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भारत के ग्रामीण परिदृश्य को कैसे बदल रही हैं ‘नमो ड्रोन दीदी’

कृषि ड्रोन के उपयोग में स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की 15,000 महिलाओं को ट्रेनिंग देने के लिए पिछले साल 15 अगस्त को पीएम मोदी ने ‘नमो ड्रोन दीदी स्कीम’ की घोषणा की थी.

मानेसर में एक खुले मैदान में प्रैक्टिस करती एक ‘नमो ड्रोन दीदी’ | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
मानेसर में एक खुले मैदान में प्रैक्टिस करती एक ‘नमो ड्रोन दीदी’ | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

लुधियाना/करनाल: हरियाणा के कतलाहेड़ी गांव में फरवरी की एक सुबह है. सर पर लाल रंग के दुपट्टे से पल्लू लिए हाउस-वाइफ नहीं — बल्कि ड्रोन पायलट सीता देवी काम पर जाने के लिए आंगन में खड़े इलेक्ट्रिक ऑटो को स्टार्ट कर रहीं हैं, जिसकी आवाज़ सुनते ही मौहल्ले वाले उन्हें देखने के लिए छतों पर आ गए. 

अपने ऑटो में बैठते वक्त उन्होंने कहा, ‘‘जब से दिल्ली से लौटी हूं, गांव वालों को लगता है कि मैंने क्या सीख लिया.’’ यह कहते हुए मुस्कुरा कर‘नमो ड्रोन दीदी’ सीता अपने खेतों की तरफ निकल गईं क्योंकि उनका आज का टारगेट पास के गांव में स्थित दो एकड़ खेत में नैनो-यूरिया के छिड़काव करने का है, यह नाम उन महिला पायलट्स को दिया गया है, जिन्हें नरेंद्र मोदी सरकार की ‘नमो ड्रोन दीदी योजना’ के तहत ट्रेनिंग दी गई है.

उन्होंने कहा, “गांव की लड़कियों को मेरा ड्रोन देखकर बहुत गर्व होता है.”

ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करने के उद्देश्य से, इस योजना की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के दौरान लाल किले की प्राचीर से की थी और इसे पिछले साल 30 नवंबर को लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की 15,000 महिलाओं को ट्रेनिंग देना और सक्षम बनाना है ताकि वे ड्रोन उड़ाने, डेटा विश्लेषण, ड्रोन के रखरखाव के साथ-साथ के ड्रोन का इस्‍तेमाल करके कृषि के अलग-अलग कार्यों के लिए भी प्रशिक्षित किया जाएगा, इनमें फसलों की निगरानी, कीटनाशकों और उर्वरकों का छिड़काव और बीज बुआई शामिल है.

डीजीसीए के मुताबिक, ड्रोन चलाने में पारंगत होने के लिए महिलाओं को यहां कुल पांच दिन की कम्पल्सरी ट्रेनिंग के दौरान थियरी, कम्प्यूटर में ड्रोन चलाना, वाइवा और फिर प्रेक्टिक्ल एग्ज़ाम (ड्रोन फ्लाइंग टेस्ट) पास करना ज़रूरी है, जिसके बाद ही उन्हें ड्रोन चलाने का लाइसेंस मिल पाएगा.

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‘आई बड़ी मास्टरनी बनने’

सीता जिस स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) से जुड़ी हैं उसके व्हाट्सएप्प ग्रुप पर एक दिन मैसेज पॉप अप हुआ था, जिसमें लिखा था, इंडियन फारमर्स फर्टिलाइज़र को-ऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) महिलाओं को फ्री में ड्रोन देने वाला है, जिसके लिए एक इंटरव्यू होगा और कृषि से संबंधित कार्यों में रुचि रखने वालीं महिलाएं अप्लाई कर सकती हैं — यह वो समय था जब सीता के सपनों को पंख लगने वाले थे.

ऐसी संस्कृति में जहां करियर को जेंडर द्वारा परिभाषित किया जाता है, ड्रोन पायलट बनने का ऑप्शन भी केवल ‘लड़के चुनते थे’, लेकिन अब चीज़ें बदल रही हैं और महिलाएं अब एक नया युग लिख रही हैं. 

मानेसर के पटौदी रोड पर स्थित ड्रोन डेस्टिनेशन ट्रेनिंग सेंटर में यह एक सर्द सुबह थी. 25-जनवरी को ट्रेनिंग के लिए आए नमो दीदी के बैच (जिसमें 20 महिलाएं थीं) की थियोरी क्लास का वक्त है और हाथ बांधे हुए सभी अपनी क्लास की तरफ तेज़ गति से चल रहे हैं.

