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कटिबंधीय पक्षी अधिक रंगीन होते हैं और रंग उन्हें जीवित रहने में मदद करते हैं

क्रिस कोनी और गेविन थॉमस, शेफ़ील्ड विश्वविद्यालय

शेफ़ील्ड (यूके), 11 अप्रैल (द कन्वरसेशन) हम में से बहुत से लोगों के लिए, उष्णकटिबंधीय का नाम लेते ही हरी-भरी वनस्पति और जीवंत तथा हैरान कर देने वाले चमकीले रंगों के पक्षियों, कीड़ों और अन्य प्राणियों की तस्वीर जहन में उभरती है।

यह एक व्यापक धारणा रही है कि दुनिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र सबसे रंगीन प्रजातियों का घर हैं – एक विचार जो शायद 19 वीं शताब्दी का है, जब चार्ल्स डार्विन सहित प्रसिद्ध प्रकृतिवादियों ने उनकी उच्च अकांक्ष गृहभूमि की तुलना में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ‘‘रंगों की समृद्ध विविधता’’ पर टिप्पणी की थी।

हालांकि, अब तक, प्रजातियों की रंगीनता के इस भौगोलिक पैटर्न के निर्णायक सबूत बहुत स्पष्ट नहीं रहे हैं।

पहले के एक अध्ययन में पाया गया कि दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय पक्षी उत्तरी अमेरिका की तुलना में अधिक रंगीन थे, जिनमें यूरोपीय पक्षी सबसे कम रंगीन थे। लेकिन अन्य अध्ययनों, जैसे कि ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर पक्षियों को देखने पर, यह पाया गया कि यह शुष्क क्षेत्रों में रहने वाली प्रजातियां थीं – और भूमध्य रेखा के नजदीक नहीं – जिनके पंखों के रंग सबसे चटख थे ।

इसलिए, मुद्दा अनसुलझा रह गया।

नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन नामक पत्रिका में प्रकाशित हमारे नए शोध में, हमने अंततः पाया है कि यह प्रवृत्ति सही प्रतीत होती है – जैसा कि डार्विन ने सुझाव दिया था, गीत गाने वाले पक्षियों की उष्णकटिबंधीय प्रजातियां वास्तव में उनके गैर-उष्णकटिबंधीय समकक्षों की तुलना में अधिक रंगीन हैं।

और हम सोचते हैं कि यह आंशिक रूप से भीड़ में अलग खड़े होने की आवश्यकता के कारण हो सकता है, उष्णकटिबंधीय समुदायों में एक साथ रहने वाली विभिन्न प्रजातियों की उच्च सांद्रता के कारण।

4,500 सोंगबर्ड प्रजातियों का अध्ययन

यूके के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में वैश्विक पक्षी नमूना संग्रह का उपयोग करते हुए हमने दुनिया भर से ट्रॉपिकल पैराडाइज टैनेजर (टंगारा चिलेंसिस) से लेकर उच्च अक्षांश ब्राउन डिपर (सिनक्लस पल्लासी) तक – दुनिया भर के सॉंगबर्ड की 4,500 से अधिक प्रजातियों के वयस्क नर और मादा नमूनों की डिजिटल तस्वीरें खींची।

हमने सोंगबर्ड्स (जिन्हें पैसेरिन के रूप में भी जाना जाता है) को चुना क्योंकि वे सभी पक्षी प्रजातियों के लगभग 60 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं।

‘‘डीप लर्निंग’’ नामक एक अत्याधुनिक कंप्यूटर तकनीक – जो छवियों से बड़ी मात्रा में जटिल डेटा को संसाधित और वर्गीकृत करना सीखने में सक्षम है – ने हमें प्रत्येक तस्वीर में हजारों पिक्सेल से जानकारी निकालने में मदद की।

हम तब लाल, हरे और नीले प्रकाश के साथ-साथ पराबैंगनी के संदर्भ में प्रत्येक तस्वीर में पंखों के रंगों की छाया और तीव्रता को मापने में सक्षम थे – यह महत्वपूर्ण था क्योंकि पक्षियों के पास मनुष्यों की तुलना में व्यापक दृष्टि होती है और वे रंगों को पराबैंगनी प्रकाश स्पेक्ट्रम में देख सकते हैं।

इस जानकारी का उपयोग करते हुए, हमने प्रत्येक पक्षी के पंखों में अलग-अलग रंगों की संख्या के आधार पर, प्रत्येक प्रजाति की रंगीनी का सटीक अनुमान तैयार किया।

जब हमने दुनिया भर में प्रजातियों के रंगीन स्कोर में भिन्नता का मानचित्रण किया, तो हमें इस बात के पुख्ता सबूत मिले कि पक्षियों की रंगीनी आमतौर पर भूमध्य रेखा पर सबसे अधिक होती है और ध्रुवों की ओर बढ़ते अक्षांश के साथ घटती है – विशेष रूप से, उनके पंख उष्ण कटिबंध के बाहर उच्च अक्षांशों पर रहने वाले अन्य पक्षियों की तुलना में लगभग 20% -30% अधिक रंगीन होते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि यह नर और मादा दोनों पक्षियों के लिए सच था, भले ही वे कभी-कभी एक दूसरे से बहुत अलग दिख सकते हैं।

इसलिए, हमने डार्विन की टिप्पणियों को सही साबित कर दिया – अगला कदम यह जांचना था कि रंगों की अधिकता के क्या कारण और लाभ हो सकते हैं।

रंग का लाभ

कई संभावित सिद्धांत थे।

शायद भूमध्य रेखा के पास अधिक अनुकूल जलवायु – तापमान और वर्षा के मामले में, उदाहरण के लिए – उष्णकटिबंधीय प्रजातियों को इससे अपने पंखों में अधिक रंग भरने में अधिक ऊर्जा निवेश करने में मदद मिली। या शायद पारिस्थितिक कारकों का प्रभाव, जैसे कि उनके आवास में प्रकाश की मात्रा, पक्षियों की उपस्थिति को प्रभावित कर सकती है।

इन परिकल्पनाओं का परीक्षण करने के लिए, हमने अपने अध्ययन में प्रजातियों की पर्यावरणीय और पारिस्थितिक विशेषताओं के बारे में जानकारी एकत्र की, और डेटा विश्लेषण का उपयोग करके प्रजातियों में रंगों में भिन्नता को समझने में मदद मिल सकती है।

हमने पाया कि वर्षावनों जैसे घने, बंद वन आवासों के पक्षियों में और फल और पुष्प परागकण खाने वालों में भी रंग विविधता सबसे अधिक थी। दोनों लक्षण उष्णकटिबंधीय अक्षांशों में अधिक सामान्य हैं।

एक ही स्थान पर एक साथ रहने वाले सोंगबर्ड प्रजातियों की औसत संख्या भूमध्य रेखा की ओर नाटकीय रूप से बढ़ जाती है, इसलिए यह बढ़ी हुई रंगीनी उन्हें अपने समृद्ध उष्णकटिबंधीय समुदायों में अन्य सभी पक्षियों से खुद को अलग करने में मदद कर सकती है।

जैसा कि 19वीं शताब्दी के ब्रिटिश प्रकृतिवादी अल्फ्रेड रसेल वालेस ने एक बार कहा था: ‘‘प्राकृतिक वस्तुओं में शायद उनके रंग ही हैं, जिनसे हमें इतना शुद्ध और बौद्धिक आनंद प्राप्त होता। आने वाली पीढ़ियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्राकृतिक दुनिया की शानदार रंगीनी कभी कम न हो।

द कन्वरसेशन एकता एकता

एकता

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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