विश्लेषण किया

स्टडी ने 1 जनवरी 2019 और 31 दिसंबर के बीच मोदी और गांधी के पोस्ट किए गए ट्वीट्स का विश्लेषण किया, जिसमें रीट्वीट्स शामिल नहीं थे. सांख्यिकीय विश्लेषण के ज़रिए उसमें इन पोस्टों में व्यक्त की गईं भावनाओं की शिनाख़्त की- पॉज़िटिव, निगेटिव और न्यूट्रल यानि तटस्थ- हर तरह के ट्वीट्स से उत्पन्न इंगेजमेंट को देखा और साथ ही 2020 अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों से पहले, माइक्रोब्लॉगिंग साइट के नए कंट्रोल्स के असर पर भी ग़ौर किया.

हालांकि स्टडी में पाया गया कि 2019-21 के बीच गांधी का ट्विटर से जुड़ाव औसतन ज़्यादा था- जो एक उथल-पुथल का दौर था, जब कोविड के कुप्रबंधन, प्रवासी मज़दूर संकट, और किसान आंदोलन को लेकर सरकार की आलोचना हो रही थी- लेकिन ट्विटर की नीति में बदलाव की उनपर मोदी की अपेक्षा कहीं अधिक मार पड़ी.

ये भी याद किया जा सकता है कि गांधी ने दावा किया था कि उनके नए फॉलोअर्स की संख्या कम हो गई थी, जब एक रेप पीड़िता के परिवार की तस्वीरें पोस्ट करने पर, पिछले अगस्त में कुछ समय के लिए उनके अकाउंट को बंद कर दिया गया था.

पिछले साल दिसंबर में गांधी ने ट्विटर सीईओ पराग अग्रवाल को पत्र लिखकर आरोप भी लगाया था कि उन्हें ट्विटर इंडिया के लोगों ने ‘विश्वसनीय’ रूप से सूचित किया था, कि ‘मेरी आवाज़ को दबाने के लिए उनके ऊपर सरकार की ओर से भारी दबाव है’, और इसके नतीजे में उन्हें उतनी संख्या में फॉलोअर्स नहीं मिल रहे, जितने आमतौर पर मिलते थे.

ट्विटर ने इन आरोपों का खण्डन किया था, लेकिन इस मार्च में कांग्रेस ने अपनी बात के सच होने का इज़हार किया, और दावा किया कि उनके पत्र के बाद गांधी के फॉलोअर्स की संख्या बढ़ने लगी थी.


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राहुल गांधी के लिए ज़्यादा इंगेजमेंट- लेकिन निगेटिव पोस्ट को मिलते हैं ज़्यादा रीट्वीट्स

कुल मिलाकर दोनों नेताओं ने 2019-21 में 11,312 ट्वीट्स पोस्ट किए, जिनमें 16 प्रतिशत गांधी की ओर से थे, और 84 प्रतिशत पोस्ट मोदी से आए थे.

लेकिन, राहुल को अपने ट्वीट्स के लिए मोदी से कहीं ज़्यादा इंगेजमेंट मिला. औसतन, गांधी के एक ट्वीट को 10,034 रीट्वीट्स 43,455 लाइक्स मिले, जबकि मोदी की संख्या क्रमश: 4,554 और 28,095 थी.

इसका संबंध कम से कम आंशिक रूप से, दोनों नेताओं द्वारा व्यक्त की गईं ‘भावनाओं’ से जोड़ा जा सकता है. शोधकर्त्ताओं ने भावनाओं को -1 (सबसे अधिक नकारात्मक) और + 1 (सबसे अधिक सकारात्मक) के बीच में अंक दिए. दोनों नेताओं के बीच, मोदी के ट्वीट्स औसतन कहीं अधिक आनंदमय थे, जिनका औसत भावना स्कोर 0.54 था, जबकि राहुल का 0.09 था.

हालांकि, रिसर्चर्स नकारात्मक सामग्री की बारीकियों में नहीं गए, लेकिन साफ ज़ाहिर होता है कि विपक्ष का सदस्य होने के नाते राहुल के पास मोदी के मुक़ाबले, आलोचना करने और शिकायत करने के लिए बहुत कुछ था, ख़ासकर इन दो सालों की अशांत घटनाओं को देखते हुए, जिनमें दो कोविड लहरें और लॉकडाउन तथा किसानों के लंबे चले विरोध प्रदर्शन शामिल थे.

हो सकता है कि इस ‘निगेटिव’ सामग्री ने गांधी के ट्वीट्स के इंगेजमेंट को बढ़ाने में सहायता की हो. जैसा कि लेखकों ने कहा, ख़ासकर रीट्वीट्स के मामले में सकारात्मक भावनाओं के मुक़ाबले, नकारात्मक भावनाएं व्यक्त करने वाले ट्वीट्स के ‘बढ़ा-चढ़ाकर फैलने की संभावनाएं ज़्यादा’ होती हैं.

लेखकों ने लिखा, ‘अगर किसी राजनीतिज्ञ का मक़सद तवज्जो हासिल करना है, तो इन नतीजों से संकेत मिलता है कि निगेटिव भावनाओं को, पॉज़िटिव भावनाओं की अपेक्षा अधिक तवज्जो मिलती है.’

