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7 नेताओं की मौत: MP के नाराज़ राजनीतिक परिवारों ने पूछा, क्या चुनाव टालने से ‘लोकतंत्र हिल जाता’

दमोह में 17 अप्रैल को होने वाले उपचुनाव के लिए कोविड मामलों में उछाल के बावजूद बीजेपी और कांग्रेस के टॉप नेताओं ने प्रचार किया जिसकी वजह से सात नेताओं की मौत हो गई और कइयों ने अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया.

मध्य प्रदेश के दमोह में अपने पिता बीजेपी नेता देवनारायण श्रीवास्तव की फोटो हाथ में पकड़े सोनाक्षी. अप्रैल में उपचुनाव में दौरान देव नारायण कोविड से संक्रमित हो गए थे और उनकी मृत्यु हो गई थी । फोटोः निर्मल पोद्दार । दिप्रिंट

दमोह: मध्य प्रदेश में 9 अप्रैल को जब 4,882 नए कोविड-19 केस दर्ज किए गए थे तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दमोह जिले में एक विशाल चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे. एक दिन पहले, चौहान की सरकार ने दमोह, जहां 17 अप्रैल को विधानसभा उपचुनाव होना था, को छोड़कर पूरे राज्य में सप्ताहांत पर लॉकडाउन की घोषणा की थी.

मध्यप्रदेश की तमाम बड़ी राजनीतिक हस्तियां—भाजपा की तरफ से चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया और उमा भारती और कांग्रेस की ओर से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह—इस उपचुनाव के सिलसिले में विशाल रैलियों को संबोधित करने दमोह पहुंची थीं.

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह 16 अप्रैल को दमोह से दिल्ली लौटने के बाद टेस्ट में पॉजिटिव निकले.

इस चुनावी जंग के बीच कुछ ही समय में दोनों पक्षों के और अधिक राजनेता कोरोनावायरस की चपेट में आ गए और अगले कुछ दिनों में उनमें से सात की मौत भी हो गई.

कोरोना से जान गंवाने वाले भाजपा नेताओं में दमोह जिलाध्यक्ष देवनारायण श्रीवास्तव, वार्ड काउंसलर महेंद्र राय, युवा मोर्चा नेता संदीप पंथी और बीना नगर पार्टी प्रमुख अमृता खटीक शामिल हैं. वहीं, प्रचार के दौरान वायरस की चपेट में आकर दम तोड़ देने वाले वाले कांग्रेस नेताओं में राज्य के पूर्व वाणिज्य मंत्री और दमोह उपचुनाव प्रभारी ब्रजेंद्र सिंह राठौर, महिला विंग की प्रदेश अध्यक्ष मांडवी चौहान और स्थानीय नेता गोकुल पटेल शामिल हैं.

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चुनाव आयोग के पोस्टर में कहा गया कोरोनावायरस से मत डरो

दमोह से कांग्रेस विधायक राहुल लोधी के पार्टी छोड़ने और अक्टूबर 2020 में भाजपा में शामिल हो जाने के कारण यहां उपचुनाव की जरूरत पड़ी. उपचुनाव से पहले चुनाव आयोग ने पोस्टर और बैनर लगाए, जिसमें पूरे जोरशोर से लोगों को बाहर निकलने, मतदान करने और कोरोनावायरस से ‘न डरने’ के लिए प्रोत्साहित किया जाता रहा. ऐसे ही एक पोस्टर में लिखा था, ‘कोरोना से नहीं डरेंगे, मतदान हम जरूर करेंगे’

चुनाव आयोग की एक होर्डिंग जिसमें कोरोना से न डरने और वोट करने के लिए कहा जा रहा है । स्पेशल अरेंजमेंट

उपचुनाव के लिए प्रचार शुरू होने से ठीक पहले 1 अप्रैल को जिले में कोविड-19 मामलों की संख्या 11 दर्ज की गई थी. 6 अप्रैल को नए मामलों की संख्या 28 हो गई, और उसके 10 दिन बाद 16 अप्रैल, मतदान से एक दिन पहले, को यह आंकड़ा 377 दर्ज किया गया—यह उस समय एक दिन की सबसे बड़ी उछाल थी.

मतदान के छह दिन बाद, 23 अप्रैल को 165 मामले दर्ज किए गए, जिससे कुल सक्रिय मामलों की संख्या बढ़कर 1,060 हो गई.

दमोह निवासियों का कहना है कि वे मध्यप्रदेश के शीर्ष नेताओं के बार-बार यहां दौरे पर आने से हैरान थे. एक दुकानदार आशीष मिश्रा ने कहा, ‘शिवराज सिंह चौहान के भोपाल से दमोह के बीच इतने चक्कर लगाने पर हम मजाक में कहते थे कि अगर किसी को भोपाल से कुछ मंगाना है तो उनसे कह सकता है.’ साथ ही जोड़ा, ‘अगर उस समय पश्चिम बंगाल में चुनाव नहीं होते, तो मुझे यकीन है कि प्रधानमंत्री मोदी या अमित शाह भी दमोह आए होते.’

