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दिल्ली से पलायन कर लंबी दूरी तय कर रहे मजदूरों ने कहा- ‘परिवार के साथ मर जाना बेहतर’

दिहाड़ी मजदूरों ने दिप्रिंट को बताया कि अगर सरकार ने अगले तीन महीने के लिए राहत देने के कदम उठाए हैं तो ये संभावना भी है कि लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है. इसकी वजह से पलायन में और बढ़ोतरी ही होगी.

दिल्ली-एनसीआर से अपने-अपने घरों को लौटते मजदूर, फाइल फोटो | प्रवीन जैन/दिप्रिंट

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी सप्ताह राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का एलान किया था जिसके तीन दिन बाद यानी कि शुक्रवार को भी मजदूरों का दिल्ली-एनसीआर से पलायन जारी रहा.

इन मजदूरों में से ज्यादातर लोग प्रशासन द्वारा रहने और खाने के इंतजाम के भरोसे रुके हुए थे. लेकिन इन लोगों को प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिली.

लॉकडाउन की अवधि के बढ़ने का डर बना हुआ है

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के मद्देनज़र केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को मजदूरों, किसानों के लिए 1.7 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का एलान किया.

दिहाड़ी मजदूरों ने दिप्रिंट को बताया कि अगर सरकार ने अगले तीन महीने के लिए राहत देने के कदम उठाए हैं तो ये संभावना भी है कि लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है. इसकी वजह से पलायन में और बढ़ोतरी ही होगी.

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी के रहने वाले 33 वर्षीय रणवीर सिंह नोएडा में कारपेंटर का काम करते हैं. यहां से 300 किलोमीटर दूर मैनपुरी जाने के रास्ते में वो अपनी पत्नी और दो बच्चों- 5 वर्षीय आदित्य और 3 वर्षीय पिंकी के साथ हैं.

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यूपी के मैनपुरी के रणवीर सिंह अपने बच्चों के साथ लौटते हुए | प्रवीन जैन /दिप्रिंट

सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि हम प्रशासन की तरफ से परिवहन के साधन के इंतजाम की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं. हम यहां बिना पैसे और खाने के नहीं रह सकते हैं क्योंकि हम रोज कमाने और खाने वाले लोगों में से हैं.

उन्होंने कहा कि मेरे परिवार में किसी ने सुबह से कुछ नहीं खाया है. सिर्फ केला और बिस्कुट हमने खाया हुआ है.

प्रशासन और पुलिस

कुछ पलायन करने वाले मजदूरों के अनुसार पुलिस ने उन्हें ग्रेटर नोएडा के परी चौक पर इकट्ठा होने को कहा ताकि लोगों को खाना, परिवहन और स्वास्थ्य चैक अप फैसिलिटी दी जा सके. लेकिन जब वे परी चौक गए उन्हें सड़क किनारे बैठना पड़ा और वहां कोई सुविधा नहीं थी.

नोएडा में काम करने वाले 28 वर्षीय राहुल सिंह ने कहा कि हम यहां सुबह से ही बैठे हैं लेकिन कोई हमारी मदद के लिए नहीं आया.

लाल रंग की शर्ट में फैजाबाद का रहने वाला राहुल सिंह अपने गांव 8 अन्य लोगों के साथ लौटता हुआ | प्रवीन जैन /दिप्रिंट

उन्होंने कहा कि हमारे कांट्रेक्टर ने हमें घर जाने को कहा है और हमें कोई पैसा भी नहीं मिला है.

परी चौक पुलिस स्टेशन के इनचार्ज दिनेश सोलंकी ने दिप्रिंट को बताया कि हमें प्रशासन की तरफ से बताया गया था कि परिवहन, खाने और स्वास्थ्य सुविधाएं इन लोगों के लिए भेजी जा रही हैं और हमें इंतजार करने को कहा गया लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं आया है.

ग्रेटर नोएडा में काम करने वाली रमा कुमारी मध्य प्रदेश के महोबा जाती हुई | प्रवीन जैन /दिप्रिंट

खाद्य सामग्री के दामों में हो रही बढ़ोतरी लोगों को परेशान कर रही है

कुछ लोगों ने कहा कि दुकान खुलने और पैसे होने के बाद भी वो सामान नहीं खरीद पा रहे हैं क्योंकि उत्पादों के दामों में तेजी से वृद्धि हो रही है.

32 वर्षीय पासी नोएडा से 435 किलोमीटर दूर झांसी जा रहे हैं. उनके साथ उनकी पत्नी, भाई, उसका परिवार और 4 बच्चे हैं.

झांसी का एक परिवार अपने बच्चों के साथ राशन पानी का सामना लेकर लौटता हुआ | प्रवीन जैन /दिप्रिंट

पासी ने कहा, ‘हम नोएडा में राजमिस्त्री का काम करते हैं लेकिन लॉकडाउन के बाद किसी भी कंस्ट्रक्शन वाले से हमें पैसा नहीं मिला.’

उनके परिवार के सभी लोग यमुना एक्सप्रेस वे पर नंगे पैर चल रहे हैं और उन सबको इस बात का डर सता रहा है कि झांसी पहुंचने से पहले उनका राशन न खत्म हो जाए.

अविनाश पासी अपने परिवार और मित्रों के साथ लौटता हुआ | प्रवीन जैन /दिप्रिंट

अपने घर वापस लौटने पर रोजगार की संभावना बेहद कम

अपने-अपने घरों की तरफ लौटते मजदूरों के पास वहां रोजगार मिलने की संभावना बेहद कम है.

नोएडा से मध्य प्रदेश स्थित महोबा वापस लौटते राम नारायण ने कहा कि हम दिल्ली इसलिए आए थे क्योंकि जंगली जानवरों ने हमारी फसलों को खराब कर दिया था. अगर हम अपने घर लौटते भी हैं तो हमें मजदूर वाला ही काम करना पड़ेगा.

मध्य प्रदेश के महोबा के मुकेश साइकिल पर अपनी बेटी दीपिका को बिठाकर आगे बढ़ता हुआ | प्रवीन जैन /दिप्रिंट

नारायण नोएडा में निर्माण क्षेत्र में काम करते हैं.

यूपी के हमीरपुर की मन कुमारी कहती हैं कि उनके पास सिर्फ 500 रुपए ही बचे हैं और मुझे इसी के सहारे अगले एक हफ्ते गुजारना है.

27 मार्च 2020 को दिहाड़ी मजदूर यमुना एक्सप्रेस वे पर बैठे हुए | प्रवीन जैन/दिप्रिंट

उन्होंने कहा कि मुझे कोई काम नहीं आता है इसलिए मैं सामान्य मजदूरों के जैसे ही ईंटा फैक्ट्री में काम करती हूं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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