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कौन हैं कॉर्पोरेट भारत के rainbow warrior कुणाल भारद्वाज, जिसने सभी 7 महाद्वीपों पर लगाई दौड़

कुणाल भारद्वाज सभी सात महाद्वीपों पर मैराथन दौड़ने वाले दुनिया के पहले समलैंगिक पुरुष हैं. उनकी अंतिम सीमा अंटार्कटिका थी, जिसमें 42.5 किलोमीटर की दौड़ उन्होंने दिसंबर 2023 में पूरी की.

कुणाल भारद्वाज ने 2023 अंटार्कटिक आइस मैराथन में गौरव का झंडा लहराया | फोटो: विशेष व्यवस्था द्वारा

नई दिल्ली: पृथ्वी पर सबसे ठंडी जगह अंटार्कटिका में दौड़ते समय कुणाल भारद्वाज को लगा कि हवा उनकी हड्डियों को काट रही है, जबकि बर्फ के कारण उनके पैर की मांसपेशियों में खिंचाव आ रहा है. लेकिन 43 वर्षीय भारद्वाज अंटार्कटिक सर्कल में इस मैराथन को जीतने के लिए नहीं दौड़ रहे थे. वह अपने बचपन के बुरे अनुभवों को पीछे छोड़ने और खुले तौर पर एक gay के रूप में अपनी पहचान को स्वीकार करने की दिशा में आगे बढ़ रहे थे. वह लीमा से न्यूयॉर्क तक, सभी सात महाद्वीपों पर मैराथन दौड़ने वाले दुनिया के पहले समलैंगिक व्यक्ति है, जिनके आधिकारिक समापन पर गौरव ध्वज लगा हुआ है.

भारद्वाज की अंतिम सीमा अंटार्कटिका थी, 42.5 किलोमीटर की दौड़ उन्होंने दिसंबर में हवा के तेज़ झोंकों के बीच शून्य से नीचे के तापमान में पूरी की. इसमें उनके शरीर को पूरी ताकत से आगे धकेलना शामिल था, क्योंकि ऐसी जलवायु में शरीर के अंग मानो जम जाते हैं. जब उन्होंने इसके लिए प्रशिक्षण शुरू किया था तब से लेकर अब तक उनका वजन 20 किलोग्राम तक कम हो चुका है.

कुणाल कहते हैं, जो अब दक्षिण दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी की सामान्य जलवायु में रहते हैं, “वहां 24 घंटे सूरज था, और हवा अपने साथ ताज़ी बर्फ लेकर आती थी. मुझे थोड़ा सामान्य मौसम चाहिए था.”

भारद्वाज की अंटार्कटिका दौड़ 42.5 किमी लंबी थी, जो बर्फीले, तेज हवा के झोंकों से भरी थी | फोटो: विशेष व्यवस्था द्वारा

उन्होंने नहीं सोचा था कि ऐसा होगा, लेकिन कुणाल भारद्वाज के जीवन के दो अभियान – उनके शरीर और समाज को चुनौती देने वाले ये कदम एक ही समय पर शुरू हुए. वह 2018 में सार्वजनिक रूप से एक समलैंगिक व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान स्वीकार करते हुए बाहर आए और दौड़ना शुरू कर दिया. फिटनेस के लिए दौड़ना, मेडिटेशन के रूप में दौड़ना और अंत में, उनके जीवन के सभी चार दशकों को परिभाषित करने के लिए दौड़ना.

भारद्वाज 2018 में एक अलग व्यक्ति थे. काम पर एक अजीब टिप्पणी ने उन्हें अपने बचपन के सेक्सुअल ट्रॉमा का सामना करने के लिए प्रेरित किया, जिससे भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा और उन्हें अपनी सेक्सुअलिटी का एहसास हुआ. बहुत सारी थेरेपी, दोस्तों और परिवार के अथक समर्थन के बाद, वह कुछ भी कर पाने में समर्थ हुए. यहां तक कि अंटार्कटिका में दौड़ने के लिए भी.

