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बेंगलुरू की बारिश और इंफ्रास्ट्रक्चर संकट के बाद इन्वेस्टर्स समिट से मदद की उम्मीद कर रही बोम्मई सरकार

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का कहना है कि आज शुरू हो रही ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट से राज्य में 5 लाख करोड़ रुपये का निवेश आ सकता है. लेकिन क्या लालफीताशाही, और क्वालिटी लाइफ की कमी ‘ब्रांड बेंगलुरू’ को प्रभावित कर रही है?

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बस्वाराज बोम्मई | फाइल फोटो.
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बस्वाराज बोम्मई | फाइल फोटो.

बेंगलुरू: कर्नाटक में तमाम चुनौतियों से जूझ रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार को उम्मीद है कि आज से शुरू हो रही ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट (जीआईएम) आगामी विधानसभा चुनावों से महज कुछ महीनों पहले उसका शासन संबंधी रिकॉर्ड कुछ सुधारकर उसे थोड़ी राहत दे सकती है. दरअसल, भाजपा को अगले चुनाव में कड़ी चुनौती मिलने के आसार नजर आ रहे हैं.

2016 के बाद अब आयोजित होने जा रही जीआईएम को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि इससे देश के टेक और स्टार्ट-अप हब बेंगलुरू के साथ-साथ राज्य के दूरवर्ती इलाकों में भी नए निवेश के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं, जो कि यह दर्शाने के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण होगा कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की सरकार नई नौकरियों और विकास का अपना वादा पूरा कर रही है.

भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि कर्नाटक 2021-22 में देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पाने वाले राज्यों में अग्रणी रहा था जिसने पिछले वित्त वर्ष में कुल 83.57 बिलियन डॉलर एफडीआई में 38 प्रतिशत हासिल किया था.

इसमें 35 प्रतिशत से अधिक निवेश ‘कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर’ क्षेत्र में हुआ था, जो बेंगलुरू में इनफ्लो बढ़ने का संकेत देता है. लेकिन इतनी पूंजी के बावजूद करीब 12 मिलियन से अधिक निवासियों वाले इस शहर में जीवन गुणवत्ता में कोई बहुत सुधार नहीं दिखा.

हाल के महीनों में सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं, ढहते बुनियादी ढांचे और भ्रष्टाचार के सुर्खियों में रहने से प्रौद्योगिकी, स्टार्ट-अप और टैलेंट पूल जैसी खासियतों वाली छवि धूमिल हुई है. ऐसे में मुख्यमंत्री पर दबाव है कि वे डेवलपमेंट और गवर्नेंस के मोर्चे पर कुछ बेहतर करके दिखाएं.

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बोम्मई ने मंगलवार को मीडिया से बातचीत में कहा, ‘हम 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश की उम्मीद कर रहे हैं और राज्य की उच्च स्तरीय समिति पहले ही 2.8 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश को मंजूरी दे चुकी है.’

इन्वेस्टर्स मीट का आयोजन यहां बेंगलुरू पैलेस में होगा जिसके निरीक्षण के बाद बोम्मई ने कहा, ‘चाहे कोई भी ग्लोबल प्लेयर हो…प्रमुख उद्योगों और व्यवसायों के लिए डेस्टिनेशन…अगर कोई एक जगह है, तो वह बेंगलुरू ही है. ग्लोबल कॉरपोरेशन बेंगलुरू का रुख करते हैं. सभी अंतरराष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सड़कें बेंगलुरू की ओर ही आती हैं.’

हालांकि, बोम्मई भले ही ‘सड़क’ का इस्तेमाल एक रूपक के तौर पर कर रहे हों, लेकिन इस शब्द को लेकर बेंगलुरू के लोगों की राय शायद बहुत अच्छी नहीं है, क्योंकि शहर में सड़कों की गुणवत्ता काफी खराब है.

कर्नाटक सरकार ने पिछले साल बताया था कि राज्य और नगर निगम ने पिछले पांच वर्षों में अकेले बेंगलुरू में सड़क संबंधी कार्यों पर 20,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं.

हालांकि, जमीनी स्तर पर किसी बड़े बदलाव की कमी उसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का संकेत देती है जो कि भारत के बड़े और सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में सार्वजनिक जीवन के हर पहलू में बुरी तरह समाया हुआ है.

जगह-जगह खुदाई, गड्ढों और धूल के गुबार के बीच लोगों का सड़कों पर चलना दूभर बना हुआ है और शहर की आबोहवा बिगड़ने से जीवन की सामान्य गुणवत्ता भी तेजी घटी है.

नीदरलैंड स्थित नेविगेशन, ट्रैफिक और मैप उत्पादों की वैश्विक प्रदाता टॉमटॉम की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, सड़कों की स्थिति बेंगलुरू को दुनिया के सबसे अधिक ट्रैफिक-भीड़ वाले शहर की श्रेणी में लाने के लिए काफी है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, 2020 में बेंगलुरू में सिविक एजेंसियों की लापरवाही के कारण कम से कम 18 लोगों की जान गई थी जिसमें गड्ढों के कारण होने वाले दुर्घटनाएं शामिल हैं. यह देशभर में दर्ज किए गए ऐसे सभी मामलों में 85 प्रतिशत है.

