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लाल फीताशाही को पीछे छोड़कर कैसे बिहार का पहला पेपरलेस जिला बना सहरसा

सहरसा बिहार का पहला जिला है जो पेपरलेस हुआ है. यह सिर्फ एक दिन का कमाल नहीं है. इस प्रक्रिया में समय लगा है, लोगों को ट्रेनिंग दी गई है, काम करने को लेकर उनका व्यवहार में बदलाव किया गया है.

सहरसा कलेक्ट्रेट के बाहर की व्यस्त सड़क | फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

बिहार के सहरसा का कलेक्ट्रेट जिले के सबसे व्यस्त इलाकों में से है जहां सड़क किनारे चाय और सत्तू पीते लोग घंटों इंतज़ार करते हैं. हाथों में मोटी-मोटी फाइलें थामे लोगों का इंतजार उस वक्त खत्म होता है जब जिलाधिकारी (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) की गाड़ी कलेक्ट्रेट में साइरन बजाती हुई घुसती है और चारों तरफ एक अलग तरह की व्यस्तता पसर जाती है. लोगों की शिकायतों वाली फाइलें सरकारी दफ्तरों के गलियारों से होती हुई हफ्तों या महीनों तक धूल फांकती है और एक जटिल सरकारी व्यवस्था का निर्माण करती है. लेकिन इस व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव सहरसा कलेक्ट्रेट में हुआ है जो पूरी तरह से पेपरलेस बन चुका है.

पर्यावरण के लिहाज से भी यह बेहद महत्वपूर्ण प्रयास है जिसने न केवल काम की प्रक्रिया को तेज बनाया है बल्कि पारदर्शिता और क्षमता को भी बढ़ाया है.

अब शिकायतें डीएम के दफ्तर में फाइलों के जरिए नहीं बल्कि ऑनलाइन पहुंचती है. अधिकारियों का कहना है कि जिस काम को पहले पूरा होने में तीन हफ्ते तक लग जाते थे वो अब एक दिन में ही हो जाता है.

सहरसा के डीएम और आईएएस अधिकारी आनंद शर्मा ने बताया, ‘पर्यावरण के लिहाज से इस महत्वपूर्ण शुरुआत को हर दफ्तर में अपनाया जाना चाहिए.’ सिर्फ छह महीनों के भीतर उन्होंने कलेक्ट्रेट का कायाकल्प कर दिया है, अब यहां धूल फांकती फाइलें नज़र नहीं आती, न ही फाइलों के बड़े-बड़े गट्ठर दिखते हैं बल्कि कंप्यूटर और लैपटॉप लिए लोग अब काम करते हैं.

सहरसा के डीएम आनंद शर्मा जिन्होंने कलेक्ट्रेट में ई-ऑफिस की शुरुआत की | फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

सहरसा बिहार का पहला जिला है जो कि पेपरलेस हुआ है. शर्मा का कहना है कि यह सिर्फ एक दिन का कमाल नहीं है. इस प्रक्रिया में समय लगा है, लोगों को ट्रेनिंग दी गई है, काम करने को लेकर उनका व्यवहार में बदलाव किया गया है.

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भारत में ई-ऑफिस की शुरुआत कोई नई बात नहीं है बल्कि 2009 में यूपीए सरकार के दौरान इसे बढ़ावा दिया गया था. लेकिन अभी भी दफ्तरों में पुरानी फाइलें और पेपर का अत्यधिक उपयोग काफी जटिलता लिए हुए है. कुछ कलेक्ट्रेट हैं जहां सहरसा से पहले पेपरलेस की दिशा में काम हो चुके हैं. केरल के इडुक्की में 2012 और हैदराबाद में 2016 में जिले को पेपरलेस बनाया गया. लेकिन कोविड महामारी ने काम के तरीके में काफी बदलाव किया और 2020-21 के दौरान देश के कई जिले पेपरलेस बने जिनमें केरल का पलक्क्ड़, ओड़िसा का जगतसिंहपुर, मध्य प्रदेश का ग्वालियर और महाराष्ट्र का रायगढ़ शामिल है.

