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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया- स्वास्थ्यकर्मियों के वेतन का भुगतान ना करने को अब अपराध माना जाएगा

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को केंद्रीय सरकार के आदेश का पालन करने और स्वास्थ्यकर्मियों को भुगतान सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर, फाइल फोटो.

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह राज्यों को स्वास्थ्यकर्मियों का वेतन देना अनिवार्य करने के लिए दिशानिर्देश जारी करेगी, और निर्देश का पालन ना करना आपदा प्रबंधन अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध होगा.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस अशोक भूषण, एस.के. कौल और एम.आर. शाह की पीठ को बताया कि आदेश गुरुवार को जारी किया जाएगा.

अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा है.

अदालत केंद्र सरकार की नई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को चुनौती देने वाली डॉ. अरुषी जैन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें डॉक्टरों के लिए अनिवार्य 14 दिन के क्वारेंटाइन को समाप्त करने की बात कही गई है. एसओपी 15 मई को जारी की गई थी.

सुनवाई के दौरन, मेहता ने अदालत को यह भी बताया कि 15 मई के आदेश को संशोधित किया जाएगा और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा गुरुवार को जारी किया जाने वाला नया आदेश, जिसमें स्वास्थ्यकर्मियों के लिए एक सप्ताह की अवधि की अनुमित दी जाएगी.

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क्वारेंटाइन का विस्तार स्वास्थ्य कार्यकर्ता की व्यक्तिगत प्रोफ़ाइल पर आधारित होगा.

सरकार सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सभी स्वास्थ्य कर्मचारियों को रहने की वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए भी लिखेगी.

इस आदेश का अनुपालन करने के बारे में चार सप्ताह के भीतर अदालत को सूचित करेंगे.


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कोविड की लड़ाई में सिपाहियों को असंतुष्ट नहीं रखा जा सकता: एससी

इस महीने की शुरुआत में, केंद्र सरकार ने डॉ. जैन की याचिका पर जवाब दिया था, जिसमें कहा गया था कि हेल्थकेयर वर्कर्स के पास कोविड -19 से खुद को बचाने के लिए ‘आखिरी तौर पर जिम्मेदार’ थे.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा था कि कोविड-19 की रोकथाम और नियंत्रण गतिविधियों को लागू करने के लिए अस्पताल संक्रमण नियंत्रण समितियां जिम्मेदार थीं, लेकिन अंततः ‘यह उसकी जिम्मेदारी है कि संक्रमण को रोकने के लिए वह पर्याप्त रूप से खुद को प्रशिक्षित करे या रोकने के लिए सभी संभव उपाय करे.’

हालांकि, 12 जून को अंतिम सुनवाई के दौरान, अदालत ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में लगे डॉक्टरों को वेतन का भुगतान नहीं करने और उचित आवास की कमी के बारे में रिपोर्ट पर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया था.

पिछले कुछ हफ्तों में, डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को वेतन ना देने के बारे में कई रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं. दिल्ली में, हिंदू राव और कस्तूरबा अस्पताल जैसे सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने भी अपने बकाया भुगतान नहीं करने पर सामूहिक इस्तीफे की धमकी दी थी.

न्यायमूर्ति भूषण ने तब टिप्पणी की थी कि देश एक युद्ध में शामिल असंतुष्ट सैनिकों को बर्दाश्त नहीं कर पाएगा.

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल मेहता से कह था, ‘कोविड संकट एक युद्ध की तरह है और डॉक्टर सरकार के सैनिक हैं. इस तरह के मामलों में अदालत के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए’, जिन्होंने तब अदालत को आश्वासन दिया था कि वह उच्च अधिकारियों के साथ इन मुद्दों को उठाएंगे.

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