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CJI एन वी रमण ने कहा- अदालतों में 4.5 करोड़ मामले लंबित होने का आंकड़ा ‘अतिशयोक्तिपूर्ण’ कथन

न्यायमूर्ति ने संघर्ष समाधान के लिए मध्यस्थता के प्रयास का उदाहरण देते हुए महाभारत का जिक्र किया.

सुप्रीम कोर्ट । विकीमीडिया कॉमन्स
सुप्रीम कोर्ट । विकीमीडिया कॉमन्स

नई दिल्ली: प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने शनिवार को कहा कि भारतीय अदालतों में 4.5 करोड़ मामले लंबित होने का आंकड़ा एक ‘अतिशयोक्तिपूर्ण कथन’ और ‘सही तरीके से नहीं किया गया विश्लेषण’ है तथा मामलों में विलंब के कारणों में से एक ‘समय काटने के लिए वाद दायर किया जाना’ भी है.

उन्होंने कहा कि किसी भी समाज में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक सहित विभिन्न कारणों से संघर्ष अपरिहार्य हैं तथा संघर्ष समाधान के लिए तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है. न्यायमूर्ति ने संघर्ष समाधान के लिए मध्यस्थता के प्रयास का उदाहरण देते हुए महाभारत का जिक्र किया.

उन्होंने कहा कि भारतीय मूल्यों में मध्यस्थता गहराई से अंतर्निहित है और यह भारत में ब्रिटिश वाद-प्रतिवाद प्रणाली से पहले भी मौजूद थी तथा विवाद के समाधान के लिए विभिन्न स्वरूपों में मध्यस्थता का सहारा लिया जाता था.

भारत-सिंगापुर मध्यस्थता शिखर सम्मेलन ‘मेकिंग मीडिएशन मेनस्ट्रीम: रिफ्लेक्शंस फ्रॉम इंडिया एंड सिंगापुर’ को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि कई एशियाई देशों में विवादों के सहयोगपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण समाधान की समृद्ध परंपरा रही है.

उन्होंने कहा, ‘भारत का महान महाकाव्य, महाभारत, असल में संघर्ष समाधान के माध्यम के रूप में शुरू में मध्यस्थता के प्रयास का उदाहरण उपलब्ध कराता है जहां भगवान कृष्ण ने पांडवों और कौरवों के बीच विवाद में मध्यस्थता का प्रयास किया। यह याद करना उचित होगा कि मध्यस्थता प्रयास के विफल होने का भयावह परिणाम निकला.’

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प्रधान न्यायाधीश ने वाद-प्रतिवाद प्रणाली पर एक चुटकुला सुनाते हुए कहा कि जब एक न्यायाधीश अखबार पढ़ते हुए सुबह की कॉफी चुस्की ले रहे थे तो उनकी पोती उनके पास पहुंची और कहा कि ‘दादा मेरी बड़ी बहन ने मेरा खिलौना ले लिया है.’ इस पर न्यायाधीश (दादा) ने तुरंत कहा कि क्या तुम्हारे पास कोई सबूत है?

उन्होंने कहा, ‘अवधारणा के रूप में मध्यस्थता, भारतीय मूल्यों में गहराई से अंतर्निहित है. भारत में ब्रिटेन की वाद-प्रतिवाद प्रणाली के पहुंचने से काफी पहले विवाद समाधान के लिए विभिन्न स्वरूपों में मध्यस्थ्ता का इस्तेमाल किया जाता था. विवादों का समाधान प्राय: मुखिया या समुदाय के बड़े लोग किया करते थे.’

न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘प्राय: कहा जाता है कि भारत में लंबित मामलों की संख्या 4.5 करोड़ तक हो गई है जिसे मुकदमों के भार से निपटने में भारतीय न्यायपालिका की अक्षमता के रूप में माना जाता है. यह एक अतिशयोक्तिपूर्ण बयान है और यह विश्लेषण सही तरीके से नहीं किया गया है.’

उन्होंने कहा कि मामलों में विलंब के कारणों में से एक ‘समय काटने के लिए वाद दायर किया जाना’ भी है.

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