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ट्री सर्जन के बारे में सुना है कभी! एंबुलेंस के जरिए पेड़ों को बचाने में जुटा है दिल्ली नगर निगम

ट्री एम्बुलेंस का सबसे महत्वपूर्ण काम उन पेड़ों की 'सर्जरी' कर पुनर्जीवित करना है, जो दीमक या अन्य किसी कीड़ें के संक्रमण की वजह से अंदर से खोखले हो चुके हैं.

दिल्ली की हरियाली को बचाने के लिए एक ट्री एंबुलेंस । फोटोः सुकृति वत्स । दिप्रिंट

नई दिल्ली: दिल्ली अपने पेड़ों को बचाने के लिए एक खास मिशन पर है. वह न केवल इस झुलसा देने वाली गर्मी से पेड़ों को बचाने में जुटी है बल्कि बीमारियों और कीड़े लगे पेड़ों की सर्जरी कर उन्हें एक नया जीवन दे रही है. पूर्ववर्ती दक्षिण दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) और पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) ने इस साल की शुरुआत में ‘ट्री एम्बुलेंस’ को अपने बेड़े में शामिल किया था. इसका काम संक्रमण से जूझ रहे शहर भर के सभी तरह के पेड़-पौधों की ऑन-द-स्पॉट ‘सर्जरी’ करना या गर्मी से झुलस रहे पेड़ों को पानी देना है.

गौरतलब है कि 2012 में कांग्रेस नेता शीला दीक्षित ने अपने मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में निगम को तीन भागों में बांट दिया गया था. लेकिन शहर के इन तीन नगर निकायों – एसडीएमसी, ईडीएमसी और उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) को एक बार फिर से रविवार को दिल्ली नगर निगम में मिला दिया गया.

ट्री एम्बुलेंस का विचार बिल्कुल नया नहीं है. शहर या कहें कि भारत की पहली ट्री एम्बुलेंस को नई दिल्ली नगर परिषद ने साल 2010 में लॉन्च किया था. सायरन और वार्निंग लाइट वाला यह एक हरे रंग का ट्रक है जिसे उस समय 13.5 लाख रुपये में खरीदा गया और पेड़ों को बचाने की कवायद शुरू की गई.

ईडीएमसी के एक कर्मचारी पंकज को पांच साल पहले नई दिल्ली नगर परिषद ने कीड़े लगे पेड़ों को इलाज करने यानी ‘ट्री सर्जरी’ करने की ट्रेनिंग दी गई थी. पूर्ववर्ती एनडीएमसी को भी 2012 में एक ट्री एम्बुलेंस भी मिली, लेकिन फिलहाल उसके पास ऐसा काम करने वाला कोई ट्रक नहीं है.

हाल के नगर निगम के हॉर्टिकल्चर डायरेक्टर के मुताबिक, पूर्ववर्ती ईडीएमसी के पास अपने अंतर्गत आने वाले दो क्षेत्र उत्तरी और दक्षिणी शाहदरा में दो ट्री एम्बुलेंस हैं तो वहीं एसडीएमसी के पास उसके चार क्षेत्रों (मध्य, दक्षिण, पश्चिम और नजफगढ़ क्षेत्र) में से प्रत्येक के लिए एक एम्बुलेंस मौजूद है.

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सेक्शन ऑफिसर(हॉर्टिकल्चर), दक्षिण शाहदरा, जितेंद्र सरोहा ने कहा, ‘ हर जोन में हॉर्टिकल्चर सेक्शन ऑफिसर था और हर अधिकारी के पास सात से नौ वार्ड थे. इन अधिकारियों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी अपने क्षेत्रों के सभी पार्कों की देखभाल करना है.’

ईडीएमसी ने एक हेल्पलाइन नंबर और मोबाइल ऐप भी शुरू किया. इसके जरिए निवासी अपने क्षेत्र के किसी भी बीमार पेड़ की जानकारी निगम को दे सकते हैं.

सरोहा ने बताया, ‘हमें हर दिन औसतन दो कॉल आती हैं. कई दिन ऐसे भी रहे जब हमें चार कॉल भी आईं. लोगों को पेड़-पौधों से प्यार है और वे हरियाली पसंद करते हैं. ईडीएमसी के पास फिलहाल दो ट्री एम्बुलेंस हैं. जैसे ही हमें कॉल मिलती है हम तुरंत पेड़ों को बचाने के लिए मौके पर पहुंच जाते हैं.’

पूर्व एसडीएमसी के नोडल अधिकारी मोहित वत्स ने बताया कि नगर निगम पहले अपने क्षेत्र में समस्या की पहचान करता है, उसके बाद उसे ठीक करने का काम किया जाता है.