भारतीय नौकरशाही का स्टील फ्रेम अभी भी दफ्तरों में पेपर के इस्तेमाल को कम नहीं कर सका है. सहरसा में पहले महत्वपूर्ण फाइलों को स्कूटी के जरिए कलेक्ट्रेट से डीएम के आवास पर स्थित गोपनीय रूम में ले जाया जाता था. यह पूरी प्रक्रिया फैसले लेने में देरी का कारण बनती थीं.

सहरसा के सलखुआ प्रखंड के कचौत गांव के रहने वाले राज कुमार सादा और उमेश चौधरी कुछ दिन पहले 40 किलोमीटर का सफर तय कर के डीएम से मिलने आए. उनकी दरख्वास्त जमीन से संबंधित मामले से जुड़ी थी.

चौधरी ने कहा, ‘पहले की तुलना में इस बार हमने बदलाव देखा है. अब फाइलें स्कैन होती हैं जिससे हमारा विश्वास बढ़ा है कि ये कहीं खोएंगी नहीं.’ उनका इशारा इस ओर था कि दफ्तरों में कागज़ों की भूलभूलैया में फाइलों के खोने का डर रहता है.


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विभागों में नीतियां बनती हैं, जिलों में लागू करने की होती हैं चुनौतियां

2013 बैच के आईएएस अधिकारी और दिल्ली के फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से पढ़े आनंद शर्मा ने हिंदुस्तान पेट्रोलियम की नौकरी छोड़कर भारतीय सेवा ज्वाइन की. उनका पिछला रिकॉर्ड यही बताता है कि वह पेपरलेस व्यवस्था के बड़े पैरोकार हैं.

पटना में कॉपरेटिव विभाग में रहते हुए उन्होंने उसे पेपरलेस बनाया. 2020 में यह बिहार का पहला विभाग था जिसे उन्होंने डिजिटल बनाया.

शर्मा ने बताया, ‘पहले का अनुभव मेरे साथ था.’ उत्साह के साथ उन्होंने ई-ऑफिस के कंसेप्ट को पटना मेट्रो रेल कॉरपोरेशन में भी लागू किया और उसके बाद शहरी विकास और आवास विभाग में भी.

इसी साल जनवरी में उन्होंने सहरसा के डीएम के तौर पर कार्यभार संभाला है. और अब यहां उनकी असल परीक्षा होने वाली थी. उनका कहना है कि ग्रामीण इलाकों की तुलना में पटना जैसे शहर में सुधारों को लागू करना आसान है लेकिन महत्वपूर्ण वो भी था.

उन्होंने कहा, ‘नीतियां विभागों में बनती हैं लेकिन उन्हें जिलों में लागू करना होता है. लेकिन दशकों से चल रही व्यवस्था को पूरी तरह से बदलना आसान काम नहीं है क्योंकि वहां काम कर रहे सभी कर्मचारी उसके आदी होते हैं.’

कोविड महामारी ने इस सोच को बदलने के लिए मजबूर कर दिया और शर्मा ने इसी वक्त का इस्तेमाल बड़े बदलाव के लिए किया. उन्होंने कलेक्ट्रेट में काम कर रहे उन युवाओं पर भरोसा किया जो टेक्नोलॉजी से राब्ता रखते थे. इन युवाओं को इस प्रोजेक्ट के लिए मास्टर ट्रेनर बनाया गया जिन्होंने कई सेशन के जरिए बाकी कर्मचारियों और अधिकारियों को ऑनलाइन काम करना सिखाया.

हालांकि शुरुआत में कलेक्ट्रेट के अधिकारियों में इसे लेकर कुछ झिझक थी क्योंकि यह इतना बड़ा बदलाव था जिसके बारे में किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था.

