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‘बिहार में आपका स्वागत है’; कितना उठापटक वाला रहा इस IPS का अब तक का सफर

बिहार के लिए मैं नया था और काफी अफसरों से इन राजनेताओं द्वारा तिरस्कृत होने की घटनाओं के बारे में सुन चुका था. पढ़िए बिहार काडर के आईपीएस की कहानी.

मुजफ्फरपुर पुलिस

‘मैं नौकरी छोड़ दूँगा मेरा अपमान किया तो.’ मैं सोचता जा रहा था, जब एक पूर्व मंत्री से मुलाकात करने बुद्धा मार्ग पर चल रहा था. बिहार के लिए मैं नया था और काफी अफसरों से इन राजनेताओं द्वारा तिरस्कृत होने की घटनाओं के बारे में सुन चुका था. कैसे उन्हें घर के बाहर घंटों खड़े रहना पड़ा. कुछ को तो खैनी भी तैयार करनी पड़ी थी.

‘साहब बगीचे में हैं. उन्होंने सुना है, आपने सहायक पुलिस अधीक्षक, पटना का पदभार ग्रहण किया है. वे आपसे मिलना चाहते हैं.’

राजनेता के निजी सहायक महेश बाबू ने मुझे बँगले में ले जाते हुए कहा. ‘मुझसे अच्छा बरताव नहीं किया तो मैं चुपचाप नहीं सहूँगा, तुरंत छोड़ दूँगा.’ फैले हुए विशाल लॉन पर जाते हुए मैं अपने दिमाग में दोहराता रहा. तबेले में कुछ गायें रँभा रही थीं. मैं यह सोच कर अचंभित था कि बगीचे के साथ गायों का यह तबेला बनाने का विचार किसका था? गोशाला के पास एक बास्केट बाॅल का कोर्ट था, जहाँ ‘छोटे साहब’ अभ्यास करते थे. जाहिर तौर पर, राजनेताजी का बेटा काफी अच्छा बास्केट बॉल का खिलाड़ी था. क्या उसकी परवरिश खिलाड़ी बनने के लिए की जा रही थी, या पिताजी के राजनीतिक दल की कमान भविष्य में सँभालने के लिए?

लॉन के अंतिम छोर पर लकड़ी के डंठलों की बुनी हुई कुर्सी पर, सामने रखी मेज पर पैर टिकाए हुए पूर्व मंत्रीजी बैठे दिखाई दिए. उन्होंने लुंगी व बनियान पहनी हुई थी, जिसमें से करोड़ों बाल उनकी पीठ एवं कंधों पर प्रदर्शित हो रहे थे.
मैं हर तरह के उपहास के लिए अपने आपको तैयार कर रहा था; पर झटका लगा मुझे.

‘आइए, आइए, लोढ़ा साहब. बिहार में आपका स्वागत है. मैंने सुना है, आप आई.आई.टी.यन हैं और आपके ससुर राजस्‍थान में अतिरिक्त महानिदेशक हैं, हैं न?’ मीठी-सी भोजपुरी भाषा के लहजे में राजनेताजी ने कहा.
लग रहा था, मेरी पूरी छानबीन कर चुके थे.

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‘नीबू-पानी लेंगे?’ कुर्सी से उठते हुए उन्होंने पूछा.

मैंने ‌स‌िर हिला दिया.

मैं उनकी सभ्यता से अचंभित था. जैसा मैंने उन खौफनाक खबरों में सुना था, वैसा उनके आचरण में कुछ नहीं दिखा. ‘काफी शिष्ट लग रहे हैं.’ मैं सोच रहा था.

उन्होंने लंबी जँभाई ली और फिर झटके से अपनी लूँगी खोल डाली. नीचे लाल लँगोट दिखाई दी. फिर लुंगी से उन्होंने अपनी पीठ रगड़ी और फिर से उसे अविचलित हुए पहन ली! मैंने हैरानी से अपनी आँखें कस कर बंद कर लीं. लुंगी के साथ जो करतब उन्होंने किया, उससे सारे शिष्टता के जो विचार आ रहे थे, वे काफूर हो गए.

मुझे अभी भी नहीं पता कि वह वास्तव में खुजला रहे थे या ऐसा उन्होंने मुझे हतोत्साहित करने के लिए किया था?
‘आप मैडम से मिले हैं? आजकल मैडम ही मंत्री हैं.’ गोशाला में उकड़ूँ बैठी महिला की ओर इशारा करते हुए पूर्व मंत्रीजी ने कहा. वह उठीं और गाय दुहना बंद कर अपनी साड़ी ठीक-ठाक करने लगीं.

‘नमस्ते, एस.पी. साहब.’ वह नरमी से बोलीं.

‘जय हिंद, मैडम! मैं अभी ए.एस.पी. ही हूँ.’ मैंने धीरे से सैल्यूट करते हुए कहा. मैडम को मेरे पद में गफलत करने की कोई परेशानी नहीं थी. बिना आगे बात किए वह वापस दूध दुहने में व्यस्त हो गईं.

आनेवाले साल में पता चला कि कितनी शक्तिशाली वह असल में थीं. पूरे रोब के साथ वह वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को आदेश देती थीं, ‘अरे, देखिए, एस.पी. साहब…इस मामले में कड़ी कार्रवाई करिए.’

सच है, कुर्सी सब सिखा देती है.

बिहार निवास ने मुझे काफी सिखाया, केवल पूर्व मंत्री, जो कि वास्तव में अच्छे व्यक्ति थे, के बारे में ही नहीं, वरन् लोगों को सँभालने के बारे में भी पता चला. वे सारी कहानियाँ, जो नेताजी के अफसरों के साथ बुरे व्यवहार की थीं—सब मन-गढ़ंत थीं. उन यादों को सोचकर अब तो हँसी आती है. मैंने सिर्फ अपमान के डर से भारतीय पुलिस सेवा को छोड़ने का विचार कैसे किया! एक ऐसा कॅरियर, जिसका सपना मैंने शुरू से सँजोया था.

बँगले को छोड़ते हुए कुछ हलकापन लगा. लग रहा था, जैसे शुरुआत कर रहा हूँ, किसी साहसिक कार्य का सूत्रपात. भारतीय पुलिस सेवा में मैं कैसे आया, सोच रहा था. अब तक का सफर कितना उठा-पटक का था.

( ‘मेरी ख़ाकी मेरी ज़िंदगी’ प्रभात प्रकाशन से छपी है. ये किताब पेपर बैक में 400₹ की है.)


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