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यूक्रेन आक्रमण: बेलारूस कैसे रूस का मोहरा बन गया

नताल्या चेर्निशोवा, आधुनिक इतिहास में वरिष्ठ व्याख्याता, विंचेस्टर विश्वविद्यालय

लंदन, 8 मार्च (द कन्वरसेशन) पिछले 18 महीनों से बेलारूस को जकड़े राजनीतिक संकट ने राष्ट्रपति अलियाक्संद्र लुकाशेंका को एक शांतिदूत से यूक्रेन पर व्लादिमीर पुतिन के युद्ध में एक मोहरे के रूप में बदलते देखा है।

पूर्वी यूक्रेन में लड़ाई समाप्त करने के लिए 2015 में वार्ता की मेजबानी करने के बाद, बेलारूस ने अब अपने पड़ोसी पर रूसी हमले को सुविधाजनक बनाने का विकल्प चुना है। ऐसा करते हुए, लुकाशेंका ने अपने राज्य की संप्रभुता को उसके क्षेत्र पर एक भी गोली चलाए बिना आत्मसमर्पण कर दिया।

मिन्स्क और मास्को के बीच संबंधों का एक लंबा और जटिल इतिहास रहा है। 2020 की बेलारूसी क्रांति तक, लुकाशेंका ने विदेश नीति में सतर्क स्वतंत्रता बनाए रखी। इसमें रूसी सेना को बेलारूस से बाहर रखना शामिल था।

हालांकि, अगस्त 2020 के कपटपूर्ण राष्ट्रपति चुनावों के बाद देश आधुनिक इतिहास के सबसे बड़े विरोध प्रदर्शन का साक्षी बना। अपनी 26 वर्षों की सत्ता में सबसे बड़ी चुनौती का सामना करते हुए, लुकाशेंका ने नाटो-विरोधी बयानबाजी का रास्ता चुना, जिसका मकसद पुतिन के साथ-साथ घरेलू जनता को लुभाना था।

उन्होंने दावा किया कि पश्चिम बेलारूस को अस्थिर करने और इसे ‘‘रूस के खिलाफ इस्तेमाल करने’’ के लिए विरोध प्रदर्शन को हवा दे रहा था। यह रणनीति काम कर गई। लुकाशेंका की कमजोर स्थिति में क्रेमलिन ने एक अवसर देखा और समर्थन की पेशकश की।

एक सोवियत गणराज्य

प्रथम विश्व युद्ध के बाद बेलारूस पहली बार विश्व मानचित्र पर दिखाई दिया। रूस में 1917 की क्रांति ने जारशाही साम्राज्य को गिरा दिया। बाद की बेलारूसी भूमि पर जर्मन कब्जे ने स्थानीय राष्ट्रवादियों को मार्च 1918 में बेलारूसी पीपुल्स रिपब्लिक की घोषणा करने में सक्षम बनाया। जर्मनी के पतन के बाद, बोल्शेविक 1919 में एक सोवियत बेलारूसी गणराज्य की स्थापना के लिए लौट आए। और इसके बाद के अराजक वर्षों में, बेलारूसी भूमि का एक बड़ा हिस्सा 1921 रीगा शांति संधि के तहत पोलैंड में चला गया।

सोवियत बेलारूस 1922 में सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक (यूएसएसआर) के संघ का संस्थापक सदस्य था और इतिहासकार टेरी मार्टिन के अनुसार इसने मॉस्को की सकारात्मक कार्रवाई के तहत राष्ट्र-निर्माण की एक संक्षिप्त अवधि का आनंद लिया। इस सोवियत नीति का उद्देश्य बहु-जातीय संघ में गैर-रूसी अल्पसंख्यकों की मूल भाषाओं और संस्कृतियों को बढ़ावा देकर उनका विश्वास जीतना था।

हालाँकि, 1920 के दशक के उत्तरार्ध से, बेलारूसीकरण की इस प्रक्रिया को बंद कर दिया गया। 1930 के दशक के स्टालिनवादी दमन ने बेलारूस को कई अन्य गणराज्यों की तुलना में अधिक प्रभावित किया और इसके सांस्कृतिक अभिजात वर्ग को नष्ट कर दिया गया।

1939 में नाजी जर्मनी और यूएसएसआर के बीच गैर-आक्रामकता के मोलोटोव-रिबेंट्रॉप समझौते ने बेलारूस के पूर्व-युद्ध क्षेत्र को लगभग दोगुना कर दिया, यह एक ऐसा लाभ था जो 1945 के बाद पलटा नहीं गया। दूसरे विश्व युद्ध में बेलारूस को बहुत नुकसान हुआ, उसने किसी अन्य यूरोपीय देश की तुलना में अपनी आबादी का एक बड़ा हिस्सा खो दिया।

युद्ध ने राष्ट्रीय मानस पर गहरे निशान छोड़े, लेकिन सोवियत साम्राज्य में देश के स्थान को मजबूत करने का भी काम किया। मॉस्को से युद्ध के बाद का निवेश आया। 1970 के दशक तक, बेलारूस आर्थिक रूप से सबसे सफल सोवियत गणराज्यों में से एक था।

एक जटिल रिश्ता

अंतिम सोवियत दशकों की स्थिरता और समृद्धि ने कई बेलारूसियों को यूएसएसआर को मरते हुए देखने के लिए अनिच्छुक बना दिया। और 1994 में लुकाशेंका के राष्ट्रपति चुने जाने से पहले ही, मिन्स्क ने रूस के साथ घनिष्ठ आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को आगे बढ़ाया।

