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बिहार का स्नेक मैन, जो सांप को बचाता है और ग्रामीणों को भी, बक्सर के पहले रेस्क्यू सेंटर की कहानी

हरिओम का कहना है कि भारतीय सांपों को गलत समझा जाता है. इसे उलटने के लिए, वह बक्सर में एक रेस्क्यू सेंटर चलाते हैं, रील्स बनाते हैं और बड़े ही अनोखे अंदाज में लोगों की मदद कर रहे हैं.

इलस्ट्रेशन- प्रज्ञा घोष, दिप्रिंट

जिस उम्र में लोग सेना में भर्ती होने की तैयारी कर रहे हैं या कॉलेज जाने का सपना देख रहे हैं, उसी उम्र में हरिओम सांपों के साथ प्यार में है. 18 साल के हरिओम पिछले 6 साल से सांपों को पकड़ने का काम कर रहे हैं. अभी तक उन्होंने कई कोबरा और अजगरों से दो-दो हाथ किए हैं. हरिओम अब तक 15 अलग-अलग प्रजातियों के 3 हजार सांप पकड़ चुके हैं. उन्होंने डिस्कवरी चैनल में काम किया और वहां से कमाए पैसे से उन्होंने बक्सर जिले के चुरावनपुर गांव में सांपों और दूसरे जानवरों के लिए रेस्क्यू सेंटर खोल लिया.

नेचर वाइल्डलाइफ केयर रेस्क्यू सेंटर नाम का सेंटर बिहार का पहला रेस्क्यू सेंटर है.लेकिन इससे ग्रामीणों को कुछ समस्या थी. समस्या का कारण? एक ही जगह पर बहुत सारे सांप. सेंटर खोलने के चार महीने के भीतर ही कुछ लोगों ने उसे जला दिया, जिसमें 14 सांप को मर गए. 3 लाख रुपये की दवा जलकर राख हो गई.लेकिन हरिओम हार मानने वाले नहीं थे. उन्होंने फिर शून्य से शुरुआत की और तीन महीने पहले ही अपने सपने को फिर से बनाकर खड़ा किया.

ग्रामीण भारत में, जहां सांप का काटना आम बात है,वहां हरिओम का जुनून देखने वाला है.

वो कहते हैं, ‘मैं भारत के स्नेक मैन के नाम से जाना जाना चाहता हूँ. मैं ग्रामीणों और सांपों के बीच इस संघर्ष का स्थायी समाधान खोजना चाहता हूं.’

बिहार भारत का ऐसा राज्य है जहां सांप के काटने से तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा मौतें होती हैं – हर साल लगभग 4,500 मौतें. ऐसे में ग्रामीण सांप से बचने के लिए सबसे पहले उसे मारने की कोशिश करते हैं. यह उनका उपाय है. इसी कारण ग्रामीण इलाकों में सांप को लेकर डर और अंधविश्वास फैला हुआ है हरिओम का मिशन न केवल अपने पसंदीदा जानवर को बचाना और उनकी देखभाल करना है, बल्कि समाज में सांपों के प्रति चल रहे अंधिविश्वास को तोड़ना और सार्वजनिक दृष्टिकोण को बदलना है.

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जिस समय वह सांपों को बचाने के लिए काम नहीं कर रहे होते हैं, तो उस समय वह सांपों के खिलाफ सदियों से चले आ रहे पूर्वाग्रहों और अंधविश्वासों को कोड़ने के लिए काम करते हैं. वह उत्साह के साथ गांव-गाव की यात्रा करते हैं, लोगों को जहरीले और गैर जहरीले सांपों के अंतर के बारे में बताते हैं. ऐसी जानकारी देते हैं जिससे इंसान और सांप, दोनों की जान बचाई जा सकती है.

