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‘डिलीट किए चैट रिकॉर्ड, बैकअप सर्वर तक गलत पहुंच’: NSE को-लोकेशन घोटाला मामले में CBI को क्या मिला

सीबीआई ने अगस्त में मामले में पूरक आरोपपत्र दाखिल किया था. चार्जशीट से पता चला कि कैसे ओपीजी सिक्योरिटीज के मालिक ने 2010 और 2014 के बीच अन्य दलालों से पहले डेटा पाने के लिए एनएसई अधिकारियों को 'रिश्वत' दी थी.

मुंबई स्थित एनएसई का दफ्तर | फोटो: कॉमन्स

नई दिल्ली: नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) को-लोकेशन घोटाला मामले के केंद्र में दिल्ली की ब्रोकरेज कंपनी ‘ओपीजी सिक्योरिटीज’ के मालिक और प्रमोटर ने एनएसई कर्मचारियों के साथ अपनी चैट और ई-मेल सहित महत्वपूर्ण सबूतों को डिलीट कर दिया था. केंद्रीय ब्यूरो ऑफ इंडिया एक्सचेंज में कथित हेराफेरी की जांच कर रही सीबीआई को इस बात के सबूत मिले हैं.

एजेंसी के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि 2010 और 2014 के बीच संजय गुप्ता– ओपीजी सिक्योरिटीज के मालिक और मामले के मुख्य आरोपियों में से एक– और उनके सह-आरोपी ने आपात स्थिति में ‘एनएसई डेटा तक बेहतर पहुंच’ बनाने वाले एक सेकेंडरी सर्वर का इस्तेमाल किया, जिसकी वजह से उन्हें अन्य दलालों से पहले जानकारी मिली और उन्होंने इसका इस्तेमाल अपनी कंपनी के फायदे के लिए किया.

इस साल जून में इस मामले में गिरफ्तार किए गए गुप्ता ने कथित तौर पर सॉफ्टवेयर इंजीनियर अमन कोकराडी और विवेक गोयनका को भी काम पर रखा था ताकि वे उस सॉफ्टवेयर को विकसित कर सकें. वे इसका इस्तेमाल सर्वर से कनेक्ट करने के लिए करते थे.

इन निष्कर्षों को 19 अगस्त को दायर सीबीआई की सप्लीमेंट्री चार्जशीट में दर्ज किया गया है. एजेंसी के सूत्रों ने बताया कि गुप्ता, कोकराडी और गोयनका के अलावा चार्जशीट में ओपीजी में डेटा एनालिस्ट अभिलाषा कुकरेजा और एनएसई की पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक चित्रा रामकृष्ण का नाम है.

दिप्रिंट ने ई-मेल और फोन के जरिए ओपीजी सिक्योरिटीज तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. टिप्पणी मिलने के बाद रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

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अपने आरोपपत्र में सीबीआई ने कथित तौर पर दावा किया है कि एनएसई के डेटा सेंटर के कर्मचारियों ने ओपीजी को 2010 और 2014 के बीच कंपनी के बैकअप सर्वर तक पहुंचने में मदद की, जिससे इसे अन्य दलालों से ज्यादा फायदा मिला. क्योंकि उनकी पहुंच सिर्फ एनएसई के प्राथमिक सर्वर तक थी.

सूत्रों ने बताया कि सिर्फ इमरजेंसी के लिए तैयार किए गए बैकअप सर्वरों में ‘जीरो लोड’ था, जिससे उनके लिए मार्किट फीड तक बेहतर और तेज पहुंच बन गई. इससे गुप्ता की कंपनी को गलत तरीके से फायदा पहुंचा था.

एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘ओपीजी सिक्योरिटीज के पास पूरे एक दिन के लिए सेकेंडरी सर्वर तक पहुंच थी. यह एक बैकअप है और सिर्फ आपात स्थिति के लिए है. मसलन अगर प्राथमिक सर्वर डिस्पेंसिंग डेटा शेयर होना बंद हो जाता है तो ऐसे में सेकेंडरी सर्वर से काम लिया जाता है.’ वो एक सेकेंडरी सर्वर से कनेक्ट हो गए, जिस पर कम लोड था. जिस कारण उन्हें बाकी लोगों की तुलना में डेटा काफी तेजी से मिला और उन्होंने उसका अनुचित फायदा उठाया. इस सर्विस को पाने के लिए ही उन्होंने एनएसई कर्मचारियों को रिश्वत दी थी.

