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करोड़पति है गुजरात के इस गांव के कुत्ते, मुगल शासक को जाता है श्रेय

200 कुत्तों के पास सामूहिक रूप से गांव के बाहर सड़क से सटी 26 बीघा जमीन है. भूमि 'समस्त गांव कुतरानी' समिति के नाम पर पंजीकृत है, जो कुत्तों की देखरेख करती है.

कुशकल गांव के कुत्ते, फोटो-सतेंद्र सिंह, दिप्रिंट

कुशकल नाम के गुजरात के इस गांव में कुत्तों की मौज है. और इसके लिए एक मुगल नवाब जिम्मेदार है. बनासकांठा जिले में कुत्तों के पास अपनी जमीन है, वे खाने के लिए संघर्ष नहीं करते हैं. बल्कि गांव वाले उन्हें खाना खिलाते हैं. ये कुत्ते गुजरात के करोड़पति हैं. ग्रामीणों के लिए, इन जानवरों की सेवा करना एक कर्तव्य की तरह है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रहा है.

कुशकल गांव में करीब 200 कुत्ते हैं.

कुत्ते पांच से छह के छोटे पैक या ‘गिरोह’ में दौड़ते हैं. 14 वर्षीय किंजल कहती हैं, ‘वह कालू काली गैंग का हिस्सा है.’उसने अपने माता-पिता और गांव के बुजुर्गों को देखकर कुत्तों की देखभाल करना सीखा है.

अपने पक्के घर के बरामदे में एक खाट पर गुलाबी तकिये पर आराम करते 75 वर्षीय जीतभाई कालूभाई लौह कहते हैं., ‘इस गांव में कोई कुत्ता भूखा नहीं सोता.’

वो कहते हैं, ‘हमने देखा कि जब हम बच्चे थे तो हमारे माता-पिता और दादा-दादी कुत्तों की देखभाल करते थे, और अब हम वही कर रहे हैं. हम उन्हें खिचड़ी, रोटी और दूध से बनी चीजें खिलाते हैं.’

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जमीन के मालिक कुत्ते

200 कुत्तों के पास सामूहिक रूप से गांव के बाहर सड़क से सटी 26 बीघा जमीन है. भूमि ‘समस्त गांव कुतरानी’ समिति के नाम पर पंजीकृत है, जो कुत्तों की देखरेख करती है.

समिति के 12 सदस्य खुद को जमीन के संरक्षक के रूप में देखते हैं, मालिक नहीं. वे जानवरों को खिलाने और जमीन पर खेती करने के बारे में निर्णय लेते हैं. जीताभाई मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘हम कह सकते हैं कि हमारे गांव के कुत्ते करोड़पति हैं.’

ग्रामीणों के अनुसार, कुत्तों का जमीन पर अधिकार कम से कम 250-300 साल पुराना है. अपने घर के आंगन में बैठे 80 वर्षीय लक्ष्मण पटेल कहते हैं, ‘मुगल जमाने में गांव वालों के पास कुत्तों को खिलाने के लिए संसाधन नहीं थे, इसलिए वे मदद के लिए नवाब तालिब मोहम्मद खान के पास पहुंचे. समाधान के रूप में नवाब ने उन्हें कुत्तों को रखने के लिए जमीन का एक टुकड़ा दिया.’

पिछले कुछ वर्षों में, जमीन की कीमत में बढ़ोतरी हुई है, खासकर गांव के पास एक बाईपास सड़क के निर्माण के बाद. कुत्तों उस जमीन तक जाते हैं, लेकिन वे ज्यादातर गांव में ही रहते हैं.

स्थानीय प्रशासन ने एक बार जमीन खरीदने की कोशिश की. लक्ष्मण पटेल कहते हैं, ‘बीस साल पहले, यहां एक कलेक्टर ने हमें जमीन के बारे में बुलाया था. वे इसे खरीदना चाहते थे, लेकिन हमने [उनके प्रस्ताव] साफ मना कर दिया क्योंकि यह भूमि धार्मिक कार्यों के लिए है, कुत्तों के लिए है. हम इसे सरकार को क्यों देंगे?’

जब लोग जमीन की कीमत लगाने की कोशिश करते हैं तो लक्ष्मण पटेल नाराज हो जाते हैं. लेकिन इस सूखे और धूल भरे गांव से बदलाव की हवा बह रही है.

अच्छी फसल के लिए बोरवेल

ग्रामीण व्यावहारिक हैं और भूमि बर्बाद नहीं होती है. हर साल किसान इसकी खेती के लिए बोली लगाते हैं. सबसे अधिक बोली लगाने वाले को फसल उगाने की अनुमति मिलती है, और पैसा कुशकल में कुत्तों के कल्याण के लिए स्थापित एक ट्रस्ट को जाता है.

मॉनसून की अनिश्चितताओं से बंधी, गांव में भरपूर फसल की गारंटी नहीं है. फसलों का खराब होना आम बात है क्योंकि किसान पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर हैं. गाँव के निवासी जितेंद्रभाई कहते हैं, ‘गांव में पानी की समस्या है और कई बार किसान लागत भी नहीं वसूल पाते हैं. लेकिन मुश्किल समय में, हर कोई मदद के लिए एक साथ आता है.’

रमेश भगत बोरवेल लगाने की योजना बना रहे हैं ताकि साल में कम से कम तीन बार जमीन पर खेती की जा सके. गांव के सरपंच रमेश भगत कहते हैं, ‘हम पुलिस के पैसे का उपयोग कुत्तों के लिए आश्रय बनाने और बाकी गायों के लिए चारा खरीदने के लिए कर सकते हैं. अभी जमीन का पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है. बोरवेल के लिए, पैसा समिति द्वारा उपलब्ध कराया जाएगा.’

