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थैलेसीमिया दिवस पर 17 वर्षीय भारतीय मरीज स्टेम सेल के विदेशी दाता से मिला

उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी | एएनआई
इसरो वैज्ञानिक एन. वलारमथी | ट्विटर/@DrPVVenkitakri1

बेंगलुरु, आठ मई (भाषा) अस्थि मज्जा प्रतिरोपण से नयी जिंदगी पाने वाले थैलेसीमिया के 17 वर्षीय भारतीय मरीज को उसके विदेशी दाता से मिलवाया गया।

नारायण ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के डॉ. सुनील भट ने कहा कि अस्थि मज्जा प्रतिरोपण के लिए रूस के एक व्यक्ति के आनुवंशिक गुण भारत के किसी लड़के से मेल खाने की संभावना लगभग नहीं के बराबर है।

उन्होंने कहा कि लेकिन, थैलेसीमिया के मरीज 17 वर्षीय चिराग के लिए चमत्कार हुआ। चिराग को रूस का 29 वर्षीय दाता रोमन सिम्निजकी मिला, जिससे उनकी जिंदगी आसान हो गई। सिम्निजकी 2005 में रूस के साइबेरिया से जर्मनी के स्टटगार्ट चले गए थे।

डॉ. भट ने बृहस्पतिवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘भारत में रक्त स्टेम सेल दान अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। भारत में थैलेसीमिया रोगियों के लिए, मिलान वाले दाता के मिलने की संभावना 5 से 10 प्रतिशत तक होती है। चिराग के मामले में जो हुआ वह लगभग एक चमत्कार है।’’

भट नारायण ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स में बाल चिकित्सा हेमेटोलॉजी, ऑन्कोलॉजी और रक्त और मज्जा प्रत्यारोपण के निदेशक हैं।

आठ मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है। इसके उपलक्ष्य में रक्त स्टेम सेल दान करने वाले और लाभार्थी को मिलाया गया।

यह कार्यक्रम डीकेएमएस द्वारा आयोजित किया गया, जो भारत में एक गैर सरकारी संगठन बेंगलुरु मेडिकल सर्विसेज ट्रस्ट (बीएमएसटी) के साथ साझेदारी में स्टेम सेल प्रतिरोपण के बारे में जागरूकता बढ़ाने और संभावित दाताओं को पंजीकृत करने के लिए काम करने वाला अंतरराष्ट्रीय संगठन है।

इस कार्यक्रम के दौरान चिराग और सिम्निजकी पहली बार मिले। प्रतिरोपण की प्रक्रिया 2016 में हुई थी। चिराग ने सिम्निजकी के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘सिम्निजकी ने सिर्फ स्टेम सेल ही दान नहीं किए, उन्होंने मुझे जिंदगी दी।’’

सिम्निजकी ने कहा कि दाता के रूप में नामांकन करने का उनका निर्णय लगभग संयोग से हुआ। उन्होंने कहा, ‘‘मैं आमतौर पर रक्तदान करता रहता हूं और ऐसे ही एक मौके पर मुझसे स्टेम सेल दान के लिए संपर्क किया गया था। मैंने सोचा, क्यों नहीं? बाद में, मुझे बताया गया कि मुझे भारत में मिलान वाला रोगी मिला है, यह एक अत्यंत दुर्लभ चिकित्सा घटना है।’’

डीकेएमएस-बीएमएसटी फाउंडेशन इंडिया में दाता अनुरोध प्रबंधन के प्रमुख नितिन अग्रवाल के अनुसार भारत में हर साल थैलेसीमिया के 10,000 से 30,000 नए रोगी सामने आते हैं।

अग्रवाल ने कहा कि दाता का विवरण आमतौर पर गुमनाम रखा जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘हम सिर्फ चिराग और सिम्निजकी की कहानी बताकर दानदाताओं को प्रेरित करना चाहते हैं।’’

थैलेसीमिया एक वंशानुगत रक्त विकार है जिसके कारण शरीर में सामान्य से कम हीमोग्लोबिन होता है। आठ मई को प्रत्‍येक वर्ष विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है, ताकि इस बीमारी की रोकथाम के महत्व पर लोगों को जागरूक किया जा सकें।

भाषा आशीष माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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