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अनुच्छेद 370 पर केंद्र ने कोर्ट से कहा- जम्मू कश्मीर का संविधान भारतीय संविधान के अधीनस्थ

पूर्ववर्ती राज्य के दो प्रमुख राजनीतिक दलों का नाम लिये बिना, केंद्र ने कहा कि नागरिकों को गुमराह किया गया है कि जम्मू कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान 'भेदभाव नहीं, बल्कि विशेषाधिकार' थे.

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय | मनीषा मोंडल, फाइल फोटो / दिप्रिंट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सोमवार को केंद्र की इस दलील से प्रथम दृष्टया सहमति जताई कि जम्मू-कश्मीर का संविधान भारतीय संविधान के ‘अधीनस्थ’ है.

इसके साथ ही केंद्र ने यह भी दलील दी कि देश का संविधान सर्वोपरी है.

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ हालांकि इस दलील से सहमत नहीं दिखाई दी कि पूर्ववर्ती राज्य की संविधान सभा, जिसे 1957 में भंग कर दिया गया था, वास्तव में विधानसभा थी.

पूर्ववर्ती राज्य के दो प्रमुख राजनीतिक दलों का नाम लिये बिना, केंद्र ने कहा कि नागरिकों को गुमराह किया गया है कि जम्मू कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान ‘भेदभाव नहीं, बल्कि विशेषाधिकार’ थे.

तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधान को निरस्त करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के 11वें दिन केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘आज भी दो राजनीतिक दल इस अदालत के समक्ष अनुच्छेद 370 और 35ए का बचाव कर रहे हैं.’

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सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि यह स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त सामग्री है कि जम्मू-कश्मीर का संविधान भारत के संविधान के अधीनस्थ है और जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा वास्तव में कानून बनाने वाली विधान सभा थी.

पीठ ने कहा, ‘एक स्तर पर… आप सही हो सकते हैं कि भारत का संविधान वास्तव में एक दस्तावेज है जो जम्मू-कश्मीर के संविधान की तुलना में उच्च स्तर पर है.

पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल थे।

पीठ ने मेहता से कहा कि इस तर्क के दूसरे हिस्से को स्वीकार करना कठिन होगा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा वास्तव में, अनुच्छेद 370 के प्रावधान के रूप में एक विधानसभा थी.

मेहता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा सर्वथा राज्य विधायिका के रूप में काम कर रही थी और इसके साथ ही उसने जम्मू कश्मीर का संविधान नामक एक अधीनस्थ दस्तावेज तैयार करने के अलावा कई कानून पारित भी बनाए.

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि 42वें संविधान संशोधन के बाद ”समाजवादी” और ”धर्मनिरपेक्ष” शब्द जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं किये गये. उन्होंने कहा कि यहां तक कि ‘अखंडता’ शब्द भी वहां नहीं है, मौलिक कर्तव्य भी वहां नहीं थे, जो भारतीय संविधान में मौजूद हैं.

उन्होंने भारतीय संविधान के एक और विवादास्पद प्रावधान अनुच्छेद 35ए का उल्लेख किया, जिसके तहत तत्कालीन राज्य के केवल स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार देता था.

उन्होंने कहा कि 35ए के प्रावधानों के तहत, पूर्ववर्ती राज्य में दशकों से काम कर रहे सफाई कर्मचारियों जैसे लोगों को जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों की तरह समान अधिकार नहीं थे। ‘यह भेदभाव 2019 में प्रावधान निरस्त होने तक जारी रहा.

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने मेहता की दलीलों पर गौर करते हुए कहा कि अनुच्छेद 35ए को लागू करके, उन्होंने समानता के मौलिक अधिकारों, देश के किसी भी हिस्से में अपना पेशा अपनाने की स्वतंत्रता को छीन लिया.

मामले में सुनवाई अभी पूरी नहीं हुई है और यह मंगलवार को भी जारी रहेगी.


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