हरिओम अपने हाथों से सांपों को बचाता है, वह किसी लाठी का उपयोग नहीं करता | फोटो- विशेष व्यवस्था द्वारा

सांप दिखने पर हरिओम कॉल करें

हर दिन हरिओम को कम से कम 10-15 बचाव कॉल आते हैं, ज्यादातर फोन सुबह 4 बजे से 8 बजे के बीच आते हैं. लेकिन ऐसा तभी होता है जब ग्रामीणों ने पहले ही सांप को नहीं मारा हो, 95 प्रतिशत मामलों में गांववाले सांप को मार देते हैं. हरिओम बताते हैं कि ज्यादातर वो सांप मिलते हैं जो जहरीले नहीं होते. एक सांप है धामन जो बहुत पाया जाता है, यह चूहा खाने वाले सांप के नाम से भी जाना जाता है.हालांकि हरिओम ने कोबरा और आम क्रेट को भी रेस्क्यू किया है, जिसका जहर बेहद घातक हो सकता है.

हरिओम का कहना है कि वह एक प्लास्टिक के डब्बे और एक छड़ी के इस्तेमाल से सांप पकड़ते हैं, कुछ मामलों में वह सिर्फ हाथ का इस्तेमाल करते हैं. वो कहते हैं, ‘मुझे डर नहीं लगता. एक महीने पहले मैंने एक कोबरा को रेस्क्यू किया था. बाद में उसने मुझे काट लिया, मेरा 12 घंटे तक अस्पताल में इलाज चला. अगले दिन, मैं फिर से रेस्क्यू पर चला गया.’

जब भी हरिओम सांप को बचाता है तो लोग आसपास जमा हो जाते हैं। उनके लिए यह मनोरंजन का भी जरिया है | फोटो- विशेष व्यवस्था द्वारा

हालांकि हरिओम को इस काम से अच्छा पैसा नहीं मिलता है.उन्हें हर रेस्क्यू कॉल के लिए 300 रुपये से 500 रुपये के बीच मिलता है. अक्सर, इसके लिए वह लंबी दूरी तय करते हैं, जिसका मतलब है कि पेट्रोल का खर्च. वो कहते हैं, ‘ ‘सांपों को बचाने से मुझे कोई फायदा नहीं होता. मैं इसे सांपों के प्रति अपने प्रेम के कारण करता हूं और क्योंकि मैं अपने लोगों के लिए कुछ करना चाहता हूं इसलिए.’

पिछले साल उन्हें डिस्कवरी चैनल की टीम के साथ पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में करीब 15 दिनों तक काम करने का मौका मिला. वहां उन्होंने एक रेस्क्यू सेंटर और अपने गांव में भी ऐसा ही सेंटर खोलने का फैसला किया.उन्होंने कहा, ‘मैंने डिस्कवरी चैनल से मिले पैसों से सेंटर की शुरुआत की थी.’

सांपों से आगे की लड़ाई

भारत में सांप के काटने की 94 प्रतिशत घटनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में होती हैं, जबकि 77 प्रतिशत मौतें अस्पतालों पहुंचने से पहले ही हो जाती हैं. साल 2020 के राष्ट्रीय मृत्यु दर अध्ययन के आंकड़ों से यह पता चलता है.

ऐसे गाँवों में जहां विष-विरोधी और उचित उपचार के समय पर प्रशासन की पहुंच बहुत कम या न के बराबर होती है, वहां गांववाले ओझा, आस्था के मरहम लगाने वाले और झोलाछाप डॉक्टरों की ओर रुख करते हैं, जो ‘जादुई’ इलाज करते हैं. पारंपरिक उपचारकर्ता पीड़ित को स्नान करने या काटने के घाव पर घी लगाने के लिए जाने जाते हैं. महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में, सर्पदंश के शिकार लोगों को हरी मिर्च या सूखी मिर्च पाउडर, चीनी और नमक का मिश्रण खिलाना आम बात है.

बिहार के एक सामाजिक कार्यकर्ता रामजी सिंह कहते हैं, ‘ज्यादातर पीड़ित पहले इलाज के लिए पारंपरिक चिकित्सक के पास जाते हैं. वे झाड फूंक (काला जादू और भूत भगाने) का विकल्प चुनते हैं. उनमें से कई ने इस तरह अपनी जान गंवा दी.’

