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‘कोविड एंडेमिक बन रही है ये कहना अभी जल्दबाजी होगी’- दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री से असहमत हैं विशेषज्ञ

अभी जबकि आवाजाही शुरू होने के साथ कोरोनावायरस के नए स्ट्रेन सामने आ रहे हैं और दो टीके लगाए जा रहे हैं, विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 के स्थानीय बीमारी बन जाने की संभावना बहुत कम है.

प्रतीकात्मक तस्वीर वैक्सीन लगाती स्वास्थ्यकर्मी | पीटीआई

नई दिल्ली: दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन की ओर से रविवार को दिए उस बयान पर बहस छिड़ गई है जिसमें उन्होंने कहा था कि कोरोनावायरस महामारी राष्ट्रीय राजधानी में अपने ‘एंडेमिक फेज’ के करीब पहुंच गई है, विशेषज्ञों का कहना है कि ‘इस तरह का आकलन करना जल्दबाजी होगा.’

जैन ने कहा था, ‘कोरोनावायरस दिल्ली में एक एंडेमिक फेज के नजदीक है. विशेषज्ञों का कहना है कि एंडेमिक फेज में कुछ मामले सामने आते रहते हैं. दिल्ली ने लगभग 10 साल पहले स्वाइन फ्लू का प्रकोप झेला था लेकिन अब भी हर साल कुछ मामले सामने आते रहते हैं. कोरोनावायरस पूरी तरह से खत्म नहीं होने जा रहा…हमें इसके साथ जीना सीखना होगा.’

एंडेमिसिटी का आशय होता है कि पूरे साल ही स्थिर गति और किसी क्षेत्र विशेष में मामले सामने आते रहते हैं और किसी खास मौसम में इनमें वृद्धि हो जाती है. उदाहरण के तौर पर सामान्य मौसमी फ्लू है जिसके मामले साल में हर मौसम में सामने आते रहते हैं और मौसम में बदलाव के समय इसमें थोड़ी वृद्धि देखी जाती है.

2015 में इंडियन जर्नल ऑफ एंडोक्रिनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म  में एक पेपर में इस सवाल कि क्या भारत में डायबिटीज एंडेमिक है या एपेडिमिक है, पर एंडेमासिटी की अवधारणा को समझाने के लिए हैजे को लेकर एक पुरानी परिभाषा का हवाला दिया गया था.

इस पेपर में लिखा गया था, ‘हैजा के संबंध में चिकित्सकीय आधार पर प्रस्तावित एक पुरानी (1948 की) परिभाषा अब भी प्रासंगिक है. यह बताती है कि एंडेमिक एरिया वह क्षेत्र है जहां सालों-साल से उपचार योग्य हैजा लगातार अपनी मौजूदगी दिखाता हो और एक खास मौसम में इसके मामलों में तेजी आ जाती हो.’

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इसमें आगे बताया गया है, ‘एपिडेमियोलॉजी को डिक्शनरी में किसी खास भौगोलिक क्षेत्र या खास आबादी समूह के बीच किसी बीमारी या संक्रामक एजेंट की निरंतर उपस्थिति के तौर पर परिभाषित किया गया है, इसे ऐसे किसी खास क्षेत्र या समूह के भीतर कोई बीमारी सामान्य तौर पर फैलने के संदर्भ में भी उल्लेखित किया जा सकता है.’

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना कि कोविड-19 के एंडेमिक होने को निर्णायक रूप से स्थापित करना मुश्किल है क्योंकि इस वायरस के तमाम नए स्ट्रेन सामने आ गए हैं. उनका यह भी कहना कि कोविड-19 के दो टीकों का उपयोग होने के साथ इसके एंडेमिक बनने की संभावना कम ही है.


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‘कुछ भी कहना जल्दबाजी’

किसी पैंडेमिक के दौर में यह निर्धारित करने वाले कोई एक बिंदु नहीं है जब यह कहा जा सकता हो कि कि कोई बीमारी अब एंडेमिक हो गई है.

डॉ. के.एस. रेड्डी कहते हैं, ‘मेरी नज़र में दिल्ली के बारे में ऐसा कोई आकलन करना अभी बहुत जल्दबाजी होगा.’ वह पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट होने के साथ-साथ हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में महामारी विज्ञान के सहायक प्रोफेसर के रूप में भी कार्यरत हैं.

उन्होंने स्पष्ट किया, ‘यदि इसमें तेजी आती है या लहर है, तो आमतौर पर यह एंडेमिक नहीं है, कुछ मौसमी उतार-चढ़ाव हो सकते हैं. जब आंकड़े काफी कम हों और उनकी दर स्थिर हो तब यह कहा जा सकता है कि बीमारी थम रही है. लेकिन फिर जब बड़ी संख्या में लोग यात्रा कर रहे हों और यह संख्या कभी भी तेजी से बढ़ सकती हो, तो ये देखने का एक तरीका है कि क्या गंभीर संक्रमण के मामले कम हैं…’

दिल्ली में पिछले कुछ समय से अस्पतालों में कोविड के मरीजों की संख्या घटना की सूचना दी जा रही है. दिल्ली के ताजा स्वास्थ्य बुलेटिन ने दिखाया है कि कोविड-19 के लिए अस्पतालों में निर्धारित 5,709 बेड में से केवल 539 पर मरीज हैं.

