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चीन फैक्टर ध्यान में रख मोदी सरकार नौसेना की तीसरे विमान वाहक की मांग पर विचार करने को तैयार है

यद्यपि मौजूदा समय में पूरा ध्यान पनडुब्बियों पर केंद्रित है, लेकिन नौसेना के लिए एक तीसरे विमान वाहक को लेकर सरकार की सोच में बदलाव आया है.

फाइल फोटो आईएएनएस विक्रमादित्य/@DefenceDecode | Twitter

नई दिल्ली: चीन के लगातार आक्रामक रुख अपनाए रहने से ‘शांतिकाल की स्थिति’ में आए बदलाव के मद्देनजर नरेंद्र मोदी सरकार नौसेना के लिए तीसरे विमानवाहक पोत की जरूरत पर गंभीरता से सोच ही है. यह बात दिप्रिंट को मिली जानकारी में सामने आई है.

शीर्ष सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि यद्यपि मौजूदा समय में पूरा ध्यान पनडुब्बियों पर है, जिसके लिए सरकार जल्द ही परियोजना 75आई के तहत छह और पारंपरिक पनडुब्बियों से संबंधित प्रक्रिया शुरू कर देगी. वहीं एक तीसरे विमानवाहक पोत के बारे में भी सरकार की सोच में बदलाव आया है.

एक शीर्ष सरकारी सूत्र ने कहा, ‘समय बदल गया है. पहले यह शांतिकाल था और अब ऐसा नहीं है.’ इस बात से उनका आशय संभवत: पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच मौजूदा तनाव से था.

भारतीय नौसेना रूस निर्मित आईएनएस विक्रमादित्य का इस्तेमाल करती है और दूसरा स्वदेश निर्मित विमानवाहक निर्माण के अंतिम चरण में है.

भले ही नौसेना एक दूसरे स्वदेशी विमानवाहक पोत की अपनी योजना पर दृढ़ रही हो लेकिन सरकार अब तक इसे लेकर आश्वस्त नहीं थी.

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चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने फरवरी में कहा था कि तीसरे विमानवाहक के लिए मंजूरी में समय लगेगा. उनके मुताबिक वजह यह थी कि नौसेना के लिए पनडुब्बियों की जरूरत है, न कि विमानवाहक पोत की क्योंकि ‘सतह पर होने वाली कोई भी चीज उपग्रहों की नजर में आ सकती है और मिसाइलों का निशाना बन सकती है.’

बदली सोच के बारे में बताते हुए सरकारी सूत्रों ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि योजना बनाते समय भविष्य के अभियानों और जरूरतों को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

एक सरकारी सूत्र ने कहा, ‘वैश्विक परिदृश्य में भारत की भूमिका बढ़ रही है. हिंद महासागर क्षेत्र में और उससे भी आगे जहां व्यापार और वाणिज्य बढ़ रहा है, अपनी व्यापक मौजूदगी के लिए हमारे पास एक तीसरा विमानवाहक होना बेहद अहम है.’


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एक अन्य विमानवाहक पोत के लिए नौसेना की कवायद

नौसेना तीसरे विमानवाहक पोत के लिए लगातार कोशिश कर रही है.

नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह पिछले हफ्ते पूरी मजबूती के साथ एक तीसरे विमानवाहक पोत की जरूरत का समर्थन करते नजर आए थे.

एडमिरल ने वार्षिक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि नौसेना विभिन्न देशों से मांगी गई तकनीकी जानकारी जुटाने के बाद तीसरे विमानवाहक के लिए प्रस्ताव औपचारिक रूप से सरकार के पास भेजेगी.

उन्होंने कहा, ‘नौसेना के तौर पर हम विमानवाहक की उपयोगिता को लेकर एकदम स्पष्ट हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि एयर ऑपरेशन नौसेना के अभियानों का अभिन्न अंग हैं, और नौसेना की पहुंच और उसकी क्षमताएं देखते हुए समुद्र में वायु शक्ति की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा, ‘यदि आप एक ऐसे राष्ट्र हैं जो बड़े सपने देखते हैं और जल्द से जल्द 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना चाहते हैं और आप कुछ बेहतर करना चाहते हैं, तो आपको बाहरी दुनिया को देखना होगा और उसमें संभावनाएं भी तलाशनी होंगी. देश नहीं चाहता है कि नौसेना तटों के किनारे पर ही बसी बसे. निश्चित तौर पर विमानवाहक उसके लिए आवश्यक हैं.’

नौसेना सूत्रों ने फरवरी में दिप्रिंट को बताया था कि अगर अभी तीसरे विमानवाहक पर निर्णय लिया जाता है तो यह बहुत जल्दी करने पर भी 2033 तक उपयोग की स्थिति में आ पाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि तटीय क्षेत्रों से एयर ऑपरेशन अभी भी सीमित क्षेत्र में ही चलाए जा सकते हैं, और यही वह स्थिति है जहां विमानवाहकों की जरूरत पड़ती है.

उन्होंने कहा था कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) को परिभाषित किया है, जिसमें होर्मुज के जलडमरूमध्य से लेकर रीयूनियन आइसलैंड तक, पूर्वी अफ्रीका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक और लोम्बेन जलडमरूमध्य से मलक्का जलडमरूमध्य तक पूरे हिंद महासागर के इर्द-गिर्द वाले देश शामिल हैं.

उन्होंने कहा कि यह विशाल समुद्री विस्तार भारतीय मेनलैंड से संचालित लड़ाकू विमानों की क्षमता से परे है, जो इस क्षेत्र का बमुश्किल 20 फीसदी हिस्सा ही कवर करेंगे और इस तरह आईओआर के एक विशाल इलाके के लिए कोई चुनौती ही नहीं होगी.

खबरों के मुताबिक, चीन की योजना 2035 तक छह विमानवाहक पोत रखने की है जिसमें परमाणु क्षमता वाले पोत भी शामिल होंगे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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