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आरटीआई में खुलासा- दिल्ली के चार बड़े सरकारी अस्पतालों में हर माह 16 महिलाओं ने डिलीवरी के बाद दम तोड़ा

जानकारी के मुताबिक, सबसे ज्यादा खराब हालात सफदरजंग अस्पताल की है, जहां बीते 81 महीने में हर माह औसतन 11 से ज्यादा महिलाओं ने प्रसव के बाद जान गंवा दी.

जिंद के एक स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव वार्ड में बच्चा अपनी मां के पास सोता हुआ । फोटो साभार: ब्लूमबर्ग

नयी दिल्ली : मातृ मृत्यु दर में कमी लाने की तमाम कोशिशों के बावजूद दिल्ली में केंद्र सरकार के अधीन आने वाले चार बड़े अस्पतालों में हर महीने औसतन 16 महिलाएं प्रसव के बाद दम तोड़ देती हैं. इन अस्पतालों ने ‘पीटीआई-भाषा’ की ओर से सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत दायर अलग-अलग आवेदनों के जवाब में यह जानकारी उपलब्ध कराई है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), राम मनोहर लोहिया अस्पताल (आरएमएल), सफदरजंग अस्पताल और लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज से संबद्ध सुचेता कृपलानी अस्पताल में जनवरी 2015 से सितंबर 2021 के बीच 1,281 महिलाओं की शिशु के जन्म के बाद मौत हो गई.

जानकारी के मुताबिक, सबसे ज्यादा खराब हालात सफदरजंग अस्पताल की है, जहां बीते 81 महीने में हर माह औसतन 11 से ज्यादा महिलाओं ने प्रसव के बाद जान गंवा दी.

आरटीआई आवेदनों में पूछा गया था कि जनवरी 2015 से जुलाई 2021 के बीच इन अस्पतालों में कितने शिशुओं का जन्म हुआ, प्रसव के बाद कितनी महिलाओं ने दम तोड़ा और उनकी मौत की वजह क्या रही?

जवाब में सफरदरजंग और सुचेता कृपलानी अस्पताल ने सितंबर 2021 तक की संख्या उपलब्ध कराई, जबकि बाकी दोनों अस्पतालों ने जुलाई 2021 तक के आंकड़े दिए.

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प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इस अवधि में चारों अस्पतालों में 2.73 लाख से ज्यादा बच्चे पैदा हुए.

सफदरजंग अस्पताल ने बताया कि जनवरी 2015 से सितंबर 2021 के बीच उसके यहां 1.68 लाख से ज्यादा बच्चों का जन्म हुआ और 943 महिलाओं ने प्रसव के बाद दम तोड़ा. हालांकि, उसने महिलाओं की मौत के कारण नहीं बताए.

जानकारी के अनुसार, प्रसव के बाद सबसे कम मातृ मृत्यु दर एम्स में रही और वहां जनवरी 2015 से जुलाई 2021 के बीच 29 महिलाओं की शिशु के जन्म के बाद जान गई.

आरटीआई से हासिल जानकारी के मुताबिक, आरएमएल में इस अवधि में 59, जबकि सुचेता कृपलानी अस्पताल में 250 महिलाओं की प्रसव के बाद मौत हुई.

सफदरजंग को छोड़ बाकी तीनों अस्पतालों ने बताया कि जानलेवा संक्रमण, अत्यधिक रक्तस्राव, सेप्टिक स्ट्रोक, दिल का दौरा पड़ना और सिजेरियन प्रसव के बाद आंत सहित अन्य अंगों की क्रिया प्रभावित होना महिलाओं की मौत की मुख्य वजह था.

जानकारी के अनुसार, लिवर की बीमारी, फेफड़ों की धमनियों में खून के थक्के जमने, रक्त की गंभीर कमी होने, श्वास संबंधी दिक्कतें उभरने, गर्भाशय के फटने, टीबी और कोविड से उपजी जटिलताओं के चलते भी बड़ी संख्या में महिलाओं की जान गई.

भारत के महापंजीयक की ओर से हाल ही में जारी विशेष बुलेटिन के मुताबिक, देश में मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) में 10 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है.

इसमें बताया गया है कि 2017 से 2019 के बीच भारत में एमएमआर घटकर 103 पर पहुंच गया.

केंद्र सरकार मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, एनीमिया मुक्त भारत अभियान, सुरक्षित मातृत्व आश्वासन योजना और जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) समेत कई अन्य योजनाएं चला रही है.

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.


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