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पराली जलाने की ‘सामान्य से अधिक घटनाओं’ के कारण दिल्ली में एयर क्वालिटी ‘बेहद खराब’ बनी है

दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) सुबह साढ़े आठ बजे 366 मापा गया. शनिवार को 24 घंटे का औसत एक्यूआई 367 रहा. यह शुक्रवार को 374, बृहस्पतिवार को 395, बुधवार को 297, मंगलवार को 312 और सोमवार को 353 दर्ज किया गया था.

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पंजाब में पराली और उसकी खूंट जलाता किसान, फाइल फोटो | Neil Palmer | Wikimedia commons
नयी दिल्ली : पराली जलाने की ‘‘सामान्य से अधिक घटनाओं’’ के कारण बेहतर वायु संचार का प्रभाव समाप्त होने की वजह से राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता रविवार को भी ‘‘बहुत खराब’’ बनी रही.

हालांकि स्थिति में सोमवार तक सुधार होने की उम्मीद है.

दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) सुबह साढ़े आठ बजे 366 मापा गया. शनिवार को 24 घंटे का औसत एक्यूआई 367 रहा. यह शुक्रवार को 374, बृहस्पतिवार को 395, बुधवार को 297, मंगलवार को 312 और सोमवार को 353 दर्ज किया गया था.

उल्लेखनीय है कि 0 और 50 के बीच एक्यूआई को ‘अच्छा’, 51 और 100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 और 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 और 300 के बीच ‘खराब’, 301 और 400 के बीच ‘बेहद खराब’ और 401 से 500 के बीच ‘गंभीर’ माना जाता है.

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता निगरानी एजेंसी ‘सफर’ के अनुसार, शनिवार को दिल्ली में पीएम 2.5 प्रदूषक कणों में पराली जलाने की भागीदारी 32 प्रतिशत रही, जो शुक्रवार को 19 प्रतिशत और बृहस्पतिवार को 36 प्रतिशत थी.

केंद्र सरकार की वायु गुणवत्ता प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के अनुसार शुक्रवार को पराली जलाने की घटनाएं पंजाब (लगभग 4,266), हरियाणा (155), उत्तर प्रदेश (51) और मध्य प्रदेश में (381) रहीं जो असामान्य रूप से अधिक हैं, जिसके कारण दिल्ली-एनसीआर और पश्चिमोत्तर भारत के अन्य हिस्सों में वायु गुणवत्ता खराब हुई.

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नासा से प्राप्त उपग्रह चित्रों में पंजाब में और हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में xराली इत्यादि जलाने की घटनाओं की पुष्टि हुई.

सफर ने बताया कि बेहतर वायु संचार के बावजूद दिल्ली के एक्यूआई में सुधार नहीं हुआ, लेकिन इसमें आगामी दो दिन में सुधार की उम्मीद है.

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, रविवार को हवा की दिशा मुख्य रूप से पश्चिमोत्तर रही और हवा की अधिकतम गति 15 किलोमीटर प्रति घंटा रही.

ठंडी हवाओं और कम तापमान के कारण प्रदूषक जमीन के निकट रहे, जबकि वायु की अनुकूल रफ्तार के कारण इनके बिखराव में मदद मिली.

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