उन्होंने कहा, ‘हमारे पास ट्री एम्बुलेंस के लिए एक समर्पित हेल्पलाइन नंबर नहीं है. बस एक कंट्रोल रूम है, जहां हमें सभी ट्री- और नॉन-ट्री संबंधित कॉल मिलते हैं. हमारी टीम ने समस्याओं की पहचान करने और उन्हें ठीक करने के लिए पूरे दक्षिण दिल्ली के क्षेत्रों का सर्वे किया था.’

दिल्ली के तीनों नगर निगम के एक हो जाने के बाद ट्री एम्बुलेंस अब और तेजी से काम करेगी ऐसी उम्मीद की जा रही है.

वत्स के अनुसार, ‘ फिलहाल तो मौजूदा ‘ट्री एम्बुलेंस उन्हीं क्षेत्रों में काम करती रहेंगी जहां वह पहले से काम करती आईं हैं.’

उन्होंने कहा, ‘सिर्फ प्रशासन का नाम बदल दिया गया है, बाकी सब कुछ वैसा ही रहेगा. एडमिनिस्ट्रेशन और फाइनेंस का (एकीकरण के साथ) विलय किया गया है, फील्ड वर्क पहले की तरह जारी रहेगा.’

दिप्रिंट ने दिल्ली के आसपास के कुछ ट्री एंबुलेंस का दौरा किया और जाना कि कैसे प्रशिक्षित पेशेवर बीमार पेड़ों को फिर से जिंदा करने में जुटे हैं.


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लू और पानी की समस्या

सरोहा ने बताया, हालांकि पूर्वी दिल्ली में पेड़ों की सबसे बड़ी समस्या दीमक लगने की है. लेकिन नगर निगम के अधिकारियों को गर्मी में पेड़ों के झुलसने के बारे में भी फोन और पत्र मिल रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘कोई भी (पेड़) प्रजाति बीमारियों से संक्रमित हो सकती है, लेकिन उनमें लगने वाली अधिकांश बीमारियां सूखे और पानी की कमी के कारण होती हैं. पेड़ों पर सफेद कीड़ों के प्रकोप जैसी कई समस्याएं हैं, क्योंकि उन्हें पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है.’

सरोहा ने पानी की कमी की समस्या के बारे में भी बताया, जिसे वह इस काम के प्रयासों में लगातार बाधा आने का एक कारण मानते हैं.

पूर्वी दिल्ली के निवासी नगर निगम के इन प्रयासों की सराहना कर रहे हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मोहन अग्रवाल को प्रकृति से खासा लगाव है. उनके मुताबिक, वह मयूर विहार फेज-1 के अपने घर के आस-पास के पार्क में पेड़ों को पानी दिलाने के लिए हेल्पलाइन पर लगातार कॉल करते रहते हैं. मयूर विहार शाहदरा दक्षिण क्षेत्र का हिस्सा है.

उन्होंने कहा, ‘यहां पेड़ों की हालत किसी से छिपी नहीं है. सारे पेड़ सूख रहे हैं. मैं सरोहा की टीम से पानी के टैंकरों से उन्हें पानी देने और पुनर्जीवित करने के लिए कहता हूं’ वह आगे बताते है, ‘मुझे यह देखकर हैरानी भी होती है और खुशी भी कि हमेशा 15 से 30 मिनट के भीतर मेरी कॉल के जवाब में तुरंत कार्रवाई की जाती है.’

वत्स के अनुसार, छोटी-छोटी झाड़ियां को अगर पानी न मिले तो वो गर्मी में झुलस जाती हैं. उन्होंने कहा, ‘इन झाड़ियों को लुटियंस दिल्ली (औपनिवेशिक काल के दौरान ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस द्वारा डिजाइन और निर्मित दक्षिण दिल्ली क्षेत्रों) में देखा जा सकता है.’

पेड़-पौधों के सरंक्षण और बचाव के लिए इस भीषण गर्मी में तपते सूरज के नीचे घंटों बिताना आसान काम नहीं है. लेकिन आराम को एक तरफ रख पंकज और उसके साथी अपने काम को अंजाम देने में लगे हैं. उन्होंने कहा, ‘एक माली होने के नाते मेरा काम पेड़ों को बचाना है. केवल पेड़ों को बचाने से ही इस बढ़ते तापमान से निजात पाई जा सकती है. हम इस भीषण गर्मी में काम कर रहे हैं क्योंकि अगर हम पेड़ों को बचाएंगे तो वे पर्यावरण में नमी लाएंगे और लोगों को फायदा होगा.’

कैसे की जाती हैं ट्री सर्जरी?

ट्री एम्बुलेंस का सबसे महत्वपूर्ण काम पेड़ों की ‘सर्जरी’ करना है जो उन्हें दीमक या अन्य किसी तरह के कीड़ों के संक्रमण से उबरने में मदद करता है. इन कीड़ों की वजह से पेड़ों की छाल अंदर से खोखली हो जाती है.