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भारत में ऐसी कोई जगह महीं है जो अंटार्कटिका की ठंडी हवाओं और समग्र दुर्गम वातावरण जैसी हो. उनका ‘ट्रायल रन’ आइसलैंड में एक मैराथन में था, जिसके पहले उन्होंने मुंबई के जुहू बीच पर दौड़ना शुरू किया था. जहां रेत ने बर्फ के समान एक चुनौती पेश की.

13 दिसंबर 2023 को, मैराथन के दिन, उन्होंने एक दोस्त द्वारा हाथ से पेंट की गई जैकेट पहनी थी, जिसमें इंद्रधनुष के सभी रंगों के साथ एक धावक को सात रंगों वाली टोपी के साथ दर्शाया गया था.

इस तस्वीर से समझा जा सकता है कि कुणाल क्या करने की कोशिश कर रहे है, और बहुत सारे रनर क्या करते हैं, खासकर पश्चिम में, जहां मैराथन संस्कृति का एक लंबा इतिहास है. वह जुनून, पेशे और अपने दिल के करीब एक सामाजिक कारण का संयोजन कर रहे थे. जिसका उद्देश्य परिवर्तन को प्रभावित करना और कॉर्पोरेट दुनिया में एक क्वीर फिलॉसफी को मुख्यधारा के स्थानों में एकीकृत करना है.

उनका उद्देश्य कॉर्पोरेट भारत और उसके बोर्डरूम को इंद्रधनुषी रंगों में रंगना है. यह कई स्थानों में से एक है जहां होमोफोबिक चुटकुलों और अपशब्दों का लापरवाही से प्रयोग किया जाता है, जहां महिला विरोधी और एलजीबीटीक्यूआईए+ माइक्रोअग्रेशन आम बोलचाल का हिस्सा हैं. तकनीकी कंपनियों के लिए दिल्ली स्थित बिक्री सलाहकार, द रेनमेकर ग्रुप में एक भागीदार के रूप में, उन्होंने इसका उपयोग किया है.

उन्होंने कहा, ”भारत में ऐसे कॉर्पोरेट लीडर बहुत कम हैं जो gay हों.”

यौन शोषण

कुणाल भारद्वाज 36 साल की उम्र में सामने आए. एक फाइनेंस प्रोफेशनल, वह एक बैठक में थे जब वरिष्ठ प्रबंधन के एक सदस्य ने किसी से कहा, “अगर आपने यह कार्य समय पर पूरा नहीं किया तो मैं आपका बलात्कार कर दूंगा.” इस टिप्पणी ने उन्हें झकझोर दिया, जब उन्हें बचपन में अपने साथ हुए यौन शोषण का सामना करना पड़ा था और एक समलैंगिक व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान स्वीकार करनी पड़ी.

कार्यस्थल पर एक असहज बातचीत ने भारद्वाज को अपना ट्रॉमा एक बार फिर याद दिलाया | फोटो: विशेष व्यवस्था द्वारा

थेरेपी-स्पीक अब लोकप्रिय शब्दकोष का हिस्सा है, लेकिन एक दशक पहले भी, ट्रिगर्स को शायद ही कभी समझा जाता था – ट्रिगर्स के रूप में बोलना तो दूर की बात है. अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन इस शब्द को “एक उत्तेजना जो प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है” के रूप में परिभाषित करती है. उदाहरण के लिए, एक घटना पिछले अनुभव की स्मृति और भावनात्मक उत्तेजना की स्थिति के लिए एक ट्रिगर हो सकती है.

कुणाल के लिए, इसने बोर्डिंग स्कूल में रहने के दौरान हुए यौन शोषण की यादें ताजा कर दीं.

वह बताते हैं, “मैं एक आर्मी स्कूल में था और मैंने इस ट्रॉमा को दबा दिया था. एक बार जब मैंने इसे स्वीकार कर लिया, तो [स्कूल के साथ] पत्राचार का डर था. लेकिन अब मुझे ये सब रोकना था.”

