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फेक इनवॉयस, जालसाजी, हवाला के जरिए रिश्वत: अधिकारियों और NGO की ‘सांठगांठ’ से कैसे हुआ FCRA घोटाला

सीबीआई ने 36 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है और 14 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.  रिश्वत लेकर किस तरह से लाइसेंस दिए गए और कैसे उनका नवीनीकरण किया गया.

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रुपया, प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली: केंद्रीय जांच ब्यूरो ने विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों और गृह मंत्रालय (एमएचए) के अधिकारियों के बीच कथित सांठगांठ की जांच के तहत देशव्यापी कार्रवाई शुरू कर दी है.

सीबीआई के सूत्रों के अनुसार, गृह मंत्रालय के विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) डिवीजन से जुड़े कम से कम छह अधिकारियों ने प्रमोटरों, विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर साजिश रची थी. ये सभी पंजीकरण व पंजीकरण के नवीनीकरण व एफसीआर के अन्य कार्यों के लिए गैर सरकारी संगठनों से कथित तौर पर हवाला चैनलों के जरिए रिश्वत ले रहे थे.

यह मामला बुधवार को छह सरकारी अधिकारियों समेत 14 लोगों की गिरफ्तारी के साथ सामने आया. एक अधिकारी को भी हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है.

सीबीआई ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, असम और मणिपुर में लगभग 40 ठिकानों पर छापा मारा और 3.21 करोड़ रुपये नकद बरामद किए.

इस संबंध में 10 मई को गृह मंत्रालय की शिकायत पर 36 व्यक्तियों के खिलाफ रिश्वत लेकर लाइसेंस देने और नवीनीकरण करने का एक मामला दर्ज किया गया था. इसमें एमएचए के एफसीआरए डिवीजन और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) के सात अधिकारी शामिल थे.

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किसी भी एनजीओ को विदेशी चंदा लेने के लिए एक वैध एफसीआरए लाइसेंस की जरूरत होती है. यह लाइसेंस पांच साल के लिए होता है और अवधि समाप्त होने के बाद इसे रिन्यू कराये जाने की जरूरत होती है.

इस साल जनवरी में 6000 से ज्यादा एनजीओ के लाइसेंस रद्द हो गए क्योंकि गृह मंत्रालय द्वारा इनका नवीनीकरण नहीं किया गया था. उस समय एमएचए के अधिकारियों ने कहा था कि लगभग 6000 संगठनों में से 5,789 ने ‘कई रिमाइंडर’ दिए जाने के बाद भी नवीनीकरण के लिए आवेदन नहीं किया है.

एफसीआरए में संशोधन को बरकरार रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने फैसला सुनाया था कि विदेशी चंदा प्राप्त करना मौलिक या पूर्ण अधिकार नहीं है.


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‘एनजीओ ने बनाए फर्जी इनवॉइस’

पूर्व में एफसीआरए विभाग में नियुक्त, एमएचए के अधिकारी प्रमोद कुमार भसीन, जनगणना विभाग में कार्यरत आलोक रंजन, एफसीआरए डिवीजन में एकाउंटेंट राज कुमार, एफसीआरए में सहायक निदेशक शहीद खान, एमएचए अधिकारी मोहम्मद ग़ज़नफ़र अली, जो पहले एफसीआरए डिवीजन में थे  और वर्तमान में एफसीआरए डिवीजन में कार्यरत तुषार कांति रॉय के खिलाफ एफआई दर्ज की गई है. इन सभी को हिरासत में ले लिया गया है. सूत्रों के अनुसार, प्राथमिकी में दर्ज एक नाम एनआईसी अधिकारी उमा शंकर का भी है. इन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया है.

अधिकारियों के पास अपनी पैरवी के लिए अभी कोई वकील नहीं है, इसलिए उनसे इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं मिल पाई है.

देश में सक्रिय कम से कम सात एनजीओ के नाम भी एफआईआर में दर्ज किए गए हैं.

सीबीआई के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘इनमें से कुछ एनजीओ रिश्वत देकर पिछले दरवाजे से एफसीआरए पंजीकरण और नवीनीकरण करवा रहे थे. ये वो एनजीओ थे जिनके पास लाइसेंस रिन्यू कराने के लिए जरूरी दस्तावेज नहीं थे. इन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि विदेशों से चंदा आता रहे. इसके अलावा वे अपने तथाकथित सामाजिक कार्यों के लिए किए गए खर्च को जायज ठहराने के लिए फर्जी इनवॉइस भी बनाते थे.’

प्राथमिकी के अनुसार, प्रमोद कुमार भसीन पहले एमएचए के एफसीआरए डिवीजन में तैनात थे. लेकिन वह खुद को अभी तक नई दिल्ली के एफसीआरए अधिकारी के रूप में दिखा रहे थे और हवाला नेटवर्क के जरिए विभिन्न गैर सरकारी संगठनों से अनुचित लाभ लेते रहे.’ घोटाले में आरोपी और उनके कुछ  सहयोगी एनजीओ से संपर्क करते और उनसे कहते कि वे रिश्वत देकर बिना किसी परेशानी के एफसीआरए लाइसेंस का नवीनीकरण करा सकते हैं और इसकी ‘जटिल और लंबी’ प्रक्रिया से बच सकते हैं.

