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भारत के दूसरे सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य में Covid संकट से कैसे निपट रही है योगी की टीम-11 

लखनऊ समेत पूरे यूपी भर के तमाम शहर बेड, दवाओं और मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति की कमी से जूझ रहे हैं और इसकी वजह से निजी अस्पतालों को तीमारदारों से अपने मरीज कहीं और ले जाने को कहना पड़ रहा है.

यूपी के बाराबंकी में कोविड टेस्टिंग सेंटर पर लगी लाइन | Jyoti Yadav | ThePrint

लखनऊ: सबसे पहले, कुछ डराते आंकड़े.

उत्तर प्रदेश में कोविड-19 का आधिकारिक आंकड़ा बुधवार को 187 मौतों के साथ 33,106, जो महाराष्ट्र (67,468) के बाद देश में दूसरे स्थान पर था, दर्ज किया गया.

राजधानी लखनऊ में कुछ निजी अस्पतालों ने बुधवार शाम मेडिकल ऑक्सीजन खात्मे के कगार पर पहुंचने के बाद तीमारदारों से अपने मरीजों को किसी अन्य सेंटर ले जाने को कह दिया. हालांकि, लगातार एसओएस कॉल के बाद उनमें से कुछ को मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति की गई लेकिन राज्यभर में अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है.

केवल मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति का ही अभाव नहीं है, बल्कि लखनऊ सहित राज्य के तमाम हिस्से बेड की भारी किल्लत का भी सामना कर रहे हैं.

दिप्रिंट को मिले सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि 19 अप्रैल को राज्यभर में 138 कोविड अस्पतालों (निजी और सरकारी दोनों) में उपलब्ध बेड की कुल संख्या 25,904 थी. इसमें से 25,064 पहले ही भर चुके थे और 20 करोड़ से अधिक आबादी वाले राज्य में केवल 840 खाली बेड उपलब्ध हैं.

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कोविड-19 परीक्षण के आंकड़े भी बेहद खराब स्थिति दर्शा रहे हैं, जिसमें आबादी के एक बड़ा हिस्सा रह गया है. यूपी के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने बुधवार को दिप्रिंट को बताया कि यूपी हर दिन 2,20,000 से 2,30,000 के बीच लोगों का टेस्ट कर रहा है.

यह कुल आबादी का सिर्फ 0.1 फीसदी है.

इसके अलावा, दिप्रिंट को मिले सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुल टेस्ट का लगभग 45 प्रतिशत आरटी-पीसीआर के माध्यम से किया जाता है, जिसे कोविड-19 की जांच में अधिक सटीक माना जाता है.

आरटी-पीसीआर के कम आंकड़ों के बारे में पूछे जाने पर यूपी के अतिरिक्त मुख्य सचिव (सूचना और एमएसएमई) नवनीत सहगल ने कहा, ‘हमारा जोर अब आरटी-पीसीआर टेस्ट की संख्या बढ़ाने पर है.’

स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि देश के बाकी हिस्सों की तरह यह राज्य भी केस में इतनी बड़ी उछाल से निपटने के लिए तैयार नहीं था. उन्होंने कहा, ‘इतनी बड़ी संख्या ने हमारे पूरे सिस्टम को हिलाकर रख दिया है. कोई भी इसका मुकाबला नहीं कर सकता था. हमारे पास जो मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध है, वो इतनी बड़ी संख्या में केस संभालने के लिए पर्याप्त नहीं है.’

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और 18 से ज्यादा शीर्ष अधिकारियों के कोविड-19 पॉजिटिव हो जाने के बाद स्थिति और भी विकट हो गई है, तमाम लोग इस बात को लेकर संशकित हैं कि राज्य में लगातार बिगड़ती महामारी की स्थिति के बीच जमीनी स्तर पर इसे संभालने का प्रभार कौन संभाल रहा है.


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कोविड-पॉजिटिव योगी और उनकी टीम-11 ‘सक्रिय’

यूपी सरकार में वरिष्ठ अधिकारियों और कैबिनेट मंत्रियों, जिनसे दिप्रिंट ने बात की ने बताया कि हालांकि, सीएम आदित्यनाथ लखनऊ में अपने 5, काली दास मार्ग स्थित आवास पर आइसोलेशन में हैं, लेकिन काम में कोई ठहराव नहीं आया है.

अधिकारियों ने कहा कि मुख्यमंत्री एकदम ‘सक्रिय’ हैं और अपनी टीम-11, जिसमें मुख्यमंत्री के अलावा राज्य के 10 शीर्ष अधिकारी शामिल हैं, के साथ राज्य में कोविड-19 की स्थिति की समीक्षा के लिए रोज वर्चुअल बैठकें कर रहे हैं.