हालांकि, कई नए स्ट्रेन सामने आने और यात्रा संबंधी छूट की वजह से कभी भी अचानक मामले बढ़ जाने की आशंकाओं के बीच निर्णायक तौर पर यह स्थापित करना मुश्किल है कि यह बीमारी एंडेमिक बन चुकी है.

नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (एनसीडीसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘दुनिया के किसी भी देश ने अब तक ये नहीं कहा है कि यह बीमारी वहां एंडेमिक बन गई है. इसका एक कारण यह भी है कि कई नए स्ट्रेन सामने आ रहे हैं. ब्रिटेन का ही उदाहरण ले लीजिए, वहां एक लहर थी और फिर एक नया स्ट्रेन आया और बीमारी की एक नई लहर शुरू हो गई. जो मैं देख पा रहा हूं दिल्ली के आंकड़ों में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह धारणा बनाई जा सके कि यहां बीमारी एंडेमिक हो गई है.’

उन्होंने कहा कि दो टीके पहले से ही इस्तेमाल किए जा रहे हैं, ऐसे में यह बीमारी एंडेमिक बन जाने की संभावनाएं कम ही नज़र आती हैं.


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एंडेमिक पर भविष्यवाणियां

एक स्थिति ऐसी आएगी जब कोविड-19 एंडेमिक बन जाएगी, यह बात न केवल महामारी के व्यापक प्रकोप से निपटने के लिए केंद्र सरकार की ओर से फरवरी 2020 में तैयार योजना— जिसे आखिरी बार मई में संशोधित किया गया था— में कही गई थी बल्कि अंतरराष्ट्रीय जर्नल में भी स्वीकारी गई है.

बीएमजे ने पिछले महीने लिखा था, ‘बुनियादी स्तर पर काम कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि ‘सार्स कोव-2’ कोरोनावायरस पूरी तरह खत्म नहीं होगा बल्कि एंडेमिक बन जाएगा. जो आने वाले तमाम सालों तक अलग-अलग क्षेत्रों में दुनियाभर की आबादी के बीच फैलता रहेगा और विभिन्न क्षेत्रों को इसके पूरी तरह खत्म होने के बाद भी इसका प्रकोप झेलना पड़ेगा.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘लेकिन मौत, बीमारी और सामाजिक अलगाव की जरूरत की बात करें तो इस लिहाज से दुनियाभर में वायरस का प्रभाव घट जाएगा. इसके पीछे वैज्ञानिकों की राय है कि अधिकतर आबादी इस वायरस के संपर्क में आने या फिर टीका लगने के कारण इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेगी.’

हालांकि, दो चीजें कोविड-19 के एंडेमिक बनने की संभावना को विलंबित कर सकती हैं— एक है आवाजाही में आई तेजी जो नए स्ट्रेन का कारण बन सकती है और दूसरी टीकाकरण में लगने वाला समय.

ब्रिटेन स्थित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में महामारी विज्ञानी क्रिस्टोफर डाई ने पिछले महीने द नेचर से कहा था, ‘मुझे लगता है कि कोविड-19 कुछ देशों से खत्म हो जाएगा, लेकिन जहां वैक्सीन कवरेज और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी कदम पूरी तरह पर्याप्त नहीं होंगे वहां इसके फिर सिर उठाने (और संभवत: मौसमी होने) का खतरा बना रहेगा.


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एंडेमिक रोगों के लिए कैसे बदलती है रणनीति

जब भी कोई बीमारी एंडेमिक स्टेज में पहुंच जाती है तो सबसे पहले तो बीमारी पर काबू पाने की रणनीति में बदलाव होता है और इसमें इस्तेमाल हो रहे संसाधनों के उपयोग की दिशा को बदला जाता है— इन्हें बीमारी की रोकथाम के बजाये बीमारी के कारण कम से कम नुकसान पर केंद्रित कर दिया जाता है.

डॉ. रेड्डी ने कहा, ‘ऐसे हालात में सामान्य जीवन शुरू करने के साथ यही उद्देश्य होना चाहिए कि उन लोगों की सुरक्षा पर ध्यान दिया जाए जिनके लिए जोखिम ज्यादा है, प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर है, बुजुर्ग या कोमोर्बिडिटी प्रभावित हैं. टीकाकरण पूरा होने तक उन्हें व्यापक जोखिम से बचाना होगा. वायरस के म्यूटेंट पर नज़र रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.’

मिटिगेशन स्टेज का अर्थ है कि एकमात्र उद्देश्य मृत्यु दर और बीमारी के गंभीर रूप से लेने को रोकना अर्थात, मरीजों की हालत ज्यादा बिगड़ने से रोकना है.

ऊपर उद्धृत एनसीडीसी अधिकारी ने कहा, ‘यह वैसा ही है जैसे हम सीजनल फ्लू में करते हैं. हम केवल उन्हीं का टेस्ट करते हैं जिनके गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा होता है या फिर जो मामले अस्पताल आते हैं.

(देबलीना डे द्वारा संपादित)

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