हरिओम बक्सर जिले के ब्रह्मपुर गांव में हुई हाल की घटना को में याद करते हैं जिसमें आधी रात के करीब एक 11 साल के लड़के को कोबरा ने काट लिया. उसके माता-पिता उसे एक पारंपरिक चिकित्सक के पास ले गए, जिसने काम नहीं किया और कुछ घंटों बाद लड़के की मृत्यु हो गई.वो कहते हैं, ‘मैं इस तरह के मामले रोजाना देखता हूं.हर महीने लगभग 30-35. मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद करने की कोशिश करता हूं लेकिन उन्हें मनाना मुश्किल है. कुछ समझते हैं, लेकिन ज्यादातर पुरानी प्रथाओं का पालन करते हैं.’

हरिओम ने अब तक 15 प्रजातियों के करीब 3000 सांपों को बचाया है. फोटो- विशेष व्यवस्था द्वारा.

वह उन्हें उन अस्पतालों में भेजने की बहुत कोशिश करते है जहां बचने की बेहतर संभावना है. लेकिन यह मुश्किल है, और सिर्फ अंधविश्वास के कारण नहीं. बल्कि उपचार की लागत भी एक बड़ी भूमिका निभाती है.

निजी अस्पताल एंटीडोट देने और बुनियादी उपचार करने के लिए 30,000-35,000 रुपये के बीच कहीं भी चार्ज कर सकते हैं. हरिओम कहते हैं, ‘उन्हें इतना पैसा कहाँ से मिलेगा? यहां के लोग मिट्टी के घरों में रहते हैं. इसके अलावा, निजी अस्पताल उन्हें पहले भुगतान करने के लिए कहते हैं.’

और इसलिए, ऐसी घटनाओं से बचने के लिए सांपों को मारना या इलाज के लिए पारंपरिक चिकित्सकों के पास जाना पसंदीदा विकल्प बन जाता है.

एक समय था जब ग्रामीण अर्ध-खानाबदोश नट समुदाय पर भरोसा करते थे, जिन्हें सांपों को दूर करने के लिए कहा जाता था. रामजी कहते हैं, ‘लेकिन हम उन्हें अब और नहीं देखते हैं.ऐसा है जैसे वे समाज से गायब हो गए’


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इंस्टाग्राम और यूट्यूब से प्यार

अपनी उम्र के बाकी दूसरे लड़कों की तरह हरिओम को भी सोशल मीडिया का शौक है. हरिओम अपने द्वारा बचाए गए सांपों की तस्वीरें और वीडियो बनाते हैं. वह उन्हें एडिट करते हैं. फिर इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर अपलोड करते हैं. कुछ दिनों पहले, उन्होंने ब्रह्मपुर में 20 किलो के एक अजगर को बचाया, जिसके बाद उन्होंने कुछ रील्स बनाईं. वह अभी फेमस नहीं है, लेकिन वह एक प्रभावशाली व्यक्ति बनना चाहते हैं.

हरिओम भारत के स्नेक मैन के नाम से जाना जाना चाहता है। वह उनके बारे में भी अध्ययन करना चाहता है | विशेष व्यवस्था द्वारा

वह सांपों से संबंधित अंधविश्वासों का मुकाबला करने और समय पर चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए इंस्टाग्राम का इस्तेमाल करता है, लेकिन वह अपनी रीलों में थोड़ा नाटक और रहस्य का उपयोग भी करते हैं. उनके यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो क्लिप में एक भूरे-काले रंग के कोबरा को मिट्टी के घर के कमरे के एक कोने में फंसा हुआ दिखाया गया है. अगला शॉट हरिओम का है जो स्कूटर से घर की ओर दौड़ रहे हैं.

जब वह सांप का सामना करते हैं, तो सब हाई अलर्ट पर होते हैं. झोंपड़ी के बाहर लोग जमा हो गए हैं, लेकिन न तो सांप और न ही हरिओम उन पर ध्यान दे रहे हैं. दोनों की निगाहें एक-दूसरे पर टिकी हैं. कोबरा इंतजार कर रहा है, हमला करने के लिए तैयार है. एक प्लास्टिक के जार के अलावा और कुछ नहीं, हरिओम उसके पास आता है. देखते ही देखते सांप को प्लास्टिक के डब्बे में बंद कर लेता है.

