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मोदी सरकार के नए प्रमुख वैज्ञानिक जिनके पास है 7 पेटेंट और भारत का सर्वोच्च विज्ञान पुरस्कार

आईआईएससी के भौतिक विज्ञान विभाग में प्रोफेसर सूद नए प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार हैं. उन्होंने प्रख्यात जीवविज्ञानी के. विजयराघवन की जगह ली है. सूद प्रधानमंत्री के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद के सदस्य भी हैं.

इलस्ट्रेशन- दिप्रिंट, रमनदीप

नई दिल्ली: लगभग दो दशक पहले भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों की एक टीम ने इतिहास रचा था, जब उन्होंने छोटे कार्बन नैनोट्यूब के माध्यम से तरल पदार्थ पारित करके विद्युत संकेत उत्पन्न किए थे. इस घटना को वैज्ञानिक दुनिया में ‘सूद प्रभाव’ से जाना जाता है.

शोध का नेतृत्व करने वाले भौतिक विज्ञानी अजय कुमार सूद को अब सरकार का प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए) नियुक्त किया गया है.

प्रधानमंत्री के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद के सदस्य सूद को तीन साल के लिए इस पद पर  नियुक्ति किया गया है. उन्होंने प्रख्यात जीवविज्ञानी के. विजयराघवन की जगह ली है, जो हाल ही में रिटायर हुए थे.

पीएसए कार्यालय का उद्देश्य सरकारी विभागों, संस्थानों और उद्योग के साथ साझेदारी में महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग पर ध्यान देने के साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार से संबंधित मामलों पर प्रधानमंत्री और कैबिनेट को व्यावहारिक और उद्देश्यपूर्ण सलाह प्रदान करना है.

सूद का जन्म 1951 में ग्वालियर में हुआ था. उन्होंने 1971 में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की. फिर वह एक वैज्ञानिक के रूप में इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र, कलपक्कम में शामिल हो गए. उन्होंने 1982 में आईआईएससी से पीएचडी की डिग्री हासिल की और उसके बाद 1988 में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में आईआईएससी के साथ ही जुड़ गए.

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सूद ने नैनो टेक्नोलॉजी पर विशेष जोर देते हुए कंडेस्ड मैटर फिजिक्स पर व्यापक शोध किए हैं. एक ऐसा क्षेत्र जो परमाणुओं के बीच विद्युत चुम्बकीय बलों से उत्पन्न होने वाले पदार्थ के गुणों से संबंधित है.

आईआईएससी में अपने प्रयोगों में सूद और उनकी टीम ने नैनोट्यूब के माध्यम से तरल पदार्थ पारित करके विद्युत संकेत उत्पन्न किए. ये खोज एक दम नई थी क्योंकि बिजली पैदा करने में आमतौर पर मेटल कंडक्टर के माध्यम से इलेक्ट्रॉनों को पारित किया जाता है. इस खोज ने सेल्फ-पॉवर्ड पेसमेकर के लिए भी मार्ग प्रशस्त किया था.

इसके अलावा सूद को एक अल्ट्रासेंसेटिव इम्युनोसे के विकास का श्रेय भी दिया जाता है. ये एक जैव रासायनिक परीक्षण है जो एक एंटीबॉडी का पता लगाता है. सूद के पास वर्तमान में इस उपकरण के लिए एक पेटेंट है.

सूद कई संस्थानों मसलन कर्नाटक सरकार के विजन ग्रुप ऑन नैनो टेक्नोलॉजी, डीएसटी के साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी), नैनोमिशन काउंसिल और नैनो साइंस एडवाइजरी ग्रुप की गवर्निंग बॉडी से जुड़े हैं.

वह इंडियन एकेडमी ऑफ साइंस, द इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी, द वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज और नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंडिया जैसे कई संस्थानों के सदस्य भी हैं.

सूद के 456 से अधिक वैज्ञानिक पत्र प्रकाशित हैं और उनके पास सात पेटेंट हैं. उन्हें 1990 में भारत में सर्वोच्च विज्ञान पुरस्कार शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

2013 में उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म श्री पुरस्कार से भी नवाजा गया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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