दिप्रिंट से बात करते हुए, कपूर के पास एक और व्याख्या भी थी, ‘राहुल गांधी को ज़्यादा तवज्जो मिलने का एक कारण, एक विपक्षी नेता की उनकी भूमिका भी हो सकती है, जो लोगों की समस्याओं के साथ बेहतर ढंग से जुड़ सकता है.’

2020 में ट्विटर नीति में बदलाव का मोदी से ज़्यादा राहुल पर असर पड़ा

अक्टूबर 2020 में, अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों से पहले, ट्विटर ने कुछ बदलावों का ऐलान किया, जिनके पीछे ये मंशा थी कि यूज़र्स के लिए झूठी ख़बरें फैलाना और ज़्यादा मुश्किल हो जाए.

इन उपायों में रीट्वीट से पहले एक टिप्पणी लिखना, और झूठे समझे जाने वाले ट्वीट्स पर चेतावनी लेबल लगाना अनिवार्य कर दिया गया, और साथ ही ‘लाइक्ड/फॉलोड बाइ’ सिफारिशें दिखाना बंद कर दिया गया.

ओआरएफ स्टडी के अनुसार, इस नीति ने गांधी और मोदी दोनों के लाइक्स, कोट्स, और रीट्वीट्स को प्रभावित किया, लेकिन कांग्रेस नेता पर ये असर ज़्यादा था.

औसत रूप से, गांधी के कुल एंगेजमेंट्स की संख्या 65,123 से घटकर 44,880 पर आ गई- जो 31 प्रतिशत की कमी है. मोदी के लिए ये गिरावट कहीं कम थी- 36,354 से घटकर 31,533, जो केवल 13 प्रतिशत के क़रीब थी.

जहां मोदी के ट्वीट्स में क़रीब 50 प्रतिशत का इजाफा हो गया, वहीं राहुल के ट्वीट्स 38 प्रतिशत कम हो गए.

शोधकर्त्ताओं ने अलग अलग भावनाएं व्यक्त करने वाली ट्वीट्स पर नीतिगत बदलाव के असर का भी विश्लेषण किया.

मोदी के लिए, नीति बदलने के बाद, निगेटिव भावना के एक ट्वीट को केवल 3 प्रतिशत के क़रीब कम रीट्वीट्स मिले- जो बदलाव पूर्व के औसत 6,010 रीट्वीट्स से घटकर, बदलाव के बाद 5,808 रह गए. लेकिन, उनके पॉज़िटिव ट्वीट्स के लिए ये गिरावट कहीं अधिक- 24 प्रतिशत थी.

दूसरी ओर, राहुल के निगेटिव ट्वीट्स को 42 प्रतिशत कम रीट्वीट्स मिले. उनके रीट्वीट्स की औसत संख्या, जो नीति में बदलाव से पहले 11, 829 थी, बदलाव के बाद केवल 6,823 रह गई.

पेपर में शोधकर्त्ताओं ने लिखा कि ट्विटर जैसे ‘निजी उद्यम’, इस पर ‘सीधे तौर से एक बड़ा असर डालने में कामयाब रहे, कि संदेशों का किस तरह प्रचार किया जाता है’, जैसा कि नीति में परिवर्तन के बाद विशेष रूप से पोस्टों के एंगेजमेंट और एंप्लिफिकेशन में बदलाव से ज़ाहिर होता है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, पेपर की सह-लेखिका शमिका रवि ने, जो ओआरएफ की उपाध्यक्ष हैं और जिन्होंने एक समय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद में भी काम किया है, कहा कि निष्कर्षों से कुछ अहम सवाल खड़े होते हैं, कि कैसे ट्विटर जैसी बड़ी कंपनियों की कोई जवाबदेही नहीं है, और कैसे ‘संपादकीय निर्णय’ लेने की ज़रूरत, मीडिया संगठनों की तरह न सही लेकिन फिर भी, ‘लोकतंत्र और बोलने की आज़ादी को प्रभावित कर सकती है’.

उन्होंने कहा, ‘बहुत सारे देशों में वो लोकतंत्र को प्रभावित कर रहे हैं, जो हर किसी के लिए गंभीर चिंता का विषय है’.

अपनी समापन टिप्पणियों में स्टडी के लेखकों ने पूछा: ‘राजनीतिक अभिव्यक्तियों के प्रचार को किसे नियंत्रित करना चाहिए- क्या इसे निजी उद्यमों की मर्जी पर छोड़ दिया जाना चाहिए, जिसकी न्यूनतम सार्जनिक निगरानी हो, या, क्या उन्हें विनियमन के दायरे में लाया जाना चाहिए, जहां एक स्पष्ट आचार संहिता स्थापित हो?’

पिछले साल, भारत सरकार की ट्विटर के साथ खींचतान चल रही थी, जिसे वो प्लेटफॉर्म पर डाली गई सामग्री के लिए क़ानूनी रूप से ज़िम्मेदार ठहराना चाहती थी, और ट्विटर ने भी बोलने की आज़ादी और लोकतंत्र को लेकर बहुत सारे सवाल खड़े किए थे.

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