शहर में सड़कों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार नगर निगम बृहत बेंगलुरू महानगर पालिक (बीबीएमपी) के लिए सितंबर 2020 से काउंसिल का चुनाव नहीं हुआ है.

अगले साल प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से पहले सड़कों की खुदाई के काम में और तेजी आई है.


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बाधाएं तो और भी हैं

कर्नाटक में अधिकांश निवेश राजधानी में आता है क्योंकि इसे एकेडमिक, उद्योग, शिक्षा और उद्यम के लिहाज से बेहतर माना जाता है. इससे शहर में अधिक पूंजी तो आती है लेकिन साथ ही इसके सीमित संसाधनों पर जबरदस्त दबाव भी बढ़ता है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2013 और 2019 के बीच कर्नाटक ने 39,000 करोड़ रुपये से अधिक वैल्यू वाली 142 परियोजनाओं में से कम से कम 90—जिनमें करीब 80,000 नौकरियां पैदा करने की क्षमता थी—को गंवा दिया क्योंकि उद्योगों के संबंधित विभिन्न प्रावधानों के कारण भूमि हासिल करने में परेशानी आ रही थी.

दूसरी ओर, इस साल महादेवपुरा, बोम्मनहल्ली और शहर के अन्य हिस्सों में आई बाढ़ ने दिखाया कि कैसे यह शहर अपनी ही सफलताओं का खामियाजा भुगत रहा है क्योंकि झीलों, घाटियों, नालियों और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे का अतिक्रमण करके उन पर ही आईटी, कॉरपोरेट कंपनियों के लिए चमचमाती इमारतें या आवासीय परिसर बना दिए गए थे.

आईटी कंपनियों के शीर्ष अधिकारी और तमाम स्टार्ट-अप संस्थापक उन सैकड़ों लोगों में शामिल हैं जिनके घरों या विला में इस साल जुलाई की लगातार बारिश के कारण पानी भर गया था.

कांग्रेस विधायक और इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी और विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री रह चुके प्रियांक खड़गे ने कहा, ‘बहुत सारे आशय पत्र और एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए है लेकिन निवेश आकर्षित करने की कोशिश में यह सरकार कितनी मुस्तैद है, यह एक बड़ा सवाल है. पिछले ढाई साल में एक भी नया व्यावसायिक उत्पादन शुरू नहीं हुआ है. केवल विस्तार हुआ है लेकिन कुछ नया नहीं हुआ है.’

उन्होंने आगे कहा कि सांप्रदायिक तनाव, (राजनीतिक) अस्थिरता, ब्रांड बेंगलुरू की छवि बिगड़ने जैसी तमाम अन्य चुनौतियों ने सरकार के लिए यह ब्रांडिंग करना चुनौतीपूर्ण बना दिया है कि यह शहर और राज्य निवेश के लिए एक बेहतरीन स्थान है.

लालफीताशाही, और अपेक्षित मंजूरियों में लगने वाला लंबा समय भी इसकी एक बड़ी वजह है.

बेंगलुरू को ग्लोबल स्टार्ट-अप मैप पर लाने वाली फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, अमेजन, उबर, ओला और इसी तरह की अन्य कंपनियों को तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. इनोवेटिव टेक्नोलॉजी में कोई साम्य न होने के साथ-साथ समय के साथ कदमताल न कर पाने वाली पुरानी नीतियों के कारण उन्हें चुनौतियां झेलनी पड़ी रही हैं.

ऑटो क्रॉनिकल्स

हाल में उबर, ओला और रैपिडो जैसे मोबिलिटी सेवा प्रदाताओं के साथ टकराव भी इसी का नतीजा रहा है, जिन्हें 12 अक्टूबर से अपने प्लेटफॉर्म के जरिये ऑटो रिक्शा चलाने से ‘रोक’ दिया गया था. इसके बाद राहत के लिए इन कंपनियों को अदालत का रुख करने पर मजबूर होना पड़ा.

अदालत ने तब तक के लिए 10 प्रतिशत कमीशन और नियंत्रित किराए की व्यवस्था की है जब तक सरकार सभी हितधारकों को एक साथ लाकर वाहनों को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से समायोजित करने वाली दरें नहीं तय कर देती.

उबर इंडिया एंड साउथ एशिया के सेंट्रल ऑपरेशन्स हेड नीतीश भूषण ने मंगलवार को एक बयान में कहा, ‘अभी बेंगलुरू में हमारा कमीशन एकत्र कुल किराए के 10 प्रतिशत पर सीमित है. यह आर्थिक रूप से टिकाऊ नहीं है. अगर हमारी लागत कमीशन के जरिये नहीं निकल पाती है तो हमें लागत घटाने के तरीके खोजने होंगे जो ड्राइवरों और कस्टमर्स के अनुभव को प्रभावित कर सकते हैं.’

उन्होंने कहा कि कमीशन इस तरह सीमित होने से उबर ऑटो सेवा शहर के चुनिंदा हिस्सों तक सीमित हो सकती है, जहां वह ‘व्यावहारिक’ होगी.

उन्होंने आगे कहा, ‘इससे ड्राइवरों और कस्टमर्स को असुविधा हो सकती है जो अपनी आवागमन संबंधी जरूरतों के लिए एग्रीगेटर्स पर निर्भर हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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