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इस लॉकडाउन में ताज की नगरी आगरा को 3000 करोड़ रुपये और 4 लाख नौकरियां गवानी पड़ी है

होटलों के अलावा, हस्तकला एम्पोरियम जैसे व्यवसाय, साथ ही साथ चमड़े, जरदोजी और संगमरमर और जड़ी के काम में लगे लोग भी पर्यटन पर ही निर्भर हैं.

आगरा में मेहताब बाग से ताजमहल का एक दृश्य / फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

आगरा: आगरा निवासी संजीव सिंह (39) ने दो साल पहले जब होटल व्यवसाय में कदम रखा था, तो उन्हें शायद ही अंदाज़ा होगा कि 2020 में उन्हें कोरोनावायरस और उसके चलते हुए लॉकडाउन की वजह से कितना आर्थिक नुकसान होगा. कोविड-19 के पहले जो शहर सैलानियों की चहल-पहल से गुलज़ार रहता था, आजकल सुनसान रूप धारण किये हुए है. उत्तर प्रदेश का मुख्य आकर्षण और राज्य के पर्यटन उद्योग के लिए राजस्व का एक प्रमुख स्रोत ताज महल आने वाले कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया है.

होटल ताज डीलक्स नाम का तीन सितारा होटल चलाने वाले सिंह का नुकसान करीब 20 करोड़ तक पहुंच चुका है. उनके सामने होटल स्टाफ को वेतन देने और साल भर की बुकिंग्स कैंसिल करने की समस्या मुंह बाए खड़ी हैं.

सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि उनके होटल को खड़ा करने में 40 करोड़ की लागत आई थी. ‘करीब 15 करोड़ रुपये इसकी साज-सज्जा पर खर्च हुए थे. अचानक से सबकुछ बंद हो जाने के कारण मुझे करीब 15-20 करोड़ का नुकसान हुआ है. इस से मुझे लाभ सिर्फ दिसम्बर से मिलना शुरू होना था.’

इस समस्या का सामना कर रहे ये इकलौते नहीं हैं. पर्यटन और होटल व्यवसाय से जुड़े हुए सैंकड़ों लोग ताज महल के बंद हो जाने के चलते इस दुविधा का सामना कर रहे हैं.

लॉकडाउन से व्यवसाय खतरे में

न सिर्फ होटल व्यवसायी बल्कि हस्त कला, चमड़े, ज़रदोज़ी और मार्बल का काम करने वाले कारीगरों को भी नुकसान झेलना पड़ रहा है. इन सभी छोटे-मोटे व्यवसायियों की आमदनी भी ताज महल देखने आने वाले पर्यटकों पर निर्भर करती है.

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संस्कृति मंत्रालय द्वारा लोक सभा में दिए गए आंकड़ों के अनुसार साल 2018 -19 में ताज महल से मिलने वाला राजस्व पिछले पांच सालों के मुकाबले चार गुना हो गया था. यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज घोषित किये गए ताज से मिलने वाला राजस्व साल 2018 -19 में 86.48 करोड़ रुपये रहा, वहीं70 लाख लोगों ने ताज की सैर की. उस से पिछले वर्ष 65 लाख सैलानियों के ज़रिये 58.76 करोड़ का राजस्व मिला था. पांच साल पहले 2014-15 में यही राजस्व 21.23 करोड़ रुपये था, और सैलानियों की संख्या 60 लाख थी.


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आगरा ट्रेवल और टूरिज्म एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अरुण डांग ने दिप्रिंट को बताया की हर चार में से एक विदेशी सैलानी ताजमहल ज़रूर घूमने आता है. इसी के साथ आगरा में 250 और ऐतिहासिक स्थल हैं, और तीन वर्ल्ड हेरिटेज साईट भी हैं.

‘इस समय पर्यटन किसी के लिए भी प्राथमिकता नहीं होगा. हम अंदाज़ा लगा रहे हैं कि ये मंदी शायद अगले कुछ महीनों या एक साल तक के लिए भी रह सकती है. सरकार को कम से कम हमारे होटलों का किराया और बिजली का बिल माफ़ कर देना चाहिए.’

डांग ने ये भी बताया कि करीब 6000-7000 कमरों के साथ आगरा में कुल 12 पांच सितारा और 400 छोटे होटल हैं. होटल व्यवसाय यहां 4 लाख लोगों को रोज़गार देता है. वहीं अर्थव्यवस्था में इसका योगदान 3000- 4000 करोड़ तक का है. कोरोनावायरस की महामारी की वजह से ये सब कुछ ठप्प पड़ गया है.

पीक सीजन में हुआ लॉकडाउन

लगभग सभी होटल व्यवसायियों ने बताया कि ये लॉकडाउन पीक सीजन में होने से और नुकसान हुआ है. ये समय पर्यटन उद्योग के लिए सुनहरा समय रहता है और इस दौरान कमाया गया लाभ पूरे साल भर काम आता है.

आगरा होटल और रेस्टोरेंट चैन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश चौहान का कहना है कि पीक सीजन 1 अक्टूबर से 30 अप्रैल तक रहता है. सबसे ज़्यादा पर्यटक फरवरी से अप्रैल के बीच आते हैं, जिस समय में लॉकडाउन चल रहा है. ‘कोरोनावायरस का बिजनेस पर असर जनवरी से ही दिखने लगा था. चीनी यात्री अपना नया साल शुरू होने पर यहां आते हैं, पर इस बार वो नहीं दिखाई दिए.’

‘आगरा बन गया है कब्रिस्तान’

होटल उद्योग इस मंदी का असर फिर भी अगले कुछ महीनों तक सह सकता है , पर इस बंद के चलते सबसे अधिक टूरिस्ट गाइड, ड्राइवर्स और टूर एजेंसी प्रभावित हुए हैं.

सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त टूरिस्ट गाइड मोहम्मद रशीद ने दिप्रिंट को बताया कि अगर लॉकडाउन अगले कुछ समय तक जारी रहा तो हमें मजदूरी करके पेट पालना पड़ेगा. ‘जो पैसे अब तक बचाए थे, वो अब खतम होने लगे हैं.’

‘आगरा उन लोगों से पैसे कमाता था जो यहां मौजूद कब्रें देखने आते थे. अब ये शहर ही मानों कब्रिस्तान बन चुका है.’


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आगरा की चमड़ा और जूता उद्योग एसोसिएशन के अध्यक्ष पूरण डावर का कहना है कि यहां से करीब 4000 करोड़ रुपये तक की चमड़े की वस्तुएं दुनिया भर में निर्यात होती थीं. ‘फिलहाल 65 प्रतिशत समुद्री रास्तों और बंदरगाहों पर अटका पड़ा है. हमें अनुमान है की न सिर्फ इस साल, बल्कि आने वाले साल में भी ऑर्डर्स में 50 प्रतिशत तक की कटौती देखने को मिल सकती है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में भी पढ़ सकते हैं, यहां क्लिक करें)

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