मौजूदा समय में टीम के 11 सदस्यों में से सात, जिनमें सीएम के सचिव आलोक कुमार, पुलिस महानिदेशक हितेश चंद्र अवस्थी, अतिरिक्त मुख्य सचिव (सूचना और एमएसएमई) नवनीत सहगल और प्रमुख सचिव (कृषि) देवेश चतुर्वेदी आदि शामिल हैं, कोविड पॉजिटिव हो चुके हैं.

लेकिन सहगल ने कहा कि इससे काम पर कोई असर नहीं पड़ा है.

सहगल ने बताया, ‘सीएम टीम-11 के साथ हर दिन सुबह 10.30 से 12.30 बजे के बीच 2 घंटे की एक वर्चुअल बैठक कर रहे हैं, जिसमें राज्य में कोविड-19 की स्थिति से संबंधित सभी पहलुओं पर चर्चा की जाती है और त्वरित फैसले किए जाते हैं, चाहे अस्पतालों में बेड, दवाएं मुहैया कराना हो या फिर मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई जानी हो.’

बुधवार को ऐसी ही एक दैनिक बैठक में कोविड मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) की तरफ से रेफर किया जाना अनिवार्य होने के फैसले को रद्द कर दिया गया.

उन्होंने बताया कि कोविड-19 से संक्रमित टीम-11 के सदस्य भी अपने घर से ही वर्चुअल बैठक में हिस्सा ले रहे हैं. सहगल ने कहा, ‘कोविड-19 से संक्रमित होने के बावजूद सीएम समन्वय के साथ हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं.’

10 शीर्ष नौकरशाहों के अलावा स्वास्थ्य मंत्री सिंह और चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार खन्ना भी सीएम की दैनिक बैठकों में हिस्सा लेते हैं.

ऊपर उद्धृत यूपी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पश्चिम बंगाल और असम विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार करने के दौरान को छोड़कर मुख्यमंत्री हर दिन बैठक में भाग लेते रहे हैं.

‘टीम-11 में कोई डॉक्टर नहीं’

टीम-11 का गठन पिछले साल कोविड महामारी फैलने के कुछ ही समय बाद किया गया था, जिसमें मुख्य सचिव आर.के. तिवारी, सीएम के प्रधान सचिव संजय प्रसाद, गृह सचिव अवनीश अवस्थी और नवनीत सहगल आदि शामिल हैं. टीम की जिम्मेदारी राज्य में कोविड-19 की बिगड़ती स्थिति पर काबू पाना, तमाम अड़चनों को दूर करना और निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी लाना था.

जय प्रताप सिंह ने कहा, ‘नवंबर-दिसंबर में जब राज्य में कोविड की स्थिति थोड़ी ठीक हो गई थी तो सीएम ने टीम-11 की बैठक हफ्ते में दो बार कर दी थी. लेकिन मार्च से हम फिर हर दिन बैठक कर रहे हैं.’

सहगल ने बताया कि तात्कालिक जरूरत के आधार पर आईसीयू और ऑक्सीजन बेड की संख्या बढ़ाने का फैसला किया गया है. उन्होंने कहा, ‘आईसीयू और ऑक्सीजन बेड के अलावा हर दिन 200 से अधिक कोविड बेड बढ़ाए जा रहे हैं. हम कोविड के मामलों से निपटने के लिए ज्यादा से ज्यादा निजी अस्पतालों को इसमें जोड़ रहे हैं.’

हालांकि, कई सरकारी अधिकारियों, डॉक्टरों और राजनेताओं ने दिप्रिंट से कहा कि पूरी तरह अधिकारियों पर निर्भर केंद्रीयकृत व्यवस्था राज्य के मौजूदा संकट के पीछे एक बड़ी वजह है.

अपना नाम न देने की शर्त पर एक कैबिनेट मंत्री ने कहा, ‘महामारी के विभिन्न पहलुओं से निपटने के लिए टीम-11 का गठन किया गया. हालांकि, इसमें न तो कोई डॉक्टर शामिल है और न ही स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मंत्रियों को छोड़कर कोई निर्वाचित जनप्रतिनिधि ही है. निर्णय एकतरफा लिए जाते हैं. कैबिनेट मंत्रियों तक से सलाह नहीं ली जाती.’

रिवर्स माइग्रेशन एक बड़ी चिंता है

यूपी सरकार में वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि अब जबकि कोविड केस तेजी से बढ़ रहे हैं, बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों का एक बार फिर लौटना गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है.

नाम न देने की शर्त पर एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘महाराष्ट्र और गुजरात जैसे हाई केसलोड वाले राज्यों से आने वाले कई प्रवासी श्रमिक टेस्ट में पॉजिटिव निकल रहे हैं.’

अधिकारी ने बताया कि राज्य सरकार ने प्रवासी श्रमिकों की भीड़ को संभालने के लिए राज्य भर में 76,000 क्वारंटाइन सेंटर स्थापित किए हैं. उन्होंने कहा, ‘हर गांव में एक क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया है, जहां लौटकर आए प्रवासी मजदूरों को घर जाने से पहले क्वारंटाइन में रहना होगा.’

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