कलेक्ट्रेट के एक कर्मचारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘जब सर (आनंद शर्मा) ने यहां ज्वाइन किया तो हम सब डरे हुए थे क्योंकि वे एक बड़े बदलाव की सोच के साथ आए थे. और यहां कुछ ही लोगों को कंप्यूटर की जानकारी थी.’

लेकिन 10 फरवरी सहरसा के कलेक्ट्रेट के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ. इसी दिन जिले में पहली ई-फाइल को प्रोसेस किया गया.

कलेक्ट्रेट के 200 से ज्यादा कर्माचारियों में से एक कर्मचारी मनोज झा ने कहा, ‘सर ने पूरी व्यवस्था को बदल दिया. अब स्टाफ से लेकर अधिकारी तक कंप्यूटर और लैपटाप पर काम करते हैं.’ यहां किसी ने सोचा भी नहीं था कि उनके डेस्क से फाइलों और पेपर का भार कभी कम होगा. झा ने बताया, ‘सर जितना बड़ा बदलाव लेकर आए हैं, यह किसी ने सोचा नहीं था.’

सहरसा कलेक्ट्रेट | फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

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मानसिकता बदली तो काम की गति भी बढ़ी

अतीत के अपने अनुभवों से शर्मा जानते हैं कि लोगों के व्यवहार और उनकी आदतों को बदलना सबसे मुश्किल काम है.

पूरी प्रक्रिया के दौरान धैर्य रखने वाले आनंद शर्मा ने कहा, ‘हम संसाधन, कंप्यूटर, प्रिंटर्स दे सकते हैं लेकिन जब तक लोगों का दिमाग बदलाव के लिए तैयार नहीं होगा, तब तक कोई भी बदलाव संभव नहीं है.’

एक ट्रेनिंग सेशन के दौरान कलेक्ट्रेट के एक कर्मचारी जो कि अपने रिटायरमेंट के करीब हैं, उन्होंने कहा, ‘इस उम्र में कहां साहब हमसे हो पाएगा, कंप्यूटर वगैरह. हमारे बसका नहीं है.’ यह सुनकर पर आईएएस अधिकारी को जरा भी गुस्सा नहीं आया बल्कि उन्होंने समस्या को समझते हुए कहा, ‘आप निश्चिंत रहिए, जहां फंसेंगे हमें बुला लीजिएगा, हम आपकी कुर्सी पर बैठकर उसको टाइप कर देंगे. पहले शुरू करिए आप. दिक्कत हम सब मिलकर फेस करेंगे. हम आपको अकेला नहीं छोड़ रहे हैं.’

शर्मा ने कहा, ‘मुझे तब गुस्सा नहीं आया क्योंकि उनकी चिंता वाजिब थी.’

कलेक्ट्रेट में अब डिजिटल डिवाइड पुरानी बात हो गई है. दस्तावेजों और फाइलों के बड़े-बड़े ढेर अब उनके लिए काफी पहले की बात है. एक कर्मचारी परशुराम पासवान जिन्होंने अधिकारियों को ई-ऑफिस पर काम करने की ट्रेनिंग दी, उन्होंने कहा, ‘अब सारा कुछ सही दिशा में चल रहा है और अब पेपर से छुटकारा पाकर हम खुश हैं.’

लेकिन पुरानी फाइलें अभी भी कलेक्ट्रेट के सामने चुनौती पेश कर रही है. डिजिटाइज करने के बाद फाइलों को सुरक्षित रखना अब नया काम है क्योंकि भविष्य में ऑडिट या कानूनी मामलों के दौरान इनकी जरूरत पड़ सकती है. इसके लिए कलेक्ट्रेट ने राज्य सरकार से कांप्केटर्स को लेकर आवंटन की मांग की है.

अभी तक करीब 4 लाख एक्टिव फाइल्स को स्कैन कर लिया गया है और हर पन्ने की स्कैनिंग में 34 पैसे का खर्च आया है. वहीं ई-ऑफिस प्लेटफॉर्म पर अब तक 6,103 फाइलें बनाई गईं हैं.

