होम देश बहुत सारे रसोइए? भारत के लड़खड़ाते कोविड रेस्पॉन्स के पीछे हैं 15...

बहुत सारे रसोइए? भारत के लड़खड़ाते कोविड रेस्पॉन्स के पीछे हैं 15 कमेटियां, दर्जनों एक्सपर्ट्स

देश में कोविड से लड़ने के लिए कई समितियां काम कर रही हैं– कुछ महामारी की शुरुआत में बनी थीं, और एक इससे पहले की थी – टीकों से लेकर मेडिकल इन्फ्रा तक कई मोर्चों पर देखरेख कर रही हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर/सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

नई दिल्ली: कोविड की दूसरी लहर के भारत से टकराने के बाद से- जिसमें कुल मामलों की संख्या 2,40,46,809 और मौतों की संख्या 2,62,317 पहुंच गई (पिछले साल से)- ऐसा लग सकता है कि महामारी के जवाब में, किसी के हाथ में नियंत्रण नहीं है. लेकिन ऐसी कम से कम 15 कमेटियां हैं, वैज्ञानिक और नौकरशाही दोनों, जो फिलहाल भारत की कोविड-19 रणनीति की निगरानी कर रही हैं.

इन पैनलों की बैठकों और चर्चाओं के अलावा, स्थिति का जायज़ा लेने के लिए, जनवरी 2020 और मई 2021 के बीच, प्रधानमंत्री या उनके कार्यालय ने कम से कम 67 समीक्षा बैठकें कीं.

इनमें से- जनवरी 2020 और दिसंबर 2020 के बीच- 48 बैठकों की सूची केंद्रीय गृह मंत्रालय ने, 23 अप्रैल 2021 को सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल, एक हलफनामे में दी थी.

मई में, अभी तक छह समीक्षा बैठकें हो चुकी हैं. 10 बैठकें अप्रैल में हुईं, और एक-एक मार्च तथा जनवरी में हुई.

सभी 66 बैठकों के रिकॉर्ड सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं. कोविड-19 पर पीएमओ में और बहुत सी बैठकें हुई होंगी, जिनके रिकॉर्ड सार्वजनिक नहीं हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

पीएम की बातचीत में दूसरी संबंधित बैठकें भी शामिल रही हैं- जैसे 22 जनवरी को पीएम के लोकसभा चुनाव क्षेत्र वाराणसी में, वैक्सीन लाभार्थियों के साथ बैठक, और 18 फरवरी को 10 पड़ोसी मुल्कों के साथ, उनका एक वर्कशॉप को संबोधन, जिसका विषय था भारत का ‘कोविड-19 प्रबंधन: अनुभव, अच्छे तौर-तरीक़े और आगे का रास्ता’.

इसके अलावा महामारी के दौरान कैबिनेट सचिव ने भी, बहुत सी समीक्षा बैठकों की अध्यक्षता की. लेकिन सरसरी समीक्षा से आगे, ये वैज्ञानिकों या सिविल सर्वेंट्स, या दोनों, और राजनेताओं की कमेटियां और कार्यबल ही थे, जो कोविड-19 प्रबंधन के मूल मुद्दों के प्रभारी रहे हैं.

शाहिद जमील, जो सरकार को राय दे रहे एक सलाहकार पैनल, इंसाकॉग के अध्यक्ष थे, रविवार को उससे अलग हो गए. वो भारत में मौजूदा कोविड लहर में, एक म्यूटेंट वेरिएंट की भूमिका से सरकार के इनकार के आलोचक रहे थे.

इन 15 में से कुछ कमेटियां फरवरी 2020 में, उस समय गठित की गईं थीं, जब भारत में कोविड के केवल तीन ‘आयातित’ मामले सामने आए थे. इनमें से एक महामारी से पहले की है, जबकि कुछ अन्य हाल की उत्पत्ति हैं. इनकी भूमिका बहुत विस्तृत रही है, जिसमें वैक्सीन्स के पुनरीक्षण से लेकर, निजी क्षेत्र से तालमेल तक शामिल हैं.

दिप्रिंट ने ईमेल के ज़रिए, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से, कमेटियों और उनकी भूमिका पर टिप्पणी लेनी चाही, लेकिन इस रिपोर्ट के छपने तक, उनकी ओर से कोई जवाब हासिल नहीं हुआ था.

ये है कुछ कमेटियों के बारे में संक्षिप्त ब्योरा.


