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साहित्यकार कृष्ण बलदेव वैद नहीं रहे, हिंदी की दुनिया उनके प्रति हमेशा अनुदार ही रही

कृष्ण बलदेव वैद की लेखनी में मनुष्य जीवन के नाटकीय सन्दर्भों की गहरी पहचान है. अपनी रचनाओं में उन्होंने सदा नए से नए और मौलिक-भाषाई प्रयोग किये हैं जो पाठक को 'चमत्कृत' करते हैं.

साहित्यकार कृष्ण बलदेव वैद | फोटो : वाणी प्रकाशन/ट्विटर

नई दिल्ली: वरिष्ठ साहित्यकार कृष्ण बलदेव वैद का गुरुवार को 92 साल की उम्र में अमेरिका के न्यूयार्क में निधन हो गया. उनकी मृत्यु की खबर सुनते ही उनके पुराने साथी और हिंदी साहित्यिक जगत ने उन्हें अपनी-अपनी तरह से याद किया.

उनकी मृत्यु पर लेखक और अनुवादक प्रभात रंजन ने ट्वीट कर उन्हें याद किया. उन्होंने लिखा, ‘कृष्ण बलदेव वैद की स्मृति को प्रणाम. वे अपनी परम्परा के अकेले लेखक थे. कोई दूसरा वैद नहीं हो सकता.’

हिन्दी के आधुनिक गद्य-साहित्य में कृष्ण बलदेव वैद को सबसे महत्वपूर्ण लेखक माना जाता है. 27 जुलाई, 1927 पंजाब के दिंगा में जन्मे वैद ने अंग्रेजी से स्नातकोत्तर और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की और अपनी लेखनी से कई पीढ़ियों को प्रभावित किया.

कृष्ण बलदेव वैद की लेखनी में मनुष्य जीवन के नाटकीय सन्दर्भों की गहरी पहचान है. वैद को साहित्य अकादमी अवार्ड से भी नवाजा गया.अपनी रचनाओं में उन्होंने सदा नए से नए और मौलिक-भाषाई प्रयोग किये हैं जो पाठक को ‘चमत्कृत’ करने के अलावा हिन्दी के आधुनिक-लेखन में एक खास शैली के मौलिक-आविष्कार की दृष्टि से विशेष अर्थपूर्ण हैं.

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‘उसका बचपन’, ‘बिमल उर्फ़ जायें तो जायें कहां’, ‘तसरीन’, ‘दूसरा न कोई’, ‘दर्द ला दवा’, ‘गुज़रा हुआ ज़माना’, ‘काला कोलाज’, ‘नर नारी’, ‘माया लोक’, ‘एक नौकरानी की डायरी’ जैसे उपन्यासों से उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी एक अलग ही पहचान बनाई.

राजकमल प्रकाशन के संपादक सत्यानंद निरूपम ने ट्वीट कर लिखा, ‘जादू चले गए, ख़ाली किताब मेरे पास रह गई! शब्द नहीं सूझ रहे…कुछ नहीं सूझ रहा…बस, उन(कृष्ण बलदेव वैद)की डायरी से एक बात बेआवाज़ चीखती हुई मुझ तक बार-बार आ रही है : ‘दिन का देहांत हो गया…और अब जी चाह रहा है कि ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाऊं कि लिखा क्यों नहीं जाता मुझसे!’

दक्षिण दिल्ली के ‘वसंत कुंज’ के निवासी वैद लम्बे अरसे से अमेरिका में अपनी दो विवाहित बेटियों के साथ रह रहे थे. उनकी लेखिका पत्नी चंपा वैद का कुछ बरस पहले ही निधन हुआ था.

कृष्ण बलदेव वैद अपने दो कालजयी उपन्यासों- ‘उसका बचपन’ और ‘विमल उर्फ़ जाएँ तो जाएँ’ कहां के लिए सर्वाधिक चर्चित हुए हैं. एक मुलाक़ात में उन्होंने कहा था- ‘साहित्य में डलनेस को बहुत महत्व दिया जाता है. भारी-भरकम और गंभीरता को महत्व दिया जाता है. आलम यह है कि भीगी-भीगी तान और भिंची-भिंची सी मुस्कान पसंद की जाती है. और यह भी कि हिन्दी में अब भी शिल्प को शक की निगाह से देखा जाता है.’

उन्होंने कहा था, ‘बिमल उर्फ जाएँ तो जाएँ कहाँ’ को अश्लील कहकर खारिज किया गया. मुझ पर विदेशी लेखकों की नकल का आरोप लगाया गया, लेकिन मैं अपनी अवहेलना या किसी बहसबाजी में नहीं पड़ा. अब मैं 82 का हो गया हूं और बतौर लेखक मैं मानता हूं कि मेरा कोई नुकसान नहीं कर सका. जैसा लिखना चाहता, वैसा लिखा. जैसे प्रयोग करना चाहे किए.’

हिंदी के प्रकाशकों में राजकमल और वाणी प्रकाशन ने उनकी मृत्यु पर श्रद्धांजलि दी.

हिंदी जगत ने कैसे याद किया कृष्ण बलदेव वैद को

वरिष्ठ लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कृष्ण बलदेव वैद को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘आज भीतर कोई किनारा सा मानो ढह गया. उन्हें पढ़ना बहुत कुव्वत मांगता था.’

जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी ने ट्वीट किया, ‘हिंदी के दिग्गज कथाशिल्पी और नाटककार कृष्ण बलदेव वैद नहीं रहे. उदासी के साथ कितनी स्मृतियां उभर आई हैं. वह शाम भी, जब वे 75 के हुए तो हमने अपने घर एक जश्न किया था. देखिए उसकी यादगार तस्वीर: निर्मल वर्मा, वैदजी, रामकुमार, नामवर सिंह, अशोक वाजपेयी और (पीछे) मैं नाचीज़. अलविदा, वैदजी!’

राजकमल प्रकाशन ने उन्हें याद करते हुए फेसबुक पर लिखा, ‪सुप्रसिद्ध गद्यकार कृष्ण बलदेव वैद का आज देहावसान हो गया. अपनी रचनाओं के साथ वे हमेशा हमारे साथ रहेंगे. उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि.

प्रकाशन की तरफ से दिए संदेश में वैद की एक पंक्ति को भी लिखा गया है, ‘चाहता हूं कोई ग़ज़ब की चीज़ लिखूं. फिर सोचता हूं चाहने से कुछ नहीं होगा, जो होगा लिखने से ही होगा.’

जश्न-ए-अदब ने ट्वीट कर लिखा, ‘आधुनिक हिंदी कथा-साहित्य के गुलशन से आज एक और हसीन फूल अपनी खुशबू बिखेर हमसे दूर हो गया. एक महत्वपूर्ण कथाकार व साहित्यकार ‘कृष्ण बलदेव वैद’, जिन्हें कहानी, उपन्यास, डायरी लेखन व अनुवाद के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए जाना जाता रहा, आज उनका स्वर्गवास हो गया. श्रद्धांजलि.’

पत्रकार और लेखक प्रियदर्शन ने वैद को याद करते हुए फेसबुक पर लिखा, ‘हिंदी की दुनिया कृष्ण बलदेव वैद को लेकर शायद कुछ अनुदार रही. कल उनके निधन की सूचना से एक हूक सी उठी.’

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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