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भारत पाक सीमा की खटास के बीच, घराना वेटलैंड में प्रवासी ‘मेहमानों’ने डाला डेरा

पर्यावरणविदों के लगातार प्रयासों से और जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय द्वारा किए गए हस्तक्षेप के बाद राज्य सरकार घराना वेटलैंड को लेकर सचेत हुई है.

घराना वेटलैंड में प्रवासी पंक्षियों का लगने लगा जमावड़ा/फोटो- मनु श्रीवत्स

भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में भले ही खटास क्यों न हों मगर दोनों मुल्कों की कश्मकश से दूर सीमा पर स्थित छोटे से गांव घराना में हर साल की तरह इस बार भी प्रवासी पक्षियों का मेला लगने लगा है. सर्दियों के आगमन के साथ ही इस क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों ने विचरण शुरू कर दिया है.

घराना वेटलैंड (आर्द्रभूमि) में हज़ारों मील दूर से आए प्रवासी पक्षी अठखेलियां व क्रीड़ाएं करते दिखाई देने लगे हैं. अपने आप में यह एक बेहद मनमोहक नज़ारा है जिसे निहारने के लिए पर्यावरण प्रेमी कई महीनों से इंतज़ार कर रहे थे.

जम्मू से मात्र 35 किलोमीटर दूर भारत-पाक अंतराष्ट्रीय सीमा से सटा है घराना गांव. गांव से भारत-पाक अंतराष्ट्रीय सीमा पर की गई तारबंदी की दूरी एक किलोमीटर से भी कम है. गांव व तारबंदी के बीच में ही स्थित ज़मीन और तालाब ही प्रवासी पक्षियों की पंसदीदा जगह है. यहीं पर सर्दियों में प्रवास करने और गुनगुनी धूप में अठखेलियां करने आते हैं प्रवासी पक्षी.

प्रवासी पक्षियों को आश्रय देने वाला घराना अपने नाम को पूरी तरह से सार्थक करता हुआ प्रतीत होता है, घराना यानी कि ‘घर’ ‘आना’. हर साल सर्दियों में प्रवासी पक्षी एक तरह से अपने ‘घर’ ही लौट कर आते हैं और घराना इन पक्षियों का लगभग पांच से छह मास के लिए बसेरा बन जाता है.

सर्दियों के शुरू होते ही आने लगते हैं पक्षी

हर वर्ष अक्टूबर महीने में गर्मियों की समाप्ति और सर्दियों के आते ही घराना में प्रवासी पक्षियों के आने का सिलसिला शुरू हो जाता है. नवंबर मध्य के बाद पक्षियों की रौनक दिखने लगती है और दिसंबर आते-आते यहां प्रवासी पक्षियों की रौनक पूरे चरम पर होती है. उस समय का नजारा बेहद मनमोहक बन जाता है, विभिन्न प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों की अठखेलियां देखने लायक होती है. प्रवासी पक्षियों की अदाओं और उनके आने से गुलज़ार हुए घराना की सुंदरता को निहारने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक व पक्षी प्रेमी भी घराना पहुंचने लगते हैं. प्रवासी पक्षियों के आने से गुलज़ार हुए घराना गांव की रौनक मार्च-अप्रैल तक बनी रहती हैं.

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घराना में आने वाले प्रवासी पक्षियों की खास बात यह रहती है कि यह पक्षी आम लोगों के काफी नज़दीक तक आ जाते हैं. प्रवासी पक्षियों और मानव के बीच एक तरह से तमाम दूरियां मिट जाती हैं. यही घराना वेटलैंड की खूबसूरती है और यही इसका विशेष आकर्षण है.

पक्षियों की 175 प्रजातियां आती हैं घराना

सायबेरिया, न्यूजीलैंड़, चीन और मध्य एशिया सहित कई अन्य क्षेत्रों से आने वाले इन पक्षियों की लगभग 175 प्रजातियां घराना को अपना अस्थाई प्रवास बनाती हैं.

दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर उड़ने वाला पक्षी ‘बार हडिड गूज’ भी घराना वेटलैंड में प्रवास करने आता है. ‘बार हडिड गूज’ को घराना की शान माना जाता है. हजारों की संख्या में ‘बार हडिड गूज’ का घराना में आना और आम लोगों के एकदम करीब तक चले आना पर्यावरणविदों को भी हैरान कर देता है. ‘बार हडिड गूज’ के बारे में माना जाता है कि यह पक्षी माउंट एवरेस्ट और उससे भी ऊंचाई पर उड़ान भरता है. यह खूबसूरत पक्षी एक दिन में एक दिशा की ओर उड़ते हुए 1000 मील से अधिक की दूरी तय करने में समर्थ होता है. भारत में ‘बार हडिड गूज’ को बड़ा हंस और सफेद हंस के नाम से भी जाना जाता है.

