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वाराणसी में हज़ारों साल पुरानी सभ्यता की हुई पुष्टि, पुरातात्विक पर्यटन को बढ़ावा दिए जाने की मांग

पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने फौरी तौर पर इस इलाके में उत्‍खनन का काम कराने का निर्णय लिया है. बीते 26 फरवरी से खुदाई का काम भी शुरू हो गया है.

वाराणसी में खुदाई के दौरान मिले अवशेष | फोटो : रिज़वाना तबस्सुम

वाराणसी: उत्तर प्रदेश के वाराणसी से करीब बीस किलोमीटर दूर जक्खिनी के बभनियांव गांव में बीएचयू व पुरातत्व विभाग के एक सर्वेक्षण ने करीब चार हजार साल पुराने शिल्‍प ग्राम का पता लगाया है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्राचीन ग्रंथों में दर्ज शिल्‍प ग्रामों में से एक है. पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने फौरी तौर पर इस इलाके में उत्‍खनन का काम कराने का निर्णय लिया है. बीते 26 फरवरी से खुदाई का काम भी शुरू हो गया है.

अब तक की खुदाई से मिले कई प्रमाण

बभनियांव में अब तक के उत्खनन में तीनों ट्रेंच को मिलाकर गुप्तकालीन सामुदायिक चूल्हा, कुषाणकालीन फर्श, लाल लेपित मृदभांड, गुलाब पाश, टोटीदार बर्तन, धान की जली भूसी, पालतू पशुओं के जबड़े व जली हड्डियां आदि मिलीं हैं. आरंभिक उत्खनन में मुखाकृति वाला जटाधारी शिवलिंग, मिट्टी की भट्टी, चौथी-पांचवीं शताब्दी का लोढ़ा, लौह धातु, मल व मिट्टी के प्राचीन बर्तन व घड़े, मृद स्तंभ, खिलौने, मिट्टी के रेशेदार ठोस टुकड़े, पूजा कलश व उसका ढक्कन आदि मिले थे. वहीं हड्डियों के अवशेष न मिलने से यहां पर गुप्तकालीन बसावट संग आध्यात्मिक संकुल का संकेत बताया गया था.

काशी हिन्‍दू विश्‍वविद्यालय (बीएचयू) के प्राचीन इतिहास, संस्‍कृति एवं पुरात्‍तव विभाग की ओर से पंचकोशी एरिया का सर्वेक्षण कराए जाने के दौरान बभनियांव गांव में प्राचीन टीला मिला. टीले पर चार हजार साल पुराने मिट्टी के बर्तन, मंदिर और दो हजार साल पुरानी दीवारों के अवशेष तथा बाह्मी लिपि में लिखे अभिलेख मिले. सर्वेक्षण टीम की अगुवाई करने वाले प्रफेसर एके दुबे ने बताया कि अवशेष ऐसी बस्‍ती के निशान हैं, जिसका जिक्र वाराणसी से संबंधित प्राचीन साहित्‍य में मिलता है. टीला पुरातात्विक संपदा से भरा होने से इस इलाके में कभी एक सभ्‍यता विकसित होने का पता चलता है. बीएचयू की ओर से इस टीम में प्रोफेसर एके दुबे, प्रोफेसर ओंकरनाथ सिंह और डॉ. अशोक कुमार सिंह शामिल हैं.

वाराणसी में खुदाई के दौरान मिले अवशेष | फोटो : रिज़वाना तबस्सुम

साढ़े तीन हजार साल पुरानी सभ्‍यता होने की पुष्टि

प्रोफेसर ओंकारनाथ सिंह ने बताया कि कुछ वर्ष पहले सर्वेक्षण के दौरान बभनियांव गांव के इस टीले का पता चला था. टीम ने निरीक्षण किया तो यहां प्राचीन पुरावशेष पाए गए थे, जिसके उत्खनन के लिए पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से पत्राचार किया गया. इस साल भारत सरकार से अनुमति मिली है. बीएचयू टीम की सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर नई दिल्‍ली स्थित राष्‍ट्रीय संग्रहालय संस्‍थान के निदेशक डॉ. बी.आर. मणि की अगुवाई में टीम ने हाल ही में बभनियांव का दौरा किया. टीले पर मिली मूर्तियों, अभिलेखों व अन्‍य सामग्री के प्रारंभिक अध्‍ययन के बाद साढ़े तीन हजार साल पुरानी सभ्‍यता होने की पुष्टि हुई है.


