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कमलनाथ सरकार निकम्मे कर्मचारियों की जल्द करेगी ‘छुट्टी’

आगामी 30 दिनों में सभी विभागों को अधीनस्थ कर्मचारियों के कामकाज की समीक्षा करनी है और उसके बाद अक्षम कर्मचारियों को सेवा मुक्त करने की कार्रवाई को अंजाम दिया जाएगा.

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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ । फाइल फोटो: दि​प्रिंट

भोपाल: उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बाद मध्य प्रदेश सरकार भी अब अक्षम (निकम्मे) कर्मचारियों को नौकरी से बाहर करने जा रही है. इसके लिए विभागीय स्तर पर समीक्षा के बाद अक्षम कर्मचारियों को आवश्यक सेवानिवृत्ति दे दी जाएगी. मुख्यमंत्री कमलनाथ सरकारी मशीनरी के कामकाज में बेहतरी लाने के प्रयास कर रहे हैं. इसी क्रम में अक्षम कर्मचारियों को आवश्यक सेवानिवृत्ति देने का फैसला किया गया है. इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागों को जारी एक निर्देश में कहा है, ‘सरकारी कामकाज को बेहतर बनाने के लिए जो कर्मचारी-अधिकारी अक्षम और अक्षमता से कार्य कर रहे हैं, उन्हें सेवा से हटाया जाए.’

सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से पिछली छह जुलाई को जारी निर्देश में कहा गया है, ‘जिन कर्मचारियों-अधिकारियों की आयु 50 वर्ष हो गई है और सेवा काल के 20 वर्ष हो गए हैं, उनके कार्यो की समीक्षा की जाए. समीक्षा के दौरान कर्मचारियों और अधिकारियों को यदि कामकाज में अक्षम पाया जाता है, तो उन्हें आवश्यक सेवानिवृत्ति दे दी जाए.

आगामी 30 दिनों में सभी विभागों को अधीनस्थ कर्मचारियों के कामकाज की समीक्षा करनी है और उसके बाद अक्षम कर्मचारियों को सेवा मुक्त करने की कार्रवाई को अंजाम दिया जाएगा.’

सूत्रों के अनुसार, सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागाध्यक्षों को निर्देश दिए हैं कि वे अपने विभागों में कर्मचारियों की अक्षमता जांचने के लिए अपनाई जा रही प्रक्रिया की निगरानी करें और 30 दिनों के भीतर परिणामों से सामान्य प्रशासन विभाग को अवगत कराएं.

सूत्रों के अनुसार, राज्य में लगभग 10 लाख कर्मचारी हैं. इनमें लगभग पांच लाख कर्मचारी ऐसे हैं, जो 20 साल की सेवा पूरी कर चुके हैं. सरकार ने आवश्यक सेवानिवृत्ति का जो नियम बनाया है. उसमें आयु 50 वर्ष और सेवा के 20 वर्ष तय किए गए हैं.

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मंत्रालय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है, ’50 साल की आयु और 20 साल का सेवाकाल पूरी करने के बाद क्षमता की समीक्षा का आदेश कोई नया नहीं है. यह स्थाई व्यवस्था है, जिसे समय-समय पर सरकार द्वारा याद दिलाया जाता है. इस तरह के आदेश सरकारों को अलोकप्रिय बनाते हैं. पूर्व में भी सरकारों ने यह आदेश जारी किया तो उन्हें अलोकप्रियता के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हुआ.’

सरकार के एक प्रतिनिधि का कहना है, ‘इस आदेश को जारी करने के पीछे सरकार की मंशा सरकारी मशीनरी को दुरुस्त करने की है. सरकार चाहती है कि कर्मचारी-अधिकारी अपनी जिम्मेदारी को ठीक तरह से निभाएं और जनता को किसी तरह की परेशानी न हो. वहीं जो अधिकारी-कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी को ठीक तरह से नहीं निभा पा रहे हैं, उन्हें सेवा में रहने का अधिकार नहीं है.’

प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि किसी भी कर्मचारी को आवश्यक सेवानिवृत्ति देना आसान नहीं है, क्योंकि कर्मचारी की हर साल चरित्रावली तैयार होती है. वहीं कर्मचारी को सूचना के अधिकार के तहत चरित्रावली को देखने का अधिकार भी है. लिहाजा कोई अधिकारी अपने अधीनस्थ की चरित्रावली में नकारात्मक टिप्पणी करने से कतराता है. जब किसी कर्मचारी की चरित्रावली में कोई नकारात्मक टिप्पणी ही नहीं होगी, तो उसे सेवानिवृत्त कैसे किया जा सकेगा, यह बड़ा सवाल है.

सूत्रों के अनुसार, आवश्यक सेवानिवृत्ति की परिधि में वे कर्मचारी आएंगे, जिनका काम संतोषजनक नहीं है, अकर्मण्य हैं, कार्य करने में अक्षम हैं, संदेहास्पद हैं और अपनी उपयोगिता खो चुके हैं. इसके लिए जरूरी होगा कि उनकी चरित्रावली में प्रतिकूल टिप्पणी लगातार कई साल हो.

ज्ञात हो कि इससे पहले उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारें अक्षम कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का सिलसिला शुरू कर चुकी हैं. उसी दिशा में मध्य प्रदेश भी आगे बढ़ रहा है.

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