यह भी पढ़ें: गंगा में बहती लाशें एक बड़े रंगमंच का हिस्सा हैं, जहां हर कोई अपने तय डायलॉग बोल रहा है


टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह

एनटीएजीआई शीर्ष तकनीकी इकाई है, जो नई और आने वाली वैक्सीन्स के आंकड़ों का मूल्यांकन करती है, या ज़रूरत पड़ने पर, बाज़ार में आ चुकीं वैक्सीन्स के डेटा की समीक्षा करती है. ये एक स्थाई समिति है जो टीकाकरण पर, तकनीकी निगरानी के मामलों में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की सहायता करती है. ये कमेटी कोविड से पहले की है. एनटीएजीआई में अब एक कोविड वर्किंग ग्रुप है, जो विशेष रूप से कोरोनावायरस वैक्सीन्स के आंकड़ों पर नज़र रखता है. इसके प्रमुख डॉ एनके अरोड़ा हैं, जो हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स के एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क, इनक्लेन ट्रस्ट के डायरेक्टर हैं.

इस कमेटी का एक काम ये भी है कि ये, टीकाकरण के बाद की विपरीत घटनाओं का विश्लेषण करती है, और पता लगाती है कि उनका, वैक्सीन्स से कोई रिश्ता है या नहीं.

कोविड-19 पर नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन

कोविड-19 पर नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन के सह- अध्यक्ष, नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ वीके पॉल, और केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण हैं.

एनईजीवीएसी, जिसमें वैज्ञानिक समुदाय और सिविल सर्विस दोनों के सदस्य हैं, कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम से जुड़े फैसलों में, एक फाइनल जांच अथॉरिटी का काम करता है, लेकिन इसका फैसला भी अंतिम नहीं होता.

मसलन, जब टीकाकरण को बड़ी आयु वर्ग के लोगों के लिए खोला गया था, तो एनईजीवीएसी 50 वर्ष को कट-ऑफ रखना चाहता था, लेकिन भारत सरकार ने 1 मार्च से, 60+ आयु वर्ग के लिए टीकाकरण शुरू करने का फैसला किया.


य़ह भी पढ़ें: मौतों की तादाद को छिपाना बेकार है, कोविड के कहर से यूपी के गांवों को बचाना राष्ट्रीय मिशन होना चाहिए


प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में टास्क फोर्स

अप्रैल 2020 में, केंद्र सरकार ने प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार, प्रो. के विजय राघवन की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया, जिसका काम वैक्सीन उत्पादन के लिए आर एंड डी को प्रोत्साहन देना है. इस कमेटी के सह-अध्यक्ष भी डॉ वीके पॉल हैं.

अप्रैल 2020 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘टास्क फोर्स ने डीबीटी (बायोटेक्नोलॉजी विभाग) को, वैक्सीन के विकास के लिए एक केंद्रीय समन्वय प्राधिकरण बना दिया है, और उनका मुख्य काम वैक्सीन के विकास के लिए मार्ग प्रशस्त करना होगा’.

‘इस काम के लिए, उसे वैक्सीन के विकास में लगीं राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की, एक गतिशील सूची तैयार करनी है, उनकी प्रगति पर नज़र रखनी है, और सरकार के स्तर पर उन्हें सुविधाएं मुहैया करानी हैं’.

ICMR कोविड-19 टास्क फोर्स

ये एक विशेषज्ञों का समूह है- सरकार के अंदर और बाहर दोनों से- जिनका काम कोविड-19 महामारी, तथा उसे संभालने पर सरकार का मार्गदर्शन करना है. इसके सह-अध्यक्ष हैं डॉ पॉल, और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) महानिदेशक डॉ बलराम भार्गव हैं.

जून 2020 में अपने एक बयान में, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा, ‘एनटीएफ में 21 सदस्य हैं, जिनमें सरकार तथा बाहर से तकनीकी/कार्यक्षेत्र विशेषज्ञ शामिल होते हैं. टास्क फोर्स में प्रमुख विशेषज्ञता सार्वजनिक स्वास्थ्य और/या महामारी विज्ञान के क्षेत्र से है. कोविड-19 की जटिलता और उलझाव को देखते हुए, ग्रुप में मेडिसिन, वायरॉलजी, फार्माकॉलजी, और कार्यक्रम कार्यान्वयन क्षेत्रों के एक्सपर्ट्स भी शामिल हैं’.

