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इटली की ‘बिसलेरी’, जिसने भारत में पानी को एक कमोडिटी बना दिया

चौहान बंधुओं ने 1996 में 4 लाख रुपये में ‘बिसलेरी’ का अधिग्रहण किया था. तब से लेकर आज तक इस ब्रांड ने एक लंबा सफर तय किया है. अब यह भारतीय उपभोक्ता संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

मनीषा यादव, दिप्रिंट टीम

पानी को अलग-अलग भाषाओं में हम अलग-अलग नामों से जानते हैं- पानी, जल, नीर, वेल्लम. लेकिन पानी का एक और पर्याय है, जिसे भारत में हर भाषा बोलने वाला शख्स जानता है और वो है ‘बिसलेरी’

बिसलेरी दुनिया का एकमात्र ऐसा ब्रांड नहीं है जिसने खुद को एक उत्पाद का पर्याय बना दिया हो. लेकिन इसकी ब्रांड की असाधारण बात यह रही कि इसने पानी को एक कमोडिटी बना दिया, खासकर ऐसे समय में जब ऐसा कर पाना कल्पना से परे की बात माना जाता था.

बिसलेरी इंटरनेशनल के अध्यक्ष रमेश चौहान (82) ने इस सप्ताह की शुरुआत में घोषणा की कि वह टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड (टीसीपीएल) के साथ अपने इस ब्रांड को 6,000-7,000 करोड़ रुपये में बेचने के लिए बातचीत कर रहे हैं. उन्होंने 1969 में महज चार लाख रुपये में इस ब्रांड को खरीदा था.

बिसलेरी शायद चौहान के दिल के सबसे करीब ब्रांड था. तभी तो उन्होंने जब 1993 में अपने सॉफ्ट-ड्रिंक पोर्टफोलियो – थम्स अप, गोल्ड स्पॉट, सिट्रा, माज़ा और लिम्का – को कोका-कोला को बेचा था, तो इस ब्रांड को अपने पास ही बनाए रखा.

बिसलेरी 1991 में 20 लीटर की एक केन के साथ-साथ बाजार में अपना एक प्रीमियम वॉटर ब्रांड, ‘वेदिका – हिमालयन स्प्रिंग वाटर’ भी लेकर आया. इसके लिए कंपनी दावा करती है कि यह ‘उत्तराखंड में हिमालय की तलहटी में मौजूद ‘जल स्रोत’ से लिया जाता है.

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यह ब्रांड अपने ग्राहकों को तीन अन्य एयरेटेड ड्रिंक- स्पाइसी, लिमोनाटा और फोंजो- के अलावा एक बिसलेरी सोडा भी पेश करता है. अपने विरोधी ब्रांड किनले और एक्वाफिना की तरह बिसलेरी भी 2006 तक अपनी पैकेजिंग पर नीले रंग के लेबल का इस्तेमाल करता रहा था. लेकिन उसके बाद इसने भीड़ से अलग दिखने की कवायद में ‘समुद्री हरे रंग’ को अपनाया.

इतालवी मूल और भारतीय बाजार में एंट्री

अगर आप किसी व्यक्ति से बिसलेरी को लेकर बात करेंगे तो उसके लिए आज भी यह पूरी तरह से एक घरेलू ब्रांड ही होगा. आम धारणा यही है. लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है.

इस ब्रांड की जड़े इटली से जुड़ी हुईं है. माना जाता है कि इसकी शुरुआत नोकेरा उम्ब्रा शहर के एंजेलिका नामक एक झरने से हुई थी. ब्रांड की अवधारणा सबसे पहले एंटरप्रेन्योर फेलिस बिसलेरी ने की थी. 1921 में उनकी मौत के बाद उनके पारिवारिक डॉक्टर डॉ सेसरे रॉसी को कंपनी की बागडोर संभालने के लिए दी गई.

भारत में पहला ‘बिसलेरी वाटर प्लांट’ 1965 में ही मुंबई के बाहरी इलाके ठाणे में खुसरू सुनतूक ने स्थापित किया था. चार साल बाद 1969 में पारले भाइयों- रमेश चौहान और प्रकाश चौहान ने ब्रांड का अधिग्रहण किया और इसे भारत में कांच की बोतलों में लॉन्च किया. इसके साथ ही बबली और स्टिल दो वेरिएंट को भी मार्केट में उतारा गया था.

