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UP में भारत के इस सबसे गरीब जिले में बच्चों के भविष्य के लिए आशा की किरण कैसे बन रही है smart classes

श्रावस्ती के एक स्कूल के प्रधानाध्यापक की पहल से प्रभावित होकर, जिला प्रशासन ने स्मार्ट स्कूल तैयार करने के लिए प्रोजेक्ट लॉन्च किया है.

पांडे पुरवा गांव के उच्च प्राथमिक मॉडल स्कूल में छात्रों को ऑडियो- दृश्य माध्यम से पढ़ाया जा रहा है | फोटो: मनीषा मंडल | दिप्रिंट

श्रावस्ती: कक्षा में छात्र-छात्राएं सट-सटकर बैठे हैं. इनमें ज्यादातर यूनिफॉर्म में हैं. उनकी नजरें दीवार पर टंगे प्रोजेक्टर की स्क्रीन पर टिकी हुई हैं. उस पर जानवरों के चित्र दिखाए जा रहे हैं. वॉयसओवर पर इन जानवरों और इनके आवास के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है.

इस तरह की डिजिटल स्मार्ट क्लास किसी मेट्रो शहर या टायर वन शहर के स्कूल में दिख सकती है. लेकिन, यह नजारा उत्तर प्रदेश के पांडे पूर्वा गांव के एक सरकारी उच्च प्राथमिक स्कूल का है जो राज्य के श्रावस्ती जिले के हरिहरपुर रानी ब्लॉक में है.

एक स्मार्ट क्लास चल रही है | फोटो: मनीषा मंडल | दिप्रिंट

इस स्कूल में 350 छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं. ये सभी गरीब परिवार से आते हैं. स्कूल के डेढ़ से ढाई किलोमीटर के दायरे में पड़ने वाले 10 गांव के बच्चे यहां पढ़ते हैं. इस स्कूल की खास बात है कि यहां पर प्रोजेक्टर और स्मार्ट बोर्ड जैसे ऑडियो-वीडियो उपकरणों की मदद से पढ़ाई होती है.

भारत के सबसे गरीब जिले में यह सब देखकर आश्चर्य हो सकता है. पिछले साल प्रकाशित, राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमडीआई) के आधार पर नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार श्रावस्ती, भारत का सबसे गरीब जिला है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-4 के 2015-16 के आंकड़ों के आधार पर जारी रिपोर्ट के अनुसार, जिले की करीब 74.38 फीसदी आबादी को ‘बहुआयामी गरीब’ माना गया है.

एनएफएचएस की ओर से जारी इस आंकड़े के बाद से, श्रावस्ती में कुछ मानकों, मसलन मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, साक्षरता और बिजली कवरेज के क्षेत्र में सुधार हुआ है. लेकिन, विशेषज्ञों का मानना है कि अभी और काम किए जाने की ज़रूरत है.

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जिले के कुछ युवा कर्मठ अधिकारी और शिक्षक, शिक्षा के क्षेत्र में विकास करने की कोशिश कर रहे हैं और प्राथमिक शिक्षा में इनोवेटिव लर्निंग मॉडल को शामिल करके सकारात्मक बदलाव के वाहक बन रहे है.

छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन इस तरह की पहल से जिले के गरीब परिवारों, खासकर उनके बच्चों को अपने भविष्य के बारे में आस जगी है. अब वे स्कूल जाना बंद करने के बारे में नहीं सोचते हैं और देश में जहां कहीं भी उन्हें काम मिले वहां नहीं जाते हैं.


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स्कूली शिक्षा की स्थिति

श्रावस्ती में पिछले हफ्ते स्कूल खुलने के बाद बच्चे स्कूल जाने लगे हैं. साल की शुरुआत में, कोविड की तीसरी लहर के दौरान 45 दिनों तक स्कूलों को बंद कर दिया गया था.

