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जम्मू में लाल सिंह के बगावती तेवर बिगाड़ सकते हैं खेल, दुविधा में भाजपा

जम्मू में भाजपा अपने ही नेता लाल सिंह की बगावत को लेकर दुविधा में है. वे अपनी अलग पार्टी बना चुके है पर उन्होंने अभी तक पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है और पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.

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फाइल फोटो: लाल सिंह/ फेसबुक

राजनीति भी अजीब खेल है, कब क्या हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता. कब अपने पराए हो जाएं और बेगाने अपने बन जाएं कहना आसान नही है. ऐसा ही कुछ मामला जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ, पूर्व सांसद व पूर्व विधायक लाल सिंह और भारतीय जनता पार्टी के बीच बना हुआ है. 2014 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस छोड़ कर लाल सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे तो भारतीय जनता पार्टी इसे अपनी एक बड़ी सफलता मानती थी पर आज वही लाल सिंह पार्टी के लिए एक बड़ा खतरा बने हुए हैं.

लाल सिंह ने पार्टी के खिलाफ खुली बगावत कर रखी है और भारतीय जनता पार्टी अपने ही नेता की बगावत को लेकर दुविधा में है. पार्टी को समझ नही आ रहा कि आखिर लाल सिंह के बगावती तेवरों से कैसे निपटे. पार्टी से न तो लाल सिंह को निकालते बन रहा है और न ही पार्टी में रखते बन पा रहा है. दिलचस्प स्थिति यह है कि अपनी अलग पार्टी बना चुके लाल सिंह ने भी अभी तक भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है. इस अजीबो-गरीब स्थिति में लाल सिंह अपनी ही पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.

बिगाड़ सकते हैं खेल

लाल सिंह एक नही बल्कि एक साथ दो लोकसभा क्षेत्रों से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने चुनाव मैदान में उतर चुके हैं. दोनों ही लोकसभा क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी की अच्छी पकड़ है, मगर लाल सिंह के चुनाव मैदान में आ जाने से सभी समीकरण गड़बड़ा गए है.

उल्लेखनीय है कि उधमपुर-डोडा लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह चुनाव लड़ रहे हैं जबकि जम्मू-पुंछ लोकसभा सीट से जुगल किशोर पार्टी के उम्मीदवार है. दोनों ने कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को हरा कर 2014 का लोकसभा चुनाव जीता था.


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जम्मू-पुंछ लोकसभा सीट से जुगल किशोर ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मदन लाल शर्मा को लगभग 3,00720 मतों से हराया था जबकि उधमपुर-डोडा सीट से जितेन्द्र सिंह ने कांग्रेस के ताकतवर नेता गुलाम नबी आज़ाद को 60,976 वोट से हरा कर जीत हासिल की था.

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मगर इस बार लाल सिंह द्वारा दोनों ही सीटों पर चुनाव लड़ने से भारतीय जनता पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों की जीत को लेकर प्रश्नचिन्ह लग गया है. लाल सिंह दोनों का ही खेल बिगाड़ सकते हैं

विशेषकर उधमपुर-डोडा सीट पर उनके ज़बरदस्त प्रभाव को देखते हुए केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह का सिरदर्द बढ़ गया हैं. लाल सिंह की उधमपुर-डोडा लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले हीरानगर, बसोहली, बिलावर व कठुआ विधानसभा क्षेत्रों में ज़बरदस्त पैठ है. रसाना मामले की जांच सीबीआई से करवाने की मांग को जिस ज़ोरदार ढ़ंग से लाल सिंह ने उठाया है उसका भी लाभ चुनाव में लाल सिंह को मिल रहा है. लगभग पूरा रसाना गांव लाल सिंह के समर्थन में दिखाई दे रहा है.

पहले थे कांग्रेस में

लाल सिंह और भारतीय जनता पार्टी का साथ बहुत लंबा नही रह पाया. लाल सिंह 2014 में ही भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे. जबकि भारतीय जनता पार्टी में आने से पहले लाल सिंह कांग्रेस में थे और उन्हें कांग्रेस का दिग्गज नेता माना जाता था. लाल सिंह उधमपुर-डोडा लोकसभा सीट से 2004 और 2009 में कांग्रेस टिकट पर जीत हासिल कर चुके हैं और कांग्रेस के विधायक भी रह चुके हैं.

2014 में कांग्रेस द्वारा उन्हें टिकट न देने पर और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद के साथ गहरे मतभेदों के चलते उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी व भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. भारतीय जनता पार्टी को भी उनके आने का लाभ मिला और 2014 में पार्टी उम्मीदवार जितेन्द्र सिंह की जीत में उनकी अहम भूमिका रही.

बाद में लाल सिंह ने बसोहली विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता और पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री भी बने. जल्दी ही लाल सिंह की गिनती भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में होने लगी थी.