कुत्ते गांव की योजनाओं से अनजान हैं. जैसे ही सूरज ढलना शुरू होता है, कुछ गांव के चौराहे पर एक ऊंचे चबूतरे पर पहुंच जाते हैं. कुत्ते यहां बड़े पिंजरों में भोजन करते हैं. कुत्तों के लिए भोजन तैयार करना ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग है. गांव का एक परिवार रोज पांच किलो बाजरे या गेहूं के आटे की रोटियां बनाकर कुत्तों को खिलाने जाता है.


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खाना और महिलाएं

खाने के काम की जिम्मेदारी महिलाओं की होती हैं. सुशीला बहन को मिट्टी के चूल्हे पर रोटियां (मोटी रोटियां) तैयार करने में दो घंटे का समय लगता है.

इसके लिए उन्हें पूरी दोपहर इसकी तैयारी में लगना पड़ता है.लेकिन वह शिकायत नहीं कर रही है. सबसे पहले वह चूल्हा जलाती है और फिर एक बड़े बर्तन में आटा तैयार करती है.

वो कहती हैं, ‘यह पवित्र कार्य है. मुझे इसे करने में कोई समस्या नहीं है.’

यह नए निवासियों के लिए एक नया अनुभव है, जिनमें से अधिकांश युवा दुल्हनें हैं. वे भी, इस दैनिक अनुष्ठान को स्वीकार करना और अनुकूलित करना सीखती हैं जो पीढ़ियों से चली आ रही है.

उषा कहती हैं, ‘जब मैं शादी करके यहां आई तो थोड़ी हैरान हुई, लेकिन धीरे-धीरे मुझे भी इन सब से प्यार हो गया. पहले मेरी सास रोटियां बनाती थीं. अब, जब हमारी बारी आती है तो मैं उन्हें पकाती और खिलाती हूं.’

गांव के कुत्तों के खाने के लिए घरों के बाहर रखे बर्तन, फोटो- नूतन, दिप्रिंट

जहां कुत्तों को खाना खिलाया जाता है उसके ठीक सामने एक किराना स्टोर है. उषा बताती हैं, ‘जब भी किसी को खुशखबरी मिलती है, तो वे यहां कुत्तों को खिलाकर जश्न मनाने आते हैं. कभी-कभी लोग दुकानों से बिस्किट खरीद कर खिलाते हैं.’

रात का खाना, शाम के करीब 5 बजे कुत्तों को परोसा जाता है. कुछ कुत्ते भोजन करने नहीं आते हैं क्योंकि उनका पेट भर चुका होता है. कई परिवार अपने घरों के बाहर कुत्तों के खाने के लिए मिट्टी के बर्तन रखते हैं.

त्योहारों के दौरान समिति द्वारा मंदिर के मैदान में कुत्तों का भोजन तैयार किया जाता है. खिचड़ी, हलवा और कुछ दूध की चीजें मेनू में कुछ विशेष आइटम हैं.

पक्षी घर, फोटो- नूतन, दिप्रिंट

कुशकल में जानवरों के प्रति प्रेम गहरा है. यहां तक ​​कि पक्षी भी ग्रामीणों की देखरेख में हैं, जिन्होंने प्रवेश द्वार पर पक्षीघर बना लिया है. उन्होंने इसे चमकीले पीले और गुलाबी रंग में रंगा है. कबूतरों और गौरैयों ने इसमें अपना घर बना लिया है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह काफी नहीं है. वे एक छोटे से ढांचे का निर्माण कर रहे हैं जहां पक्षी अनाज खा सकते हैं.

स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी

स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी चिंता का कारण है क्योंकि पालनपुर शहर में निकटतम पशु चिकित्सक 13 किमी दूर है. अन्य निवासी अभिषेक कहते हैं, ‘अगर कोई कुत्ता घायल हो जाता है, तो हम एक पट्टी लगाते हैं और प्राथमिक उपचार करते हैं. क्लिनिक की कोई आवश्यकता नहीं है.’ कुत्तों की न तो नसबंदी की जाती है और न ही उनका टीकाकरण किया जाता है, और पशु कल्याण कार्यकर्ता इसके उपाय करने पर जोर दे रहे हैं.

कुशकल गांव के पास पालनपुर में रहने वाले डॉ रमेश एन इलासरिया कहते हैं, ‘कुत्तों के लिए एंटी-रेबीज टीकाकरण जरूरी है और यह कुत्ते के काटने के मामले में मनुष्यों में रेबीज की संभावना को कम करने में मदद करता है. ऐसे में कुत्तों का टीकाकरण नहीं कराया जाता है. यह एक बड़ा स्वास्थ्य जोखिम है. कुत्तों की देखभाल करने वाला फाउंडेशन टीकाकरण प्रदान करने में सरकार की मदद ले सकता है. वे कुत्तों के टीकाकरण में स्थानीय गैर सरकारी संगठनों और प्रशिक्षित पेशेवरों की भी मदद ले सकते हैं.’

बच्चों, उनके माता-पिता और उनके दादा-दादी के लिए, कुत्तों का परिवार हैं. किंजल कहती हैं, ‘हम जानते हैं कि किस मोहल्ले में कितने कुत्ते हैं और किसने कितने बच्चे पैदा किए हैं. अक्सर, हम छोटे पिल्लों के साथ खेलते हैं और उनकी जरूरतों का विशेष ध्यान रखते हैं.

जैसे ही गाँव में शाम ढलती है, बच्चे अपने पसंदीदा कुत्तों और पिल्लों के साथ खेलना बंद कर देते हैं और रात के खाने के लिए घर लौट आते हैं. कुछ पुराने डॉग गैंग में हलचल शुरू हो जाती है. वे गलियों में गश्त करेंगे और घरों की रखवाली करेंगे.

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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