कलेक्ट्रेट में लगे हाई स्पीड स्कैनर लगातार हार्ड कॉपीज को डिजिटल करते हैं और मशीन की लगातार आती आवाज दशकों से व्यवस्थागत जटिलताओं को आसान बना रही है. यहां तक कि जो लोग शिकायती पत्र लेकर डीएम के पास आते हैं उन्हें भी मशीन के जरिए स्कैन कर और फिर ई-ऑफिस पर अपलोड किया जाता है.

फाइलों के ऑनलाइन हो जाने से काम में तेजी आई है. अब लगभग हर दिन 27 फाइलों का निष्पादन किया जाता है. वहीं जब पेपर का इस्तेमाल होता था, तब इसी प्रक्रिया में 3-4 दिन लग जाते थे. इसने न केवल समय और पैसे की बर्बादी को कम किया है बल्कि लोगों में विश्वास को भी बढ़ाया है. एक कर्मचारी ने कहा, ‘अब हम सिर्फ एक क्लिक से फाइलों को विभागों में भेज देते हैं.’

इस साल 1 मार्च से 31 अगस्त के बीच 4,106 फाइलों को क्लियर किया गया है, जो कि व्यवस्थागत तौर पर एक बड़ा सुधार है क्योंकि 2021 में इसी अवधि में यह संख्या सिर्फ 1,158 थी.


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सुशासन की तरफ बढ़ता कदम

डिजिटाइजेशन की प्रक्रिया ने शर्मा को सहरसा में क्षमता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद की है. अब वह अपने कंप्यूटर के जरिए किसी भी फाइल को ट्रैक कर सकते हैं और पता लगा सकते हैं कि फाइल कहां अटकी हुई है. अब व्यवस्था की लेटलतीफी काफी हद तक कम हो गई है.

फाइलें अब एक दिन के भीतर प्रोसेस हो जाती हैं, इस कारण अब कर्मचारियों के काम करने की क्षमता भी बढ़ी है. वहीं एक फाइल को प्रोसेस करने में लगे लोगों की संख्या भी कम हुई है. शर्मा ने बताया, ‘सरकारी व्यवस्था में कहा जाता है कि जितनी तेज फाइल की मूवमेंट होगी उतनी ही तेज नीति लागू होगी.’

एनआईसी द्वारा डिजाइन किया हुआ ई-ऑफिस पोर्टल | फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

ऑनलाइन व्यवस्था जवाबदेही लेकर आया है. अब कर्मचारी एक ही फाइल को कई दिनों तक लटका नहीं सकता. शर्मा ने इस स्थिति को बिल्कुल बदल दिया है. उन्होंने कहा, ‘अगर मैं फाइल को एक दिन में क्लियर कर सकता हूं तो मेरी टीम क्यों नहीं. अब हर कोई मेरी नज़र में है और मॉनिटरिंग करना आसान हो गया है.’

कलेक्ट्रेट को पेपरलेस बनाकर ही शर्मा रुकने वाले नहीं हैं. जिले के स्तर पर हो चुके सुधार के बाद अब वो यहां के दो सब-डिवीजन: सहरसा सदर और सिमरी बख्तियारपुर को पेपरलेस बनाने में लग गए हैं.

सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था में टेक्नोलॉजी उनका पहला और सबसे बड़ा हथियार है. शर्मा ने बताया, ‘यह तभी हो सकता है जब जिले में ऐसा हो, उसके बाद सब-डिवीजन में और फिर ब्लॉक स्तर पर. टेक्नोलॉजी को जितना हम लागू करेंगे, लोगों के हितों के लिए काम करना उतना ही आसान हो जाएगा.’

पेपरलेस जैसी पहल का अब सहरसा के लिए समय आ चुका है, जिस पर चलकर जिला आगे बढ़ रहा है.

(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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