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प्लास्टिक व्यवसायी से हीरा बिजनेस के उत्तराधिकारी तक- जैन भिक्षु और नन जिन्होंने ये सब छोड़ दिया

मठवासी जीवन में नंगे पैर चलना, दिन में एक बार भोजन करना और बिजली और आधुनिक तकनीक से दूर रहना शामिल है. जिसका मकसद पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मोक्ष पाना है.

9 साल की साध्वी प्रज्ञा श्री, जो पहले हीरा उत्तराधिकारी देवंशी संघवी थीं, सूरत में अपनी दीक्षा के दौरान जैन दीक्षक को उत्तर देती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

सूरत/गिरनार/सोमनाथ/अहमदाबाद (गुजरात) : जैन धर्म में बाल दीक्षा की एक सदियों पुरानी प्रथा है, जिसके तहत कभी-कभी 8 वर्ष से कम उम्र के बच्चे -पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मोक्ष पाने के लिए आध्यात्मिक लक्ष्य की खोज में, भौतिक संसार को पीछे छोड़कर भिक्षु या नन बन जाते हैं.

मठवासी जीवन में नंगे पैर चलना, दिन में एक बार भोजन करना और बिजली और आधुनिक तकनीक से दूर रहना शामिल है.

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, जैन समुदाय के ज्यादातर लोग संपन्न परिवारों से ताल्लुक रखते हैं. इसलिए, जब उनके बच्चे भौतिक दुनिया त्यागते हैं, तो इसका आमतौर पर मतलब सुरक्षित पारिवारिक उद्यमों को पीछे छोड़ना होता है. सूरत के ज्यादातर युवा जैन भिक्षुओं और भिक्षुणियों के जीवन के अतीत की एक रोचक कहानी है, क्योंकि अक्सर इसका मतलब हीरा व्यवसाय से दूर हो जाना होता है.

दिप्रिंट के नेशनल फोटो एडिटर प्रवीण जैन ने मठवासी जीवन को नजदीक से जानने के लिए, कुछ जैन साधुओं और साध्वियों को फॉलो किया, जिनमें से ज्यादातर सूरत के हीरा व्यापारी परिवारों से थे. उन्होंने जैन बच्चों के जीवन पर भी नज़र रखी, जो यह जांचे जाने के लिए ट्रेनिंग ले रहे हैं कि क्या वे भविष्य में संन्यास लेने के लायक हैं.


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साध्वी प्रज्ञा श्री जैन धार्मिक मान्यताओं के बारे में एक ग्रंथ का अध्ययन करती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
एक वरिष्ठ साध्वी, साध्वी प्रज्ञा श्रीजी को सादे सफेद वस्त्र पहनने में मदद करती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

 

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साध्वी प्रज्ञा श्री जी के साथ एक जैन नन, जिन्होंने पिछले महीने मठवासी जीवन अपनाया है | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
साध्वी प्रज्ञा श्री जैन धार्मिक मान्यताओं को पढ़ने के बाद प्रसन्न मुद्रा में | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
13 साल की साध्वी वीरांशी रेखा जो कि इससे पहले बालों को रंगती थीं और जैन नन बनने से पहले एक साल में 2,000 से अधिक रील्स बनाती थीं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
20 साल की साध्वी तत्वत्री रेखा, 13 वर्षीया साध्वी वीरांशी रेखा के खाना खाने के बाद फर्श को पोंछती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
29 वर्षीया साध्वी असंगप्रज्ञा सूरत में एक उपाश्रय (भिक्षुओं और भिक्षुणियों के विश्राम स्थल) पर एक दूसरी नन के साथ एक जैन धार्मिक ग्रंथ पर चर्चा करती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
30 साल की साध्वी तथाप्रज्ञा श्री जी, सूरत में एक उपाश्रय में अपने अध्ययन के दौरान एक वरिष्ठ नन के साथ संक्षिप्त बातचीत करते हुए हंसी की मुद्रा में | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
22 वर्षीया साध्वी निसंगप्रज्ञ श्री जी अपने पानी के बर्तन का ढक्कन हटाती हुईं- यह जैन साधु और ननों के अपने पास रखने वाली कुछ चीजों में से एक है | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
45 साल की साध्वी देवांशी रेखा, जूनागढ़ के एक उपाश्रय में अपनी 13 वर्षीय बेटी साध्वी वीरांशी रेखा के साथ. साध्वी बनने से पहले वीरांशी रेखा के-पॉप ग्रुप बीटीएस की फैन हुआ करती थीं और इंस्टाग्राम रील बनाना पसंद करती थीं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
साध्वियों का समूह अपने रोज-मर्रा के काम में लगा हुआ | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
जैन साध्वियों का एक समूह कटोरे को पेंट करता हुआ, जिसका इस्तेमाल वे घर-घर जाकर भोजन जुटाने के लिए करते हैं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
साध्वी तत्वात्री रेखा के साथ साध्वी परार्थ रेखा (दाएं) जूनागढ़ में, भोजन (भिक्षा) जुटाने के बाद सड़क के रास्ते जाती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
21 वर्षीय जैन नन, साध्वी परार्थ रेखा, जब 12 वर्ष की थीं तब उन्होंने जैन मठवासी जीवन अपनाने का फैसला किया | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
जूनागढ़ में साध्वी परार्थ रेखा, 11 जैन भिक्षुणियों के लिए भोजन जुटा कर लौटती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
18 साल के साधु भाग्यरत्न, 40 वर्षीय साधु सोमयांग रत्नवीर के साथ चलते हुए, जो 17 साल पहले जैन साधु बने थे | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
चोडवार कस्बे में, साधु भाग्यरत्न विजय (बीच में), दो भाइयों- 18 साल के रीक (बाएं) और 16 साल के वर्शम जैन के साथ चलते हुई, जो जैन मुनि बनने की ट्रेनिंग ले रहे हैं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
साधु भाग्यरत्न विजय एक जैन मुनि के साथ जो अपना सामान ले जाने के लिए व्हीलचेयर का इस्तेमाल करते हैं । वृद्ध या घायल भिक्षु अपने विहार (भ्रमण) को रोके बिना अपनी स्थिति से उबरने में ऐसी मदद का इस्तेमाल करते हैं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
जैन तपस्वियों का एक समूह, जिसमें साधु भव्यरथ विजयी (सामने) शामिल हैं, जिन्हें पहले भंवरलाल दोशी के नाम से जाना जाता था, इससे पहले उन्होंने 2015 में अपना 600 करोड़ रुपये का प्लास्टिक व्यवसाय छोड़ दिया था, चोडवार में अपने विहार के दौरान एक सड़क से गुजरते हुए | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
साध्वी तत्वत्री रेखा, कपड़े में लिपटे, एक छोटे से स्टैंड पर मौजूद जैन देवता की पूजा करती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
वर्शम जैन (बाईं ओर) भिक्षुओं के विश्राम के लिए एक भक्त के घर में बैठे हुए. 16 साल के वर्शम ट्रेनिंग ले रहे है कि क्या वह भिक्षु बनने के लिए उपयुक्त है | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

(इस फोटो फीचर को पढ़ने और देखने के लिए यहां क्लिक करें)


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