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यहां पर खुदाई के दौरान करीब 1800 साल पुराने भगवान शिव के मंदिर का पूरा स्‍वरूप सामने आया है. एकमुखी शिवलिंग के बाद गर्भगृह, प्रदक्षिण पथ, पत्‍थर का बना अरघा और पानी निकलने की जगह भी मिलने से आरंभिक गुप्‍तकाल दौर के पुरावशेषों में यह मंदिर भी शामिल हो गया है. इससे पहले उत्‍खनन के दौरान पहली ट्रेंच में एकमुखी शिवलिंग पहले ही दिखाई पड़ा था, लेकिन अब गर्भ गृह के साथ अरघा आदि भी मिलने से पुरातत्‍वविद खासे उत्‍साहित हैं.

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उत्‍खनन दल के सह निदेशक प्रोफेसर अशोक कुमार सिंह ने बताया कि शिवलिंग अरघे में बकायदा स्‍थापित है और उस पर चढ़ाए जाने वाले जल की निकासी का रास्‍ता भी बना हुआ है. आसपास अन्‍य देवी-देवताओं के मंदिरों का समूह होने का अनुमान है. इसके लिए बगल में एक और ट्रेंच में खुदाई शुरू की गई है. बारिश होने की वजह से अभी खुदाई का काम बंद है. सिंह के मुताबिक आरंभिक गुप्‍तकाल के मंदिरों की खासियत यह थी कि उसमें शिखर नहीं होता था. बभनियांव में मिले मंदिर ने भी इसकी पुष्टि की है.

ग्रामीण बोले, कभी यहां किसी राजा का महल हुआ करता था

उत्खनन के दौरान मौके पर पहुंचे बांसदेव मौर्य का कहना था कि बचपन के दौरान जब खेतों की जुताई होती थी उसमें नर कंकाल के अवशेष मिलते थे. कई बार नर कंकाल का आधा से ज्यादा हिस्सा भी बरामद हुआ था. जो कार्य आज शुरू हुआ है, यदि पहले होता तो बहुत पुरानी चीजें मिली होतीं.

इसी गांव के जय नरायन सिंह कहते हैं कि उनके पुरखे बताते हैं कि यहां किसी राजा का महल था. पत्थरों की नक्काशी होती थी. यहां से बनी देवी-देवताओं की प्रतिमाएं दूसरे जगहों पर भेजी जाती थीं.

डब्बल यादव ने बताया कि इसकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं बता पाता है. प्रतिमा को डीह बाबा का मंदिर मानकर लोग यहां पूजा-अर्चना करते हैं. अभी जो शिल्प ग्राम की संभावना जतायी जा रही है, वह जरूर सही होगी.

लगातार मिल रही है प्राचीन मूर्तियां

खुदाई में लगातार यहां से प्रचीन मूर्तियां मिल रही हैं. एक मुखी शिवलिंग, शिव पार्वती, महिषासुर मर्दिनी समेत कई अन्‍य मूर्तियां मिल चुकी हैं. बीएचयू के इमेरिटस प्रोफेसर डॉ. मारुति नंदन तिवारी ने दावा किया है कि ये मूर्तियां आठवीं-नवीं शताब्दी की हैं. मूर्तियों की जांच के बाद प्रोफेसर नंदन ने बताया कि बभनियांव प्रतिहार काल में कला, संस्कृति एवं धर्म का महत्वपूर्ण क्षेत्र था. उन्होंने कहा कि इन स्थलों के सुरक्षित रखरखाव की व्यवस्था होनी चाहिए. इससे पुरातात्विक पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए.


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पुरातात्विक पर्यटन को दिया जाए बढ़ावा

पुरातत्‍व विशेषज्ञों के मुताबिक काशी से निकटता के कारण बभनियांव टीले का खास महत्‍व है. पौराणिक कथाओं के अनुसार काशी को पांच हजार साल पहले भगवान शिव ने स्‍थापित किया था. हालांकि आधुनिक विद्वानों का मानना है कि यह नगरी तीन हजार साल पुरानी है. ब‍भनियांव काशी का छोटा उपकेंद्र हो सकता है, जो एक शहर के रूप में विकसित हुआ हो. वाराणसी के रोहनिया विधानसभा से विधायक सुरेंद्र नारायण सिंह ने बताया कि यह गांव जल्‍द ही पर्यटक स्‍थल के रूप में तब्‍दील होगा. उन्होंने बताया कि पुरातात्विक कार्य व गांव के पर्यटन विकास में अनुदान के लिए मुख्‍यमंत्री से आग्रह करेंगे.

(रिज़वाना तबस्सुम स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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