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विरोधों के बीच आरटीआई संशोधन बिल लोकसभा में पास, विवाद का केंद्र है सूचना आयुक्त का कार्यकाल और वेतन

बिल संशोधन पर हो रहे विरोध पर सरकार का कहना है कि आरटीआई को कमज़ोर करने का सवाल ही पैदा नहीं होता और इस संशोधन के जरिए वो सिर्फ आरटीआई कानून में मौजूदा ख़ामियों को दूर कर रही है. 

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संसद भवन परिसर में आंबेडकर की प्रतिमा/फोटो: राज्य सभा की साइट से

नई दिल्ली: तमाम विरोधों और विवादों के बीच सूचना का अधिकार कानून (संशोधन) बिल 2019 लोकसभा में पास हो गया. लोकसभा में पास किए जाने के बीच विपक्ष ने इसे सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग की है. विपक्ष को इस बात का भरोसा है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत सरकार इसे राज्यसभा में पास नहीं करा पाएगी क्योंकि वहां इसके पास संख्या बल की कमी है.

बिल के विवाद के केंद्र में केंद्र और राज्य के सूचना आयुक्तों के कार्यकाल का समय और उनका वेतन है. कानून में बदलाव के बाद केंद्र सरकार तय करेगी की सूचना आयुक्तों का कार्यकाल कितने समय का हो. अभी इनका कार्यकाल पांच साल का होता है. फिलहाल इन्हें चुनाव आयुक्त के बराबर की सैलरी मिलती है. लेकिन कानून बदलने के बाद इसका निर्धारण भी केंद्र करेगी.

विवाद की असली वजह सूचना आयुक्त के कार्यकाल से जुड़े कानून में बदलाव को ही माना जा रहा है क्योंकि उनके पद पर स्वतंत्रता से काम करने के लिए इसे अहम माना जाता है. राज्य सूचना आयुक्त के मामले में केंद्र की संभावित दख़लंदाजी को संघीय ढाचें के लिए भी ख़तरा बताया गया है.

नेशनल कैंपेन फॉर पिपुल्स राइट टू इंफॉर्मेशन (एनसीपीआरआई) ने लोकतांत्रिक और प्रगतिशील भारत में विश्वास करने के अलावा पारदर्शी और जवाबदेह शासन प्रणाली में विश्वास रखने वालों से कहा कि वो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बारे में लिखें और मांग करें कि संशोधन को पास नहीं होने दिया जाए.

एनसीपीआरआई ने अपना विरोध दर्जा कराते हुए कहा, ‘आरटीआई में कोई संशोधन नहीं होना चाहिए. हम भारत में लोकतंत्र की विश्वसनीयता और अखंडता को स्थापित करने के लिए एक स्वतंत्र और शक्तिशाली आरटीआई आयोग की मांग करते हैं.’

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इस बिल को 19 जुलाई यानी शुक्रवार को लोकसभा में पेश किया गया था. एनसीपीआरआई का आरोप है कि सरकार ने बिल पेश करने के लिए अपनाई जाने वाली पहली प्रक्रिया का गला घोंटा है. इसे पेश किए जाने के पहले तक किसी को कानों-कान ख़बर नहीं लगने दी. जनता और बाकी हितधारक तो दूर, सांसदों तक को तब इसके बारे में पता चला जब उनके बीच इसकी कॉपी बांटी गई.

विपक्ष ने बिल का चौतरफा विरोध किया है. इसके विरोध में ट्वीट करते हुए ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओब्रायन ने ट्विटर पर लिखा, ‘जैसा कि हमने कल भविष्यवाणी की थी, सरकार ने (संसद में) अपनी ताकत का इस्तेमाल आरटीआई कानून को कुचलने में किया है.’

वहीं, शशि थरूर ने कहा, ‘ये आरटीआई को समाप्त करने वाला बिल है और तर्क दिया जा रहा है कि इससे सूचना आयोग को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बराबर लाया जाएगा. ये ग़लत हैं क्योंकि बाद वाली दोनों जगहों पर सरकारी फैसलों को चुनौती दी जा सकती है.’ नेता और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, वकील प्रशांत भूषण और आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने भी इस बिल के पास होने की आलोचना की.

हालांकि, सरकार कहना है कि आरटीआई को कमज़ोर करने का सवाल ही पैदा नहीं होता और इस संशोधन के जरिए वो सिर्फ आरटीआई कानून में मौजूदा ख़ामियों को दूर कर रही है.

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