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धन्यवाद चेतक, लेकिन तुम्हारी 60वीं वर्षगांठ ये भी याद दिलाती है कि भारतीय रक्षा में क्या ख़राबी है

पिछले 10 वर्षों के दौरान, लगभग 15 चेतक और चीता हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गए हैं, जिसमें कई पायलट मारे गए हैं, जबकि यह सशस्त्र बलों का वर्कहॉर्स बना हुआ है.

एक भारतीय नौसेना चेतक हेलीकाप्टर (प्रतिनिधि छवि)/ फोटो- indiannavy.nic,in

सिकंदराबाद में भारतीय वायुसेना के हेलिकॉप्टर ट्रेनिंग स्कूल में, चेतक हेलिकॉप्टरों की 60 वीं वर्षगांठ मनाने के लिए, एक यादगार आयोजन या हीरक जयंती समारोह मनाया जा रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि हेलिकॉप्टर ने भारतीय सशस्त्र बलों के लिए बेहतरीन सेवा अंजाम दी है, लेकिन ये जश्न उन परेशानियों का भी सबूत है, जो भारत के रक्षा प्रतिष्ठान को घेरे हुए हैं.

रिटायर हो रहे चॉपर की प्रशंसा में कमांडर केपी संजीव कुमार का एक ट्वीट ये भी दिखाता है, कि ये जश्न इतनी देरी से क्यों मनाया जा रहा है. उन्होंने ट्वीट किया,चेतक ने बहुत कुछ सहा है. इसे शालीनता के साथ रिटायर कर दीजिए और एक बूढ़े बहादुर घोड़े पर चाबुक मत चलाइए.

भारतीय वायुसेना ने एलुएट- कहे जाने वाले फ्रांसीसी मूल के हेलिकॉप्टरों को, 1962 में अपने यहां शामिल किया था, और सरकारी उपक्रम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स (एचएएल) ने- जिसे इसका पहला लाइसेंस दिया गया था- पहला चेतक (एलुएट-3) तैयार करके, 1965 में वायुसेना के हवाले किया था.

ऐसा नहीं है कि सेवा में शामिल किया गया पहला चॉपर अभी उड़ रहा है, लेकिन 186 चेतक और 200 से अधिक चीता के हेलिकॉप्टर्स बेड़े में, अधिकतर अब विंटेज श्रेणी में आ गए हैं और उन्हें सेवा करते हुए 40 वर्ष से अधिक हो गए हैं. 1960 के दशक की टेक्नॉलजी अभी अगले कुछ और दशक तक उड़ती रहेगी, क्योंकि विकल्पों के न होने से बल अभी भी इनके ऑर्डर दे रहे हैं.

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ये हमारी आत्म-संतुष्टि को दर्शाता है. चाहे तोपख़ाने की बंदूकें हों, बेसिक राइफलें हों, हेलिकॉप्टर हों, या फिर लड़ाकू विमान, हमारे अधिकतर सैनिक अभी भी ऐसे सिस्टम इस्तेमाल कर रहे हैं, जिन्हें बरसों पहले बाहर कर दिया जाना चाहिए था. कुछ का जीवन चक्र अपग्रेड्स की बदौलत चलता रहता है, लेकिन इन अपग्रेड्स का जीवन भी अब पूरा हो चुका है. मसलन मिग 21 बाइसंस को ही ले लीजिए. या फिर एकल इंजिन वाले चेतक, जिनके अंदर लगी एवियॉनिक्स पुरानी पड़ चुकी है.

चेतक में आधुनिक हेलिकॉप्टर विशेषताएं नहीं हैं, जैसे मूविंग मैप डिस्प्ले, ज़मीन से नज़दीकी की चेतावनी देने वाला सिस्टम, और मौसम रडार तथा स्वचालित पायलट सिस्टम.

पिछले दस वर्षों में क़रीब 15 चेतक और चीता हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं, जिनमें कई पायलटों की मौत हुई है, लेकिन फिर भी ये सशस्त्र बलों के लिए लद्दू घोड़े बने हुए हैं, और समुद्र या सियाचिन ग्लेशियर के ऊपर उड़ानें भर रहे हैं.