रसाना प्रकरण से बढ़ी दूरियां

भारतीय जनता पार्टी से लाल सिंह की नाराज़गी का कारण बना रसाना प्रकरण. उल्लेखनीय है कि कठुआ ज़िले के रसाना गांव में गत वर्ष एक आठ साल की मासूम से बलात्कार और बाद में हत्या का मामला सामने आया था. इस सिलसिले में जो आरोपी पकड़े गए थे, उनके कथित समर्थन में रखे गए धरने में शामिल होने को लेकर उन्हें 13 अप्रैल 2018 को महबूबा मुफ़्ती सरकार से त्यागपत्र देना पड़ा था. उनके साथ भारतीय जनता पार्टी के एक ओर वरिष्ठ नेता चंद्र प्रकाश गंगा को भी मंत्री पद छोड़ना पड़ा था.

मंत्रीमंडल से बाहर होने के बाद गंगा तो चुप रहे मगर लाल सिंह शांत नही बैठे.रसाना मामले की सीबीआई से जांच करवाने की मांग को लेकर लाल सिंह सड़कों पर निकल पड़े और लोगों से समर्थन जुटाना शुरू कर दिया. मगर ऐसा करते हुए उन्होंने भारतीय जनता पार्टी नही छोड़ी और न ही पार्टी ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की. जब भी पार्टी से लाल सिंह के बारे में कुछ पुछा गया तो पार्टी ने सवाल को टाल दिया.

इस बीच लाल सिंह लगतार सक्रिय बने रहे और 22 जुलाई 2018 को उन्होंने बकायदा एक गैर राजनीतिक संगठन-‘डोगरा स्वाभिमान संगठन’ का गठन भी कर लिया, लेकिन भारतीय जनता पार्टी फिर भी खामोश रही.

कुछ दिनों बाद लाल सिंह ने ‘डोगरा स्वाभिमान संगठन’ को राजनीतिक संगठन में परिवर्तित कर दिया मगर भारतीय जनता पार्टी ने तब भी लाल सिंह के विरुद्ध किसी भी तरह का कदम नही उठाया. उलटा भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष रविन्द्र रैणा यह कर स्थिति संभालते रहे कि लाल सिंह को मना लिया जाएगा.

उधर, वक्त गुज़रता चला गया और 2019 का लोकसभा का चुनाव भी आ गया मगर लाल सिंह न तो माने और न ही उन्होंने पार्टी छोड़ी. लाल सिंह ने अचानक चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया, बावजूद इसके भारतीय जनता पार्टी ने खामोशी ओढ़े रखी.


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इस बीच लाल सिंह ने जम्मू-पुंछ लोकसभा क्षेत्र से और उधमपुर-डोडा लोकसभा सीट से नामांकन भी भर दिया. लेकिन प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रविन्द्र रैणा नाम वापिस लेने की आखिरी तारिख तक कहते रहे कि ‘चुनाव में नामांकन पत्र भरे जाते हैं और बाद में वापिस भी ले लिए जाते हैं’. लेकिन लाल सिंह ने दोनों ही सीटों से अपना नामांकन वापिस नही लिया और अभी भी चुनाव मैदान में पूरी ताकत से डटे हुए हैं.

उल्लेखनीय है कि जम्मू-पुंछ लोकसभा क्षेत्र के लिए 11 अप्रैल को मतदान होगा जबकि उधमपुर-डोडा लोकसभा सीट के लिए 18 अप्रैल को वोट डाले जाने है.

लाल सिंह के चुनाव लड़ने से भारतीय जनता पार्टी की मुश्किल बढ़ गई हैं. लाल सिंह जिस ढ़ग से अपनी चुनावी सभाओं में रसाना मामले को उठा रहे हैं उससे वे भारतीय जनता पार्टी के लिए लगातार परेशानी बढ़ा रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक दिनेश मन्होत्रा मानते हैं कि लाल सिंह को नज़रअंदाज करना भारतीय जनता पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है. दिनेश का कहना है कि लाल सिंह को मिलने वाले वोट ही हार-जीत तय करेंगे.

विवादों से पुराना नाता

लाल सिंह का विवादों से गहरा नाता रहा है. कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर विवादित टिपण्णी कर दी थी जिसका विडियो काफी वायरल हुआ था. इसके अलावा जम्मू कश्मीर का स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए डॉक्टर समुदाय के साथ आए दिन उनके विवाद होते रहे हैं. एक महिला डॉक्टर के साथ हुए विवाद का मामला भी काफी गरमाया था. राज्य के वन मंत्री रहते हुए भी उनके कुछ बयान विवादों की वजह बन चुके हैं.

गत वर्ष लाल सिंह के भाई राजेन्द्र सिंह ने जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के बारे में आपत्तिजनक टिपण्णी कर दी थी,जिस कारण बहुत बड़ा विवाद पैदा हो गया था. बाद में राजेन्द्र सिंह की इस मामले में गिरफ्तारी भी हुई थी.

(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं. लंबे समय तक जनसत्ता से जुड़े रहे अब स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं )

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