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देरी से चल रही हैं 888 परियोजनाएं, संसदीय पैनल चाहता है कि NHAI नई की बजाए अधूरी सड़कों पर ध्यान दें

यातायात, पर्यटन और संस्कृति पर स्थायी समिति ने ये भी कहा है कि वो आने वाले वर्षों में एनएचएआई के 97,000 करोड़ के ऋण सेवा दायित्व को देखकर ‘परेशान’ है.

गोवा में एक निर्माणाधीन ब्रिज | फोटो: एएनआई

नई दिल्ली: केंद्र के महत्वाकांक्षी हाई-वे विस्तार कार्यक्रम को वित्त-पोषित करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की उधार की होड़, संसदीय पैनल की आलोचना के निशाने पर आई है, जिसने आने वाले वर्षों में एनएचएआई के 97,000 करोड़ के ऋण सेवा दायित्व पर ‘परेशानी’ का इज़हार किया है.

केंद्र सरकार की प्रमुख हाई-वे निर्माण अथॉरिटी को मजबूरन, बाज़ार से ऋण का सहारा लेना पड़ा है- जो 2014-15 के बाद से 1800 प्रतिशत बढ़ गया है- चूंकि बजट आवंटन इसकी रफ्तार के साथ नहीं चल पाए हैं- जिसमें विशाल हाई-वे विस्तार अभियान के बीच 2015-16 के बाद से केवल 40 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है.

मंगलवार को संसद के पटल पर रखी गई रिपोर्ट में यातायात, पर्यटन और संस्कृति पर स्थायी समिति ने, इस बात पर भी ‘पीड़ा’ जताई कि केंद्रीय सड़क मंत्रालय के तहत फिलहाल लगभग 888 सड़क परियोजनाएं देरी से चल रही हैं जिनका बजट 3,15,373.3 करोड़ रुपए है और जिनकी कुल लंबाई 27,665 किलोमीटर है.

राज्य सभा सांसद टीजी वेंकटेश की अध्यक्षता वाली 31 सदस्यीय कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘चालू सड़क परियोजनाओं में देरी की वजह से समय का भारी नुकसान होता है और ईंधन का उपभोग भी बढ़ता है, साथ ही इससे परियोजना की लागत भी बढ़ती है जिसका बोझ मंत्रालय को उठाना पड़ता है’.

देरी के लिए मंत्रालय की खिंचाई करते हुए कमेटी ने कहा कि उसे अपना ध्यान और प्राथमिकता, नई सड़क परियोजनाओं की घोषणा करने की बजाय देश में देरी से चल रहीं चालू परियोजनाओं को देना चाहिए.

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‘महाराष्ट्र में देरी से चल रहीं सड़क परियोजनाओं की संख्या सामान्य से कहीं अधिक’

संसदीय पैनल ने ये भी कहा कि अन्य सूबों के मुकाबले महाराष्ट्र में देरी से चल रहीं सड़क परियोजनाओं की संख्या, सामान्य से कहीं अधिक है.

उसने सिफारिश की है कि मंत्रालय, राज्यों के साथ एक मज़बूत समन्वय तंत्र विकसित करे और देरी समाधान प्रणाली तैयार करे.

पैनल ने ये ‘चिंता’ भी जताई कि भारतमाला कार्यक्रम के तहत, वित्त वर्ष 2020-21 में 6,469 किलोमीटर के लक्ष्य के मुकाबले, मंत्रालय जनवरी 2021 तक केवल 2,517 किलोमीटर का काम ही दे पाया है. इसी तरह, 4,571 किलोमीटर के लक्ष्य में से वो केवल 2,273 किलोमीटर का निर्माण कार्य पूरा कर पाया है.

पैनल ने कहा, ‘…अगर यही हाल रहा तो मंत्रालय के लिए भारतमाला परियोजना के पहले चरण को वित्त वर्ष 2025-26 तक की लक्षित समय सीमा के अंदर पूरा करना मुमकिन नहीं हो पाएगा, जो पहले ही फेज़-1 के मूल रूप से वित्त वर्ष 2021-22 तक पूरा करने की लक्षित समय सीमा से चार साल पीछे चल रही है’.


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अगले तीन वित्त वर्षों के लिए एनएचएआई का ऋण सेवा दायित्व और भी अधिक

कमेटी ने कहा कि अगले तीन वित्त वर्षों के लिए NHAI का ऋण सेवा दायित्व उन अनुमानों से भी अधिक है, जो मंत्रालय ने 2020-21 की अनुदान मांगों की जांच के दौरान कमेटी को मुहैया कराए थे.

पैनल ने सिफारिश की है कि लागत में और वृद्धि से बचने के लिए एनएचएआई देरी से चल रही अपनी सड़क परियोजनाओं के पूरा करने को तरजीह दे.

पैनल ने ये भी सिफारिश की है कि एनएचएआई अपने मौजूदा ऋण को पुनर्गठित करने की संभावनाएं तलाशे और आगामी विकास वित्तीय संस्थान के ज़रिए जिनकी घोषणा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में की थी, दीर्घ-कालिक फंड्स जुटाने के लिए प्रस्ताव तैयार करे.

नरेंद्र मोदी सरकार हाई-वे विस्तार को लेकर बहुत महत्वाकांक्षी रही है और उसने फ्लैगशिप भारतमाला जैसे कार्यक्रम लॉन्च किए हैं. लेकिन एनएचएआई के लिए इसके आवंटन, उस रफ्तार के साथ नहीं चल पाए हैं.

अपने पूंजीगत खर्च को पूरा करने के लिए हाईवेज़ अथॉरिटी को बाज़ार से उधार लेना पड़ा है जिनमें कैपिटल गेन्स टैक्स एग्ज़ेंप्शन बॉण्ड्स और राष्ट्रीय लघु बचत कोष से ऋण शामिल हैं.

निजी क्षेत्र द्वारा बहुत छोटा निवेश

संसदीय पैनल ने ये चिंता भी जताई है कि एनएचएआई द्वारा किया जा रहा खर्च, भले ही निरंतर बढ़ रहा है लेकिन 2020-21 के दौरान एनएचएआई द्वारा किए गए खर्च की अपेक्षा, निजी क्षेत्र की ओर से किया गया निवेश बहुत ही कम रहा है.

पैनल ने सिफारिश की है कि हाईवेज़ मंत्रालय ऐसे ठोस कदम उठाए, जिनसे देशभर में सड़क इनफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहन मिले.

(संघमित्रा मजूमदार द्वारा संपादित)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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