जिले में 1,280 सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल हैं. हालांकि, स्मार्ट क्लासेस जैसे बदलाव कुछ स्कूलों में ही देखने को मिलते हैं. इलाके में काम करने वाले लोगों का कहना है कि स्कूलों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में इसे तेजी से लागू नहीं किया जा रहा है.

जिले के अधिकारी कई दूसरी दिक्कतों को भी स्वीकार करते हैं. नाम नहीं छपने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा कि राज्य में छात्र-शिक्षक का अनुपात मानक के हिसाब से कम है.

राज्य में कई ऐसे स्कूल हैं जहां सिर्फ़ एक शिक्षक हैं. अधिकारियों का कहना है कि कई स्कूलों में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षक, नियमित तौर पर स्कूल नहीं आते हैं

नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर श्रावस्ती के एक शिक्षक ने कहा, ‘बच्चे स्कूल में पढ़ नहीं पाते इसकी वजह है. बेहद गरीब परिवार से आने वाले ये बच्चे पढ़ाई में अपनी दिलचस्पी खो देते हैं, . इनमें से कई स्कूल आना पूरी तरह से बंद कर देते हैं.’

पांडे पुरवा गांव के स्कूल में मिड डे मील खाते छात्र | फोटो: मनीषा मंडल | दिप्रिंट

लेकिन, अधिकारियों का कहना है कि जिले में इनोवेटिव एजुकेशन टेक्निक की कम से कम शुरुआत हो गई है. नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे-4 (2015-16) के डेटा के मुताबिक जिले की आधी आबादी साक्षर नहीं है. जिले में 32.7 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं. वहीं, पुरुष साक्षरता दर 53.2 फीसदी है. यह राज्य की साक्षरता दर से बहुत कम है. उत्तर प्रदेश में 82.4 फीसदी पुरुष और 61 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं.

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, श्रावस्ती में औसत साक्षरता दर 46.74 फीसदी है. वहीं, प्राथमिक स्कूल और उच्च प्राथमिक स्कूल (आठवीं तक) में नामांकन दर 100 फीसदी है. जिले में करीब 43 फीसदी बच्चे आठवीं के बाद स्कूल जाना छोड़ देते हैं.


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शिक्षक ने अपने एक लैपटॉप से शुरुआत की

ऐसी स्थिति में, प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में स्मार्ट क्लासेस जैसे पढ़ाने के नए तरीकों को शामिल करना स्वागत योग्य कदम है.

पांडे पूर्वा का सरकारी उच्च प्राथमिक मॉडल स्कूल, जिले का पहला स्कूल है जहां पर साल 2018 में स्मार्ट क्लासेस की शुरुआत हुई. इस स्कूल की चर्चा ऊपर की जा चुकी है.

यहां के प्रधानाध्यापक अनुराग पांडे ने इसकी शुरुआत की थी. उनका ट्रांसफर राज्य के ही किसी दूसरे स्कूल से यहां पर हुआ था. वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से पीएचडी हैं.

इससे पहले यहां पर 150 छात्र पढ़ते थे. लेकिन, उनकी उपस्थिति नियमित नहीं थी. पांडे शुरू में अपना लैपटॉप स्कूल में लाते थे और उसका इस्तेमाल छात्र-छात्राओं के छोटे से समूह को पढ़ाने में करते थे. लेकिन, यह बदलाव के लिए काफी नहीं था.

एक कक्षा में छात्र | फोटो: मनीषा मंडल | दिप्रिंट

इसके बाद, उन्होंने कुछ कॉरपोरेट से संपर्क किया और उनसे कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के तहत प्रोजेक्टर, स्मार्ट स्क्रीन और ऑडियो-विजुअल उपकरण दान में मांगे. पांडे कहते हैं कि इनमें से कुछ कॉरपोरेट ने इसका जवाब दिया और वह 1.5 लाख रुपये स्कूल के लिए जुटा पाने में कामयाब रहे और इस तरह से स्मार्ट क्लासेस शुरू हुआ.