लुकाशेंका ने जल्दी ही समझ लिया कि रूस के साथ आर्थिक एकीकरण एक अच्छा विचार है। उन्होंने दोनों देशों के बीच आर्थिक और विदेश नीति सहयोग पर जोर दिया। 1999 में, बेलारूस और रूस ने संघ राज्य की स्थापना के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर किए। इस अस्पष्ट रूप से परिभाषित संधि के अनुसार दोनों राज्य अपनी संप्रभुता बनाए रखते हैं लेकिन कुछ सुपरनैशनल संस्थानों को साझा करते हैं।

अधिकांश बड़े एकीकरण लक्ष्य – एकल मुद्रा; समान कराधान; एक संयुक्त रक्षा नीति – कभी अमल में नहीं आए। और रूसी ऊर्जा संसाधनों पर बेलारूस की निर्भरता से दोनों राज्यों के बीच संबंध और अधिक तनावपूर्ण हो गए, लुकाशेंका नियमित रूप से क्रेमलिन के साथ रूसी गैस और तेल के लिए रियायती कीमतों पर सौदेबाजी करते रहे।

इस बीच, बेलारूसियों के रूस के साथ घनिष्ठ संबंध हो सकते थे (अधिकांश रूसी भाषी होने के नाते) लेकिन वे रूसी संघ के साथ पूर्ण विलय के विचार पर नाखुश थे। यह आंशिक रूप से स्वतंत्रता की एक नई आदत है। यह बाद के सोवियत युग में राष्ट्रीयताओं के लिए उस परस्पर विरोधी दृष्टिकोण की विरासत भी है, जब व्यक्तिगत गणराज्यों की जातीय पहचान को सुपर-जातीय सोवियत पहचान के साथ बढ़ावा दिया गया था। बेलारूसी राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया 1991 में शुरू नहीं हुई थी। यह देश को यूएसएसआर से स्वतंत्रता प्राप्त करने से बहुत पहले शुरू हो गई थी।

महत्वपूर्ण क्षण

2010 की शुरुआत से यूक्रेन पर पुतिन के आक्रामक रुख ने शुरू में लुकाशेंका को चिंतित किया। बेलारूस के लिए एक नजीर कायम होने के ख्याल से चिंतित, लुकाशेंका ने अपनी सरकार को रूस से दूर करने के लिए राष्ट्रवादी बयानबाजी का इस्तेमाल किया, हालां​​​​कि मॉस्को ने दोनों देशों को एकीकृत करने में दिलचस्पी बढ़ा दी।

2014 में, लुकाशेंका ने क्रीमिया के रूस के कब्जे को औपचारिक रूप से मान्यता देने से परहेज किया और इसके बजाय पश्चिम की ओर रुख किया। 2020 तक, क्रेमलिन के साथ संबंध एक नए निचले स्तर पर पहुंच गए थे।

और फिर 2020 की घटना हुई। लुकाशेंका की हिंसक कार्रवाई ने पश्चिमी प्रतिबंधों को लागू किया, जो मिन्स्क द्वारा अपने हवाई क्षेत्र में एक अंतरराष्ट्रीय उड़ान को अपहृत करने के बाद तेज हो गया। उन्होंने पोलिश सीमा पर एक प्रवासी संकट का निर्माण किया, जिसके लिए बेलारूस को व्यापक निंदा और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा।

2020 के अंत तक, अथक दमन ने विरोध आंदोलन को भूमिगत होने पर मजबूर कर दिया। बेलारूस में मौजूदा समय में 1,076 राजनीतिक कैदी थे, लेकिन हजारों को हिरासत में लिया गया, और उत्पीड़न से बचने के लिए कई लोग देश छोड़कर भाग गए।

इस बीच, नवंबर 2021 में, मिन्स्क और मॉस्को ने एक व्यापक आर्थिक एकीकरण कार्यक्रम पर हस्ताक्षर किए और एक संयुक्त सैन्य सिद्धांत पर सहमति व्यक्त की। लुकाशेंका के अंतरराष्ट्रीय अलगाव ने पुतिन को कीव से केवल 50 मील की दूरी पर बेलारूसी-यूक्रेनी सीमा पर रूसी सैनिकों की उपस्थिति को स्वीकार करने के लिए मिन्स्क को मजबूर करने का एक नया मौका दिया।

इसने निस्संदेह यूक्रेन पर हमला करने के मास्को के फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और जबकि मिन्स्क ने दावा किया है कि उसके सैनिक अभी तक शामिल नहीं हैं, फिर भी बेलारूस ने परमाणु हथियारों को छोड़ने के अपने 1994 के फैसले को उलटने के लिए कदम उठाए हैं। 27 फरवरी, 2022 को, एक राष्ट्रीय जनमत संग्रह ने परमाणु मुक्त रहने के लिए देश की संवैधानिक प्रतिज्ञा को समाप्त कर दिया।

लुकाशेंका शासन ने लंबे समय से चुनावी परिणामों को अपने हिसाब से तोड़ा मरोड़ा है और यह जनमत संग्रह अलग नहीं था। बेलारूसियों के बीच युद्ध-विरोधी भावना मजबूत बनी हुई है, जैसा कि जनमत संग्रह के दिन सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शित किया, जो यूक्रेन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए सामने आए; 800 को गिरफ्तार किया गया।

दमन से थके हुए और उनके विपक्षी नेताओं के निर्वासित या कैद होने के कारण, आम बेलारूसियों के पास सरकार का प्रभावी ढंग से विरोध करने के लिए बहुत कम विकल्प बचे हैं। अगर वे लुकाशेंका से लड़ने की कोशिश करते हैं, तो उनके खिलाफ राज्य की सेना और विशेष बलों का इस्तेमाल किया जा सकता था। लेकिन अगर लुकाशेंका ने अपनी सेना को पुतिन के युद्ध में झौंकने का फैसला किया, तो यह सब बदल सकता है।

द कन्वरसेशन एकता एकता

एकता

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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