अपने पुराने इंटरव्यू में चौहान ने स्वीकारा था कि पैकेज्ड पेयजल बेचना पहले उनके बिजनेस प्लान में शामिल नहीं था. वह सोडा बेचना चाह रहे थे, जिसकी पांच सितारा होटलों में काफी ज्यादा मांग थी. रमेश चौहान ने 2008 में बिजनेस टुडे को बताया था, ‘हमारे पास गोल्ड स्पॉट जैसे ब्रांड थे लेकिन सोडा नहीं था. 60 के दशक के अंत और 70 के दशक की शुरुआत में फाइव स्टार होटलों में सोडा की अच्छी-खास मांग बनी हुई थी. बिसलेरी सोडा लोकप्रिय था, यही वजह है कि मैंने कंपनी खरीद ली. लेकिन हमने तब पानी के कारोबार पर ध्यान नहीं दिया था.’

1993 में बिसलेरी को छोड़कर, कोका-कोला को अपने सॉफ्ट-ड्रिंक्स पोर्टफोलियो को बेचने के बाद ही पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर की तरफ चौहान ने ध्यान देना शुरू किया था.

मुंबई स्थित मार्केटिंग एजेंसी सो चीयर्स में डिजिटल मार्केटिंग के निदेशक रजनी दासवानी ने कहा, ‘जब ब्रांड शुरू हुआ, तो पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर सिर्फ भारत में विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता था. इसलिए कांच की बोतलें समझ में आती थीं और ये पर्यावरण के अनुकूल भी थीं. लेकिन भारतीयों ने धीरे-धीरे वैश्विक रुझानों के बारे में जाना और आसानी से ले जाने वाले पैकेज्ड वाटर की ओर उनका झुकाव बढ़ने लगा. तब प्लास्टिक पैकेजिंग की तरफ देखा गया.’


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‘पानी की हर बोतल बिसलेरी नहीं होती’

लेकिन बिसलेरी के मालिकों के लिए इसका डिस्ट्रीब्यूशन एक समस्या थी क्योंकि वितरकों को कम कीमत वाले भारी उत्पाद में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

विज्ञापन फर्म ज़ू मीडिया के उपाध्यक्ष प्रतीक गुप्ता ने कहा कि इसके डिस्ट्रीब्यूशन पर काम करने से बिसलेरी को अपने दायरे से बाहर निकलने में मदद मिली. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘बिस्लेरी को आप देश के लगभग किसी भी कोने में पा सकते हैं. जबकि उनके विरोधी ब्रांड जैसे Kinley और Aquafina के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है. हां, आपको इस ब्रांड की काफी सारी नकल जरूर मिल जाएंगी. लेकिन ऐसा तभी होता है जब ब्रांड की लोगों के बीच काफी मांग हो. और बिसलेरी के बारे में यह सच है.’

बिसलेरी की वेबसाइट के अनुसार, मौजूदा समय में देश भर में इसके 122 संयंत्र हैं. इसके अलावा 4,500 डिस्ट्रीब्यूटर और 5,000 डिस्ट्रीब्यूशन ट्रक हैं.

फिलहाल पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर कैटेगरी में बिसलेरी की बाजार हिस्सेदारी 32-35 फीसदी है. मार्किट में आपको बिसलेरी के 250 मिली से लेकर 20 लीटर तक के आठ अलग-अलग साइज मिल जाएंगे.

इसकी पैकेजिंग में अंग्रेजी समेत 11 भारतीय भाषाओं के लेबल लगे होते है. दरअसल ऐसा करने के पीछे भी एक बड़ी वजह रही थी. नकली प्रोडक्ट का मुकाबला करने के लिए 2017 में ‘वन नेशन वन वाटर’ नामक अभियान के तहत बिसलेरी बहुभाषी लेबल लेकर आई.