साढ़े तीन साल बाद पांडे पूर्वा मॉडल स्कूल जिले में एक ऐसे स्कूल के तौर पर नजीर बना जिसने साबित किया कि पढ़ाई को बच्चों के लिए दिलचस्प बनाया जा सकता है.

यहां की शिक्षिका शकुंतला पाल (38 साल) ने कहा, ‘बच्चे अच्छी तरह से समझ के सीख रहे हैं. यहां पढ़ने वाले बच्चे स्कूल आने के लिए उत्साहित रहते हैं.’

शकुंतला पाल ने बरेली की रोहिलखंड यूनिवर्सिटी से विज्ञान विषय में मास्टर डिग्री हासिल की है. वह कहती हैं कि शुरुआत में प्रधानाध्याक और स्कूल के अन्य आठ शिक्षकों ने कम्युनिटी मोबिलाइजेशन के लिए खूब काम किया. वह कहती है, ‘हमने स्कूल की मीटिंग में अभिभावकों को शामिल किया और उन्हें राजी किया. शुरुआत में अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना नहीं चाहते थे.’

स्कूल प्रशासन का कहना है कि पिछले तीन सालों में स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या बढ़ी है. तीन साल पहले स्कूल में 150 छात्र-छात्राएं पढ़ती थीं. अब यह संख्या बढ़कर 350 हो गई है.

प्रधानाध्यापक पांडे का कहना है कि कोविड की वजह पढ़ाई बाधित होने के बावजूद भी यहां पढ़ने वाले बच्चों की कॉग्निटिव एबिलिटी (विश्लेषण करने की क्षमता) में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है.

उन्होंने कहा, ‘2018 में जब मैं यहां आया, तब यहां के ज्यादातर बच्चों के पास सीमित तौर पर पढ़ने और लिखने का कौशल था. यहां पर नामांकन की स्थिति खराब थी और बीच में स्कूल छोड़ने की दर ज्यादा थी. अंग्रेजी में एक पैराग्राफ भी उनसे पढ़वा पाना मुश्किल था. आज इनमें से ज्यादातर बिना रुके आत्मविश्वास से पूरा चैप्टर पढ़ सकते हैं.’

जिले के रोल लिए मॉडल

इस स्कूल के प्रदर्शन से प्रभावित होकर जिला प्रशासन ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर साल 2020-21 में ‘प्रोजक्ट सक्षम’ लॉन्च किया. इसके तहत पहले चरण में 82.17 लाख के लागत से 25 स्मार्ट क्लासेस तैयार की जा रही है.

जिले में कुल 1,280 सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल हैं. ऐसे में स्मार्ट क्लासेस की यह संख्या ऊंट के मुंह में जीरे की जैसी है. लेकिन, जिला प्रशासन के अधिकारी मानते हैं कि इस संख्या को तेजी से बढ़ाया जाएगा.

चीफ डेवलपमेंट ऑफिसर ईशान प्रताप सिंह ने कहा, ‘सक्षम के तहत राज्य के 50 फीसदी स्कूलों को स्मार्ट स्कूल में बदल दिया जाएगा.’

पांडे पूर्वा मॉडल स्कूल, पहले ही इसकी शुरुआत कर चुका है. लेकिन, स्कूल दूसरी तरह की चुनौतियों का भी सामना कर रहा है. महामारी इनमें से एक है.

पांडे कहते है, ‘जब स्कूल ऑनलाइन शुरू हुआ तब हमें छात्र/छात्रा को अलग-अलग फॉलो करना पड़ा क्योंकि सिर्फ़ 10 फीसदी बच्चों के पास ही मोबाइल फोन था.’

हालांकि, पिछड़ा जिला होने की वजह से यहां कई दूसरी चुनौतियां भी हैं. वह कहते हैं, ‘अनियमित बिजली की आपूर्ति की वजह से बहुत परेशानी होती है. ऐसा कई बार होता है जब हम कुछ दिखाने के लिए प्रोजेक्टर चालू करते हैं और बिजली चली जाती है…. इसलिए हम  इसका इस्तेमाल नियमित तौर पर नहीं कर पाते हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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