उनके आघात का सामना उनकी यौन पहचान की स्वीकृति के साथ भी हुआ. उन्होंने स्कूल से संपर्क किया, और पाया कि वे आगे आ रहे थे – उन्होंने इस बात से इनकार नहीं किया कि क्या हुआ था. उन्होंने अपने परिवार को सब कुछ बताया और करीबी दोस्तों से खुलकर बात की.

वह कहते हैं, “अपने परिवार और दोस्तों को बताना अपने आप में एक यात्रा थी. मेरे पापा ने पूछा कि मैंने उन्हें क्यों नहीं बताया. उन्होंने मुझसे कहा कि वह मेरी रक्षा करेंगे. उन्होंने [दोस्त और परिवार] मेरा साथ दिया, लेकिन मेरे बड़े सामाजिक दायरे के बीच बातचीत होती थी. लोग पीठ पीछे मेरे बारे में बात करते थे.”

कुणाल के बचपन के दोस्तों में से एक, बरखा बजाज, एक मनोवैज्ञानिक जो चाइल्डहुड एंड फैमिली ट्रॉमा में विशेषज्ञ हैं, उसी स्कूल में पढ़ती थीं. बजाज ने कहा, “कोई नहीं जानता था कि कुणाल किस दौर से गुजर रहा है. उन्होंने हमें कभी कुछ नहीं बताया.”

वह कहती हैं, “यह कल्पना करना मुश्किल है कि हम एक ही स्कूल में गए थे, लेकिन हमें ऐसे विपरीत अनुभव हुए. आम तौर पर, आप मान लेंगे कि लड़कियों के साथ ऐसा होगा. लेकिन हम बहुत अलग रहते थे.”

बचपन में स्कूल और घर पर होने वाला यौन शोषण कोई असामान्य घटना नहीं है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2020 के आंकड़ों के अनुसार, “पूरी चाइल्ड पॉपुलेशन के लगभग 28.9 प्रतिशत ने किसी न किसी प्रकार के यौन अपराध का अनुभव किया.”

लेकिन पुणे में Unalome नामक मानसिक-स्वास्थ्य केंद्र की संस्थापक बजाज का कहना है कि “बोर्डिंग स्कूलों में यह बड़े पैमाने पर और अनियंत्रित होता है.” उन्होंने कहा कि “भारत के बड़े बोर्डिंग स्कूलों” में ऐसे लड़कों का प्रतिशत अधिक है, जिन्होंने इस श्रेणी के दुर्व्यवहार का सामना किया है.

LGBTQIA+ एक्टिविज्म की दुनिया में कदम रखने के भारद्वाज के प्रयासों के हिस्से के रूप में, वह स्कूलों में सेक्सुअल ट्रॉमा को संबोधित करना चाहते हैं. उन्होंने उन दोस्तों के साथ इस पर चर्चा की जिनके बच्चे हैं, उनसे पूछा कि क्या वे उनके स्कूल जाने और अपने ट्रॉमा के बारे में बात करने में सहज होंगे. ज्यादातर इसके लिए अनिच्छुक हैं. वह कहते हैं, ”यह इस बारे में भी है कि आप किस उम्र में ये बातचीत कर सकते हैं,” उन्होंने आगे कहा कि यह स्कूल पर भी निर्भर करता है.

‘मेरे तौर-तरीकों को ध्यान से देखते हैं’

पिछले 19 वर्षों में, भारद्वाज ने बड़ी कंपनियों के सेल्स डिपार्टमेंट में बड़ी टीमों की देखरेख करते हुए काम किया है. लोग उनसे अक्सर पूछते थे कि क्या वह शादीशुदा हैं. अब, उनकी व्यक्तिगत नीति उनकी कामुकता के बारे में प्रत्यक्ष होने की है. जब वह सहकर्मियों को बताते हैं कि वह समलैंगिक है, तो अनिवार्य रूप से “माहौल थोड़ा अजीब” हो जाता है.