अलग-अलग राज्यों, जिलों, ब्लॉक, गावों-कस्बों में SHG में काम करने वालीं कितनी ही महिलाएं ऐसी हैं जो शायद ही कभी अपने जिले से भी बाहर निकली हैं. कुछ ग्रेजुएट्स हैं, तो कुछ केवल 10वीं पास है, जो कि कोर्स में एडमिशन का एक कम्पलसरी क्रायटेरिया भी है, लेकिन सभी का दृढ़ निश्चय ड्रोन पायलट बन कर ही लौटना था. 

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से आईं 45-वर्षीय लक्ष्मी घाघरे को चंबल फर्टिलाइज़र्स केमिकल लिमिटेड — ने फोन पर बताया कि उन्हें दो दिन के अंदर दिल्ली जाना है क्योंकि उनका नाम ड्रोन दीदी स्कीम के लिए चुना गया है, तो जल्दबाज़ी में उनकी सब्ज़ी जल गई क्योंकि वे दौड़ कर अपने पति को इस बारे में बताने चली गई थीं.  

अपने गांव से आते हुए सुनने वालों के तानों के बारे में उन्होंने कहा, “चली है बड़ी मास्टरनी बनने, क्या ही करके आएगी”, घाघरे जो एसएचजी में मास्क सिलने का काम किया करती थीं, ने कम्प्यूटर में ड्रोन उड़ाने की प्रैक्टिस करते हुए कहा, ‘‘मुझे मालूम था कि मैं क्या करने आई हूं और बहुत कुछ बन कर ही लौटूंगी.’’

मानेसर में ड्रोन डेस्टिनेशन पर महत्वाकांक्षी ‘नमो ड्रोन दीदियों’ का एक समूह | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

राजस्थान के झुंझनु जिले से आईं लक्ष्मी “महिलाएं केवल रसोई के लिए बनी हैं के धब्बे” को चुनौती देना चाहती थीं. 

लक्ष्मी ने कहा, “मैं महिलाएं कुछ नहीं कर सकती” के धब्बे को मिटाना चाहती थीं, इसलिए, ये मौका मेरे लिए “सोने पर सुहागा” जैसा था. 

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले से यहां आईं एसएचजी अध्यक्ष रोशनी सिंह अपने गांव में एक मिसाल हैं क्योंकि वे ऐसे गांव से आती हैं, जहां बमुश्किल स्कूल हुआ करते थे, इसलिए गांव की लड़कियां पढ़ाई नहीं कर पाती थीं. 

रोशनी ने बताया, “मेरे गांव में लड़कियों को बचपन में पढ़ाया भी नहीं जाता था क्योंकि मेरा गांव पिछड़ा है, जहां स्कूल-कॉलेज भी नहीं थे.” 

इस स्कीम के लिए चुनी गईं, लगभग सभी महिलाओं की कहानी एक जैसी है, जिन्हें यहां आने की ऑप्युर्चनिटी किसी राष्ट्रीय पुरस्कार से कम नहीं लगी थी.

लेकिन लॉन्च के तीन महीने बाद ही इस योजना पर संदेह होने लगा है. कृषि नीति विश्लेषक देविंदर शर्मा का मानना है कि पिछले कुछ साल में कृषि कुछ कंपनियों का प्रभुत्व बन गई है और इस योजना का उद्देश्य उनके हितों को आगे बढ़ाना है. उन्होंने कहा, यह विचार महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए नहीं बल्कि जीडीपी को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “ड्रोन का इस्तेमाल ड्रोन दीदियों की वित्तीय हालातों में सुधार करने में मदद करने के लिए नहीं है, क्योंकि ऐसा करने के कई अन्य तरीके हैं. यह केवल ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा देने की योजना है. जितने अधिक ड्रोन बिकेंगे उतनी अधिक जीडीपी बढ़ेगी, हमें इसे नहीं भूलना चाहिए.”

सीता जैसी लगभग 300 महिलाओं को इफको ने 15 लाख रुपये तक के सामान में एक मीडियम कैटेगरी का ड्रोन, ई-ऑटो, एक जनरेटर और दो एक्स्ट्रा बैटरी मुफ्त दिए हैं.

करनाल के कतलाहेड़ी गांव में, सीता देवी दिन के काम के लिए अपना ड्रोन तैयार करते हुए | फोटो: फाल्गुनी शर्मा/दिप्रिंट

इस बीच, अपने ड्रोन के साथ तैयार सीता ने जैसे ही 16 एमएल नैनो यूरिया को पानी के साथ मिक्स कर उसे उड़ाना शुरू किया, अचानक, जो किसान कुछ देर पहले उनकी तरफ इस निगाह से देख रहे थे कि महिला क्या कर लेगी, अब भौंचक्के थे. 

