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कोविड से लड़ने में मददगार हो सकता है जापानी तरीका इकिगाई, जानें क्या है इसका विज्ञान

 इकिगाई को हमारे अस्तित्व होने के कारण के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो हमें अपने दैनिक जीवन में संतुलन, आनंद एवं संतुष्टि की खोज करने में मदद करता है.

प्रतिनिधि छवि | पिक्साबे

जैसा कि हम जानते हैं, वर्ष 2019 से शुरू हुई कोविड-19 महामारी ने दुनिया को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है. स्वास्थ्य चुनौतियों के अलावा संक्रमण का डर, अस्पताल में भरती होना और बाद में ठीक होने के अलावा लोग बड़े पैमाने पर मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इससे जबरदस्त तनाव, भावनात्मक उथल-पुथल और चिंता पैदा हो रही है.

पिछले कुछ महीनों में लोगों को अपने जीवन में बहुत समायोजन करना पड़ा है—घर से काम करने की व्यवस्था से लेकर ऑनलाइन कक्षाओं या घर से पढ़ाना, काम-धंधा चलाने के तरीके में बदलाव करना, बेरोजगारी, आइसोलेशन, क्वारंटाइन से निपटने तक दुनिया भर में बहुत उतार-चढ़ाव आए हैं.

ऐसी स्थिति में हम इकिगाई के बारे में बात करना कैसे शुरू कर सकते हैं?

लोग चिंता एवं उदासीनता और मानसिक विकार का सामना कर रहे हैं. शायद यही स्थिति है, जो आत्मनिरीक्षण और अन्वेषण के माध्यम से हमारे आंतरिक स्वरूप से फिर से जुड़ने में संभवत: सहायक बन सके. इस संकट ने बहुतों के समक्ष सवाल खड़े किए हैं कि वास्तव में क्या महत्त्वपूर्ण है? जीवन की क्षणभंगुरता और इसकी नाजुक स्थिति ने लोगों को यह आकलन करने के लिए मजबूर किया है कि वे जो कर रहे हैं, वह वास्तव में सार्थक है या नहीं.

लोग इस तरह के सवालों पर विचार कर रहे हैं—

-क्या मेरा काम वास्तव में मेरा जुनून है?
-मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? मैं जिस संगठन में काम करता हूँ, उसका उद्देश्य क्या है? क्या दोनों के बीच तालमेल है?
-क्या मैं अपने कार्य-स्थल के माध्यम से जुड़ाव और महत्त्व को महसूस करता हूँ?

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सबसे पहले, गलत तालमेल और तनाव के लक्षणों की पहचान करना है—

– चिड़चिड़ापन, नकारना और क्रोध आना
– प्रेरणा की कमी
– भविष्य को लेकर अनिश्चितता की भावना
– लगातार हारा हुआ, थका हुआ, ऊबा हुआ महसूस करना
– अवसाद या उदासी महसूस करना
– नींद की समस्या
– एकाग्रता का अभाव.


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इकिगाई का विज्ञान

1990 के दशक की शुरुआत में पर्मा विश्वविद्यालय में एक लाभदायक शोध हुआ. तंत्रिका वैज्ञानिकों की एक टीम ने प्राइमेट्स (नर वानर) से संबंधित एक व्यापक अध्ययन में एक चौंकानेवाली खोज की—मकाक बंदरों के दिमाग में न्यूरॉन्स के कुछ समूह न केवल तब सक्रिय हुए, जब एक बंदर ने किसी वस्तु को हथियाने जैसी काररवाई की, बल्कि तब भी, जब बंदर ने किसी और को ऐसा करते देखा.

यह बस, मिरर न्यूरॉन्स की अवधारणा है

मिरर न्यूरॉन्स एक विशिष्ट न्यूरॉन्स समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो उस समय सक्रिय हो जाते हैं, जब कोई प्राणी कोई गतिविधि कर रहा हो और ये उस समय भी सक्रिय होते हैं, जब वह किसी दूसरे को वैसी ही या उसी तरह की गतिविधि करते देखता है.