पंकज के मुताबिक, एक सर्जरी करने में लगभग एक घंटे या डेढ़ घंटे का समय लगता है. वह कहते हैं, ‘यह सब पेड़ की ऊंचाई पर निर्भर करता है. लम्बे पेड़ की सर्जरी में ज्यादा समय लग सकता है. चूंकि ये प्रक्रिया बहुत मुश्किल है, इसलिए एक दिन में केवल दो सर्जरी ही की जा सकती हैं’

काम पर लगा एक ट्री सर्जन । सुकृति वत्स । दिप्रिंट

पंकज ने ट्री सर्जरी की प्रक्रिया को समझाते हुए कहा, सबसे पहले पेड़ की फालतू या पेड़ पर भार डालने वाली शाखाओं को काटा जाता है. उसके बाद कीड़े लगी शाखा को ब्रश से साफ किया जाता है. पेड़ के चारों ओर जमा कचरा कीड़ों के प्रजनन स्थल के रूप में काम कर सकता है. इसलिए इस कचरे को वहां से हटाना जरूरी है. फिर हम पेड़ों को धोकर उन पर कीटनाशक का छिड़काव करते है.

वह आगे बताते हैं, पेड़ के जिस हिस्से को दीमक खोखला कर चुके हैं उसमें थर्माकोल और मुर्गा जाली भरी जाती है. बकायदा कील से उसे सुरक्षित किया जाता है. फिर उसमें प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की एक परत लगाई जाती है. उसके बाद ऊपर से व्हाइट सीमेंट से ढका जाता है ताकि पीओपी बारिश में न बह जाए.

उन्होंने कहा, ‘सर्जरी करने में तीन लोगों की जरूरत होती है. एक पीओपी तैयार करता है, दूसरा मुर्गा जाली काटता है, जबकि तीसरा व्यक्ति कीटनाशक का छिड़काव करता है.’

वत्स ने कहा कि दीमक के संक्रमण का इलाज करने के अलावा, एसडीएमसी ट्री एम्बुलेंस स्टाफ पेड़ों पर जलभराव या जानवरों के अतिक्रमण को रोकने के लिए भी काम करता है.

उन्होंने बताया कि कीट के संक्रमण के मामलों में सर्जिकल टीम रासायनिक उपचार का सहारा लेने के अलावा कीट को मारने के लिए बर्नर का इस्तेमाल भी करती है.


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निगम के एक हो जाने के बाद की स्थिति

पहले तीनों निगम में से हर एक के पास पहले एक अलग हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट था, लेकिन अब एकीकृत निगम को देखते हुए काम के केंद्रीकृत होने की संभावना है.

राघवेंद्र सिंह पहले ईडीएमसी में हॉर्टिकल्चर विभाग के निदेशक थे. उन्होंने कहा, ‘22 मई तक ईडीएमसी का आधिकारिक रूप से अस्तित्व समाप्त हो गया और अब हम दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) का हिस्सा हैं. मुझे नहीं पता कि मेरा अगला पद क्या होगा. अगले दो-तीन दिनों में इस पर फैसला हो जाएगा. लेकिन पूरे शहर में इस परियोजना (ट्री एम्बुलेंस) का विस्तार संभावित और अपेक्षित भी है.’

सिंह के अनुसार, अब दिल्ली के 12 सिविक जोन के लिए एक कमिश्नर और एक डिप्टी कमिश्नर होगा.

एनडीएमसी के पूर्व हॉर्टिकल्चर निदेशक आशीष प्रियदर्शी ने इस बदलाव को एक ‘बड़ा कदम’ करार दिया, क्योंकि अब सभी एसेट्स को 12 क्षेत्रों में समान रूप से विभाजित कर दिया जाएगा. अधिकारी ने दावा किया कि वह धन की कमी से जूझ रहे थे, जिससे उनके लिए अपने क्षेत्र में ट्री एम्बुलेंस को बनाये रखना मुश्किल हो गया था.

प्रियदर्शी ने कहा, ‘ न तो पर्याप्त ट्रक थे और न ही हमारे पास तकनीकी जानकारी. हमने परिषद (नई दिल्ली नगर परिषद) को पत्र लिखकर ट्रेनिंग के लिए कर्मचारियों की मांग की थी. हमने (लागत का) अनुमान लगाया और एडवांस के लिए कहा.’

वह बताते हैं, ‘हम परियोजना को तभी शुरू कर सकते थे जब हमें इसके लिए पैसा मिला जाता. लेकिन अब तीनों निगम के एक हो जाने से हमें प्रशिक्षण के लिए बाहरी मदद नहीं लेनी पड़ेगी. सभी 12 जोन को नियंत्रित करने वाली केवल एक नीति होगी.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें.)


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