गौरतलब है कि इफको शुरुआत से नमो ड्रोन दीदी योजना का हिस्सा रही है. इफको दो प्रमुख उर्वरकों – नैनो यूरिया और नैनो डीएपी – का उत्पादन करती है, जिन्हें मोदी सरकार बढ़ावा दे रही है.

इफको से ट्रेनिंग लेने वाली महिलाओं को प्रोडक्ट और छिड़काव किए गए एकड़ का सारा डेटा “किसान सहकारी ऐप” में भरना होगा. सीता ने बताया कि ड्रोन से प्रति एकड़ पर आठ मिनट के इस काम के लिए ड्रोन पायलट को किसान से 100 और सरकार से 300 रुपये मिलेंगे.

हालांकि, कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग के तहत एक स्वायत्त अनुसंधान संगठन, हैदराबाद के आईसीएआर-भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के एक वैज्ञानिक ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि योजना पर कोई भी निर्णय पारित करना जल्दबाजी होगी.

उन्होंने कहा, “योजना को अभी अंतिम रूप दिया गया है और इसके तहत अभी इस पर काम होना बाकी है.”

करनाल के ही बालू गांव की ऋतु, जो अपने ग्रुप की एक अकेली पढ़ी-लिखीं महिला हैं, जब से ट्रेनिंग करके लौटी हैं, गांव में उनका “रुतबा” बढ़ गया है. 

गांव के बाहर मचान पर बैठे बुजुर्गों से पूछे जाने पर की ऋतु का घर कहां हैं, उत्साहित लोगों ने कहा, कौन-वो दिल्ली वाली ड्रोन पायलट, आगे से दाएं रहती हैं.  

थोड़ा शर्माते हुए उन्होंने कहा, “जब मैं दिल्ली से आई और दोस्तों को बताया तो उन्हें ज्यादा समझ नहीं आया, बस इतना कहा तू थोड़ी पढ़ी-लिखी है, कुछ अच्छा ही करके आई होगी.”

अपनी एसएचजी सखी के साथ ड्रोन पायलट ऋतु (बाएं) | फोटो: फाल्गुनी शर्मा/दिप्रिंट

इसके लिए महिलाओं ने निर्दिष्ट केंद्रों पर सर्टिफिकेट ट्रेनिंग कोर्स किए हैं. ड्रोन से संबंधित सभी गतिविधियों के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) की साइट  — डिजिटल स्काई के अनुसार — भारत में ऐसे 82 केंद्र हैं. एक बार कोर्स पूरा करने के बाद, इन महिलाओं को डीजीसीए से रिमोट पायलट सर्टिफिकेट (आरपीसी) — ड्रोन उड़ाने का लाइसेंस — मिलता है और वे ‘ड्रोन दीदी’ के रूप में कार्यभार संभाल सकती हैं. 

पंजाब में जिन नमो दीदी से हमने मुलाकात की वे अन्य महिलाओं को स्कीम से जोड़ने के लिए मौहल्ले-पड़ोस की महिलाओं से बातचीत कर रही थीं. 

मोगा जिले के रतिया गांव में अपने साथ खाट पर चार महिलाओं को अपनी फ्लाइंग की वीडियोज़ दिखाते हुए जसविंदर कौल धालीवाल ने कहा,‘‘अस्सी ठान लेया सी की ऐत्थो जित्त के ही जाना, आपा ड्रोन लेके ही घर जाना,’’  (हमने ठान लिया था कि जीत के ही जाएंगे और ड्रोन लेकर ही घर जाएंगे.) 

अपने एसएचजी की एक्टिव वुमेन धालीवाल ने बताया कि उनके ग्रुप की महिलाएं उन्हें सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए भी उत्साहित करते रहते हैं.  

ट्रेनिंग के दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया कि रात में पढ़ाई के अलावा कभी-कभी पंजाबी गानों पर “टप्पे और बोलियों ” का कॉम्पीटिशन हो जाया करता था.

उनसे दो दिन पहले पास हुए बैच में पांच लड़कियां फेल हो गई थीं, इसलिए जिस दिन उनका बैच पास हुआ तो उस रात डॉर्मेटरी में जलेबियां बांटी गई, पूरी रात सेलिब्रेशन चला.  