तो मिरर न्यूरॉन्स इकिगाई से कैसे संबंधित हैं?

इकिगाई को हमारे अस्तित्व होने के कारण के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो हमें अपने दैनिक जीवन में संतुलन, आनंद एवं संतुष्टि की खोज करने में मदद करता है.

तो, यह मिरर न्यूरॉन्स से कैसे संबंधित है?

अन्य लोगों के साथ तुलना के संदर्भ में ही आप स्वयं को जान सकते हैं. क्योंकि स्वयं को जानने के लिए आपको दूसरों को भी जानना होगा.

इस अध्याय में हम उपलब्ध साहित्य, अध्ययन और शोध कार्यों के माध्यम से इकिगाई के विज्ञान का पता लगाएँगे.
ऐसा करने से पहले आइए, इकिगाई के विषय पर एक ऐतिहासिक अध्ययन के बारे में चर्चा करें. इसे ‘ओहसाकी अध्ययन’ कहा जाता है.

लगभग 44,000 जापानी वयस्कों के एक समूह के बीच आयोजित ओहसाकी अध्ययन एक संभावित कोहोर्ट अध्ययन था. अध्ययन का उद्देश्य ‘जीने लायक जीवन’ (इकिगाई) की भावना और कारण-विशिष्ट मृत्यु दर जोखिम के बीच संबंध का पता लगाना था.

यह पाया गया कि इस कोहोर्ट अध्ययन के दायरे में जिन लोगों को इकिगाई की भावना का अनुभव नहीं हुआ, उनमें विभिन्न कारणों से मृत्यु दर अधिक दिखाई पड़ी. मृत्यु दर में वृद्धि हृदय रोग और बाह्य‍ कारणों से हुई, लेकिन कैंसर से नहीं.

इससे हमें क्या पता चलता है?

कि इकिगाई का अनुशासित ढंग से पालन करके कुछ जानलेवा बीमारियों को छोड़कर हृदय रोग जैसी जीवन-शैली से जुड़ी विभिन्न बीमारियों से बचा जा सकता है.

एक अन्य दीर्घकालिक शोध में यह पता लगाने के लिए व्यापक अवधि में एक अध्ययन किया गया था कि प्रौढ़ व बुजुर्ग जापानी महिलाओं एवं पुरुषों में सभी कारणों और कारण-विशिष्ट मृत्यु का खतरा कम होने का, उनके जीवन में सकारात्मक मनोवैज्ञानिक कारक के रूप में इकिगाई की उपस्थिति का क्या कोई संबंध है?

8 वर्ष की लंबी अवधि में, 40-79 वर्ष के आयु वर्ग के लगभग 70,000 उत्तरदाताओं (30,000 पुरुषों और 43,000 स्त्रियों) ने इकिगाई के बारे में प्रश्न सहित जीवन-शैली से जुड़ी एक प्रश्नावली का जवाब दिया. अध्ययन के दौरान और इसके बाद की अवधि—दोनों मिलाकर कुल 12.5 वर्ष की मृत्यु दर उपलब्ध थी और इस अवधि में 10,021 मौतें दर्ज की गईं. यह देखा गया कि जिन पुरुषों एवं स्त्रियों ने इकिगाई को अपनाया था, उनमें दीर्घकालिक अनुवर्ती अवधि में सभी कारणों से मृत्यु दर का खतरा कम पाया गया था.

निष्कर्ष बताते हैं कि जापानी नागरिकों के दीर्घायु होने का संबंध इकिगाई जैसे सकारात्मक मनोवैज्ञानिक कारक से है.

( ‘इकिगाई सर्वोत्तम जीवन जीने की कला’ प्रभात प्रकाशन से छपी है. ये किताब पेपर बैक में 300₹ की है.)


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