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1960 के दशक में पेटेंट वाली दवा हल्के और मध्यम कोविड मामलों से उबरने का समय आधा कर सकती है- Study

साइंटिफिक रिपोर्ट में प्रकाशित आईआईटी और पैनिमलर मेडिकल कॉलेज के शोधकर्ताओं का एक अध्यययन बताता है कि जिन मरीजों को इलाज के दौरान इंडोमिथैसिन दवा दी गई उन्हें ऑक्सीजन थेरेपी की जरूरत कम पड़ी.

पीपीई में एक कोविड रोगी की देखभाल करने वाला एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता | प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

नई दिल्ली: 1965 में पेटेंट कराई गई एक एंटीवायरल और गठिया की दवा इंडोमिथैसिन कोविड-19 के हल्के और मध्यम मामलों से उबरने में एक सुरक्षित और प्रभावी उपचार हो सकती है, जैसा कि आईआईटी मद्रास और चेन्नई के पैनिमलर मेडिकल कॉलेज अस्पताल और अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं के अध्ययन से सामने आया है.

साइंस जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में मंगलवार को प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि कोविड-19 मरीजों के पांच दिन तक इंडोमिथैसिन का कोर्स पूरा करने के दौरान ऑक्सीजन थेरेपी की आवश्यकता कम पड़ी और उनके बीमारी से जल्द उबरने की संभावना अधिक रही.

शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन नतीजे स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजे हैं और उन्हें उम्मीद है कि दवा को भारत के कोविड के इलाज संबंधी प्रोटोकॉल में शामिल कर लिया जाएगा.

अध्ययन का प्राथमिक उद्देश्य ऑक्सीजन स्तर में गिरावट रोकने और कोविड-19 के हल्के और मध्यम मामलों में मरीजों की स्थिति बिगड़ने से रोकने में इंडोमिथैसिन के प्रभाव का पता लगाना था.

एक रैंडम क्लीनिकल ट्रायल में 210 मरीजों को दो समूहों में बांटा गया. इसमें 107 प्रतिभागियों के पहले समूह को पैरासिटामोल दवा दी गई और बाकी को इंडोमिथैसिन दी गई.

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ठीक होने की अवधि आधी रह गई

इस दौरान पाया गया कि इंडोमिथैसिन लेने वाले समूह के लगभग 50 प्रतिशत मरीज चौदह दिन में पूरी तरह ठीक हो गए जबकि इसकी तुलना में पैरासिटामोल दवा वाले समूह के मरीजों को कोविड-19 से उबरने में 28 दिन लगे.

अध्ययन में यह भी पाया गया कि पैरासिटामोल समूह के 20 मरीजों का ऑक्सीजन स्तर घट गया था, जबकि इंडोमिथैसिन समूह वाले किसी भी मरीज को इस स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा. शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि इंडोमिथैसिन की एक या दो खुराक के बाद ही कोविड-19 के मरीजों में ऑक्सीजन के स्तर में सुधार हुआ है.

पैरासिटामोल लेने वालों के बुखार से उबरने में सात दिन लगने की तुलना में इंडोमिथैसिन लेने वाले मरीजों में बुखार तीन दिनों के भीतर ही कम हो गया. इसी तरह, उनकी खांसी भी चार दिनों में ठीक हो गई, जबकि पैरासिटामोल वाले समूह के मरीजों को इससे उबरने में सात दिन लगे.

इंडोमिथैसिन समूह में शामिल 70 में से केवल नौ मरीजों को ठीक होने में सात दिन या उससे अधिक समय लगा. शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस समूह के किसी भी मरीजों को शुरुआती पांच दिनों के कोर्स के बाद इंडोमिथैसिन की नियमित खुराक देने की जरूरत भी नहीं पड़ी.


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‘सुरक्षित और जांची-परखी दवा’

इंडोमिथैसिन का इस्तेमाल 1960 के दशक से व्यापक तौर पर गठिया जैसे सूजन संबंधी विभिन्न विकारों के इलाज के लिए किया जाता रहा है.

आईआईटी मद्रास में सहायक संकाय और एमआईओटी हास्पिटल्स- जहां ट्रायल किया गया- में डायरेक्टर (नेफ्रोलॉजी) राजन रविचंद्रन ने कहा, ‘यह देखते हुए कि सूजन और साइटोकिन स्टोर्म कोविड संक्रमण के घातक प्रभावों में शामिल है, हमने नॉन-स्टेरायडल एंटी-इन्फ्लेमेटरी इंडोमिथैसिन को लेकर अध्ययन करने का फैसला किया.’

उन्होंने कहा, ‘वैज्ञानिक साक्ष्य स्पष्ट तौर पर दिखाते हैं कि एंटीवायरल कोरोनोवायरस के खिलाफ कारगर हैं. इंडोमिथैसिन एक सुरक्षित और जांची-परखी दवा है. मैं पिछले 30 सालों से इसे अपने पेशे में इस्तेमाल कर रहा हूं.’

रविचंद्रन ने एक वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि शोधकर्ताओं ने स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को अपने अध्ययन निष्कर्ष भेजे हैं, और उम्मीद है कि दवा को भारत के कोविड के इलाज संबंधी प्रोटोकॉल में शामिल कर लिया जाएगा.

रविचंद्रन ने दिप्रिंट को बताया कि कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स- जिन्हें इलाज के दौरान इस्तेमाल करने की मंजूरी मिली है- के इस्तेमाल से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित होती है, जिससे आगे चलकर ब्लैक फंगस जैसे संक्रमणों की चपेट में आने का जोखिम रहता है.

उन्होंने आगे कहा, ‘दूसरी ओर, इंडोमिथैसिन के केवल कुछ अल्पकालिक प्रतिकूल प्रभाव होते हैं जैसे एसिडिटी की वजह से पेट दर्द आदि. उस पर भी एंटासिड से काबू पाया जा सकता है.’

शोधकर्ताओं के अनुसार, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इलाज की तुलना में यह दवा सस्ती है.

रविचंद्रन ने कहा कि चूंकि दवा काफी प्रचलित और कम लागत वाली है, इसलिए दवा कंपनियां इसे कोविड-19 उपचार प्रोटोकॉल में शामिल करने पर जोर नहीं दे रही हैं.

क्या कहते हैं पूर्व के अध्ययन के नतीजे

ट्रायल के नतीजे उसी टीम की तरफ से पहले किए गए एक अध्ययन की पुष्टि करते हैं जो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित हुआ था.

पिछले अध्ययन में 72 मरीजों को इंडोमिथैसिन और 72 अन्य मरीजों को पैरासिटामोल दिया गया था.

इस अध्ययन से यह भी पता चला था कि इंडोमिथैसिन लेने वाले एक मरीज को हाइपोक्सिया हुआ था जबकि इसकी तुलना में पैरासिटामोल वाले समूह में 28 मरीज इससे पीड़ित हुए थे. साथ ही, यह भी पाया गया कि गंभीर कोविड लक्षणों वाले मरीजों को इंडोमिथैसिन देने से उन्हें वेंटिलेशन की जरूरत नहीं पड़ी थी.

रविचंद्रन ने कहा, ‘इंडोमिथैसिन को हर तरह के वैरिएंट पर कारगर पाया गया है. हमने दो ट्रायल किए थे, एक पहली लहर के दौरान और दूसरा दूसरी लहर में. परिणाम समान रहे. मुझे पूरी उम्मीद है कि आईसीएमआर इस अध्ययन पर ध्यान देगा और इंडोमिथैसिन को कोविड उपचार प्रोटोकॉल में शामिल करेगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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