‘बार हडिड गूज’ के अलावा वूली स्ट्रोक, हेरान, पेंटेड स्ट्रोक, कामन टील, कामन कूट, पिन टेल, ग्रे लाग गूज, नार्दन शोवलर, ब्लेक स्ट्रोक, विह्सलिंग टिल्स, ग्रे लेग ग्रूज़, शिल्डक, पिन्टेल डक, मलार्ड, गडवाल आदि के छोटे-छोटे झुंड भी हर साल घराना में आते हैं.

‘बार हडिड गूज’ और अन्य प्रवासी पक्षी जब घराना के तालाब में अठखेलियां व क्रीड़ाएं करते दिखाई देते हैं तो एक बेहद खूबसूरत दृश्य उभरता हैं. प्रवासी पक्षियों की कलरव और चहचहाहट हवाओं में तैर जाती है और दूर तक सुनाई देती है.

सिकुड़ता चला गया घराना वेटलैंड

किसी समय घराना का कुल क्षेत्र 14 से 15 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ था मगर भारत-पाक विभाजन और अतिक्रमण के कारण यह क्षेत्र सिकुड़ता चला गया. अब केवल चार से पांच वर्ग किलोमीटर के आसपास सिमट चुका है जिसमें एक छोटा सा तालाब भी है. मगर इस तालाब क्षेत्र में भी लगातार अतिक्रमण हुआ है. लेकिन इस सबके बावजूद हर साल प्रवासी मेहमान घराना आते रहे हैं.

वेटलैंड का कुछ हिस्सा सीमा पार पाकिस्तान में भी है मगर सीमा पार शिकार पर खास पाबंदी नही होने की वजह से प्रवासी पक्षी सीमा के इस ओर भारतीय क्षेत्र में ही बैठना और विचरण करना पंसद करते हैं. जानकारों के अनुसार विभाजन से पहले वेटलैंड का क्षेत्र काफी फैला हुआ था और शिकार के शौकीन रईस और अंग्रेज़ अफ़सर प्रवासी पक्षियों का शिकार करने आया करते थे.

भारतीय क्षेत्र में भी विभाजन के बाद कुछ देर तक शिकार का यह सिलसिला जारी रहा. मगर समय बदलने के साथ जागरूकता बढ़ी और प्रवासी पक्षियों को लेकर आम और ख़ास, सभी की राय बदलने लगी. वक्त के साथ आम लोगों के साथ-साथ सरकार को भी इन प्रवासी पक्षियों की अहमीयत समझ आने लगी. सख्त कानूनों के बनने से भी प्रवासी पक्षियों का शिकार लगभग पूरी तरह से बंद हो गया.

पक्षियों पर मंडराता रहा है खतरा

प्रवासी पक्षियों के इस बसेरे को लेकर कई तरह के खतरे और चुनौतियां भी सामने आती रही हैं. इंसान और प्रकृति के बीच जारी जंग से घराना भी बचा नही है. कड़े नियमों के कारण घराना में शिकार तो संभव नहीं है मगर कुछ लोग कई कारणों से प्रवासी पक्षियों के घराना आगमन से खुश नहीं होते. यह लोग प्रवासी पक्षियों के इस बसेरे के विस्तार, विकास और संरक्षण को लेकर किए जाने वाले प्रयासों का किसी न किसी कारण से विरोध करते रहे हैं.

घराना क्षेत्र को 1982 में वेटलैंड आरक्षित क्षेत्र घोषित कर वेटलैंड के लिए तकरीबन 1500 कनाल ज़मीन अधिसूचित कर दी गई थी. लेकिन सरकारी उदासीनता और कुछ स्थानीय लोगों के विरोध के कारण घराना पक्षी विहार को विकसित करने का काम गति नही पकड़ सका. यही नही अधिसूचित की गई ज़मीन भी अधिग्रहीत नहीं की गई.

लंबे समय से घराना वेटलैंड के विस्तार की योजना को लेकर प्रशासन और स्थानीय लोगों के बीच कश्मकश जारी रही है. घराना पक्षी विहार और वेटलैंड का विस्तार न हो इसे लेकर कुछ स्थानीय लोग विभिन्न तरीकों से प्रवासी पक्षियों को तंग भी करते रहे हैं. कभी पटाखे चला कर और कभी तालाब क्षेत्र में पत्थर आदि फेंक कर प्रवासी पक्षियों को भगाने की कोशिशें भी की जाती रही हैं.