जब हरिओम एक गैर विषैले सांप को बचाता है, तो वह उसे आबादी वाले क्षेत्रों से दूर खेतों या जंगलों में छोड़ देता है. लेकिन कोबरा, क्रेट, और यहां तक ​​कि अजगर (हालांकि उनके पास कोई जहर नहीं है) के साथ, उसके पास एक विशेष कार्यप्रणाली है. वह उन्हें गांव से 10 किमी दूर ले जाता है और उन्हें जंगल में छोड़ना सुनिश्चित करता है.

कभी न खत्म होने वाला पैशन

हरिओम बचपन से ही बड़े और छोटे जीवों के प्रति भावुक थे. उनके चाचा, जो IIT मद्रास में पढ़ते थे, उन्हें सांपों से जुड़ी किताबें देते थे.

उनके बचपन के दोस्त रोहित, जो सेना में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं, वह कहते हैं,’हम अधिकारी, डॉक्टर या वकील बनने की बात करते हुए बड़े हुए हैं. लेकिन हरिओम के दिमाग में सिर्फ सांप और जानवर थे. वह अपने बैग में जानवरों की किताबें रखता था.’

शुरू में, ग्रामीणों ने हरिओम के प्रयासों मजाक बनाया . रोहित कहते हैं, ‘हमारे आस-पास के लोग कहते थे कि उसे कुछ ढंग का काम करना चाहिए. लेकिन जब से उन्हें कुछ पहचान मिलने लगी है, चीजें बदल रही हैं.’

हरिओम का परिवार उसकी योजनाओं में भी शामिल नहीं था. लेकिन रेस्क्यू सेंटर खुलने के बाद से उनका भी आना-जाना शुरू हो गया है.

25 दिसंबर 2021 को, हरिओम ने प्रशासन की मदद के बिना नेचर वाइल्डलाइफ केयर रेस्क्यू सेंटर खोला. उन्होंने सरकारी जमीन के इस्तेमाल के लिए स्थानीय अधिकारियों को आवेदन दिया था, लेकिन उनके पत्र का कोई जवाब नहीं आया.उन्होंने एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी के चक्कर लगाते हुए महीने तक इंतजार किया. अंत में उन्होंने 120×24 फीट के प्लॉट को 10 साल के लिए लीज पर लिया, जिसके लिए उन्हें प्रति वर्ष 50,000 रुपये का भुगतान करना होगा.

सेंटर में बकरियां, कुत्ते और, ज़ाहिर है, सांप हैं. बहुत सारे और बहुत सारे सांप.

हरिओम उन अजनबियों का शुक्रगुजार है जिनकी दया ने उनके सपने को जीवित रखा है. गुजरात के स्थानीय लोगों के साथ-साथ अस्पताल भी उसके केंद्र पर दवा भेजते थे. फिर अप्रैल में त्रासदी हुई. हरिओम कहते हैं, ‘जिन लोगों को मैं जानता था, उन्होंने ईर्ष्या के कारण केंद्र को जला दिया.’

रोहित पुराना समय याद करते हुए कहते हैं, ‘हरिओम ने मुझसे कहा, ‘मेरा करियर जल रहा है’

हरिओम का कहना है कि आगजनी के लिए जिम्मेदार लोग आए और उनसे माफी मांगी. इसके बाद उन्होंने सेंटर के पुनर्निर्माण के बारे में सोचा. कई महीनों और 3 लाख रुपये की अतिरिक्त लागत के बाद, उसने आखिरकार सेंटर को फिर से खड़ा कर दिया.

हरिओम का कहना है कि वह ग्रामीणों और सांपों के बीच शांति चाहते हैं, और उनका दावा है कि उन्होंने एक ‘सांप रेपेलेंट’ विकसित किया है यानी एक ऐसा कैमिकल जो सांपों को लोगों के घरों में आने से रोलकने में सहायक होगा, उन्हें उम्मीद है कि सरकार की मंजूरी मिल जाएगी और फिर हर मेडिकल शॉप में वह बेचा जाएगी. वो कहते हैं, ‘उम्मीद है कि तब लोग सांपों को मारना बंद कर देंगे.’

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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