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भारतीय सेना की गोपनीयता और गैर-परंपरागत तैनाती ने कैसे पैंगोंग त्सो में चीनियों को बेवकूफ बनाया

भारत ने चीन को यह विश्वास दिलाने के लिए मनगढ़ंत तरीके से अलग-अलग जगहों पर झंडे लगा रखे थे कि सेना कहीं और ध्यान केंद्रित कर रही है जबकि वास्तविक कार्रवाई एक अलग पहाड़ी पर की गई.

पैंगॉन्ग त्सो के दक्षिणी किनारे पर गूगल अर्थ की यह तस्वीर एलिवेशन दिखा रही है.

नई दिल्ली: करीब एक महीने तक पूर्णत: गोपनीय तरीके से योजना बनाना, कई यूनिट की गैर-परंपरागत तरह से तैनाती और गतल ढंग से झंडे लगाकर झांसा देना, यह सब ऐसी बातें हैं जिन्होंने अगस्त में पूर्वी लद्दाख में चीन को पछाड़ने में भारतीय सेना की पूरी मदद की.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, इस ऑपरेशन ने भारत को पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तटों पर भारी पड़ने और उत्तरी तटों में चीन के जवाब में तैनाती मजबूत करने में सक्षम बनाया.

घटनाक्रम तो यहां तक बदला कि नौसेना ने समुद्र में किसी भी संभावित चीनी आक्रमण का मुकाबला करने और अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में पूरी तरह हावी होने की क्षमता दिखाने के लिए अपने पूरे पूर्वी और पश्चिमी बेड़े को समुद्र में तैनात कर दिया.

शीर्ष सरकारी सूत्रों ने पहले कोई निष्कर्ष निकले बिना दक्षिणी तटों से सैन्य वापसी से साफ इनकार कर दिया था जो अगस्त में भारत के बातचीत में सौदेबाजी की स्थिति में आने से पहले तक एकतरफा थे.

उन्होंने अब दिप्रिंट को बताया है कि जब नई दिल्ली को यह बात समझ आ गई कि चीनियों का वापस जाने का कोई इरादा नहीं है, तो सेना को ऐसे विकल्प ढूंढ़ने को कहा गया ताकि भारत किसी तरह की सौदेबाजी की स्थिति में आ सके.

निर्धारित योजना के अनुसार, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर छह-सात ऐसे स्थानों को चिह्नित किया गया, जहां भारतीय सेना चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) पर भारी पड़ सकती थी.

एक बार जगहें तय हो जाने के बाद चीनी के खिलाफ एकमात्र सबसे आक्रामक इकाई—पानागढ़ (पश्चिम बंगाल) की माउंटेन स्ट्राइक कोर (एमएससी)—को अपनी कार्रवाई शुरू करने को कह दिया गया.

इस आक्रामक अभियान में सेना की एलीट पैरा एसएफ और चकराता (उत्तराखंड) की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ)—जो मुख्यत: तिब्बती शरणार्थियों को लेकर बनी है—की भी भागीदारी रही.


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24 घंटे का नोटिस और सिर्फ एक विमान

अगस्त की शुरुआत में केवल 24 घंटे के नोटिस पर एमएससी की एक टीम ने अपने पर्सनल गियर को छोड़ किसी बड़े उपकरण के बिना ही जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) लेफ्टिनेंट जनरल जनरल सवनीत सिंह के नेतृत्व में लद्दाख के लिए उड़ान भरी थी.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े एक स्रोत ने कहा, ‘यह सुनिश्चित करना बेहद अहम था कि चीनियों को सैनिकों और उपकरणों के किसी भी बड़े मूवमेंट के बारे में जानकारी न मिल पाए, क्योंकि इससे उनके उपग्रह और भूमि पर तैनात पोटेंशियल स्पॉटर्स सक्रिय हो जाएंगे. योजना के तहत सेना ने गैर-परंपरागत तैनाती का तरीका अपनाया.’

सूत्रों ने कहा कि पहले की तरह पूरी डिवीजन को तैनाती के लिए भेजे जाने के बजाये छोटी-छोटी टीमों को बिना किसी अतिरिक्त उपकरण के भेजा गया जिससे एमएससी, जिसे 17वीं कोर के रूप में भी जाना जाता है, की गतिविधियां पहले की तरह सामान्य ढंग से चलने के कारण इस पर किसी की नजर भी नहीं गई.

लेफ्टिनेंट जनरल सवनीत सिंह इस आक्रामक ऑपरेशन और इसकी योजना के अगुआ थे.