सशस्त्र बलों ने बार बार इनकी जगह, नए हेलिकॉप्टर लाने की ज़रूरत की ओर ध्यान आकृष्ट किया है. बहुत दुखद है कि भारत अभी तक इन्हें बदल नहीं पाया है, हालांकि इस दिशा में कुछ कमज़ोर क़दम ज़रूर उठाए गए हैं.

पिछले साल नवंबर में, रक्षा मंत्रालय ने एचएएल से 12 लाइट यूटिलिटी हेलिकॉप्टरों (एलयूएच) की ख़रीद को मंज़ूरी दी थी. ये हेलिकॉप्टर अंतत उन लगभग 400 चेतक और चीतों की जगह लेंगे, जो अभी इस्तेमाल में हैं.

ये 12 नए चॉपर सीमित सीरीज़ के प्रोडक्शन कनफिगरेशन में आएंगे, हालांकि भारत की एलयूएच की कुल मांग, जो बचाव तथा टोही कार्यों के अलावा, बलों और आपूर्ति को अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए होते हैं, 400 से अधिक होने का अनुमान है.

इसका अर्थ है कि चेतक और चीतों के पूरे बेड़े को बदलने में, बरसों लग जाएंगे.

आप हमेशा तर्क दे सकते हैं कि चूंकि ये स्वदेशी हेलिकॉप्टर हैं, इसलिए इन्हें विकसित करने और इनके ट्रायल करने में समय लगता है, और इसलिए ऐसी प्रक्रियाओं को तेज़ नहीं किया जा सकता.

अगर कोई इस तर्क से सहमत हो भी जाए, तो इन हेलिकॉप्टरों को ख़रीदने की दूसरी योजना के बारे में आप क्या करेंगे हां, सशस्त्र बलों को जिन लगभग 400 हेलिकॉप्टरों की ज़रूरत है, उनमें से केवल आधे एचएएल द्वारा सप्लाई किए जाने थे, और बाक़ी- कामोव 226 टी- रूस के साथ एक संयुक्त उद्यम के ज़रिए, मेक-इन-इंडिया के रास्ते आने थे.

सात साल बाद भी, 2015 में किया गया नरेंद्र मोदी सरकार का सौदा, स्वदेशी अंश तथा लागत के ऊपर अधर में लटका हुआ है. बहुत शर्म की बात है कि सेना को अभी भी इन चेतकों को उड़ाना होगा, क्योंकि इनका कोई विकल्प मौजूद नहीं है.

नौसेना इन्हें बदलने की इच्छुक थी, और रणनीतिक साझेदारी मॉडल के अंतर्गत प्रक्रिया शुरू भी हो गई थी, लेकिन दौड़ में शामिल होने की एचेएल की कोशिश ने, इसमें देरी पैदा कर दी.

अगर एचएएल के पास एक अच्छा उत्पाद है, तो उसे मैदान में बिल्कुल उतरने देना चाहिए. लेकिन इधर या उधर, किसी निर्णय के बिना, परियोजना को अधर में लटकाए नहीं रखा जा सकता.

इसके अलावा सोचने योग्य बात ये भी है, कि एचएएल सभी तरह के हेलिकॉप्टर बनाकर, उन्हें समय रहते सेवाओं के हवाले कैसे कर पाएगी, जबकि उनके हाथ पहले ही एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर, तथा उसके सशस्त्र वर्जन बनाने के ऑर्डर से भरे हैं.

सरकारी रक्षा निर्माता लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर और एलयूएच, दोनों के बड़े ऑर्डर का भी इंतज़ार कर रहा है.

अगर सभी कार्यक्रम फलीभूत हो जाते हैं, तो एचएएल अंततः 600 हेलिकॉप्टरों की ऑर्डर बुक्स पर बैठी होगी. अगर ऐसा है, तो सरकार को किसी निजी उद्यमी को साथ लेना चाहिए, और उससे एचएएल के साथ मिलकर इनके निर्माण के लिए कहना चाहिए.

अब समय आ गया है कि थल सेना, वायु सेना, और नौसेना तीनों अपने चेतक बदल लें.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

यहां व्यक्त विचार निजी हैं


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