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 2 मई को नतीजे घोषित होने से ऐन पहले दमोह में विजय जुलूसों पर रोक लगा दी थी. हालांकि, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. उपचुनाव के बाद से दमोह में हर दिन 150 से 160 के करीब कोविड-19 केस दर्ज किए जा रहे हैं.


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‘मदद के लिए कोई आगे नहीं आया’

भाजपा नेता देवनारायण श्रीवास्तव में 17 अप्रैल को उपचुनाव के कुछ दिनों बाद कोविड के लक्षण दिखने शुरू हुए थे और 27 अप्रैल को उनकी मौत हो गई. उनकी 26 वर्षीय बेटी सोनाक्षी ने दिप्रिंट को बताया कि परिवार ने उन्हें प्रचार करने से रोकने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन ‘वह पार्टी के प्रति पूरी तरह समर्पित थे.’

सोनाक्षी ने कहा, ‘हमने बार-बार उन्हें जाने से रोकने की कोशिश की. कोविड के केस बढ़ रहे थे लेकिन उन्हें पार्टी के लोगों के फोन आते रहे थे और वे उन्हें अभियान में शामिल होने को कहते थे. यहां तक कि उपचुनाव वाले दिन भी उन्हें हवा का रुख भांपने के लिए एक मतदान केंद्र पर बैठने के लिए भेज दिया गया था… वह पार्टी और चुनावों के प्रति इतने ज्यादा समर्पित थे कि न नहीं कह सकते थे.’

सोनाक्षी ने यह आरोप भी लगाया कि पार्टी के प्रति इस समर्पण के बावजूद श्रीवास्तव के बीमार पड़ने पर ‘कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आया’

उन्होंने आगे कहा, ‘बाद में हमने भी तमाम लोगों से संपर्क की कोशिश की. लेकिन जयंत मलैया (भाजपा के वरिष्ठ नेता और दमोह के पूर्व विधायक) के अलावा पार्टी के किसी और नेता ने मदद नहीं की. सबने ट्विटर पर उनके लिए शोक संदेश तो लिखे… लेकिन जब हमें वास्तविक मदद की जरूरत पड़ी तो किसी ने कुछ नहीं किया.’

अपने माता-पिता की इकलौती संतान सोनाक्षी ने छह महीने के भीतर दोनों को कोविड-19 के कारण खो दिया है. और वह कम से कम अपने पिता की मौत के लिए तो दमोह उपचुनाव को ही जिम्मेदार ठहराती हैं.

उन्होंने कहा, ‘ऐसा तो है नहीं कि यदि ये उपचुनाव नहीं होता तो पूरा लोकतंत्र हिल जाता…ये आसानी से बाद में हो सकता था.


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‘उपचुनाव का समय पूरी तरह गलत चुना गया’

रिकॉर्ड के लिए दमोह से कांग्रेस उम्मीदवार अजय टंडन ने उपचुनाव में एकदम आसानी से जीत हासिल की है. लेकिन उनके लिए सक्रिय रूप से प्रचार करने वाले नेताओं में से एक लाल चंद राय अभी पूरी तरह दुखों से उबर नहीं पाए हैं.

चुनाव के कुछ दिनों बाद ही लाल चंद जांच में पॉजिटिव पाए गए, और कुछ ही समय बाद उनकी पत्नी वंदना और 17 वर्षीय बेटा भी संक्रमित हो गया. हालांकि, लाल चंद और उनका बेटा ठीक हो गए लेकिन वंदना की मृत्यु हो गई.

कांग्रेस नेता ने दिप्रिंट से कहा, ‘चुनाव प्रचार के कारण दमोह में कई परिवार तबाह हो गए हैं. मेरी पत्नी, मेरी जीवनसंगिनी की इसी वजह से मौत हो गई…मैं तो एकदम बर्बाद हो गया हूं.’ साथ ही जोड़ा कि जब कोविड बढ़ रहा था तब उपचुनाव कराने का फैसला ‘पूरी तरह से अनुचित’ था.

कांग्रेस नेता लाल चंद राय जनवरी में शादी की सालगिरह पर अपनी पत्नी वंदना के साथ; (दाहिने) राय और उनका बेटा वंदना की कोविड-19 से मौत के बाद उनकी फोटो के सामने खड़े हुए । फोटोः स्पेशल अरेंजमेंट/ निर्मल पोद्दाप । दिप्रिंट

दिवंगत भाजपा पार्षद महेंद्र राय के 17 वर्षीय बेटे सचिन राय ने भी सवाल उठाया कि उपचुनाव को टाला क्यों नहीं जा सकता था और दमोह में लॉकडाउन क्यों नहीं किया गया था.

सचिन ने पूछा, ‘दमोह में ऐसा क्या खास है कि सभी जिलों में लॉकडाउन हुआ, लेकिन यहां नहीं? क्या उपचुनाव लोगों की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण है?’

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