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सरकार ने आईपीएस एसोसिएशन की वैधता पर उठाए सवाल, कहा- ऐसे किसी निकाय को कभी नहीं दी मंजूरी

 एक आरटीआई के जवाब में, गृह मंत्रालय ने कहा है कि पुलिस बल के किसी भी सदस्य को केंद्र सरकार की 'मंजूरी लिए' बिना किसी भी एसोसिएशन के गठन का अधिकार नहीं है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली: गृहमंत्रालय के सामने एकबार फिर आईपीएस एसोसिएशन की वैधता पर सवाल खड़े किए गए हैं जिसपर मंत्रालय ने कहा है कि ऐसे किसी संगठन के गठन को मान्यता या मंजूरी नहीं दी गई है.

केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) द्वारा इस मामले की सुनवाई की गई और पूछा गया कि क्या एसोसिएशन के पास सरकार की मंजूरी है, जिसपर एमएचए ने यह भी कहा कि पुलिस बल को केंद्र सरकार की अनुमति के बिना कोई एसोसिएशन बनाने का अधिकार नहीं है.

सीआईसी के आदेशानुसार एमएचए ने कहा, ‘पुलिस बल (अधिकारों का प्रतिबंध) अधिनियम, 1966 की धारा 3 के अनुसार, पुलिस बल के किसी भी सदस्य को केंद्र सरकार के अनुमोदन के बिना किसी भी संघ को बनाने का अधिकार नहीं है.’

‘एमएचए ने आगे कहा कि उसने किसी भी पुलिस बल एसोसिएशन को मान्यता नहीं दी है या अनुमोदित नहीं किया है, इसलिए इस संबंध में कोई भी जानकारी प्रतिवादी अथॉरिटी के पास उपलब्ध नहीं है.’ 2018 में दायर एक आरटीआई के जवाब में सीआईसी के आदेश की बात जोड़ी.

आरटीआई नूतन ठाकुर द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने यह जानने की कोशिश की कि गृह मंत्रालय के पास आईपीएस एसोसिएशन के अस्तित्व के बारे में कोई जानकारी या दस्तावेज हैं या नहीं और क्या सरकार द्वारा इसे मान्यता दी गई है.

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जिसके आधार पर सीआईसी ने बताया, ‘चूंकि एमएचए ने पुलिस बल एसोसिएशन के गठन को मंजूरी नहीं दी है, लिहाजा अपीलकर्ता की ओर से मांगी गई जानकारी जवाबकर्ता के पास उपलब्ध नहीं है.’ इसके पहले सीआईसी ने गृह मंत्रालय को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था, जिसमें कहा गया था कि यह वह बताए कि उसने पुलिस एसोसिएशन के गठन को मंजूरी नहीं दी है?

आईपीएस एसोसिएशन एक ट्रेड यूनियन की तरह काम नहीं करता

यह पहली बार नहीं है जब आईपीएस एसोसिएशन की वैधता पर सवाल उठाए गए हों. 2013 में, एक आईपीएस अधिकारी, अमिताभ ठाकुर ने दावा किया था कि एसोसिएशन एक अवैध निकाय है, और यहां तक कि एसोसिएशन के पदाधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करने की भी कोशिश की गई थी. ठाकुर ने यह दावा उसी पुलिस बल अधिनियम के तहत किया, जिसका जिक्र गृह मंत्रालय ने किया है.

अधिनियम के अनुसार, ‘पुलिस बल का कोई भी सदस्य, केंद्र सरकार या निर्धारित प्राधिकारी के अनुमोदन के बिना, किसी भी ट्रेड यूनियन, मजदूर संघ, राजनीतिक संघ के साथ. या ट्रेड यूनियनों, श्रमिक संघों या राजनीतिक संगठनों के किसी भी वर्ग के साथ…किसी भी तरह नहीं जाएगा या उससे उसका संबंद्ध नहीं होगा.’

अधिनियम में आगे कहा गया है, ‘यदि कोई भी प्रश्न उठता है कि क्या कोई भी समाज, संस्था, संघ या संगठन विशुद्ध सामाजिक, मनोरंजक या धार्मिक प्रकृति का है, तो केंद्र सरकार का निर्णय अंतिम होगा.’

एक आईपीएस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि हालांकि, आईपीएस एसोसिएशन की वैधता, जांच के दायरे में नहीं है क्योंकि यह ‘यूनियन’ की तरह काम नहीं करता है.

अधिकारी ने कहा, ‘आईपीएस एसोसिएशन एक ट्रेड यूनियन की तरह काम नहीं करता है… इसमें कई सारे मामले शामिल हैं, लेकिन एसोसिएशन ने कभी इसका पक्ष नहीं लिया.’

‘यह केवल एक सामान्य प्लेटफार्म की तरह काम करता है, और यह निषिद्ध नहीं है … यदि यह अवैध होता, तो यह इतने दशकों तक अस्तित्व में नहीं रह पाता.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

5 टिप्पणी

  1. इस प्रकार के संगठन हर विभाग में होने चाहिएं और उनको कम से कम उनके विभाग के अंदर तो काम करने की अनुमति होनी हो चाहिए । विभागों में बहुत सारे उत्पीड़न के मामले आते है जो ऐसे संगठनों के ना होने पर गलत तरीके से दबा दिए जाते हैं और भाई भतीजावाद, मनमानी तथा भेदभाव को बधववा देते हैं ।

  2. अधिकार ने देश मे कर्तव्यता को दर किनारे कर दिया है।बोलने की आजादी इसका एक सर्वोत्तम उदाहरण है जहाँ सब कुछ बोलने की आजादी के बदले कुछ भी बोलने की आजादी से देश का माहौल खराब किया गया है।मर्यादा हर शब्दो मे होनी ही चाहिए। यह कहना अतिश्योक्ति पूर्ण नही होगा कि आज भी बोलने के तरीकों ने ही सभी झगड़ो को जन्म दिया है।हम विकसित तो हो रहे हैं परंतु किसी अलग राह पर चलकर।राह मंजिल की ओर चलती तो है पर न जाने गर्त में क्यो गिर जाती है।

  3. अधिकार ने देश मे कर्तव्यता को दर किनारे कर दिया है।बोलने की आजादी इसका एक सर्वोत्तम उदाहरण है जहाँ सब कुछ बोलने की आजादी के बदले कुछ भी बोलने की आजादी से देश का माहौल खराब किया गया है।मर्यादा हर शब्दो मे होनी ही चाहिए। यह कहना अतिश्योक्ति पूर्ण नही होगा कि आज भी बोलने के तरीकों ने ही सभी झगड़ो को जन्म दिया है।हम विकसित तो हो रहे हैं परंतु किसी अलग राह पर चलकर।राह मंजिल की ओर चलती तो है पर न जाने गर्त में क्यो गिर जाती है।

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