हालांकि गांव के लोग पक्षियों को मारते नही हैं और अधिकतर लोग पक्षियों को मारना ‘पाप’ भी समझते हैं, मगर यह लोग पक्षियों का घराना में आना पसंद भी नही करते. उनकी अपनी कुछ ठोस चिंताएं हैं.

प्रवासी पक्षी अक्सर स्थानीय लोगों की फ़सल बर्बाद कर देते हैं जिस कारण स्थानीय लोगों में प्रवासी पक्षियों को लेकर नाराज़गी रहती है. स्थानीय लोगों की मांग रही है कि सरकार प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिए प्रयास करते समय उनकी फ़सलों को होने वाले नुक्सान को भी ध्यान में रखे और समय-समय पर उन्हें मुआवजा दे.

दरअसल भारत-पाक अंतराष्ट्रीय सीमा से सटे घराना गांव के लोगों की काफी जमीन पहले से ही सीमा पर तारबंदी होने से प्रभावित हो चुकी है. उन्हें अब डर है कि घराना पक्षी विहार और वेटलैंड के विस्तार से उन्हें ज़मीन का ओर भी नुक्सान उठाना पड़ सकता है. स्थानीय लोग सरकार द्वारा अधिग्रहीत की जाने वाली ज़मीन के लिए कम मुआवजा भी मिलने से नाराज़ हैं.


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कुछ लोगों को यह डर भी है कि वेटलैंड का विस्तार होने से किसानों को अपने ही खेतों में आना जाना मुश्किल हो जाएगा. गांव के तालाब में पशुओं को पानी पिलवाने और नहलवाने के लिए ले जाए जाने पर सख्त पाबंदी लग जाएगी. गांव के हर मामले में सरकारी अधिकारियों का हस्तक्षेप बढ़ जाएगा.

घराना वेटलैंड पर गहरी पकड़ रखने वाले पर्यावरणविद व पत्रकार गुलदेव राज मानते हैं कि प्रशासन स्थानीय लोगों की चिंताओं को ठीक से दूर नही कर पाया है और न ही उन्हें वेटलैंड को लेकर सही ढंग से जागरुक कर सका है. उनका कहना है कि घराना वेटलैंड़ का विस्तार और इसे पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए स्थानीय लोगों को विश्वास में लिया जाना चाहिए. उनका मानना है कि घराना का सही विकास तभी सार्थक होगा जब स्थानीय लोगों और प्रवासी पक्षियों के बीच सहज समन्वय और सामज्सय विकसित हो पाए. गुलदेव मानते हैं कि स्थानीय लोगों का सहयोग बहुत जरूरी है.

गुलदेव का कहना है कि स्थानीय लोगों को भी यह समझने की जरूरत है कि उनके गांव पर कुदरत मेहरबान है और इन प्रवासी पक्षियों के आते रहने से उनके गांव की तस्वीर बदल सकती है. उनका कहना है कि स्थानीय लोगों को प्रवासी पक्षियों के प्रति गहरी संवेदनशीलता दिखानी होगी.

घराना को लेकर अब जागी है सरकार

उल्लेखनीय है कि पर्यावरणविदों के लगातार प्रयासों से और जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय द्वारा किए गए हस्तक्षेप के बाद राज्य सरकार घराना वेटलैंड को लेकर सचेत हुई है और घराना वेटलैंड के संरक्षण और विकास के लिए बकायदा अब सरकार ने प्रयास तेज़ कर दिए है.


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प्रवासी पक्षियों के लिए आवश्यक भूमि का अधिग्रहण करने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं और कुल 408 कनाल भूमि को अधिग्रहीत किया जा रहा है. अधिग्रहीत की जानी वाली कुल 408 कनाल ज़मीन में से 353 कनाल ज़मीन स्थानीय लोगों की है जिन्हें सरकार मुआवज़ा देकर खाली करवा रही है. ज़मीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया लगभग शुरू कर दी गई है.

हालांकि पर्यावरणविदों की चिंताएं अभी भी कम नही हुई हैं. पर्यावरणविद मानते हैं कि घराना को विकसित करते समय पक्षियों के लिए प्राकृतिक रूप से अनुकूल वातावरण बना रहना चाहिए. उनका मानना है कि प्राकृतिक रूप से घराना जैसा है उसे वैसा ही रहने दिया जाना चाहिए. पर्यटको के लिए सुविधाएं जुटाते समय कंक्रीट के ढ़ाचे आदि नही बनाए जाने चाहिए. उनका मानना है कि पक्षी कृत्रिम वातावरण में रहना पसंद नहीं करते, उनके लिए प्राकृतिक माहौल ही जरूरी है और यह स्थिति हर हाल में बनी रहनी चाहिए.

(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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