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तीन सदस्यों के प्रावधान के बावजूद जून 2021 से सिर्फ एक ही कमिश्नर के भरोसे चल रहा CVC

केंद्रीय सतर्कता आयोग आखिरी बार अक्टूबर 2020 में तीन सदस्यीय आयोग के तौर पर काम कर रहा था, जिसमें अप्रैल 2020 के बाद से कोई नियुक्ति नहीं हुई है. विपक्ष इसे लेकर मोदी सरकार पर संस्था को ‘कमजोर’ करने का आरोप लगा रहा है.

क्रेडिट । दिप्रिंट टीम

नई दिल्ली: केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 के प्रावधानों के मुताबिक केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) तीन सदस्यीय स्वायत्त निकाय होना चाहिए लेकिन पिछले साल जून से यह आयोग केवल एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (जो इसके अध्यक्ष हैं) के भरोसे ही चल रहा है.

आयोग आखिरी बार अक्टूबर 2020 में एक अध्यक्ष और दो सदस्यों के साथ तीन सदस्यीय आयोग के तौर पर काम कर रहा था, जैसा नियमत: होना चाहिए. इसके बाद दो सतर्कता आयुक्तों में से एक—सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी शरद कुमार—ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया.

शरद कुमार के रिटायरमेंट के बाद आयोग में एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी और एक सतर्कता आयुक्त सुरेश पटेल रह गए थे.

सीवीसी की 2020 की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया था, ‘संजय कोठारी, आईएएस (रिटायर्ड) ने 24 अप्रैल 2020 को केंद्रीय सतर्कता आयुक्त का पद संभाला था और आंध्रा बैंक के रिटायर्ड एमडी और सीईओ सुरेश एन. पटेल 29 अप्रैल 2020 को सतर्कता आयुक्त बने थे. रिटायर्ड आईएएस शरद कुमार ने बतौर सतर्कता आयुक्त 10 अक्टूबर 2020 को कार्यालय छोड़ दिया. तब से सतर्कता आयुक्त का एक पद खाली है.’

उसके बाद से शरद कुमार की जगह पर किसी की नियुक्ति नहीं हुई और जून 2021 में कोठारी का कार्यकाल भी पूरा हो गया और एकमात्र बचे आयुक्त पटेल को केंद्रीय सतर्कता आयुक्त नियुक्त कर दिया गया. इसके बाद से ही सतर्कता आयुक्त के दोनों पद खाली पड़े हैं.

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पटेल जून 2021 से सीवीसी के प्रमुख और इसके एकमात्र सदस्य हैं. अप्रैल 2020 से आयोग में कोई नियुक्ति नहीं हुई है, जब कोठारी और पटेल दोनों सीवीसी का हिस्सा बने थे.

दिप्रिंट ने इस पर टिप्पणी के लिए फोन के जरिये पटेल के कार्यालय से संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. दिप्रिंट ने ईमेल के माध्यम से प्रेस सूचना ब्यूरो के प्रधान महानिदेशक जयदीप भटनागर से भी संपर्क साधा. इस पर बताया गया कि प्रश्नों को संबंधित विभाग—गृह मंत्रालय के तहत डीओपीटी—को भेज दिया गया है. लेकिन इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.


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सीवीसी की पृष्ठभूमि और भूमिका

सीवीसी की वेबसाइट के मुताबिक, इसका गठन 1964 में भ्रष्टाचार की रोकथाम पर एक समिति की सिफारिशों के आधार पर सतर्कता मामलों में केंद्र सरकार की एजेंसियों को सलाह देने, मार्गदर्शन और सिफारिशें करने के लिए हुआ था. इसे 1998 में वैधानिक निकाय का दर्जा दिया गया और इस संस्था और इसके कामकाज को अधिक स्पष्टता प्रदान करने के उद्देश्य से 2003 में केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम पारित किया गया.

केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 के तहत देश के सर्वोच्च सतर्कता निकाय सीवीसी में एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (जो अध्यक्ष के तौर पर कार्य करता है) और सदस्यों के रूप में दो सतर्कता आयुक्त होने चाहिए. तीनों का कार्यकाल चार साल की अवधि के लिए या उनके 65 वर्ष की आयु पूरी करने तक—इसमें जो भी पहले हो—तक निर्धारित किया गया है.

सीवीसी अधिनियम की धारा 4 के तहत इस आयोग के लिए नियुक्तियां प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और लोकसभा में नेता विपक्ष की एक समिति की सिफारिशों पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं. जब किसी नेता को आधिकारिक तौर पर नेता विपक्ष का दर्जा नहीं मिला होता है तो ऐसे में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता समिति का सदस्य बन जाता है.

संसद ने हाल ही में केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित किया है लेकिन यह संशोधन सीवीसी आयुक्तों की नियुक्ति अथवा उनके कार्यकाल से संबंधित नहीं है, बल्कि प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक का कार्यकाल बढ़ाने के संदर्भ में है जो कि सीवीसी अधिनियम के तहत ही आता है.

सीवीसी की कई अहम भूमिकाओं और जिम्मेदारियों में से सबसे महत्वपूर्ण है केंद्र सरकार द्वारा संज्ञान में लाए गए मामलों की जांच करना या जांच अथवा पूछताछ की सिफारिश करना और किसी भी सरकारी विभाग से जुड़े किसी अधिकारी के खिलाफ मिली किसी भी शिकायत की जांच करना. सीवीसी केंद्र सरकार के कई विभागों और एजेंसियों के प्रमुखों की नियुक्ति में भी अहम भूमिका निभाता है.

‘संस्था को कमजोर किया गया’

सीवीसी में केवल एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त होने के बाद भी बड़ी संख्या में मामलों के निपटारे के बावजूद विपक्ष को इसमें दो पद खाली होना अखर रहा है.

लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने सीवीसी में खाली पड़े पदों को ‘केंद्रीय संस्थानों को कमजोर करने’ की नरेंद्र मोदी सरकार की ‘एक और कोशिश’ करार दिया है.

चौधरी ने कहा, ‘मैंने इस मुद्दे को लोकसभा में इस (शीत) सत्र में उठाया था. वे (सरकार) केवल झूठ बोलते रहते हैं. उन्होंने महामारी शुरू होने से पहले सीवीसी की नियुक्ति के लिए एक बैठक बुलाई थी और तबसे अब तक कोई बैठक नहीं बुलाई गई है.’

उन्होंने दावा किया, ‘संस्था में नियुक्त किए गए सीवीसी के रिटायर होने के बाद उन्होंने सीवीसी (एडहॉक) के तौर पर एक सामान्य सदस्य को पदोन्नत कर दिया है. मुझे लगता है कि उन्हें (सरकार) अपने भरोसे का कोई व्यक्ति नहीं मिल रहा है जिसे सीवीसी नियुक्त किया जा सके.’

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘आयोग की गंभीरता को घटा दिया गया है जबकि इसके लिए एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और दो सतर्कता आयुक्तों के साथ एक पूर्ण पीठ के तौर पर काम करने का प्रावधान किया गया है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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