प्राथमिकी में एक नाम देवेश चंद्र मिश्रा का भी है, जिसने कथित तौर पर एनजीओ ओमिड्यार को दान के रूप में 3 करोड़ रुपये के विदेशी धन को प्राप्त करने की अनुमति दी थी. सूत्र ने कहा, ‘रिश्वत के रूप में कुल रकम का 10 प्रतिशत लेने के बाद ही ये अनुमति दी गई. इस तरह ये सौदे हुए थे.’

ओमिड्यार ने न्यूज़लॉन्ड्री और स्क्रॉल जैसी समाचार वेबसाइटों में निवेश किया है. इसने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), अशोका यूनिवर्सिटी और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च जैसे थिंक टैंक, संस्थानों और वकालत समूहों को भी अनुदान दिया है. दिप्रिंट ने ईमेल के जरिए इस मुद्दे पर टिप्पणी के लिए ओमिड्यार से संपर्क किया था, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

एफआईआर के अनुसार, एक कंसल्टेंसी फर्म की निदेशक और मामले की आरोपी अर्निता चंद्रा ने कथित तौर पर एनजीओ को उनके एफसीआरए लाइसेंस के नवीनीकरण की ‘जटिल और लंबी प्रक्रिया’ में तेजी लाने में मदद करने की पेशकश की थी.


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‘कागजी कार्रवाई में ‘कमी’ को नजरअंदाज करने के लिए रिश्वत’

सूत्रों ने बताया कि गृह मंत्रालय के अधिकारी प्रमोद कुमार भसीन ने एफसीआरए लाइसेंस के लिए उनके आवेदन में ‘कमियों’ के बारे में सूचित करने के लिए गैर सरकारी संगठनों से संपर्क किया था. उन्होंने इन ‘कमियों’ को नजरअंदाज करने के लिए एक कीमत की पेशकश की थी.

प्राथमिकी में कहा गया है कि भसीन ने 4 अप्रैल को गंगा मेडिकल सेंटर और अस्पताल के एस. राजशेखरन से संपर्क किया और उन्हें सूचित किया कि उनके एनजीओ – गंगा ऑर्थोपेडिक रिसर्च एंड एजुकेशन फाउंडेशन (GOREF) के लिए FCRA लाइसेंस नवीनीकरण अनुरोध को उनके चार्टर्ड एकाउंटेंट द्वारा बाद में जमा कराए गए वार्षिक रिटर्न दस्तावेज में विसंगतियों के कारण आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है.

भसीन ने कथित तौर पर राजशेखरन से कहा कि उन्हें एनजीओ को हर साल दान में मिलने वाली कुल राशि का 5 प्रतिशत के बराबर जुर्माना देना होगा.

सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस पर, राजशेखरन ने कहा कि उनके इंटरनल ऑडिटर उनसे संपर्क करेंगे. भसीन ने मामले को सुलझाने के लिए 2 लाख रुपये की रिश्वत की मांग की थी.’ फिर एक हवाला चैनल के जरिए उन तक रिश्वत का पैसा पहुंचाया गया. इसके अलावा यह भी पता चला कि भसीन ने उस हवाला नेटवर्क का इस्तेमाल पूरे भारत में स्थित विभिन्न गैर सरकारी संगठनों से पैसे लेने के लिए किया था.

‘लंबित शिकायतों के समाधान के लिए रिश्वत’

एफआईआर में लिखा है, गृह मंत्रालय के अधिकारी आलोक रंजन ने रविशंकर अंबस्थ नाम के एक व्यक्ति के साथ मिलकर एनजीओ से संपर्क किया और उनके खिलाफ लंबित शिकायतों’ पर चर्चा की. उसके बाद मामले को सुलझाने के लिए बकायदा रिश्वत की मांग की गई. एक उदाहरण में, एक एनजीओ ने मामले को सुलझाने के लिए 15 लाख रुपये रिश्वत देने पर भी सहमति जता दी थी.

सूत्र ने बताया , ‘आलोक रंजन एफसीआरए विभाग के एक अधिकारी के रूप में खुद को दिखाते थे. वह एनजीओ को बताते थे कि उनके खिलाफ शिकायतें मिली हैं और इसके बदले में कुछ पैसे देकर मामले को सुलझाया जा सकता है.’

इसके अलावा गृह मंत्रालय के अधिकारी भसीन ने अनीश सेल्वराज नाम के एक व्यक्ति से उन एनजीओ से संपर्क करने के लिए मदद मांगी, जो ‘अपने एनजीओ के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई कराए जाने के बजाय रिश्वत देकर अपना एफसीआरए लाइसेंस रिन्यू कराने के इच्छुक थे’

सीबीआई सूत्रों के मुताबिक, सेल्वराज ने ऐसे एनजीओ की पहचान की और यह जानकारी भसीन को दी. और उसके बाद उनसे रिश्वत मांगने के लिए संपर्क किया गया.

सूत्र ने कहा, ‘ये सभी एनजीओ विदेशी फंडिंग प्राप्त करने के लिए एफसीआरए लाइसेंस चाहते थे और इसलिए, जब उनसे संपर्क किया गया तो उन्होंने इसमें अपनी रुचि दिखाई. भसीन इन एनजीओ से कहा करते थे कि अगर वे रिश्वत नहीं देते हैं तो उन्हें भारी जुर्माना भरना पड़ेगा. यही वजह है कि उनमें से ज्यादातर पैसे देने के लिए तैयार हो गए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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