सूत्र ने आगे कहा कि जांचकर्ताओं ने पाया कि कंपनी ने एनएसई कर्मचारियों के साथ की गई बातचीत-मामले के सभी महत्वपूर्ण सबूत- के बहुत सारे रिकॉर्ड डिलीट कर दिए. जांच के दौरान जब्त किए गए डिवाइस से कुछ डिलीट किए गए सबूत बरामद किए गए हैं.

एजेंसी ने यह भी पाया कि जब एनएसई ने ‘यूनिकास्ट सर्वर से मल्टीकास्ट सर्वर’ पर स्विच किया, तो ओपीजी ने ‘अपना बेहतर प्रदर्शन करना बंद कर दिया था.’

एक यूनिकास्ट सर्वर में सूचना एक स्रोत से प्रसारित की जा सकती है जबकि एक मल्टीकास्ट कई स्रोतों से सूचना प्रसारित करता है.


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अनुचित पहुंच और लाभ

एनएसई का को-लोकेशन घोटाला एक दशक पहले लगाए गए आरोपों से जुड़ा है. सीबीआई ने इस घोटाले के संबंध में पहली बार 2018 में एफआईआर दर्ज की थी. अप्रैल में अपनी पहली चार्जशीट में सीबीआई ने चित्रा रामकृष्ण और एनएसई के पूर्व मुख्य परिचालन अधिकारी आनंद सुब्रमण्यम का नाम लिया था. बाद में एजेंसी ने मामले के सिलसिले में फरवरी में सुब्रमण्यम को और फिर मार्च में रामकृष्ण को गिरफ्तार कर लिया था.

एक को-लोकेशन सेट-अप ब्रोकर के कंप्यूटर को स्टॉक एक्सचेंज के सर्वर क्षेत्र में स्थित होने की अनुमति देता. यह अन्य दलालों की तुलना में लगभग दस गुना गति से फायदा पहुंचाता है.

सीबीआई सूत्रों के अनुसार, गुप्ता ने अपनी कंपनी को यह फायदा पहुंचाने के लिए एनएसई के कर्मचारियों को 2010 और 2014 के बीच एनएसई को-लोकेशन फैसिलिटी में अनुचित तरीके से पहुंच पाने के लिए रिश्वत दी थी.

सूत्रों का कहना है कि 2014 तक एनएसई सर्वर को-लोकेशन फैसिलिटी से जुड़े दलालों को टिक-बाय-टिक (टीबीटी)-आधारित सिस्टम आर्किटेक्चर के जरिए सूचना प्रसारित की जाती थी.

इस आर्किटेक्चर में डेटा को ‘अनुक्रमिक तरीके से’ प्रसारित किया जाता था और ब्रोकर जो पहले एक्सचेंज सर्वर से जुड़ा था, उसे अपने से बाद में कनेक्ट होने वाले से पहले टिक- इसका मतलब है मार्केट फीड– मिल जाता था.

इस को-लोकेशन फैसिलिटी तक कथित रूप से अनुचित पहुंच का मतलब था कि गुप्ता की ओपीजी सिक्योरिटीज पहले सेकेंडरी सर्वर में लॉग इन कर सकती थी और सभी से पहले डेटा प्राप्त कर सकती थी.

सूत्र ने कहा, ‘(इसने) एनएसई के डेटा फीड के लिए एक स्प्लिट-सेकंड तेजी से एक्सेस करने की अनुमति दी.’ उन्होंने बताया कि कुछ स्प्लिट-सेकंड की तेजी से मिलने वाला डाटा भी स्टॉक ट्रेडर के लिए काफी फायदा पहुंचा सकता है.

एजेंसी के सूत्रों ने कहा कि गुप्ता ने कथित तौर पर एनएसई डेटा सेंटर के कर्मचारियों को यह जानकारी देने के लिए रिश्वत दी कि एक्सचेंज के सर्वर किस समय चालू हुए, जिससे उनकी कंपनी को अवैध लाभ पहुंचा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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