देखा जाए तो इस ब्रांड ने पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर और बिसलेरी के बीच की रेखा को इतना धुंधला कर दिया था कि ब्रांड को 2018 में टैगलाइन के साथ एक अभियान शुरू करना पड़ा- ‘हर पानी की बोतल बिसलेरी नहीं होती’ . ऐसा मार्किट में मौजूद बाकी ब्रांड से अपने आपको अलग दिखाने की एक कोशिश थी, जो काफी सफल रही. ऊंटों पर फिल्माया गया यह विज्ञापन काफी हिट हुआ था.

दासवानी के अनुसार, बदलाव के लिए ब्रांड का खुलापन और रुझानों के अनुरूप तेजी ने इसके पक्ष में काम किया.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘बिसलेरी ने अपने उन प्रतिस्पर्धियों से निपटने के लिए अपनी पैकेजिंग में साहसिक बदलाव किए, जो समान पैकेजिंग कर उनके उपभोक्ताओं को लुभा रहे थे और उनकी बाजार हिस्सेदारी पर कब्जा जमा रहे थे. ब्रांड ने अपने लुक और फील को पूरी तरह से बदल दिया. नीले से हरे रंग और कोनिकल बोतल के आकार से गोल बोतल की तरफ आना कुछ ऐसे कदम थे,जिन्होंने उन्हे निराश नहीं किया. ‘हर पानी की बोतल बिसलेरी नहीं होती’ जैसे दिलचस्प अभियान ने उन्हें मनचाहे नतीजे दिए. इसके पीछे का कारण, ब्रांड का बार-बार रणनीतिक रूप से अपनी मार्केटिंग और पैकेजिंग रणनीति पर काम करना रहा.’

‘बिसलेरी बाकी सबसे अलग है’

बिसलेरी शायद इसलिए भी अलग है क्योंकि यह एकमात्र पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर ब्रांड है जो पीने के पानी को अपने प्रमुख उत्पाद के रूप में दावा करता है, न कि सह-उत्पाद के रूप में.

गुप्ता ने कहा, ‘अन्य ब्रांड को कोक और एक्वाफिना जैसी मूल कंपनियां बेचती हैं. उन्हें सॉफ्ट ड्रिंक बनाने के लिए काफी सारे साफ पानी की जरूरत होती है. तो पानी एक प्रकार से उनके लिए सेकेंड हैंड ऑफरिंग बन जाता है. बिसलेरी के लिए खेल अलग है. वे पूरी तरह से पानी बेचने के व्यवसाय में हैं. इसके अलावा और कुछ नहीं.’

और इसका श्रेय चौहान को जाता है, जो 50 साल पहले पारले के साथ बिसलेरी पर हाथ रखने के बाद से अपने साहसिक प्रयोगात्मक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ते रहे हैं.

बिसलेरी को बेचने की अपनी योजनाओं पर चर्चा के समय भी चौहान अपने विचारों को लेकर बिल्कुल साफ थे. उन्होंने खुलासा किया कि वह टाटा समूह को ब्रांड सौंप रहे हैं क्योंकि यह ग्रुप उनके मूल्यों का समर्थन करता है और इसलिए भी कि उनकी बेटी को इस बिजनेस को चलाने में कोई दिलचस्पी नहीं है. गुप्ता ने बताया, ‘उनकी स्पष्टवादिता काफी प्रभावशाली है. उन्होंने व्यवसाय को बेचने के अपने उद्देश्यों का खुलासा किया. ऐसा आजकल मुश्किल ही होता है.’

चौहान की ईमानदारी की वजह से ही यह ब्रांड आज भी इतनी मजबूती के साथ खड़ा है और भारतीय उपभोक्ता संस्कृति का एक हिस्सा है, जिसे सालों पहले उन्होंने जमीनी स्तर से शुरू किया था.

दिल्ली की एक ट्रैवल एंटरप्रेन्योर रचना पाठक ने कहा, ‘मैं जानती हूं कि यह एक तरह की बेवकूफी है, लेकिन मेरा मानना है कि बिसलेरी के पानी का स्वाद सबसे अच्छा होता है’ उन्होंने आगे कहा, ‘यह ब्रांड में मेरा विश्वास ही है कि जब भी मुझे पानी खरीदना होता है, तो मैं सुनिश्चित करती हूं कि सिर्फ बिसलेरी ही खरीदूं और कोई अन्य ब्रांड नहीं.’

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य )

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