इन ड्रोन पायलट्स को बताया गया था कि ड्रोन के क्रेश होने पर जेल और जुर्माना दोनों हैं. 

लुधियाना के लापरां गांव की रुपिंदर कौर जिस समय ट्रेनिंग के लिए गईं, उनकी चार महीने की बेटी थी, जिसे उन्होंने बेटी की नानी के पास छोड़ा था. 

सरसों के खेतों के बीचों-बीच बसे रूपिंदर के घर में तीन गाय थीं, जिन्हें वे दिप्रिंट से बातचीत के दौरान खिला रहीं थीं. उन्होंने कहा, “मैं किसान पृष्ठभूमि से आती हूं और इसलिए पहले से ही खेतों में काम करती रही हूं, लेकिन इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने हम लड़कियों को आगे बढ़ने और कुछ हासिल करने का मौका दिया है. हमारी ज़िंदगी इन गांवों तक ही सिमट सकती थी, लेकिन अब हम गर्व से अपने बच्चों को बता सकते हैं कि उनकी मां एक (ड्रोन) पायलट है.

पंजाब के लुधियाना के लापरां गांव में रूपिंदर कौर और उनकी बेटी | फोटो: फाल्गुनी शर्मा/दिप्रिंट

ग्रांट थॉर्नटन भारत एचडीएफसी परिवर्तन के मैनेजर मनप्रीत सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “लाइसेंस होने के बावजूद, पंजाब में कई पायलटों को अभी तक उनके ड्रोन नहीं मिले हैं.” हालांकि, उन्होंने आगे कहा, “ड्रोन उन्हें सौंपे जा रहे हैं.”  

आज के समय पूरे भारत में 18, 171 ड्रोन इश्यू हैं, जिनमें से 4,776 ड्रोन स्मॉल, 3,191 ड्रोन मीडियम कैटेगरी के हैं. भारत में इस समय 9,272 सर्टिफाइड ड्रोन पायलट्स हैं. ये डेटा सिविल एविएशन की वेबसाइट डिजिटल स्काई पर उपलब्ध है.

दिप्रिंट ने कॉल और ईमेल के जरिए टिप्पणी के लिए कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन प्रकाशन के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

कैसे काम करती है ‘ड्रोन दीदी’ योजना

पिछले साल 15 अगस्त को अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि जैसे क्षेत्रों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की क्षमता का लाभ उठाने के बारे में बात की थी. 

‘नमो ड्रोन दीदी स्कीम’ के तहत, स्थानीय कलेक्टर जैसे जिला अधिकारी महिलाओं को चुनने में मदद करते हैं जिन्हें ट्रेनिंग के लिए भेजा जा सकता है. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, जिसके अंतर्गत ये महिला स्वयं समूह आते हैं वो भी उम्मीदवारों की सिफारिश करता है.

मानेसर केंद्र के महाप्रबंधक (प्रशिक्षण) अनुराग शुक्ला ने बताया कि ट्रेनिंग की लागत लगभग 65,000 रुपये है और वर्तमान में यह लगभग पांच दिनों तक चलती है. इसके बाद चार दिवसीय ग्राउंड ट्रेनिंग होती है, जिसके लिए 16,000 रुपये की अतिरिक्त लागत आती है.

मानेसर में ड्रोन डेस्टिनेशन पर महत्वाकांक्षी ‘नमो ड्रोन दीदियों’ का एक समूह | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

अधिकारियों के अनुसार, ट्रेनिंग की फीस फर्टिलाइज़र्स कंपनियां देती हैं जबकि ट्रेनी बाद की ट्रेनिंग का भुगतान करते हैं. इनमें न केवल चंबल फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल लिमिटेड, इंडियन फॉस्फोरेज़ लिमिटेड और हिंदुस्तान उर्वरक एंड रसायन लिमिटेड (एचयूआरएल) जैसी उर्वरक कंपनियां शामिल हैं, बल्कि आयोटेक वर्ल्ड जैसी कृषि-तकनीक कंपनियां, ग्रांट थॉर्नटन भारत, एचडीएफसी बैंक परिवर्तन के बीच एक सहयोग (प्रोजेक्ट स्त्री) भी शामिल है.

