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सरकार कहती है आईपीएस असोसिएशन वैध नहीं, फिर क्यों लेती है उससे ‘सलाह’

आईपीएस अधिकारियों का कहना है कि ये स्पष्ट रूप से मंत्रालय में कार्यरत आईएएस का उनके प्रति पूर्वाग्रह का नतीजा है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर | ANI Photo

पुलिस अधिकारी गृह मंत्रालय के इस स्टैंड से काफी नाराज़ है कि आईपीएस असोसिएशन गैर कानूनी है क्योंकि उसकी स्थापना को केंद्र सरकार की कोई ‘स्पष्ट अनुमति’ नहीं मिली है.

आईपीएस अधिकारियों का कहना है कि ये स्पष्ट रूप से मंत्रालय में कार्यरत आईएएस का उनके प्रति पूर्वाग्रह का नतीजा है.

बुधवार को दि प्रिंट ने रिपोर्ट किया था कि गृह मंत्रालय ने केंद्रीय सूचना आयुक्त के 2018 में दायर एक याचिका के जवाब में कहा था कि पुलिस को केंद्र सरकार की अनुमति के बिना किसी तरह के संगठन को स्थापित करने का कोई अधिकार नहीं है.

पुलिस बल (अधिकारों पर प्रतिबंध) कानून, 1966 के सेक्शन 3, जिसका हवाला गृह मंत्रालय ने ये सिद्ध करने के लिए दिया कि आईपीएस असोसिएशन की कोई कानूनी वैधता नहीं है. इसमें कहा गया है, ‘केंद्र सरकार की या किसी तय की गई अथॉरिटी की स्पष्ट अनुमति के बिना, वे किसी भी ट्रेड यूनियन, श्रम संगठन, राजनीतिक संगठन के सदस्य नहीं हो सकते न ही उससे जुड़ सकते हैं….’

एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने दि प्रिंट को बताया कि आईपीएस संगठन दशकों से मौजूद है और इस पर कभी विवाद भी नहीं हुआ. उनका कहना था ‘अब कैसे गृह मंत्रालय को ये नियम याद आ गया.’ साफ तौर पर ये आईएएस अधिकारियों का, जो कि मंत्रालय में काम करते हैं, हमारे प्रति पूर्वाग्रह दिखाता है. या फिर ये समझ की कमी है.’

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2018 में एक नूतन ठाकुर नाम की महिला ने आरटीआई फाइल कर ये सूचना मांगी थी कि क्या गृह मंत्रालय के पास इस बात की जानकारी है कि आईपीएस असोसिएशन होता है और क्या उसे सरकार मान्यता प्रदान करती है या नहीं.

एक अन्य आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘सरकार ने तो केवल इतना कहा है कि उसके पास आईपीएस असोसिएशन की कोई जानकारी नहीं है, और उन्हें इसकी जानकारी रखने की ज़रूरत भी नहीं.’


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कानूनी रूप से सरकार के मत का जवाब

आईपीएस असोसिएशन के एक पूर्व सचिव, पीवीआर शास्त्री ने भी कानून के आधार पर गृह मंत्रालय का जवाब दिया. उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) शास्त्री ने कहा, ‘जो नियम गृह मंत्रालय ने उद्धृत किया है कि हम एसोसिएशन नहीं बना सकते, वो ऑल इंडिया सर्विस पर लागू नहीं होता.’

साथ ही उनका कहना था, ‘आईपीएस की नियुक्ति और संचालन ऑल इंडिया सर्विस रूल के तहत होती है और वो आईपीएस के संगठन बनाने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाता है.’

‘आईपीएस असोसिएशन को अपनी वैधता संगठन बनाने की स्वतंत्रता के अधिकार से मिलती है. इस पर कानून के तहत अंकुश लगाए जा सकते हैं पर जो प्रतिबंध गृह मंत्रालय बता रहा है वो हम पर लागू नहीं होते.’

एक दूसरे आईपीएस अधिकारी ने इस बात की ओर इशारा किया कि गृह मंत्रालय ने आईपीएस असोसिएशन से कई मुद्दों पर पिछले कुछ दशकों में विचार-विमर्श किया है.

‘लेकिन अगर ये अवैध संगठन है तो फिर सरकार इससे विचार-विमर्श क्यों कर रही है? सर्वोच्च न्यायालय में भी कई मामलों में आईपीएस असोसिएशन शामिल रहा है. तब सरकार या अदालत ने क्यों नहीं कहा कि ये असोसिएशन वैध नहीं है?’

मुख्य सूचना आयुक्त के समक्ष आईपीएस अधिकारियों ने गृह मंत्रालय के इस स्टैंड को चुनौती दी है, वहीं उनके केंद्रीय सैन्य बलों के समकक्ष मानते हैं कि सरकार का रुख उनके आईपीएस असोसिएशन पर रुख से मेल खाता है.

एक वरिष्ठ सीआरपीएफ अधिकारी का कहना था ‘हमने हमेशा ही कहा है कि इस संगठन की कोई अधिस्थिति (लोकस स्टैंडाई) नहीं है. और अब सरकार ने भी साफ कर दिया है कि उनके रिकॉर्ड दिखाते हैं कि वो इसको मान्यता नहीं देते.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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