उन्होंने कहा, “वे मेरी शारीरिक विशेषताओं पर अड़े रहते हैं. वे मेरी शक्ल-सूरत की जांच करने लगते हैं. वे मेरे तौर-तरीकों को देखते हैं और इस बात पर ध्यान देते हैं कि मैं किस तरह से व्यवहार करता हूं.”

लेकिन उन्हें अभी तक खुले तौर पर समलैंगिक सहकर्मी या प्रबंधक का सामना नहीं करना पड़ा है. वित्त जगत में, कामुकता एक वर्जित विषय है, जिस पर गुप्त रूप से चर्चा की जाती है.

उम्मीद यह है कि चूंकि वह समलैंगिक है, इसलिए उसमें कुछ अलग किस्म के गुण होंगे. हालांकि यह सब शुरू में परेशान करने वाली थी, लेकिन वह निश्चिन्त है. “मैं बैल को उसके सींगों से पकड़ने में विश्वास करता हूं. इसलिए समस्या को वहीं और उसी वक्त सुलझा लेता हूं.”

कुणाल की शारीरिक बनावट हर तरह से विषम है, यदि अधिक नहीं तो, अपने मैराथन के लिए प्रशिक्षित करने के लिए कठिन कसरत कार्यक्रम को देखते हुए. लेकिन फिर भी, वह अभिव्यक्ति में बदलाव, व्यवहार में सूक्ष्म बदलाव और एक “कॉर्पोरेट लीडर” के रूप में अपनी योग्यता के बारे में संदेह के गवाह थे.

भारत में बहुत कम कंपनियों के पास LGBTQIA+अनुकूल कार्यस्थल सुनिश्चित करने की नीतियां हैं. उन्होंने सवाल किया, “यदि आप प्रतिदिन 12-15 घंटे कार्यालय में बिताते हैं, तो वे [सहकर्मी] आपकी कामुकता के बारे में कैसे नहीं जान सकते?”

शायद यही कारण है कि भारद्वाज का एक्टिविज्म लिंक्डइन में डूबी हुई है – यह कार्यक्षेत्र में विविधता और समावेशन (डी एंड आई), queer-affirmative नियोक्ताओं और काम पर सहयोगियों की आवश्यकता के बारे में है. उन्हें बहुत अधिक सहयोगी नहीं मिले हैं, लेकिन इंडिगो एयरलाइंस के पूर्व सीईओ और अकासा एयर के सह-संस्थापक आदित्य घोष उनके समर्थन में स्पष्ट रूप से रहे हैं. भारद्वाज ने घोष के साथ आतिथ्य श्रृंखला OYO में काम किया, और बाद में एकजुटता के कारण बाहर आने की प्रक्रिया कम कठिन हुई.

भारद्वाज का लिंक्डइन अवतार। वह भारत के कॉर्पोरेट दुनिया को इंद्रधनुषी रंगों में रंगने के मिशन पर हैं | फोटो: लिंक्डइन के माध्यम से

घोष के Linkedin पोस्ट में लिखा है, “आज शाम को एक अद्भुत प्रतिभाशाली, मेहनती साहसी युवक कुणाल भारद्वाज के साथ सबसे अद्भुत दो घंटे बिताए, जो कुछ साल पहले मेरे सहकर्मी हुआ करते थे.” मैं कुणाल भारद्वाज का सहयोगी बनने के लिए भाग्यशाली था क्योंकि वह गे के रूप में सामने आ रहे थे और अपने जीवन के सबसे कठिन चरणों में से एक से निपट रहे थे.

पोस्ट के साथ दोनों की एक तस्वीर है, जिसमें वे द क्वीर बाइबल नामक किताब पकड़े हुए हैं, जो एल्टन जॉन से लेकर क्वीर आई के टैन फ्रांस तक कई प्रसिद्ध “समलैंगिक आइकन” के निबंधों का संकलन है. लगभग 20 हैशटैग भी हैं, जो “D&I” और “LGBTQ” के क्रमपरिवर्तन और संयोजन हैं. यह समलैंगिकता अपने सर्वोत्तम उत्पादक और प्रदर्शनात्मक रूप में है.