ट्रेनिंग लेने वाली हर एक महिला को एक सर्टिफिकेट और अंततः एक ड्रोन दिया जाएगा. अधिकारियों ने बताया कि आधिकारिक लॉन्च के बाद से केंद्र सरकार इन ड्रोनों की 80 प्रतिशत लागत वहन कर रही है, जबकि बाकी का भुगतान लाभार्थी को खुद करना होगा. पीएम ने यह भी घोषणा की थी कि 15,000 महिला स्वयं सहायता समूहों को ड्रोन के लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से बिना किसी प्रॉपर्टी मॉर्गेज़ के लोन भी मिल सकेगा. इस महीने के अंतरिम बजट में केंद्र ने नमो ड्रोन दीदी स्कीम के लिए अंतरिम बजट 2024 में 500 करोड़ रुपये का बजट तय किया है. 

मार्च 2021 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत कृषि क्षेत्रों में ड्रोन के उपयोग की अनुमति देते हुए ड्रोन नियम, 2021 पेश किया. 

ट्रेनिंग लेने वालीं सभी महिलाओं को मीडियम कैटेगरी के तहत लाइसेंस दिया जाता है.

मानेसर में मैदान में प्रैक्टिस करतीं ‘नमो ड्रोन दीदियां’ | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

‘मम्मी पायलट बन कर आना’

ड्रोन पायलट्स कहलाए जाने वालीं इन नमो दीदीयों को, अब खेती-किसानी के सब्जेक्ट में विशेषज्ञता प्रदान करने के लिए कोर्स पढ़ाया जाएगा.  

हरियाणा के करनाल जिले के फूसगढ़ इलाके में स्थापित देश के पहले सरकारी रिमोट पायलट ट्रेनिंग ऑर्गेनाइजेशन (आरपीटीओ) ड्रोन इमेजिंग एंड इंफार्मेशन सर्विस ऑफ हरियाणा लिमिटेड (दृष्या) में पहले से आठ दिन का कोर्स करवाया जाता है, जिसमें डीजीसीए के कोर्स के अलावा कृषि संबंधित कोर्स भी पढ़ाया जाता है. 

हरियाणा के हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के डिप्टी डायरेक्टर सत्येंद्र कुमार यादव जो कि आरपीटीओ में चीफ ड्रोन इंस्ट्रक्टर भी हैं, कृषि मंत्रालय द्वारा कोर्स तैयार करवाने वाली कमेटी के मेंबर भी थे. 

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “दृष्या पहले से इस कोर्स को करवा रहा है, मंत्रालय की ओर से गाइडलाइंस के बाद डिजिटल स्काई पर इसकी पूरी जानकारी उपलब्ध होगी.” 

उन्होंने समझाया, पांच दिन के कोर्स में ड्रोन पायलट कोई भी बन सकता है, लेकिन किस खेत में क्या दवाई छिड़कनी है इसे सिखाने के लिए स्पेशलाइज़्ड आरपीटीओ में एडमिशन लेना होगा.  

दरअसल, कृषि मंत्रालय ने एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल ऑफ इंडिया से कोर्स तैयार करने के लिए कहा था, जिनमें पायलट्स को कृषि में विशेषज्ञता दिलाई जा सके, इसमें डीजीसीए के पांच दिन और इस कोर्स के तीन दिन और जोड़े जाएंगे. 

एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल ऑफ इंडिया के सीईओ सत्येंद्र आर्या ने फोन पर कहा, “कोर्स को तैयार कर लिया गया है, मंत्रालय की तरफ से अंतिम मुहर लगना बाकी है.”

कृषि नीति विश्लेषक देविंदर शर्मा कहते हैं, जिस तरह से तीसरी हरित क्रांति ने दुनिया भर में कृषि परिदृश्य को बदल दिया, उसी तरह से प्रौद्योगिकी का उपयोग किया गया, लेकिन उन्हें नौकरियों पर इसके असर की भी चिंता है.

उन्होंने कहा, “पहले से जो वर्कफोर्स खेती में काम कर रही है हम उस फोर्स को बाहर निकाल रहे हैं,हमें उनकी नौकरी की भी चिंता करनी चाहिए.” 

उन्होंने कहा, “आज ग्रामीण मजदूरी पिछले दस साल से रुकी हुई है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मदद के लिए ड्रोन दीदी बनाना समाधान नहीं हो सकता.” 

लेकिन दृढ़ विश्वास की यह कमी भी उन लोगों के उत्साह को कम नहीं कर पाती जिनके लिए यह पहल लाभकारी है. 

मानेसर ट्रेनिंग सेंटर केंद्र में 36-वर्षीया सुमन रानी मुस्कुराते हुए अपने 8 वर्षीय बेटे की तस्वीर दिखाती हैं, जिसे वे मानेसर आने पर हरियाणा के पानीपत के रिशपुर गांव में छोड़ गई थी.

“मेरे बेटे ने कहा है मम्मी पायलट बन कर आना.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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