अधिकार प्राप्त समूह

अप्रैल 2020 में, कोविड-19 प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं की अगुवाई के लिए, 11 अधिकार प्राप्त समूहों का गठन किया था. पिछले सात सितंबर में इनकी संख्या घटाकर छह कर दी गई. उसके बाद से ये बढ़कर सात हो गए हैं. ये ग्रुप राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत गठित किए गए हैं. डॉ पॉल और कई दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों की अध्यक्षता में- जिनमें नीति आयोग सीईओ अमिताभ कांत, उद्योग और आंतरिक व्यापार प्रोत्साहन विभाग के सचिव गुरुप्रसाद महापात्रा, और नेशनल हेल्थ अथॉरिटी (एनएचए) सीईओ, डॉ आर एस शर्मा शामिल हैं- ये समूह महामारी के विभिन्न पहलुओं की निगरानी करता है, जिनमें चिकित्सा ढांचे से लेकर, टीकाकरण, और निजी क्षेत्र से समन्वय शामिल हैं.

मंत्री समूह

फरवरी 2020 में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्ष वर्धन की अध्यक्षता में, ‘माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में, सरकार के उच्चतम स्तर पर, राजनीतिक प्रतिबद्धिता के प्रतीक के तौर पर’ एक मंत्री समूह का गठन किया गया, जिसका काम ‘नॉवल कोरोनावायरस बीमारी (कोविड-19) के प्रति, सरकार के प्रयासों की अगुवाई करना है’. उस समय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था, ‘भारत अपने विभिन्न सामयिक उपायों, और मज़बूत निगरानी प्रणालियों के ज़रिए, नॉवल कोरोनावायरस के लिए तैयार है’.

इंसाकॉग (INSACOG)

इंडियन सार्स-सीओवी-2 कंसॉर्शियम ऑन जिनॉमिक्स (इंसाकॉग), 10 राष्ट्रीय लैबोरेट्रीज़ का एक समूह है, जिसका गठन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्राय द्वारा, दिसंबर 2020 में किया गया था. इंसाकॉग कंसॉर्शियम की 10 चिन्हित लैबोरेट्रीज़, अपने सीक्वेंसिंग निष्कर्षों की रिपोर्ट्स, नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (एनसीडीसी) की केंद्रीय निगरानी यूनिट (सीएसयू) को भेजती हैं, जहां से सीएसयू उन्हें आईडीएसपी की राज्य निगरानी इकाइयों (एसएसयूज़) के साथ, ईमेल और बैठकों के ज़रिए साझा करती है.

इंसाकॉग में एक उच्च-स्तरीय अंतर-मंत्रालयी स्टियरिंग कमेटी होती है, जो ‘नीतिगत मामलों पर कंसॉर्शियम का मार्गदर्शन और निगरानी करती है’. साथ ही इसमें ‘वैज्ञानिक और तकनीकी मार्गदर्शन के लिए एक वैज्ञानिक सलाहकार ग्रुप भी होता है’.

ज़्यादा पैनल्स, ज़्यादा देरी?

दिप्रिंट से बात करते हुए क्षेत्र के विशेषज्ञों ने एक आम बात कही- इन पैनल्स के बारे में नहीं- कि ज़्यादा कमेटियों का मतलब अकसर ज़्यादा देरी होता है. उन्होंने ये भी कहा कि केंद्र सरकार में, निर्णय लेने का काम केंद्रीकृत हो गया है.

एक पूर्व सिविल सर्वेंट ने कहा, ‘एक कहावत है, ‘बहुत ज़्यादा रसोइए मिलकर डिश को ख़राब कर देते हैं’. आपको सिस्टम को क्रियाशील बनाना होता है, नीचे वालों को अधिकार देने होते हैं’.

रिटायर्ड सिविल सर्वेंट ने आगे कहा, ‘अगर सभी फैसले पीएमओ से आते हैं, तो भले ही आपके पास 35 कमेटियां हों, कुछ काम नहीं होगा. एक सिद्धांत ये है कि जितनी ज़्यादा कमेटियां होंगी, उतनी ही देरी होगी. लेकिन उन्होंने कैसा काम किया है, या काम किया भी है, इसका विश्लेषण तभी किया जा सकता है, जब आप इन बैठकों के मिनट्स को देख पाएंगे’.

एक दूसरे एक्सपर्ट ने कहा, ‘अधिकार-प्राप्त कमेटियां बहुत सारी हैं. इन सब के बावजूद, निर्णय लेने की व्यवस्था केंद्रीकृत है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


य़ह भी पढ़ें: सात चीजें, जो कोविड की तीसरी लहर आने के पहले मोदी सरकार को करनी चाहिए, यही है सही समय


 

Exit mobile version