कॉर्पोरेट भारत के रेनबो वॉरियर

जैसे ही भारद्वाज ने इंस्टाग्राम पर अपनी आखिरी मैराथन की घोषणा की, इसने लिंक्डइन पर भी धूम मचा दी. मैरिको के ऋषभ मारीवाला और ड्यूरोफ्लेक्स के श्रीधर बालाकृष्णन जैसे कॉर्पोरेट भारत के दिग्गजों ने उन्हें बधाई दी. भारद्वाज ने लिखा, “मुझे उम्मीद है कि यह उपलब्धि भारत में समुदाय के आसपास मुख्यधारा की बातचीत के प्रयासों को आगे बढ़ाएगी. प्यार तो प्यार है…” पोस्ट का लहजा लिंक्डइन के व्यक्तित्व के अनुरूप है – लेखन धीमा है, और व्यापक संदेश यह है कि हर चीज को अनुकूलित किया जा सकता है और उसे करने की आवश्यकता है.

कुणाल भारद्वाज की अंटार्कटिका दौड़ ने लिंक्डइन पर भी मचाई धूम | फोटो: विशेष व्यवस्था द्वारा

कुणाल के अनुसार, पश्चिम में निडर समलैंगिक कॉर्पोरेट लीडर की अच्छी खासी हिस्सेदारी है, जो अपनी सफलता और कामुकता में सहज हैं. एप्पल के सीईओ टिम कुक ने कहा कि उन्हें बाहर आकर “एक जिम्मेदारी महसूस हुई”. पेपाल के संस्थापक पीटर थिएल ने 2016 में एक रिपब्लिकन सम्मेलन में दर्शकों से कहा, “मुझे समलैंगिक होने पर गर्व है.” एनपीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, किसी रिपब्लिकन सम्मेलन में यह इस तरह का पहला बयान था.

दूसरी ओर, भारत को अभी लंबा रास्ता तय करना है.

भारद्वाज ने कहा, ”मैं जानता हूं कि यहां हम अभी भी कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए समान अधिकारों पर काम कर रहे हैं.”

मैराथन भी एक विशिष्ट कॉर्पोरेट स्थान है, जो भारत के कुछ प्रमुख खिलाड़ियों के लिए चुना गया परोपकारी क्षेत्र है. यह वह जगह है जहां वे दान के लिए धन जुटाते हैं और मुद्दों की वकालत करते हैं. दिल्ली हाफ मैराथन एयरटेल द्वारा प्रायोजित है. मुंबई मैराथन का संचालन स्टैंडर्ड चार्टर्ड द्वारा किया गया था और फिर 2017 में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने इसे संभाल लिया.

अगली बार जब भारद्वाज दौड़ेंगे, तो वह कॉर्पोरेट स्पोंसर्स रखना चाहेंगे ताकि वह कुछ LGBTQIA+ ट्रस्टों और मानसिक स्वास्थ्य गैर सरकारी संगठनों को धन मुहैया करा सकें. वह गंभीरता से कहते हैं, ”मेरे पास बहुत कुछ नहीं है, लेकिन जो कुछ भी मेरे पास है, मैं उसे इस उद्देश्य के लिए देना चाहता हूं.”

इस जनवरी के अंत में आयोजित होने वाली टाटा मुंबई मैराथन भारद्वाज के लिए विशेष है. उन्होंने इसे चार बार चलाया है – 2016, 2017, 2018 और 2023 में. लेकिन उन्हें नहीं पता कि वह इस बार भाग लेंगे या नहीं. भारद्वाज अभी भी रिकवरी मोड में हैं, अंटार्कटिका में अपने सबसे हालिया अभियान के बाद ठीक हो रहे हैं. हालांकि, उनका दिमाग अभी भी धीमी गति से काम कर रहा है.

उन्होंने कहा, “मैं अच्छे लोगों के लिए बाहर आने की यात्रा को कैसे आसान बना सकता हूं?”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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