यह पूछे जाने पर कि दो कोर कमांडर, इसमें एक उस समय 14वीं कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह थे, लद्दाख में कैसे कार्य कर रहे थे, सूत्रों ने कहा कि लेह बेस्ड 14वीं कोर ने रक्षात्मक मोर्चा जबकि 17वीं कोर ने आक्रामक मोर्चा संभाल रखा था.

एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘यह हमेशा स्पष्ट था कि जब भी किसी आक्रामक कार्रवाई की आवश्यकता होगी, एक स्ट्राइक कोर बाहर से पहुंच जाएगी. स्ट्राइक कोर का मतलब भी यही है.’

कई टीमें और झंडे लगाने का पैंतरा

आक्रामक ऑपरेशन में हिस्सा लेने वाले जवान एमएससी, पैरा एसएफ, एसएफएफ और मैकेनाइज्ड और आर्मर्ड यूनिट के सदस्य थे.

पूर्वी लद्दाख में चीनी आक्रामकता के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के तौर पर भारत ने तोपखाने और टैंकों के साथ लगभग 40,000 अतिरिक्त सैनिकों को तैनात किया था.

सूत्रों ने बताया कि जब 29-30 अगस्त के ऑपरेशन को अंजाम दिया गया, तो तमाम इकाइयां एक साथ आ गई जबकि हथियारों को अलग पूल से पहुंचाया गया.

उन्होंने कहा कि भारत ने चीन को यह विश्वास दिलाने के लिए मनगढ़ंत तरीके से अलग-अलग जगहों पर झंडे लगा रखे थे कि सेना कहीं और ध्यान केंद्रित कर रही है जबकि वास्तविक कार्रवाई एक अलग पहाड़ी पर की गई.

योजना के तहत विशेष भारतीय टीमें चीन को हतप्रभ करने में सफल रहीं और पैंगॉन्ग त्सो के दक्षिणी छोर पर हावी हो गईं और कैलाश रेंज में आने वाली उन पहाड़ियों पर अपना कब्जा जमा लिया जो दोनों पक्षों के बीच विवादित क्षेत्र की श्रेणी में आती हैं.

हालांकि, अगस्त अंत तक न तो भारत और न ही चीन ने इन पहड़ियों पर कब्जा जमा रखा था. इनमें रेचिन ला और रेजांग ला की पहाड़ियां शामिल हैं. इनके साथ ही कुछ अन्य चोटियों पर कब्जे ने भारत को चीनी नियंत्रण वाले स्पैंग्गुर गैप के अलावा चीनी सीमा पर स्थित मोल्दो गैरीसन में भी हावी होने का मौक दे दिया.

पहले सूत्र ने कहा, ‘यह बेहद फायदेमंद साबित हुआ क्योंकि इसने भारत को बातचीत में सौदेबाजी में आने की स्थिति की ताकत दी. यह तथ्य है कि चीनियों की तरफ से भारत के दक्षिणी सीमा से पीछे हटने पर जोर दिया जा रहा है, जो कि भारतीय अभियान के रणनीतिक महत्व को दर्शाता है.

चीनी इस बात से काफी हैरान थे कि भारत ने अपने टैंकों को बख्तरबंद वाहकों के साथ इन ऊंचाइयों तक पहुंचाने में कामयाबी हासिल की थी.

एक तीसरे सूत्र ने कहा, ‘इन चोटियों तक तमाम यूनिट और हथियारों को पहुंचाने के व्यापक योजना बनाई गई और गैर-परंपरागत तैनाती का सहारा लिया गया.’

उत्तरी तट पर ऑपरेशन

यद्यपि सारा ध्यान दक्षिणी तटों पर केंद्रित किया गया था लेकिन इसके बावजूद ऑपरेशन में शामिल पैरा एसएफ की एक छोटी-सी टीम फिंगर एरिया की अहम चोटियों पर चढ़ने और फिंगर 4 के शीर्ष पर डेरा जमाए चीनियों की चौकी की तस्वीरें खींचने में कामयाब रही थी.

जैसा कि दिप्रिंट द्वारा 2 सितंबर को प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया था, एक नया रास्ता मिलने के साथ ही दक्ष जवानों की टीम अगस्त के अंत तक पहाड़ियों पर चढ़कर पैंगोग त्सो के उत्तरी तट पर फिंगर 4 की रिजलाइन के पास शिविर स्थापित करने में सफल रही थी.

सूत्रों ने कहा कि इसने अब दक्षिणी तटों की तुलना में अधिक रणनीतिक लाभ दिया है, इसने चीन के सामने टिके रहने की भारत की प्रतिबद्धता को भी दिखाया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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